मार्गदर्शन- 67
कार्य व प्रयास वह संस्कृति है जिसकी बुनियाद ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद रखी गयी।
26 खुर्दाद 1358 हिजरी शमसी को स्वर्गीय इमाम खुमैनी के एतिहासिक संदेश के साथ समूचे ईरान में पुनरनिर्माण व जेहाद आरंभ हो गया। जेहाद का अर्थ कार्य व प्रयास है और इस जेहाद के बहुत अधिक व मूल्यवान सुपरिणाम सामने आये हैं और इस जेहाद ने बहुत सी समस्याओं का समाधान कर दिया। समय बीतने के साथ- साथ आज यह जेहाद एक संस्कृति में परिवर्तित हो गया है। इस जेहाद का आधार धर्म है। परित्याग, जनप्रेम, आत्म विश्वास और सुद्ढ़ता आदि इसके कुछ उदाहरण हैं। इराक द्वारा ईरान पर थोपे गये आठ वर्षीय युद्ध के दौरान इसी संस्कृति के कारण लोगों ने धार्मिक शिक्षाओं व विश्वासों के आधार पर देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए हर प्रकार की कुर्बानी दी।
धार्मिक परिभाषा के अनुसार इस्लाम के उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जान- माल की कुर्बानी दे देने को जेहाद कहते हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई दुश्मन के मुकाबले के लिए की जाने वाली कोशिश को जेहाद के दो मूल आधार मानते हैं। वरिष्ठ नेता इस संबंध में कहते हैं” जेहाद का मापदंड रणक्षेत्र नहीं है बल्कि जेहाद का मापदंड वह चीज़ है जो आज फारसी भाषा के मुकाबले शब्द में है। जेहाद यानी मुकाबला। फारसी भाषा में युद्ध मुकाबले का अर्थ नहीं देता है। आप कहते हैं कि हम मुकाबला कर रहे हैं, वैज्ञानिक मुकाबला कर रहे हैं, सामाजिक मुकाबला कर रहे हैं, राजनीतिक मुकाबला कर रहे हैं, सशस्त्र मुकाबला कर रहे हैं। यह सब मुकाबला है और इन सब का अर्थ है। मुकाबला यानी एक रुकावट या दुश्मन के मुकाबले में सश्रम प्रयास। अगर इंसान के सामने कोई रुकावट न हो तो वहां मुकाबला नहीं है। अगर पक्की सड़क पर इंसान गाड़ी भगाता जाये तो उसे जेहाद नहीं कहते हैं। मुकाबला व जेहाद वहां है जहां इंसान को एक रुकावट का सामना हो और यह रुकावट मानवीय मार्चों पर इंसान का दुश्मन बन जाती है और प्राकृतिक मोर्चों पर प्राकृतिक रुकावट हो जाती है। अगर इंसान को इन रुकावटों का सामना हो। वह उन्हें दूर करने का प्रयास करे तो यह जेहाद होगा। अरबी भाषा में जेहाद का वही अर्थ है जिसका अर्थ फार्सी भाषा में मुकाबला है। कुरआन और हदीस में भी जेहाद का यही अर्थ है। जेहाद का अर्थ हर जगह सशस्त्र युद्ध नहीं है।“
जेहाद के इस प्रकार के अर्थ को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों के सदाचरण में भली- भांति देखा जा सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबंध में फरमाते हैं” ईश्वर के मार्ग में अपने हाथ से जेहाद करो, अगर हाथ से न कर सको तो अपनी ज़बान से करो, और अगर ज़बान से भी न कर सको तो अपने दिल से जेहाद करो।“
महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की प्रसन्नता को दृष्टि में रखकर समाज के उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि समस्त क्षेत्रों में किये जाने वाले प्रयास को जेहाद कहते हैं। जेहाद में ईश्वरीय धर्म इस्लाम के आदेशों व शिक्षाओं को नज़र में रखकर प्रयास किया जाता है और उसका लक्ष्य समाज में उसके मूल्यों को व्यवहारिक रूप देना होता है। इसी कारण ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई समस्त सामाजिक क्षेत्रों में उपस्थिति को जेहाद समझते और कहते हैं” एक जेहाद यह है कि आप रात से लेकर सुबह तक का समय एक योजना पर शोध में बिताते हैं, समय बीत जाने को समझते भी नहीं हैं। आप अपने मनोरंजन को छोड़ दें, अपने शारीरिक आराम को छोड़ दें, मुनाफे वाले कार्य को छोड़ दें और वैज्ञानिक व शोध कार्य में समय बितायें ताकि एक जीवित वैज्ञानिक वास्तविकता तक पहुंच जायें और उसे एक गुलदस्ते की भांति अपने समाज को पेश करें तो यह जेहाद है।
जेहाद के लिए एक ज़रूरी तत्व आत्म विश्वास है। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई आत्म विश्वास की भावना को मज़बूत करने को जेहाद के लिए ज़रूरी मानते और कहते हैं” खेद के साथ कहना पड़ता है कि ईरानियों को यह समझाने के लिए वर्षों प्रयास किया गया कि वे नहीं कर सकते परंतु इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने “हम कर सकते हैं” कि भावना को देश में जीवित कर दिया और उसके परिणाम को आज देश के विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है।“
परमाणु ऊर्जा, स्टेम सेल और कुछ असाध्य बीमारियों के उपचार सहित विभिन्न क्षेत्रों में ध्यान योग्य प्रगति और इसी प्रकार कुछ आविष्कार, आत्म विश्वास के परिणाम हैं। वास्तव में जिस समाज में आत्म विश्वास मौजूद है वह हर वक्त प्रयास करता है और रुकावटों व दुश्मनों से मुकाबला करता है। इस प्रकार का समाज ज़िम्मेदार समाज होता है वह अंधा अनुसरण नहीं करता है। इस प्रकार के समाज में रहने वाले लोग अपनी सकारात्मक एवं नकारात्मक विशेषताओं से अवगत होते हैं और सोच और अमल में अपनी स्वाधीनता की रक्षा करते हैं। इसी आधार पर इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आत्म विश्वास और ईश्वरीय सहायता पर विश्वास को जेहाद का महत्वपूर्ण कारक मानते और कहते हैं” जेहाद का महत्वपूर्ण तत्व आत्म विश्वास और ईश्वरीय सहायता पर विश्वास है। ईश्वर पर भरोसा और उससे मदद मांगने से निश्चितरूप से ईश्वर की सहायता उन मार्गों से आती है जिनके बारे में कल्पना भी नहीं की गयी है।“
ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी के मार्ग दर्शनों का एक उपहार आत्म विश्वास की भावना को जीवित करना है और यह वह बिन्दु है जो उनके उत्तराधिकारी वरिष्ठ नेता ने बारमबार बल देकर कहा है कि जैसाकि इमाम ख़ुमैनी ने फरमाया है कि हम कर सकते हैं और हमें दृढ़ संकल्प रखना चाहिये, राष्ट्रीय व जेहादी संकल्प से इन समस्त समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।“
जेहाद की एक विशेषता समाज के उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मौजूद समस्त संभावनाओं का प्रयोग और उनसे लाभ उठाया जाना है। अतः इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता समाज में क्षमताओं व संभावनाओं के होने पर बल देते हुए कहते हैं” अगर कोई राष्ट्र स्वयं को न पहचाने, स्वयं को मज़बूत न करे तो दूसरे उससे ज़ोर ज़बरदस्ती से बात करेंगे। कुछ राष्ट्र हैं जिनके मज़बूत होने में काफी समय लगेगा इसकी आशा भी नहीं है कि वे अपने अंदर एसी शक्ति पैदा करेंगे जिससे वे दुनिया के वर्चस्ववादियों का मुकाबला कर सकें परंतु हमारा राष्ट्र इस प्रकार का नहीं है। हमारे अंदर मजबूत होने की काफी क्षमता मौजूद है, मज़बूत होने के लिए हमारे पास काफी संभावनाएं हैं हमारा राष्ट्रों, राष्ट्र की मज़बूती की दिशा में चल पड़ा है और उसने काफी रास्ता तय भी कर लिया है। इस आधार पर हम इस वर्ष की पूरी योजना व कार्य दो चीज़ों अर्थ व्यवस्था और राष्ट्रीय संकल्प के साथ जेहाद की संस्कृति में देख रहे हैं।“
जेहाद ज्ञान व जानकारी के साथ समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है। अतः जेहाद के लिए एक ज़रूरी चीज़ ज्ञान व जानकारी है। अगर कार्य व प्रयास का आधार ज्ञान और ईश्वर की प्रसन्नता हो तो देश की समस्त समस्याओं का समाधान किया जा सकता है और देश प्रगति करेगा। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि क्रांति के आरंभ से आज तक जेहादी भावना के साथ हमारे राष्ट्र ने जिस मैदान में भी कदम रखा है उसमें सफल रहा है। इस चीज़ को हमने पवित्र प्रतिरक्षा के काल में देखा है, पुनरनिर्माण के काल में देखा है और वैज्ञानिक क्षेत्र में भी हम देख रहे हैं। अगर विभिन्न क्षेत्रों में हमारे पास जेहादी भावना हो यानी कार्य को ईश्वर के लिए पूरी तनमयता से अंजाम दिया जाये तो निःसंदेह इस कार्य में प्रगति होगी।“
हर समाज में बड़ा कार्य उच्च हिम्मत व प्रयास का परिणाम होता है। वरिष्ठ नेता के शब्दों में साधारण ढंग से काम करके आगे नहीं बढ़ा जा सकता। साधारण ढंग से काम करके या एहसास के बिना बड़ा कार्य अंजाम नहीं दिया जा सकता। बड़ा कार्य अंजाम देने के लिए जेहादी हिम्मत व मनोबल की ज़रूरत है। इस कार्य को शैक्षिक, पूरी शक्ति, कार्यक्रम और जेहादी भावना के साथ होना चाहिये।“
अलबत्ता अगर यह कार्य शुद्ध नियत और समाज की सेवा भावना से अंजाम दिया जाये तो महत्वपूर्ण व मूल्यवान होगा। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता देश के हित में सेवा भाव से स्वीकार की गयी जिम्मेदारी को सबसे बड़े जेहाद की संज्ञा देते और कहते हैं” अगर यह ज़िम्मेदारी पूरी तनमयता से स्वीकार की गयी हो, व्यक्तिगत कारणों से दूर हो और देश की सेवा भाव के अलावा हर प्रकार के कारण से दूर हो तो बहुत बड़ा जेहाद है। जेहाद का कार्य यानी यह। इसके लिए विभिन्न कारण नहीं होने चाहिये। प्राथमिकता को दृष्टि में रखना चाहिये।“
जेहाद के लिए एक ज़रूरी चीज़ दुश्मन की पहचान है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जो समाज अपने दुश्मन को न पहचान पाये और उसके ख़तरों को न समझ पाये तो वह उसके मुकाबले के लिए न तो सही कार्यक्रम बना सकता है और न ही रक्षा की उचित नीति अपना सकता है। इतिहास में एसे बहुत से समुदाय मिल जायेंगे जो अपने दुश्मनों से निश्चेतना और अनभिज्ञता के कारण नष्ट हो गये। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबंध में फरमाते हैं” जो अपने दुश्मन के मुकाबले में सो जाये यानी उसकी चालों से निश्चेत रह जाये तो शत्रु की चालें उसे नींद से जगा देंगी।“
इसी कारण ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की सिफारिशों में दुश्मन की पहचान का विशेष स्थान है। वरिष्ठ नेता दुश्मन की पहचान पर बल देते हुए कहते हैं” दुश्मन को पहचानना चाहिये, उसकी दुश्मनी को समझना चाहिये, उसके षडयंत्र को समझना चाहिये, यह हुआ एक जेहाद।“