इस्लाम और मानवाधिकार- 60
जीवन में हम सब को कभी न कभी कठिनाइयों व समस्याओं और इसी प्रकार अच्छे अवसरों और अच्छे सुझावों का सामना होता है जिनके बारे में कोई निर्णय करने में शंका की स्थिति पैदा हो जाती है।
ऐसी स्थिति में अनुभवी लोगों की सलाह लेना बहुत उचित उपाय है।
इस्लाम धर्म में सलाह मशविरे को बड़ा महत्व दिया गया है। इस आसमानी धर्म ने परामर्श तथा परामर्शदाता के अधिकारों के बारे में बहुत से निर्देश दिए हैं। यह निर्देश मानवाधिकार के किसी दस्तावेज़ में नहीं आए हैं लेकिन इनसे यह बात साफ़ है कि धर्म इंसान के आपसी संबंधों पर कितनी गहरी नज़र रखता है।

इस्लाम में सलाह मशविरे को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम अनेक अवसरों पर ईश्वरीय क़ानून को लागू करने की विधि और शैली के बारे में आम लोगों की परामर्श बैठक करवाते थे ताकि इससे एक तरफ़ सलाह मशविरे के महत्व से लोग परिचित हौं और इसे अपनी जीवनशैली का भाग बनाएं और दूसरी ओर लोगों की चिंतन क्षमता बढ़े। विशेषज्ञों की राय को पैग़म्बरे इस्लाम हमेशा महत्व देते थे और उन्हें बड़ा सम्मान दिया करते थे और कभी कभी अपनी राय पर उनकी राय को प्राथमिकता देते थे।
जो लोग सलाह मशविरे के साथ काम करते हैं और जानकार लोगों की राय लेते हैं उनसे ग़लतियां कम होती हैं। जबकि इसके विपरीत केवल अपनी मर्जी चलाने वाले लोग जो दूसरों के परामर्श को ग़ैर ज़रूरी समझते हैं आम तौर पर बार बार ग़लतियां करते हैं।
सलाह मशविरे का एक फ़ायदा यह होता है कि कामों को लेकर विशेष उत्साह पैदा होता है और काम बहुत ठोस तरीक़े से अंजाम पाते हैं। काम करते समय हो सकता है कि कोई व्यक्ति संदेह में हो लेकिन जब उसे दूसरों का सही मशविरा मिल जाता है और वह जान जाता है कि उसने जो फ़ैसला किया है वह सही है तो शंका की स्थिति से बाहर निकल आता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि मशविरे से इंसान को मार्गदर्शन मिलता है। इसी तरह एक अन्य स्थान पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति दूसरों से मशविरा करता है तो उसकी बुद्धि और चिंतन शक्ति में सहभागी बन जाता है। अर्थात मशविरा लेकर इंसान दूसरों की बुद्धि से फ़ायदा उठाता है और अपनी ग़लतियों से अवगत हो जाता है।
सलाह मशविरे का एक फ़ायदा यह है कि इंसान दूसरों के व्यक्तित्व के महत्व से अवगत होता है तथा अपने प्रति उनकी दोस्ती और दुशमनी का भी उसे अनुमान हो जाता है। इस जानकारी से भी उसके लिए बहुत से रास्ते समतल होते हैं। मशविरे से दुशमन को और उसकी दुशमनी के स्तर को भी पहचाना जा सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि अपने दुशमनों से मशविरा करो इस लिए कि इस तरह तुम उनकी दुशमनी के स्तर को नाप सकते हो तुम अपने प्रति उनके विचारों और योजनाओं को भांप सकते हो। इंसान ने यदि दुशमन से मशविरा किया है तो इस लिए नहीं कि उसकी राय के अनुसार काम करे बल्कि उसकी सोच और फ़ैसलों का उसे ज्ञान हो जाए।

कभी संभव है कि इंसान को किसी काम से गहरा लगाव है होता है और यही लगाव इस बात का कारण बनता है कि वह उस काम के नकारात्मक पहलुओं को नहीं देख पाता है लेकिन जब वह व्यक्ति किसी इंसान से मशविरा करे तो निष्ठावान राय से अवगत हो सकता है। इस लिए कि आम तौर पर इच्छा और मनावेश का असर फ़ैसलों पर पड़ता है और नतीजे में इंसान कभी एसी दिशा में बढ़ने लगता है जो उसके हित में नहीं है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि इंसान को मशविरे के लिए प्रोत्साहित किया गया है इसलिए कि मशविरा देने वाला इंसान अपनी निष्ठपूर्ण राय बयान करता है। इस लिए इस मामले में मशविरा उसी व्यक्ति से करना चाहिए जिसका इस मामले में कोई फ़ायदा या नुक़सान न हो। यदि कोई व्यक्ति घर ख़रीदना चाहता है या शादी करना चाहता है तो संभव है कि उस घर से बहुत अधिक लगाव के कारण या इस शादी की गहरी इच्छा के कारण उसकी कमियों को न देख पाए लेकिन जो व्यक्ति मशविरा दे रहा है उसे इस घर या शादी में कोई रूचि नहीं है अतः वह निष्ठापूर्ण राय दे सकता है।
जो व्यक्ति अच्छे कामों के लिए दूसरों से मशविरा करता है यदि उसे सफलता मिलती है तो उससे लोगों को जलन नहीं होती। क्योंकि दूसरे लोग उसकी सफलता को अपनी सफलता भी समझते हैं और इंसान उस काम से कभी जलन महसूस नहीं करता जिसमें उसकी अपनी भी कोई भूमिका रही हो। यदि उस व्यक्ति को काम में सफलता न मिली तो लोग उस पर कटाक्ष नहीं करेंगे इस लिए कि कोई भी व्यक्ति अपने किए काम पर कटाक्ष नहीं करता। यही नहीं एसे समय में हमदर्दी जताता है।

यह भी बिलकुल सामने की बात है कि हर किसी से मशविरा नहीं लिया जा सकता। इस लिए कि कुछ लोगों के भीतर ऐसी कमियां होती हैं कि यदि उनके मशविरे पर काम किया जाए तो बड़े बुरे नतीजे निकलते हैं। कैसे लोगों से मशविरे का सुझाव दिया गया है? प़ैगम्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि बुधिमान और हमदर्द लोगों से मशविरा करना बहुत अच्छा मर्गदर्शन और बरकत वाला काम है और इससे ईश्वर भी उस इंसान की मदद करता है। इसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अपने एक साथी हश्शाम से इस बारे में कहा कि हे हश्शाम धर्माववलंबी लोगों के साथ उठना बैठना दुनिया व परलोक दोनों में प्रतिष्ठा का रास्ता है बुद्धिमान और अच्छी सीख देने वाले व्यक्ति से मशविरा करना उत्थान का आधार और ईश्वर की ओर से मिलने वाली विशेष सहायता है। यदि तुमने किसी समझदार व्यक्ति से मशविरा किया है तो फिर उसकी राय का विरोध करने से बचो।
कुछ लोगों से मशविरा करने से मना किया गया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि तीन समूहों से कभी मशविरा न करो। कंजूस व्यक्ति से मशविरा न करो इसलिए कि वह तुम्हें दान और दूसरों की मदद करने से रोक देगा तथा ग़रीबी से डराएगा। इसी तरह डरपोक व्यक्ति से मशविरा न करो इसलिए कि वह तुमको महत्वपूर्ण काम करने सक रोक देगा इसी तरह लालची लोगों से मशविरा न करो इसलिए कि वह धन दौलत या पद के लालच में अत्याचारी को तुम्हारे सामने अच्छा बनाकर पेश करेंगे।
इसी तरह इस्लाम में उन लोगों को जिनसे आम तौर पर लोग मशविरा लेते हैं यह सिफ़ारिश की गई है कि निष्ठा के साथ शुभचिंतक बने रहें क्योंकि मशविरे में विश्वासघात बहुत बड़ा गुनाह है। इमाम हुसैन के सुपुत्र हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम कहते हैं कि यदि किसी ने तुमसे मशविरा मांगा तो उसको उसी चीज़ की राय दो जो तुम्हें खुद अपने लिए पसंद है और उससे यह भी कहो कि यदि मैं तुम्हारी जगह होता तो यह काम करता। इस लिए कि इंसान महत्वपूर्ण काम अंजाम देने के समय घबराया हुआ रहता है और इस हालत से बाहर निकलने और काम में कोई रुकावट न आने देने के लिए दूसरों के मशविरे का मोहताज होता है।

एक स्थान पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मशविरा देने में कठोरता न बरतो क्योंकि इस तरह किसी व्यक्ति का चैन और सुकून ख़त्म हो सकता है। उचित होगा कि इंसान से जब कोई मशविरा मांगा जाए तो अपने इस दायित्व को बहुत अच्छी तरह निभाए और उस व्यक्ति का हक़ अदा करे। दूसरी बात यह है कि यदि किसी मामले में एक इंसान की कोई राय नहीं है और वह किसी एसे व्यक्ति को जानता है जिसके पास उस मामले में जानकारी है तो उसे चाहिए कि खुलकर यह बात बता दे और दूसरे व्यक्ति का पता उसे दे दे।
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने अनेक लोगों के हक़ बयान करते हुए कहा कि जिस व्यक्ति ने तुमसे मशिवरा मांगा है उसका हक़ तुम पर यह है कि यदि तुम्हारे पास कोई अच्छी सोच और राय है तो उसकी नसीहत करो और उसे उस काम का मशविरा दो कि यदि तुम्हें करना होता तो तुम भी वही काम करते। तुम्हारी नसीहत बहुत नर्मी और प्रेम के साथ होनी चाहिए इस तरह उसका डर और घबराहट दूर हो जाएगी और उसे संतुष्टि मिल जाएगी जबकि कठोरता दिखाने की स्थिति में उसका डर और बढ़ जाएगा। यदि तुम्हें जानकारी नहीं है तो उसे एसे व्यक्ति का पता बताओ जिस पर तुम्हें विश्वास है और अपने कामों में मशविरे के लिए तुम उसका सहारा लेते हो। शुभचिंता और नसीहत में कभी कोताही न करो। सारी शक्ति ईश्वर के पास है।

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम मशविरा देने वाले के अधिकार के बारे में कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने तुम्हें मशविरा दिया है उसका हक़ यह है कि यदि उसने तुम्हारी इच्छा के विपरीत मशविरा दिया है तो उस पर आरोप न लगाओ। इसलिए कि चीज़ों के बारे में लोगों की राय अलग अलग होती है और उनमें मतभेद होता है। यदि तुम्हें उसका मशविरा पसंद नहीं आया है तो उसे स्वीकार करने या ठुकरा देने का तुम्हारे पास अधिकार है लेकिन उस पर आरोप लगाना उचित नहीं है। यदि तुम्हारे विचार में वह एसे लोगों में से है जो मशविरा देने की क्षमता रखते हैं तो यदि उसने अच्छा मशविरा दिया है तो उसका शुक्रिया अदा करना न भूलो और इस नेमत पर ईश्वर का गुणगान करो और इस प्रतीक्षा में रहो कि यदि किसी दिन उसने तुमसे मशविरा किया तो उसको वैसा ही बदला दो और ईश्वर के अलावा किसी और से किसी पारितोषिक की आशा न रखो।