Feb २१, २०१८ १७:०६ Asia/Kolkata

प्रकृति द्वारा उपलब्ध कराए गए संसाधनों में से एक, आर्द्रभूमि या वेटलैण्ड भी है जिन्हें फ़ारसी में तालाब कहा जाता है।

आर्द्रभूमि का अर्थ है नमीवाला या दलदली क्षेत्र। वास्तव में आर्द्रभूमि की मिट्टी झील , नदी या फिर किसी विशाल तालाब के किनारे का हिस्सा होती है जहां पर भरपूर नमी पाई जाती है। इसके बहुत से लाभ हैं।

भूजल स्तर को बढ़ाने में आर्द्रभूमियों की महत्तवपूर्ण भूमिका होती है। यह जल को प्रदूषण से मुक्त बनाती है। बाढ़ नियंत्रण में भी वेटलैण्ड की महत्तवपूर्ण भूमिका होती है। आर्द्रभूमि तलछट का काम करती है जिससे बाढ़ में कमी आती है। आर्द्रभूमियां पानी को रोके रखती हैं। बाढ़ के दौरान आर्द्रभूमियां पानी का स्तर कम बनाए रखने में सहायक होती हैं। इसके अलावा आर्द्रभूमि, पानी में मौजूद तलछट और पोषक तत्वों को अपने भीतर समा लेती है और इन्हें सीधे नदी में जाने से रोकती है। ऐसे में झील, तालाब या नदी के पानी की गुणवत्ता बनी रहती है। आर्द्रभूमियां या वेटलैण्ड, वास्तव में जल के महत्वपूर्ण स्रोत होने के साथ ही साथ पृश्वी पर रहने वाले बहुत से जीवधारियों एवं वनस्पतियों के खाद्य भण्डार भी होते हैं। इनमें नाना प्रकार के जीव-जंतुओं का पोषण होती है। आर्द्रभूमियां, धरती के हर क्षेत्र में पाई जाती हैं।

 

वेटलैण्ड, धरती के संतुलन को बनाए रखने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें नम और शुष्क दोनों प्रकार के वातावरण की विशेषताएं पाई जाती हैं। वेटलैंड, प्राकृतिक जैव-विविधता के अस्तित्व के लिए अति महत्वपूर्ण हैं। आर्द्रभूमियां या वेटलैण्ड, न केवल महत्वपूर्ण जलस्रोत हैं बल्कि पानी में रहने वाले बहुत से जीवों का शरणस्थल भी हैं। आर्द्रभूमियों से होने वाले लाभ और उनमें पाई जाने वाली विशेषताओं के कारण लोगों को इस प्राकृतिक स्रोत की सुर्क्षा के प्रति सजग रहना चाहिए।

इसी उद्देश्य से 2 फ़रवरी, 1971 को ईरान के रामसर शहर में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन में आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए रामसर नगर में एक अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि हुई थी जिसे '' रामसर सन्धि '' के नाम से जाना जाता है। अबतक इस संधि पर 163 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं। रामसर कन्वेंशन के अन्तर्गत 163 देशों के 2000 तालाबों को पंजीकृत किया जा चुका है जिनका क्षेत्रफल 210 मिलयन हेक्टर है।

भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण ईरान में भी बहुत से आर्द्रक्षेत्र या वेटलैंड पाए जाते हैं। एक और बात यह है कि भौगोलिक दृष्टि से ईरान ऐसे मार्ग पर स्थित है जहां से पलायनकर्ता पक्षियों का बहुत गुज़र होता है या दूसरे शब्दों में बड़ी संख्या में पलायनकर्ता पक्षी, ईरान में शरण लेते हैं और यह इसलिए है कि यहां पर उचित संख्या में वेटलैंड मौजूद हैं जो इन पक्षियों के शरणस्थल होते हैं।

रोचक बात यह है कि रामसर कन्वेंशन ने विश्व में 42 प्रकार के आर्द्रक्षेत्रों की पहचान की है जिनमें से 41 प्रकार के वेटलैंड ईरान में पाए जाते हैं।

इन बात से पता चलता है कि ईरान में जलवायु की दृष्टि से कितनी विविधता पाई जाती है। रामसर कन्वेन्शन में ईरान के पंजीकृत हुए वेटलैंड का क्षेत्रफल लगभग 500000 हेक्टर है। यूं तो ईरान में सैंकड़ों वेटलैन्डस हैं लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का मानदंड रखने वाले 35 आर्द्रक्षेत्रों को चिन्हित किया गया है। जिन्हें 24 शीर्षत के तहत रामसर संधि में स्थान दिया गया है।

इसी श्रंखला में हमने ईरान के गर्मक्षेत्रों में पाए जाने वाली आर्द्रभूमियों का ही उल्लेख किया और बताया कि वहां पर कई प्रकार के ऐसे जीव और वनस्पतियां मौजूद हैं जो पूरे विश्व में दुर्लभ हैं। इनमें कछ पशु, पक्षी और वनस्पतियां उल्लेखनीय हैं। इन क्षेत्रों में सदाबहार जंगल पाए जाते हैं जो सदैव हरेभरे रहते हैं।

ईरानी तालाबों से आपको अवगत करवाकर हमने आपको जहां पर ईरान के इन तालाबों के अन्तर्राष्ट्रीय महत्व से परिचित करवाया वहीं पर यह भी बताने का प्रयास किया कि इस प्राकृतिक उपहार को सुरक्षित रखने की कोशिश की जाए क्योंकि पर्यावरण की दृष्टि से यह विशेष महत्व के स्वामी होते हैं। बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि इस समय बहुत सी ऐसी परियोजनाएं चल रही हैं जिनसे पर्यावरण को बहुत अधिक क्षति पहुंच रही है। इन परियोजनाओं को चलाने के लिए जो गतिविधियां की जाती हैं वे वास्तव में पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक हैं अत: हमें इस प्रकार की किसी भी परियो जना को रुकवाने का काम करना चाहिए।

अंत में यह कहना चाहते हैं कि ईरानी तालाब नामक श्रंखला पेश करने से हमारा उद्देश्य यह बताना था कि इस महान सृष्टि के संचालन में बहुत से प्राकृतिक तत्व महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। अपनी सुन्दता और आकर्षण के बावजूद वे अपने काम को अंजाम देते रहते हैं। इन तत्वों से छेड़छाड़ करने से न केवल इनको क्षति पहुंचती है बल्कि इससे पूरी प्राकृतिक व्यवस्था को हानि होती है। हमें यह बात अवश्य याद रखनी चाहिए कि ईश्वर ने धरती व आकाश को व्यर्थ पैदा नहीं किया है बल्कि इसकत किसी लक्ष्य के लिए पैदा किया गया है अत: हम सबको प्रकृति का सम्मान करना चाहिए।

 

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