Feb २५, २०१८ १५:२२ Asia/Kolkata

हमने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की जीवन की कुछ झलकियां पेश की थी और उनके जीवन के कुछ भागों से आप को अवगत कराया था।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) का संदेश इस्लाम केवल अरब जगत तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि इसने पूरी मानवता पर अपनी छाप छोड़ी। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की दो विरासत पूरी दुनिया के इन्सानों के लिए हमेशा बाकी रहेगी। एक इस्लाम और दूसरा क़ुरआन। आज हम  पैग़म्बरे इस्लाम (स) की इसी विरासत पर चर्चा कर रहे हैं। 

 

पैग़म्बरे इस्लाम (स) की विरासत पर चर्चा से पहले यह भी ज़रूरी है कि हम उस समय के अरब जगत की सांस्कृतिक व सामाजिक परिस्थितियों से अवगत हो जाएं क्योंकि इस प्रकार से हम अच्छी तरह से समझ सकेंगे कि इस्लाम ने इस इलाक़े में कितना महत्वपूर्ण काम किया है और किस तरह से प्रतिकूल परिस्थितियों में फला - फुला है। 

ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने ईश्वरीय दूत होने की घोषणा की तो उस समय दुनिया में कई बड़ी शक्तियां थीं लेकिन सब की सब कमज़ोर हो रही थीं और तरह तरह के अंधविश्वासों, अन्यायपूर्ण क़ानूनों व रीति रिवाजों, सामाजिक भेदभाव, जनसंहार और नस्लीय व जातीय भेदभाव में फंसी हुई थीं। कुरआन ने इस हालत को बयान करते हुए इस दौर को अज्ञानता का युग कहा है। अरब जगत की दशा यह भी कि बहुत से क़बीले निर्धनता के कारण अपने बच्चे को मार डालते थे और विशेषकर बेटियों को तो ज़िन्दा ही नहीं रखते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि उन के पालन पोषण पर किया जाने वाला खर्च बेकार हो जाता है और बड़े होकर वह कुछ कमाई नहीं कर सकतीं। क़ुरआने मजीद ने इस का उल्लेख करते हुए कहा है कि " अपने बच्चों को निर्धनता के डर से न मारो । 

 

अरब जगत में कमाई का एक आसान और प्रचलित तरीक़ा लूटमार और हत्या था। यहां तक कि इतिहासकारों ने लिखा है कि इस्लाम से पहले अरब के रेगिस्तान में रहने वालों का जीवन ही तलवार से चलता था और रेगिस्तानों में रहने वाले यह " बददू अरब" सिर्फ़ तलवार की ज़बान बोलते और समझते थे। 

इस्लामी जगत के मशहूर इतिहासकार " इब्ने खलदून" इस्लाम से पहले के अरब जगत के बारे में लिखते हैंः " 

उस दौर के अरब जीवन चक्र के आरंभिक युग में थे। यानि वह युग जिसमें दुनिया के सभी मनुष्य कभी रह चुके थे। वह आदि मानवों की तरह थे जिसकी वजह से लूटमार और तबाही व बर्बादी में उन्हें मज़ा आता और जिस पर भी और जिस क़बीले पर भी हमला करना संभव होता हमला कर देते और उसे लूट लेते और फिर दूर दराज़ के इलाक़ों और पहाड़ों व रेगिस्तानों में  जाकर छुप जाते। वह जहां भी जाते उसे वीरान कर देते। उन्हें लूटमार से दिलचस्पी थी और नैतिकता और नैतिक सिद्धान्तों से उनका कोई संबंध नहीं था। साहस और वीरता में उन्हें ख्याति प्राप्त थी क्योंकि हर एक को अपनी और अपने हितों की रक्षा ख़ुद करनी होती थी इसीलिए हमेशा व हथियार लेकर चलते और जहां भी मौका मिलता एक दूसरे से लड़ पड़ते, हिंसा और युद्ध उनकी प्रवृत्ति बन चुकी थी। 

इस तरह की परिस्थितियों में इस्लाम ने शांति का संदेश दिया और अरब की रेगिस्तान में इस्लाम की पावन बयार बही और लूटमार व हिंसा में दिलचस्पी रखने वाले अरबों के मन को शांति से भर दिया। 

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम, ने इस संदर्भ में बहुत अच्छी तरह से उस काल का वर्णन करते हुए कहा हैः " ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को एेसे समय में अपना दूत बना कर भेजा जब बहुत समय से कोई ईश्वरीय दूत नहीं आया था। लोग लंबी नींद में डूब गये थे। सारे काम बिगड़ चुके थे, हर जगह युद्ध की ज्वाला धधक रही थी। दुनिया पर अज्ञानता, व पाप का अंधकार छाया था, धूर्तता खुल कर की जाती थी। मानव जीवन के वृक्ष के पत्ते पीले पड़ रहे थे और इन पेड़ों से फल की उम्मीद ख़त्म हो चुकी थी। पानी का स्तर नीचे हो गया था और मार्गदर्शन का दीया बुझ चुका था, तबाही व बर्बादी ने इन्सानों पर धावा बोल दिया था और अपना घृणित चेहरा खोल दिया था और इन परिस्थितियों की कोख से, तबाही व बर्बादी के अलावा और कुछ निकलने वाला भी नहीं था। "

इस्लाम ने इस माहौल में और हिंसक अरबों के भीतर एक बड़ी क्रांति पैदा की और उनकी ताक़त को मानवीय मूल्यों के प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जिसकी वजह से कभी लूटमार करने वाले यह अरब इतने ताक़तवर हो गये कि इस्लाम के प्रचार के लिए उन्होंने अरब जगत के बाहर भी जहां क़दम रखा, जीत ने उनके क़दम चूमे। इस्लाम के यह जियाले जहां भी गये, उन्होंने इस्लाम के संदेश को फैलाया और मानवीय मूल्यों की रक्षा की। इस्लाम के तेज़ी से फैलने की एक बड़ी वजह यह भी है। 

जब " इथोपिया" के राजा " नज्जाशी" ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के दूत " जाफ़र इब्ने अबूतालिब" से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के संदेश के बारे में कुछ विस्तार से बताने को कहा तो " जाफर " ने एक बहुत ही प्रभावशाली भाषण दिया जिसमें उन्होंने अरबों की हिंसक प्रवृत्ति का उल्लेख किया और कहा " जी हां हम लोग एेसे थे। यहां तक कि ईश्वर ने हमारे बीच से ही, हमारे मार्गदर्शन के लिए अपने दूत को चुन लिया। हम उनके घराने को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। उनकी सच्चाई और पवित्रता पर पूरा विश्वास रखते हैं और हमने अपनी अमानतें उनके पास रख कर वर्षों तक उन्हें आज़माया भी है। उनकी पवित्रता हम सब के लिए स्पष्ट थी। उन्होंने हमें आदेश दिया कि हम सच्चाई को अपना स्वभाव बनाएं और अमानत को उसके मालिक को लौटाएं। उन्होंने हमें आदेश दिया कि हम रिश्तेदारों से संबंध मज़बूत बनाएं और हराम कामों और रक्तपात से दूर रहें। उन्होंने हमें अश्लीलता व निरंकुशता से रोका है और हमें झूठ व धोखे से दूर रहने को कहा है और सच्चाई व पवित्रता पर प्रोत्साहित किया है। हमें अनाथों के अधिकारों के हनन और उनकी विरासत पर क़ब्ज़ा करने से कड़ाई के साथ रोका है और प्रेम व स्नेह के साथ इन अनाथों के पालन पोषण का आदेश दिया है। उन्होंने इसी प्रकार हमें एक दूसरे पर गलत आरोप लगाने से रोका है। उन्होंने हमें आदेश दिया है कि हम केवल " एक" ईश्वर की उपासना करें,उसी के दास बनें और किसी को भी उसका भागीदार न बनाएं।" 

 

इस प्रकार से हम देखते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) की एक जीवंत विरासत " इस्लाम " है जिसने पूरी दुनिया में चेतना फैलायी और लोगों को सही रास्ता दिखाया। इस्लाम ने मनुष्य को सम्मान दिया। इस धरती के प्राणी को, आकाश की ऊंचाइयों और परलोक की पवित्रता से अवगत कराया, उसकी आत्मा को शुद्ध किया ताकि वह फरिश्तों से भी ऊपर जा सके। इस्लाम ने मनुष्य को एक ज़िम्मेदार इन्सान बनाया ताकि वह इस धरती पर और अपने समाज में अपने घर परिवार, अपने बीवी बच्चों, अपने माता पिता, अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों और अपने समाज व अपने देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को समझे और इन ज़िम्मेदारियों को निभाए और इन सब ज़िम्मेदारियों के पालन के समय ईश्वर को ही अपनी नज़र में रखे और जो कुछ भी करे बस उसी के लिए और उसी को प्रसन्न करने के लिए करे। 

 

 

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