Dec २५, २०१७ १७:०१ Asia/Kolkata

जेहाद की अनेक शाखाएं हैं और सभी धर्मों में इसे अच्छा व्यवहार बताते हुए इसकी अनुशंसा की गयी है।

जेहाद की उत्पत्ति जहद शब्द से हुयी और इसका अर्थ है कोशिश करना और पूरी ताक़त व क्षमता का इस्तेमाल करना । जब कोई व्यक्ति किसी काम को अंजाम देने के लिए अपनी पूरी शक्ति व क्षमता का इस्तेमाल करता है और उद्देश्य तक पहुंचने के लिए कठिनाइयों को सहन करता है तब कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति ने जेहाद किया है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई फ़रमाते हैं, “जीवन के हर क्षेत्र में जेहाद है। जेहाद जोखिम और भविष्य में उम्मीद के साथ निरंतर कोशिश को कहते हैं जिसके नतीजे में सफलता मिलती है।”

जेहाद का अर्थ रक्तपात व जंग नहीं है जैसा कि इस्लामोफ़ोबिया का प्रचार करने वाले और राजनेता इसका यह अर्थ पेश करते हैं। इस्लाम में जेहाद अतिक्रमण को दूर करने या अत्याचारियों के अत्याचारों से पीड़ित को मुक्ति दिलाने के लिए होता है। जिस समय पीड़ित मदद की गुहार लगाता है तो उसकी गोहार की अनदेखी करना सही नहीं है। जेहाद के इस अर्थ पर इस्लाम में बहुत बल दिया गया है।

अफ़सोस की बात है कि आज के दौर में जेहाद शब्द आतंकवादी गुटों जैसे किराए के टट्टुओं के हाथ का खिलौना बन गया है। वे बहुत की बेरहमी व निर्दयता से इराक़, सीरिया, यमन और दूसरे देशों में बेगुनाह लोगों का जनसंहार करके उसे जेहाद कहते हैं। इन दिनों दूसरों को काफ़िर कहने वाली वहाबी तकफ़ीरियों ने जेहाद के सुंदर अर्थ को गहरा आघात पहुंचाया है। आतंकवादी गुट दाइश जेहाद के नाम पर ऐसे घिनौने अपराध कर रहा है जिसे सुन कर मानवता का सिर शर्म से झुक जाता है। दाइश ने पवित्र जेहाद के नाम पर सबसे घिनौने व्यवहार से अपने कर्मपत्र को कलंकित किया है। यह जेहाद के अर्थ पर बहुत बड़ा अत्याचार है।

जेहाद उस प्रभावी कोशिश को कहते हैं जो इंसान को आगे ले जाती और उसे उसके लक्ष्य तक पहुंचाती है। विद्वानों व आविष्कारकों की निरंतर कोशिश को विज्ञान के क्षेत्र में जेहाद कहा जा सकता है। वरिष्ठ नेता कहते हैं, “मानव समाज के जीवन के सामान्य क़ानून व नियम के अनुसार, हर समाज का सम्मान, शक्ति, हैसियत और पहचान उसकी कोशिश व संघर्ष पर निर्भर है।” वरिष्ठ नेता आगे कहते हैं, “जो चीज़ राष्ट्रों को इतिहास में और उनके दौर में दुनिया के अन्य राष्ट्रों के बीच सम्मान दिलाती है वह उनकी कोशिशों व संघर्ष है।”    

जेहाद की अनेक शाखाएं हैं। आर्थिक जेहाद, सांस्कृतिक जेहाद और समाज के उत्थान के लिए जेहाद इत्यादि लेकिन इस्लाम में एक और प्रकार का जेहाद है जिसे सबसे बड़ा जेहाद कहा गया है और वह है इच्छाओं से संघर्ष अर्थात संतुलन की हद तक भौतिक चीज़ों और जीवन की सुविधाओं से फ़ायदा उठाना न कि उसमें खो जाना। इसे इच्छाओं से जेहाद कहा गया है। अपन इच्छाओं को दबा कर दूसरे लोगों की ज़रूरत को पूरी करने की कोशिश इच्छाओं से संघर्ष की एक अन्य मिसाल है। इस आसमानी धर्म में बौद्धों की तरह एकान्तवास और आत्म निर्माण के लिए कीलों पर चलने और ख़ुद को तकलीफ़ देने से मना किया गया है बल्कि लोगों के बीच सक्रिय रूप में से मौजूद रहने व उनकी मुश्किलों को दूर करने, प्रयास करने व पलायन करने को जेहाद अर्थात संघर्ष कहा गया है। अलबत्ता इन सेवाओं का लक्ष्य ईश्वर की प्रसन्नता हासिल करना हो न कि ख़ुद को दिखाना। सभी हाल में ईश्वर को याद करना और उसकी ख़ुशी के लिए काम करना इस्लाम की मूल्यवान शिक्षाएं हैं। इच्छाओं से जेहाद अर्थात संघर्ष को इस्लाम में सबसे कठिन संघर्ष बताया गया है और इसकी पवित्र क़ुरआन और ईश्वर के विशेष बंदों ने बहुत अनुशंसा की है।

जेहाद की एक क़िस्म बलिदान व त्याग है। पवित्र क़ुरआन के शब्दों में जेहाद के इस दर्जे पर हर आदमी नहीं पहुंच जाता बल्कि ईश्वर के ख़ास बंदों को ही यह सौभाग्य हासिल होता है। इस विषय की व्याख्या में वरिष्ठ नेता फ़रमाते हैं, “इस्लाम में जेहाद का उद्देश्य आस्था थोपना नहीं है, बल्कि उन लोगों के ख़िलाफ़ उठ खड़े होना है जो आम लोगों को ग़ुलामी की तरफ़ ले जाते हैं। इस्लाम में जेहाद राष्ट्रों से जंग करना नहीं है बल्कि अत्याचारी शक्तियों से जंग करना है। यह इस्लाम का इतिहास रहा है। यही इस्लाम के पथप्रदर्शकों का आचरण रहा है और इसी बात की उन्होंने अनुशंसा की है। मोमिनों के सरदार हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मालिके अश्तर के नाम कि जब उन्हें मिस्र का राज्यपाल नियुक्त किया तो अपने आदेश में एक अमर बात कही कि तुम्हें वहां ऐसे लोगों से सामना होगा जो आस्था की दृष्टि से तुम्हारे जैसे होंगे या इंसान होने की दृष्टि से तुम्हारे समान होंगे। जो लोग आस्था की दृष्टि से तुम्हारे जैसे नहीं हैं लेकिन इंसान हैं तो उनका सम्मान करना।” जैसा कि पवित्र क़ुरआन के मुमतहेना सूरे की आयत नंबर 8 में ईश्वर कह रहा है, “ईश्वर तुम्हें उन लोगों के साथ भलाई और न्याय करने से मना नहीं करता जो धर्म के मार्ग में तुमसे नहीं लड़े  और न ही तुम्हें तुम्हारे वतन से निकाला। बेशक ईश्वर न्याय करने वालों को पसंद करता है। यह क़ुरआन का आदेश है कि काफ़िरों के साथ, उन लोगों के साथ जिनकी आस्था तुमसे अलग है, लेकिन उन्होंने तुम्हारे ख़िलाफ़ अतिक्रमण नहीं किया, अत्याचार नहीं किया, तुमसे अत्याचारपूर्ण व्यवहार नहीं किया, तो उनके साथ भलाई करो। भलाई करना कि यह इस्लाम का आदेश है।”        

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई का मानना है कि जेहाद का अर्थ संघर्ष है और संघर्ष का अर्थ कभी भी जंग नहीं है। इस विषय की व्याख्या में वरिष्ठ नेता फ़रमाते हैं, “संघर्ष यानी एक दुश्मन या रुकावट के ख़िलाफ़ भरपूर कोशिश। अगर इंसान के रास्ते में कोई रुकावट न हो तो संघर्ष का वजूद ही न होगा। एक पक्की व समतल सड़क पर इंसान अपनी गाड़ी की टंकी पेट्रोल से भरे और एक्सेलरेटर दबाता हुआ फ़र्राटे दार सफ़र करे तो इसे संघर्ष नहीं कहेंगे। संघर्ष वहां होता हैं जहां इंसान को किसी रुकावट का सामना होता है। यह रुकावट अगर मानवीय मोर्चे पर हो तो इसे दुश्मन कहते हैं और अगर प्राकृतिक मोर्चे पर हो तो उसे प्राकृतिक रुकावट कहते हैं। अगर इंसान इस तरह की रुकावट का सामना होने पर उसे दूर करने की कोशिश करे तो इसे संघर्ष कहेंगे। अरबी भाषा में जेहाद का यही अर्थ है। यानी संघर्ष। पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के कथन में भी जेहाद का अर्थ संघर्ष है। हर जगह सशस्त्र लड़ाई के अर्थ में नहीं है। मोमिनों के सरदार हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, “जेहाद की चार शाखाएं हैं। भलाई का हुक्म देना, बुराई से रोकना, सच बात कहना और अपने दृष्टिकोण में निष्ठा। उसी अर्थ में जैसा कि हम आज के दौर में दृष्टिकोण अपनाने के संबंध में कहते हैं कि इंसान अपने राजनैतिक व सामाजिक दृष्टिकोणों में निष्ठावाना हो इसलिए दृष्टिकोण अपनाने में निष्ठा व सच्चाई एक प्रकार का जेहाद है।”

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई कहते हैं कि इस्लाम में जेहाद का अर्थ उन राष्ट्रों की मदद करना है जो पर्दे के पीछे साम्राज्यवादी व अत्याचारी नीतियों की भेंट चढ़े हुए हैं कि उन तक मार्गदर्शन करने वाले इस्लाम का प्रकाश नहीं पहुंचा। वरिष्ठ नेता का मानना है कि इन पर्दों को हटाने के लिए साम्राज्यवादियों के ख़िलाफ़ जेहाद करना चाहिए और यही इस्लाम में जेहाद का अर्थ है। वरिष्ठ नेता इस संबंध में पवित्र क़ुरआन के निसा नामक सूरे की आयत नंबर 75 में फ़रमाते हैं, “क्यों ईश्वर के लिए उन पुरुषों, महिलाओं व बच्चों की मदद के लिए संघर्ष नहीं करते जो अत्याचारियों के हाथों कमज़ोर बना दिए गए हैं।” वरिष्ठ नेता इस आयत के मद्देनज़र फ़रमाते हैं, “यह आयत यह कहते हुए कि ईश्वर के मार्ग में जेहाद क्यों नहीं करते, तुरंत कहती है कि पीड़ितों को मुक्ति दिलाने के लिए। यह ज़िम्मेदारी की भावना जागृत करना है। अर्थात तुम अपनी जान को ख़तरे में डालों, जान हथेली पर रखकर ख़तरों के मैदान में कूद पड़ो ताकि पीड़ितों को मुक्ति दिला सको। अर्थात इस्लाम इंसान से चाहता है कि वे ज़िम्मेदार बने अपने संबंध में और अपने निकटवर्तियों, अपने समाज और पूरी मानव जाति के संबंध में ज़िम्मेदार बनें।”           

वरिष्ठ नेता युवा वर्ग से जेहाद की व्याख्या में फ़रमाते हैं, “मैं अपनी प्रिय युवा पीढ़ी को एक वास्तविक संघर्ष के लिए आमंत्रित करता हूं। जेहाद सिर्फ़ जंग करना और जंग के मैदान में जाना ही नहीं है। विज्ञान, शिष्टाचार, राजनैतिक सहयोग और शोध के क्षेत्र में कोशिश भी संघर्ष की श्रेणी में आती है। समाज में सही विचार व संस्कृति के चलन के लिए कोशिश भी जेहाद है। ये सब ईश्वर के मार्ग में जेहाद हैं। यह जेहाद साम्राज्यवादियों, अत्यारचारियों और उन लोगों के ख़िलाफ़ है जिन्हें इस्लाम, ईरान, पहचान, राष्ट्रीयता, और इस्लामी विशेषताओं से दुश्मनी हैं।” पवित्र क़ुरआन के फ़त्ह नामक सूरे की आयत नंबर 29 में ईश्वर कह रहा है, “काफ़िरों के ख़िलाफ़ दृढ़ और आपस में मेहरबान हैं। पवित्र क़ुरआन की इस आयत के अनुसार, मुसलमानों को चाहिए कि काफ़िरों के ख़िलाफ़ कठोर हों। ये काफ़िर कौन हैं? हर उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ कठोर नहीं होना चाहिए जो मुसलमान नहीं है। पवित्र क़ुरआन कह रहा है जो लोग तुमसे नहीं लड़ते, तुम्हारे ख़िलाफ़ साज़िश

नहीं करते, तुम्हारी नस्ल व राष्ट्र का विनाश करना नहीं चाहते, चाहे तुम्हारे धर्म में न हों, उनके साथ भलाई करो। उनके साथ अच्छा व्यवहार करो। वह काफ़िर जिसके ख़िलाफ़ कड़ाई बरतना है वे इस प्रकार के लोग नहीं हैं। जैसा कि मुमतहेना सूरे की आयत नंबर 9 में ईश्वर कह रहा है, तुम्हें उन लोगों से दोस्ती व संपर्क से रोका जाता है जिन्होंने धर्म के मामले में तुमसे लड़ाई की और तुम्हें तुम्हारे वतन से बाहर निकाल दिया। उन लोगों के ख़िलाफ़ कड़ाई करना चाहिए जो तुम्हारी पहचान, इस्लाम, राष्ट्रीयता, देश, संप्रभुता, अखंडता, सम्मान, मां बहनों की इज़्ज़त, परंपरा, संस्कृति और मूल्यों के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं।”

 

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