अल्लाह के ख़ास बन्दे- 6
हिजरी कैलेंडर के दसवें साल पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने आदेश दिया कि लोगों के बीच यह एेलान कर दिया जाए कि वे इस साल हज करने जाएंगे।
हिजरी कैलेन्डर के ज़ीक़ादा महीने की पच्चीसवीं या छब्बीसवीं तारीख थी जब हज का यह काफिला पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नेतृत्व में मदीना से निकला और " ज़िल हलीफा" नामक स्थान पर पहुंच कर जहां आज " मस्जिदे शजरा" स्थित है, सारे हाजियों ने " एहराम" पहना। " एहराम" हज के लिए पहने जाने वाले विशेष वस्त्र को कहते हैं।
इस पूरी यात्रा में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने अनुयाइयों और लोगों से बात करने के हर अवसर से लाभ उठाया । पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने " अरफा" के दिन, जिसे " सब से बड़ा हज " कहा जाता है, अपने अनुयाइयों के मध्य भाषण दिया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इस भाषण में कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख किया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहाः " हे लोगो! मेरी बात सुनें, शायद इस साल के बाद आप सब से मेरी कभी मुलाक़ात न हो, हे लोगो! तुम लोगों के प्राण और संपत्ति एक दूसरे पर हराम है। तुम जब ईश्वर के पास जाओगे तो तुम्हारा हिसाब किताब होगा। अगर किसी के पास किसी दूसरे की कोई अमानत है तो वह उसे लौटा दे । हे लोगो! शैतान अब इस इलाक़े में अपनी पूजा की ओर से हमेशा के लिए निराशा हो गया है लेकिन फिर भी अपना धर्म उससे बचा के रखना। अपनी महिलाओं के अधिकारों का ध्यान रखना, क्योंकि वह तुम्हारे पास ईश्वर की अमानत हैं। हे लोगो! सारे मुसलमान एक दूसरे के भाई हैं और किसी भी मुसलमान का दूसरे मुसलमान की धन संपत्ति में उसकी अनुमति के बिना कोई अधिकार नहीं है। "
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इस यात्रा के दौरान अपने तीन भाषणों में हमेशा मुसलमानों को एकता की नसीहत की। मुसलमानों के भविष्य के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) को बहुत चिंता थी, क्योंकि उन्होंने मिथ्याचारियों की साज़िशों को देखा था जो स्वंय पैग़म्बरे इस्लाम (स) को भी मार डालना चाहते थे। यह मिथ्याचारी अपनी साज़िश नाकाम होने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास का इंतेज़ार कर रहे थे। इसके साथ ही अरब जगत के कई क्षेत्रों में ईश्वरीय दूत होने का दावा करने वाले भी पैदा हो गये थे।
मुसलमानों ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की शिक्षाओं के साथ हज पूरा किया । पैग़म्बरे इस्लाम (स) दस वर्षों की दूरी के बाद अपने नगर " मक्का" लौटे थे। इसी लिए आशा यह की जा रही थी कि हज खत्म होने के बाद वह कुछ दिन " मक्का " में गुज़ारेंगे लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हज खत्म होने के तत्काल बाद एलान करवाया कि सब लोग मक्का नगर से बाहर निकलें। उस साल हज पर जाने वाले लगभग सभी हाजी एक साथ " मक्का" नगर से बाहर निकले। यहां तक कि यमन के बहुत से हाजी जिन्हें उत्तर की ओर जाना था, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथ साथ मक्का नगर से निकले। यह सारे लोग जब " कुराअल ग़मीम" नामक स्थान पर पहुंचे जहां " ग़दीरे ख़ुम" नाम की जगह है, पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहाः " हे लोगो! ईश्वर के दूत की पुकार का जवाब दो, मैं ईश्वर का दूत हूं। " पैग़म्बरे इस्लाम (स) के इस प्रकार के संबोधन का अर्थ यह था कि वे कोई बहुत की महत्वपूर्ण संदेश पहुंचाने का इरादा रखते थे। यह संदेश वास्तव में वही था जिसकी ओर कुरआने मजीद के सूरए मायदा की आयत नंबर 67 में संकेत किया गया है। इस आयत में कहा गया हैं " हे पैगम्बर! जो कुछ तुम पर तुम्हारे रब की ओर से उतरा है उसे पूरी तरह से पहुंचा दो और अगर ऐसा नहीं किया तो मानो तुम ने अपनी ज़िम्मेदारी ही पूरी नहीं की और ईश्वर तुम्हें लोगों से सुरक्षित रखेगा। "
इस आयत के उतरने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) को अपने बाद अपने उत्तराधिकारी के निर्धारण के बारे में पूर्ण संतोष प्राप्त हो गया और उन्होंने ईश्वर के आदेश को पूरा करने का संकल्प लिया । जब हाजियों का यह कारंवा " गदीर खुम" नाम के स्थान पर पहुंचा तो आप के आदेश से सब से कहा गया कि सारे लोग रुक जाएं और जो लोग आगे बढ़ गये हैं वह पीछे आएं और जो लोग पीछे रह गये हैं वह खुद को जल्दी से पहुंचाएं। सारी सवारियां रोक दी गयीं, और फिर सारे लोग " गदीरे खुम " नामक स्थान पर एकत्रित हो गये। गर्मी बेपनाह थी। इस तपते रेगिस्तान में गर्मी की यह हालत थी कि लोग अपने कपड़े का एक हिस्सा अपने सिर पर रखे थे और एक हिस्सा पैंरों के नीचे रखे थे ताकि गर्म रेत से बचे सकें। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अनुयाइयों ने ऊॅटों के पालानों को एक दूसरे पर रख कर बैठने का इंतेज़ाम किया और उस पर एक कपड़ा डाल दिया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) उस पर बैठे और हज़रत अली उनके पास खड़े हो गये। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपनी बात आरंभ की और सब से प्रतिज्ञा ली और फिर कहा ः कुरआने मजीद के अर्थों को केवल वही बयान कर सकता है जिसका हाथ मैं उठाऊंगा उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हज़रत अली का हाथ पकड़ कर ऊपर उठाया और कहाः " मैं जिसका अभिभावक हूं उसके यह अली अभिभावक हैं। "
सारे हाजियों में उत्साह व जोश भर गया सब लोग हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास जाकर उन्हें बधाई देने लगे। इतिहास के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम (स) के चेहरे पर खुशी और दुख के चिन्ह कम ही देखे जाते थे और आम तौर पर उनके चेहरे पर संयम व शांति नज़र आती लेकिन ग़दीरे के दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के चेहरे पर मुस्कान थी और वे कह रहे थे कि मुझे बधाई दो क्योंकि ईश्वर ने मुझे अपना दूत बनाया और अनाथों का ध्यान रखने वाले को मेरा उत्तराधिकारी।
हज खत्म हो गया था और पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने अनुयाइयों के साथ मदीना लौट चुके थे। बाकी हाजी भी अपने अपने गांव घर जा चुके थे। हज के लगभग तीन महीने बाद, पैग़म्बरे इस्लाम (स) बीमार हुए और उनकी बीमारी बढ़ती गयी। इसी दौरान वे एक दिन मस्जिद में गये और लोगों से पूछा कि क्या मैंने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी की है लोगों ने पुष्टि की तो पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा कि अगर किसी का कोई हक़ मुझ पर हो तो वह आकर ले ले, अगर किसी को परेशान किया है तो वह बदला ले ले। यह सुन कर एक व्यक्ति आगे बढ़ा और कहने लगा कि एक बार जब आप, ऊंट को कोड़ा मारना चाह रहे थे तो गलती से वह मुझे लग गया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का शरीर काफी कमज़ोर हो चुका था लेकिन उन्होंने अपनी क़मीस ऊपर उठायी और उससे कहा कि वह आकर एक कोड़ा मार कर अपना बदला ले ले । वह व्यक्ति आगे बढ़ा, अनुयाइयों में बेचैनी थी लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने सब को चुप करा दिया। बदला लेने के लिए वह व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम (स) के निकट पहुंचा लेकिन कोड़ा मारने के बजाए उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के शरीर को चूम लिया ।
अन्ततः वह दिन आ गया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) बिस्तर पर कभी आंख खोलते कभी बंद करते और बेहोश हो जाते और जैसे ही होश आता लोगों को समझाते। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके पास खड़े थे। हज़रत अली के दोनो बेटे इमाम हसन और इमामे हुसैन भी अपने नाना के पास मौजूद थे। धीरे धीरे पैग़म्बरे इस्लाम (स) की दशा बिगड़ती गयी और बहुत से इतिहासकारों के अनुसार हिजरी कैलेंडर के हिसाब से 28 सफर सन 11 हिजरी क़मरी को मार्गदर्शन का यह चिराग बुझ गया।
जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) का स्वर्गवास हुआ तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा : " पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास का दुख मेरे कांधों पर इतना भारी महसूस हो रहा था कि मुझे लगा कि अगर यह बोझ पहाड़ों पर डाल दिया जाए तो वह उसे उठा नहीं पाते। हज़रत अली ने नम आंखों और दुखी मन से पैग़म्बरे इस्लाम (स) को नहलाया और उन्हें कफन पहनाया और फिर उनके चेहरे से कफन हटा कर कहाः " मेरे माता पिता आप पर क़ुर्बान हों आप ने पवित्रता से जीवन व्यतीत किया और पवित्रता के साथ इस संसार से चले गये। आप के स्वर्गवास से ईश्वरीय संदेश का सिलसिला बंद हो गया जो अन्य ईश्वरीय दूतों के स्वर्गवास के बाद बंद नहीं हुआ था। आप को वह स्थान प्राप्त हुआ कि ईश्वर ने आप पर सलाम भेजा और आप का दिल इतना बड़ा था कि आप की नज़र में सारे लोग एक समान थे... मेरे माता पिता आप पर न्योछावर हों! रब के पास जाकर हमें याद रखिएगा और हम पर कृपा कीजिएगा। "
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहाः पैग़म्बरे इस्लाम (स) ऐसी दशा में कि उनका सिर मेरे सीने पर था, इस संसार से चले गये और मेरे हाथों पर उनकी आत्मा, शरीर से निकली और फिर मैंने अपने हाथों को कि जिस पर पैग़म्बरे इस्लाम (स) का स्वर्गवास हुआ, अपने चेहरे पर फिराया और उनके नहलाने की तैयारी की । इस काम में फरिश्तों ने मेरी मदद की, एेसा महसूस हो रहा था मानो घर की दीवारें भी रो रही हैं हर तरफ से चीख पुकार की आवाज़ सुनायी दे रही थी। कुछ फरिश्ते धरती पर उतर रहे होते और कुछ ऊपर जा रहे होते और उपासना के समय उनका उच्चारण एक क्षण के लिए भी रुक नहीं रहा था यहां तक कि हम ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को उनकी आरामगाह में सुला दिया।"
हज़रत अली अलैहिस्सलाम जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) को क़ब्र में उतार रहे थे तो उन्होंने भीगी आंखों से कहाः संयम, अच्छी चीज़ है लेकिन आप के बारे में नहीं, व्याकुलता बुरी चीज़ है लेकिन आप के वियोग में नहीं, आप के छूट जाने से मेरे दिल में जो दुख है वह बहुत ज़्यादा है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस संसार से चले गये लेकिन उनका मिशन सफल रहा और उसे वह एेसे मोड़ तक पहुंचा गये जहां से वह पूरी दुनिया में फैल गया। उनका धर्म यानि इस्लाम इस तरह से पूरे विश्व के कोने कोने में फैला कि राजाओं की तलवारे और सैनिकों के भाले उसे रोक नहीं पाए, इस धर्म ने हमेशा दिलों पर हूूकूमत की। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मिशन को रोकने के लिए हर प्रकार के साधनों का प्रयोग किया गया, लेकिन मक्का नगर से चलने वाली यह बयार, पूरी दुनिया को मानवता , समानता व शांति के सुंगध से परिचित करा गयी और यह सिलसिला आज भी जारी है,पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मिशन और धर्म यानि इस्लाम से दुश्मनी और उसे बदनाम करने का और इसी तरह इस धर्म की बढ़ती लोकप्रियता और दिलों पर विजय प्राप्त करने का सिलसिला जारी है और जारी रहेगा।