मार्गदर्शन- 65
इस्लाम में जेहाद का अर्थ संघर्ष है और इस पर बहुत अधिक बल दिया गया है।
ईश्वर पवित्र क़ुरआन में अनेक स्थान पर जेहाद के विभिन्न उद्देश्य को बयान करता और इसके लिए इस्लाम के कार्यक्रम की स्पष्ट छवि और ईश्वर के मार्ग में संघर्ष की उपयोगिता को पेश करता है। जैसा कि बक़रह सूरे की आयत नंबर 90 में ईश्वर कहता है, "जो लोग तुम्हारे साथ जंग करते हैं तुम भी उनके साथ जंग करो लेकिन हद से आगे न बढ़ो क्योंकि ईश्वर हद से आगे बढ़ने वालों को दोस्त नहीं रखता।"
इस आयत से यह स्पष्ट होता है कि इस्लाम में जिस जेहाद की बात की गयी है वह ईश्वर के मार्ग में होता है और इसमें किसी के व्यक्तिगत मामलों से कोई लेना-देना नहीं है। इस आयत में जेहाद की एक और अहम शर्त का उल्लेख है और वह दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण न करना है क्योंकि ईश्वर अतिक्रमणकारियों को दोस्त नहीं रखता। इसलिए जब मुसलमानों की जान, धर्म, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, मूल्य और आस्था पूरी दुनिया में ख़तरे में पड़ जाए तो मुसलमानों पर अनिवार्य है कि ख़तरे को दूर करने और अत्याचार को ख़त्म करने के लिए संघर्ष करे। इसलिए संघर्ष का उद्देश्य न्याय की स्थापना और इस्लामी समाज में शांति व सुरक्षा को बाक़ी रखना है और इसमें व्यक्तिगत बदले व द्वेष का कोई स्थान नहीं है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई जेहाद का अर्थ बयान करते हुए कहते हैं, "जेहाद की कसौटी तलवार और जंग का मैदान नहीं है। जेहाद के लिए हमारी आज की फ़ारसी भाषा में समतुल्य शब्द मोबारेज़ा अर्थात संघर्ष है।" जैसा कि हम लोग कहते हैं अमुक व्यक्ति संघर्षील है और अमुक व्यक्ति संघर्षशील नहीं है। संघर्षशील लेखक, उदासीन लेखक, संघर्षशील विद्वान, उदासीन विद्वान, संघर्षशील छात्र, आलसी छात्र, संघर्षशील समाज, उदासीन व आलसी समाज, तो इस तहर जेहाद का अर्थ है संघर्ष। संघर्ष के लिए दो चीज़ अनिवार्य है। एक हरकत व सक्रियता और दूसरे मुक़ाबले में दुश्मन का वजूद। जहां दुश्मन न हो वहां संघर्ष नहीं है। इस तरह स्थायी संघर्ष के लिए यह दो तत्व ज़रूरी हैं। अगर कोई व्यक्ति अपने दोस्त के विरुद्ध सक्रिय हो तो यह संघर्ष नहीं बल्कि फ़ित्ना है। इसलिए इस्लाम में यह जंग और संघर्ष सिर्फ़ रणक्षेत्र तक सीमित नहीं है बल्कि संघर्ष जीवन के हर मोड़ पर होता है। अर्थात जिस जगह या जिस क्षण कोई काम ईश्वर के लिए होता है, उसे ईश्वर के मार्ग में संघर्ष कहा जाता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस बारे में कहते हैं, "जो काम ईश्वर की प्रसन्नता के लिए किया जाता है उसे ईश्वर के मार्ग में संघर्ष कहते हैं। जब कोई इंसान सत्य की बात या इस्लाम का नाम रौशन करने, इस्लामी जगत और ईरान के मोमिन व मुसलमान राष्ट्र को सम्मान दिलाने के लिए कोशिश करे, उसे ईश्वर का मार्ग कें संघर्ष कहा जाएगा।" वरिष्ठ नेता इस दृष्टिकोण के साथ कर्मचारियों व श्रम बल से अनुशंसा करते हैं, "काम अपने आप में कर्तव्य, उपासना व पुन्य होने के साथ साथ इसमें दो दृष्टि से ईश्वर का सामिप्य हासिल करना निहित है। एक लोगों को फ़ायदा पहुंचना और दूसरे दूसरों से आवश्यकतामुक्त होना। इसलिए ईश्वर का सामिप्य हासिल करने की नियत रखिए और जान लीजिए कि इस नियत के साथ आपका काम आपको ईश्वर के निकट करेगा।"
वरिष्ठ नेता आर्थिक दृष्टि से कोशिश की अहमियत को समझाने के लिए कहते हैं, "एक भ्रष्ट विचार यह पाया जाता है कि इंसान अपने व्यक्तिगत जीवन में अपनी भौतिक चीज़ों को अहमियत न दे, उसे नज़रअंदाज़ करे। इस्लाम ने ऐसा नहीं कहा है, बल्कि इसके विपरीत कहा गया है। जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, "अगर परलोक को दुनिया पाने के लिए छोड़ दिया तो इस परीक्षा में तुम नाकाम हो गए और अगर दुनिया को परलोक पाने के लिए छोड़ दिया तो इसमें भी तुम नाकाम हो गए। यह बहुत अहम है। हज़रत अली का जब ऐसे व्यक्ति से सामना हुआ जिसने बीवी, बच्चे, घर बार, जीवन और हर चीज़ को त्याग दिया था और उपासना में लगा रहता था, फ़रमाया, हे अपने दुश्मन। क्यों अपने आप से दुश्मनी कर रहे हो जबकि ईश्वर तुमसे ऐसा नहीं चाहता। जैसा कि आराफ़ सूरे की आयत नंबर 32 में ईश्वर कह रहा है, हे पैग़म्बर कह दीजिए कि किसने ईश्वर की ओर से पैदा की गयी ज़ीनत के साधन और पवित्र आजीविका को अपने लिए हराम कर लिया है? इसलिए लोक-परलोक में संतुलन। योजनाओं, व्यक्तिगत कर्म और देश के संचालन में भी लोक-परलोक पर नज़र रखना ज़रूरी है। यह प्रगति का एक अहम मानदंड है।"
इस आधार पर ईश्वर के मार्ग में संघर्ष का एक क्षेत्र आर्थिक क्षेत्र है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई की नज़र में आर्थिक संघर्ष सद्दाम की सेना के मुक़ाबले में पवित्र प्रतिरक्षा के दौरान जारी सैन्य संघर्ष का ही क्रम है। वरिष्ठ नेता फ़रमाते हैं, "आज हमें अपने आर्थिक क्षेत्र के लिए युद्ध स्तर पर संघर्ष की ज़रूरत है। एक ख़ास तरह की जंग। आज कोई शख़्स देश की अर्थव्यवस्था में मदद करे तो उसने जेहादी अर्थात संघर्षपूर्ण क़दम उठाया है। यह संघर्ष है। अलबत्ता हर संघर्ष की अपनी शैली होती है। इस संघर्ष को भी विशेष उपाय व शैली के ज़रिए अंजाम देना चाहिए।" वरिष्ठ नेता का मानना है कि इस समय देश का मूल मुद्दा आर्थिक मुद्दा है और दुश्मनों ने ईरानी राष्ट्र के ख़िलाफ़ संघर्ष में अपना पूरा ध्यान आर्थिक क्षेत्र पर केन्द्रित कर रखा है। इसलिए वरिष्ठ नेता राष्ट्र व देश के अधिकारियों से आर्थिक संघर्ष के लिए आह्वान करते हुए फ़रमाते हैं, "अतीत में क्षेत्र की जनता और देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग अतिक्रमणकारी व लूटपाट करने वाली सरकारों के मुक़ाबले में डट चुके हैं लेकिन आज इन शक्तियों के मुक़ाबले में अधिक जटिल, संवेदनशील व विविधतापूर्ण दृढ़ता की ज़रूरत है। एक जटिल संघर्ष की ज़रूरत है।
हर प्रकार के संघर्ष में कठिनाइयां होती है और उसमें सफल होने के लिए मुश्किलों पर धैर्य ज़रूरी है। इसी तरह हर प्रकार के संघर्ष में सफल होने का मंत्र भी मुश्किलों से पार पाना है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस बारे में फ़रमाते हैं, "ईश्वर आध्यात्मिक नेमतों को भौतिक नेमतों की तरह आसानी से नहीं देता और अगर दे दे तो उसे हमारे लिए आसानी से सुरक्षित नहीं रखता। जिस तरह मानव जाति की सभी उपलब्धियां निरंतर कोशिश का नतीजा है, उन्हें सुरक्षित रखने के लिए कोशिश, संघर्ष व बलिदान की ज़रूरत है। आप ध्यान दें कि वैज्ञानिक व प्रौद्योगिक सफलताएं हासिल करने वाले या राजनैतिक व आर्थिक नेतृत्व करने वाले राष्ट्र धनवान व शक्तिशाली हुए हैं, ये उनकी कोशिशों का नतीजा है। यह इस्लामी सिद्धांत है, जो जल्द गुज़र जाने वाले दुनिया में जीवन चाहता है हम उसमें से जितना चाहते हैं उसे दे देते है।" यह उन लोगों के बारे में है जो दुनिया चाहते हैं। जो लोग मूल्य व संस्कार चाहते हैं और मूल्यवान दुनिया कि वही परलोक है, उनके लिए ईश्वर इसरा सूरे की आयत नंबर 20 में कह रहा है, "जो लोग परलोक चाहते हैं और उसके लिए ईमान के साथ कोशिश करते हैं तो उन्हें इस कोशिश का बदला दिया जाएगा।" उसके बाद ईश्वर कहता है हम सबकी मदद करते हैं। इनकी भी और उनकी भी। जिस व्यक्ति ने जिस मार्ग पर कोशिश की ईश्वर उसकी मदद करता है और उपलब्धियां हासिल करने का मानदंड कोशिश है।
आर्थिक संघर्ष का अर्थ बहुत अधिक कोशिश करना है जिसमें धन बांटना और आर्थिक प्रगति के लिए उचित शैली व साधन के इस्तेमाल से कम से कम ख़र्च करना शामिल है। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैं कि आर्थिक संघर्ष का अर्थ आर्थिक क्षेत्र में दुश्मन के ख़िलाफ़ निरंतर गंभीरता के साथ कोशिश करना है जिसमें ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करना उद्देश्य हो। वरिष्ठ नेता फ़रमाते हैं, "आर्थिक संघर्ष का अर्थ है दुश्मन की दुश्मनी भरी कोशिश को नाकाम करने की नियत से ईरानी राष्ट्र की लक्ष्यपूर्ण निरंतर कोशिश।"
इस्लामी गणतंत्र राजनैतिक व सांस्कृतिक स्वाधीनता और अपनी भूराजनैतिक स्थिति के कारण हमेशा साम्राज्यवादी देशों की ललचायी नज़रों के निशाने पर रहा है। वरिष्ठ नेता इस बारे में फ़रमाते हैं, "साम्राज्य की नीति ईरानी राष्ट्र और इस्लामी गणतंत्र ईरान को आर्थिक हथकंदे से तबाह करना है। हालांकि पाबंदियां परमाणु ऊर्जा के नाम पर लगायी गयी हैं लेकिन वे झूठ कहते हैं। पाबंदियों का लक्ष्य अर्थव्यवस्था को तबाह करना हैं दुश्मन का लक्ष्य इस्लामी गणतंत्र ईरान को तबाह करना है अर्थात इस्लामी ईरान को नुक़सान पहुंचाना है। उस राष्ट्र को तबाह करना है जिसने अपने समर्थन से इस व्यवस्था को अब तक विकसित करके रौनक़ दिया है। इसलिए उसके मुक़ाबले में पूरी तरह लैस रहना चाहिए। दुश्मन के मोर्चे को पहचाने। उसके उपकरण और हथियार को पहचानें और उसके ख़िलाफ़ ख़ुद को तय्यार करें। इसके लिए आर्थिक संघर्ष की ज़रूरत है। संघर्ष का अर्थ क्या है? हर हरकत व सक्रियता को संघर्ष नहीं कह सकते। वह हरकत व सक्रियता जिसे संघर्ष कहते हैं यह है कि इंसान को पता हो कि वह दुश्मन के मुक़ाबले में है। अर्थात एक दुश्मनी भरी गतिविधि के मुक़ाबले में है। दुश्मनी भरी गतिविधि के मुक़ाबले में हरकत करना संघर्ष की मुख्य शर्तों में है।