मार्गदर्शन- 77
संस्कृति और रीति रिवाज वे चीज़ें हैं जिसका लोग अनुसरण करते हैं।
संस्कृति एक राष्ट्र की पहचान बनाती है और उसे रूप देता है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता संस्कृति के विषय को बहुत अधिक महत्व देते और कहते हैं कि संस्कृति, समाज के आम व्यवहार और उसके मन को बनाती है। उनका मानना है कि सार्वजनिक सांस्कृति सुधार, सभी काम आधार से महत्वपूर्ण है, चूंकि यह काम दूसरे अन्य कामों का केन्द्र है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई की नज़र में संस्कृति, अर्थव्यवस्था और राजनीति से महत्वपूर्ण हैं और उसको इन पर वरीयता प्राप्त है। वरिष्ठ नेता को देश के अधिकारियों से अपेक्षा है कि वह दिन प्रतिदिन जनता की सार्वजनिक संस्कृति और उनके शिष्टाचार को बढ़ाने का प्रयास करें और जनता में सांस्कृतिक बदलाव का प्रयास करें। जब समाज का माहौल, नैतिकता और आध्यात्म से ओतप्रोत होगा, तो स्वयं ही मनुष्य आंतरिक शांति का आभास करेगा। वरिष्ठ नेता इस चीज़ को अपने सुन्दर शब्दों में यूं बयान करते हैं कि संस्कृति, उस हवा के अर्थ में है जिसमें हम सांस लेते हैं, आप सांस लेने पर मजबूर हैं चाहें आपका मन करे या न करे, यदि यह हवा साफ़ सुथरी होगी, तो इसका प्रभाव आपके शरीर पर पड़ेगा और यदि यह हवा गंदी होगी तो इसके दूसरे प्रभाव पड़ेंगे, यदि किसी स्थान पर विषैली हवा दी जाए तो उसके प्रभाव शरीर में देखे जा सकेंगे, इसका प्रभाव वही विष है जो हवा में है, यदि हवा को धुएं से प्रदूषित करें तो जब आप उसको सूंघते हैं तो आपका व्यवहार वैसा ही होगा जिसको आप सूंघते हैं, संस्कृति का यही हाल है, संस्कृति को हल्का न समझें, बहुत महत्वपूर्ण हैं।
निसंदेह हर बुरे काम का समाज पर बहुत ग़लत प्रभाव पड़ता है और इससे समाज सांस्कृतिक पतन का शिकार हो जाता है। भ्रष्टाचार और बर्बादी, क़ानून का उल्लंघन और बुरे काम, वही सड़े हुए खाने की भांति है जो समाज पर बुरा असर डालते हैं, मनुष्य को फंसा देते हैं और स्वभाविक प्रतिक्रिया पर विवश कर देते हैं। उदाहरण स्वरूप झूठ विश्वास छिनने का कारण बनता है, विश्वासघात सामाजिक संबंधों को तबाह कर देता है, अत्याचार, दूसरों पर अत्याचार का कारण बनता है, स्वतंत्रता के दुरुपयोग से तानाशाही पैदा होती है, वंचितों के अधिकार छीनने से दुश्मनी और द्वेष बढ़ता है, दुश्मनी बढ़ने से समाज का आधार कमज़ोर हो जाता है, आंतरिक इच्छाओं के बढ़ने से समाज ग़लत दिशा की ओर बढ़ने लगता है। संक्षेप में हर ग़लत और नैतिकता से परे काम, चाहे वह जितना और जैसा हो, सांस्कृतिक पतन का कारण बनता है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यदि सांस्कृतिक आधारों को मज़बूत करना है तो इसकी मुख्य शर्त यह है कि जनता का धर्म और सांस्कृतिक धरोहर पर दिन प्रतिदिन ईमान मज़बूत हो और यह आधार कमज़ोर न हो।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ईमान के बढ़ने से सांस्कृतिक विकास होता है क्योंकि एक धर्मावल्बी व्यक्ति नैतिकता के प्रति बहुत अधिक प्रतिबद्ध रहता है। उसकी नज़र में झूठ, विश्वासघात, वचन का उल्लंघन और बहुत से बुरे काम, ईश्वर से दूरी का कारण बनता है। इस आधार पर ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए पापों और बुराईयों से दूर रहता है, इस प्रकार के लोगों के समाज में बढ़ने से समाज में नैतिकता और अच्छाईयों में वृद्धि होती है, यही कारण है कि इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता धर्मपरायणता और ईमान को राष्ट्रीय पहचान बताते हैं और इसे सांस्कृतिक विकास का महत्वपूर्ण स्रोत मानते हैं। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि धर्म और ईमान, मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण और मूल्यवान धरोहर है।
एक राष्ट्र के ईमान और धर्म को बढ़ाने के लिए जिससे सार्वजनिक संस्कृति बढ़ती है, सामान और कमज़ोर काम अंजाम नहीं दिए जा सकते। यह बहुत ही महत्वपूर्ण चीज़ है जिसके लिए महारत और काफ़ी सूक्ष्मता की आवश्यकता होती है। वरिष्ठ नेता इस बारे में रोचक सुझाव पेश करते हैं। वरिष्ठ नेता सांस्कृतिक इन्जीनियरिंग पर बल देते हैं। उनका मानना है कि सांस्कृतिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों विशेषकर सरकारी तत्वों को चाहिए कि वह विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों में एक निपुण और सूक्ष्म कार्यक्रम बनाएं और इस बारे में एक दीर्घावधि योजना को दृष्टिगत रखें। वरिष्ठ नेता सांस्कृतिक इंजीनियरिंग को इस प्रकार बयान करते हुए कहते हैं कि उस वास्तविकता के महत्व के दृष्टिगत जिसे सांस्कृतिक समाज का नाम दिया गया और इस बात के दृष्टिगत कि यदि इस सांस्कृतिक काम और ज़िम्मेदारी की रक्षा न की जाए तो संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय कुछ तत्वों ने क़सम नहीं खाई है कि चूंकि हमने काम नहीं किया वह भी काम न करें, नहीं वह अपना प्रभाव रखेंगे, वे अपना काम अंजाम देंगे, इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के एक अधिकारी के रूप में हमारी क्या ज़िम्मेदारी है?
देश के सांस्कृतिक सुधार में हमारी सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी यह है कि हम निर्धारित करें कि राष्ट्रीय संस्कृति, सार्वजनिक संस्कृति, भव्य आंतरिक आंदोलन, समाज और मनुष्यों के भीतर से पैदा होने वाली संस्कृति है, इसे किस प्रकार की होनी चाहिए, कौन सी संस्कृति हमारा लक्ष्य है? उसकी कमियां क्या है? इस कमी को कैसे दूर किया जाए, वर्तमान संस्कृति क्या है? सुस्ती कहां है और विरोध कहां से उठ रहा है? यह वह चीज़ें हैं जिनको दृष्टिगत रखना बहुत आवश्यक है, उसके बाद इस माहौल और हवा को साफ़ करने की ज़िम्मेदारी निभाएं।
सांस्कृतिक इंजीनियरिंग में वरिष्ठ नेता की नज़र में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु हैं। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह विभिन्न क्षेत्रों में समाज में सस्कृतिक के विस्तार के लिए विभिन्न कार्यक्रम पेश करे। इसके अतिरिक्त समाज के लोग की धर्म और ईमान पर प्रतिबद्धता बढ़ाए, सरकार को चाहिए कि वह सांस्कृतिक पहलू को महत्व दे। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामनेई इस बारे में बल देकर कहते हैं कि सरकार के सांस्कृतिक क्षेत्र में सक्रिय अधिकारी जो काम कर सकते हैं और एक क्षण के लिए भी इसको अनदेखी नहीं करना चाहिए, वह यह है कि वह समाज के सांस्कृतिक संसाधनों पर विशेष ध्यान दें और उसके मूल्य को समझें क्योंकि बहुत अधिक प्रयास किए गये ताकि सांस्कृतिक, कला, शेर सिनेमा और दूसरे क्षेत्रों में सक्रिय लोग अपनी डगर से हट जाएं, आपको प्रयास करना चाहिए और अपने समस्त प्रयासों को देश को सांस्कृतिक धारे पर लाने पर लगाना चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि सांस्कृतिक इन्जीनियरिंग का रोड मैप तैयार करने के लिए सबसे पहले हमको यह देखना होगा कि सांस्कृतिक क्षेत्र में हमको क्या काम करना है? सबसे पहले इसकी ज़िम्मेदारी स्पष्ट हो? वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यह लक्ष्य बनाना बहुत आवश्यक है, इससे निश्चेतना नहीं करनी चाहिए? हम लोगों के शिष्टाचार और उनकी संस्कृति से क्या कर सकते हैं? क्या हम एक इस्लामी सरकार के रूप में अपने समाज के सांस्कृतिक मार्गदर्शन को ऐसे ही छोड़ दें? निश्चित रूप से नहीं? यह हमारी ज़िम्मेदारी है? जहां तक हम कर सकते हैं? जनता के मार्गदर्शन का रास्ता खुला रखें, जनता का मार्गदर्शन करें।
अच्छाईयों और भलाईयों की ओर लोगों का मार्गदर्शन, सरकार की विभिन्न संस्थाओं और संगठनों की ज़िम्मेदारी है। सरकार एक सही प्रबंधन द्वारा समाज को बेहतरीन संस्कृति से सुसज्जित कर सकती है। वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैः जनता के मार्गदर्शन का सबसे महत्वपूर्ण साधन रेडियो और टेलीवीजन संस्था है और इसके विभिन्न उदाहरण और नमूने हैं, एक नमूना इस्लामी मार्गदर्शन मंत्रालय है, एक उदाहरण साइंस व टेक्नालाजी मंत्रालय, शिक्षा व प्रशिक्षण मंत्रालय है। यही सभी संस्थाएं मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी निभा रही हैं। हम इनसे कैसे लाभ उठा सकते हैं। धर्मपरायण हों, धार्मिक सिद्धांतों पर प्रतिबद्ध हों, इस्लामी सिद्धांतों पर ईमान इत्यादि हो। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि वास्तव में हमारी यह दिशा होनी चाहिए कि लोग धर्म और ईश्वर की ओर बढ़ें।
इस्लमी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि हल्के और मामूली काम को पर्याप्त नहीं समझना चाहिए, सूक्ष्म,गहरे और आधारभूत काम अंजाम देना चाहिए, वह काम जिससे दसियों काम निकलते हों, उसे दसियों काम पैदा हों, इस पर ध्यान देना चाहिए, मैंने इस महत्वपूर्ण और ज़रूरी काम का एक नमूना राष्ट्रपति को दिया..... सांस्कृतिक क्षेत्र में इस पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए कि हमको हमलावर संस्कृति की सहायता नहीं करनी चाहिए, हमलावर संस्कृतिक बहुत ख़तरनाक है, यदि हम देश की सार्वजनिक संस्कृति और उस संस्कृति को जो देश के बुद्धिजीवी, विचारक, मेधावी और देश के विभिन्न वर्ग के लोग जिस दिशा में ले जा रहे हैं, दुश्मनों के ख़तरे से सुरक्षित नहीं रख सकते, काम बहुत कठिन हो जाएगा, आप जो भी फ़ैसला करेंगे, वह आते ही सब ख़राब कर देंगे और यह दूसरे रूप में सामने आएगा।