Apr १८, २०१८ १५:५८ Asia/Kolkata

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि संसार की सभी महिलाओं के लिए आदर्श हैं। 

उनकी विशेषताओं में से एक विशेषता यह थी कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) आपका बहुत सम्मान किया करते थे।  इस बारे में उनके बहुत से कथन पाए जाते हैं जिनका उल्लेख शिया और सुन्नी मुसलमानों की विश्वसनीय किताबों में मिलता है।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स) को अपनी सुपुत्री फ़ातेमा ज़हरा से इतना अधिक लगाव था कि जब भी वे यात्रा पर जाते तो सबसे आख़िर में हज़रत फ़ातेमा से विदा होते थे और जब भी यात्रा से वापस आते तो सबसे पहले उन्ही से मिलने जाते थे।  अपनी बेटी फ़ातेमा से पैग़म्बरे इस्लाम के लगाव का मुख्य कारण यह था कि वे समस्त अच्छाइयों का प्रतीक थीं।  ईश्वर ने फातेमा के प्रेम को उनके पिता हज़रत मुहम्मद के हृदय में भर दिया था।  जैसाकि ईश्वर कहता है कि वे लोग जो ईमान लाए और जिन्होंने अच्छे काम किये, ईश्वर लोगों के दिलों में उनका प्रेम डाल देगा और वे लोगों के बीच लोकप्रिय होंगे।

 

इसके अतिरिक्त एक और बात यह है कि ईश्वरीय दूतों में उसके अंतिम दूत हज़रत मुहम्मद ही वे दूत हैं जिनसे ईश्वर स्वंय कहता है कि तुम लोगों से कहो कि तुम मेरी रिसालत के बदले में मेरे परिजनों से प्रेम करो।  इस आयत में ईश्वर के आदेश के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों से प्रेम करना अनिवार्य है।  इस प्रकार मुसलमानों से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से प्रेम अनिवार्य किया गया है।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि फ़ातेमा मेरे तन का टुकड़ा और मेरी रूह है।  जिसने भी उसको परेशान किया उसने मुझको परेशान किया और जिसने मुझको परेशान किया उसने ईश्वर को दुखी किया।  एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं कि हे फ़ातेमा, तुमको खुश करने से ईश्वर खुश होता है और तुमको दुखी करने से वह दुखी होता है।

यहां पर इस बात का उल्लेख ज़रूरी लगाता है कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद, अपनी बेटी फ़ातेमा के बारे में जो कुछ कहते थे वह केवल इसलिए नहीं था कि क्योंकि वे उनकी बेटी हैं।  उनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम के कथन भावनात्मक नहीं थे बल्कि वास्तविकता पर आधारित थे।  उन्होंने हज़रत ज़हरा के बारे में जो कुछ भी कहा है वह ईश्वर की इच्छा के बिना नहीं कहा है।  इसका एक उदाहरण मुबाहेला है।  नजरान के वरिष्ठ ईसाई धर्मगुरूओं ने पैग़म्बरे इस्लाम से मुनाज़ेरा या शास्त्रार्थ किया था।  हालांकि पैग़म्बरे इस्लाम ने उनके सारे सवालों के जवाद दिये लेकिन जब वे संतुष्ट नहीं हुए तो हज़रत मुहम्मद (स) ने उनसे मुबाहेला करने का प्रस्ताव दिया।  ईश्वर के आदेश पर आपने इसाई धर्मगुरूओं से कहा कि चलो तुम और हम अपने बेटों, अपनी महिलाओं और उनको लेकर आएं जिनको हम चाहते हैं।  उसके बाद एक-दूसरे पर धिक्कार करते हैं।  जब मुबाहेले की बात तै हो गई तो एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत फ़ातेमा, इमाम हसन, इमाम हुसैन और हज़रत अली को लेकर मुबाहले के लिए निकले।  इन लोगों को देखकर ईसाई धर्मगुरूओं ने बड़े आश्चर्य के साथ अपनी हार मान ली और वापस चले गए।  इस घटना से यह बात सिद्ध हो जाती है कि हज़रत फ़ातेमा के सम्मान का कारण केवल यह नहीं है कि वे हज़रत मुहम्मद (स) की सुपुत्री हैं बल्कि यह इसलिए है कि ईश्वरीय आदेश यही है।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की आयु अपने पिता की छत्रछाया में गुज़री।  उन्होंने अपने जीवन में जो भी उतार-चढ़ाव देखे उसपर उन्होंने धैर्य रखा।  जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम को ईश्वरीय आदेश पर पैग़म्बरे इस्लाम (स) का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया तो उस समय से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने अपनी ज़िम्मेदारी को और गंभीरता से निभाना शुरू कर दिया।  वे इमाम अली अलैहिस्सलाम को अपने जीवनसाथी से अलग हटकर इमाम भी मानती थीं।  यही कारण है कि उन्होंने हर क्षेत्र में हज़रत अली का खुलकर समर्थन किया।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को अपनी दूरदर्शिता और परिस्थितियों के उतार चढ़ाव से इसका आभास होने लगा था कि लोग ग़दीर में इमाम अली की बैअत करने के बाद इससे मुकर सकते हैं।  उनको ऐसा लगने लगा था कि धर्म की परिपूर्णता जिस मार्ग पर निर्भर है उससे लोग दिगभ्रमित हो सकते हैं।  बाद के घटनाक्रमों से यह पता चला कि इस बारे में उनका सोचना सही था।  जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इस नश्वर संसार से विदा ली उसी समय से परिस्थितियां परिवर्तित होने लगी थीं।  पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद उनके बहुत ही कम साथियों ने उनका साथ नहीं छोड़ा और वे उनकी अन्तिम यात्रा में शरीक रहे जबकि अधिकांश लोग ईश्वरीय आदेश को अनेदखा करते हुए इस्लामी जगत के लिए नए प्रतिनिधि के चयन में लग गए।

 

इस बात को हज़रत फातेमा के लिए सहन करना बहुत कठिन था।  यही कारण है कि इससे दुखी होकर वे बीमार हो गईं।  इसके बावजूद उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी को अनदेखा नहीं किया।  आपने लोगों के बीच वास्तविकता को बताने के लिए क़दम उठाया।  बनी हाशिम की कुछ महिलाओं के साथ वे मस्जिदे नबी गईं।  आपके लिए वहां पर पर्दे का इन्तेज़ाम किया गया।  बाद में अपने पिता के स्वर्गवास के दुख में रोते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर ने मुहम्मद को इसलिए अपना दूत बनाया कि वे उसके संदेश को लोगों तक पहुंचाते हुए ईश्वरीय लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।  वे एसे समय में ईश्वरीय दूत नियुक्त किये गए कि जब हर ओर अज्ञानता का अंधकार फैला हुआ था।  धर्म को लेकर लोगों में बिखराव था।  अधिकांश लोग मूर्ति पूजा करते थे।  वे ईश्वर के आदेश पर ध्यान नहीं देते थे।  मुहम्मद (स) के कारण अज्ञानता का अंधकार समाप्त हुआ और ज्ञान का सवेरा हुआ।  बुराइयां समाप्त हुईं और हालात बदले।  मेरे पिता ने लोगों के मार्गदर्शन के लिए दृढ संकल्प किया और लोगों का अंधकार से प्रकाश की ओर मार्गदर्शन किया।  उन्होंने सीधा रास्ता दिखाया।  अब वे हमारे बीच नहीं हैं।  अब वे फरिश्तों के बीच हैं।

इतना कहने के बाद हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने मस्जिद में मौजूद सभी लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि हे लोगो! तुम लोग ईमानदार रहो। तुम लोग इस्लाम को अन्य राष्ट्रों तक पहुंचाओ।  पैग़म्बरे इस्लाम के वास्तविक प्रतिनिधि अली हैं।  ईश्वर ने पहले ही इस बारे में तुमसे वचन ले लिया है।  वे ईश्वर की बोलती किताब और ज्वलंत प्रकाश हैं।  उनकी विशेषताएं सबको पता हैं और वे एसी विशेषताओं के स्वामी हैं कि दूसरे लोग उसकी आकांक्षा करते हैं।  अली का अनुसरण लोगों को स्वर्ग ले जाएगा।  उनकी बातों को सुनने से लोगों को मोक्ष प्राप्त होगा।  अली के कारण ईश्वर की बहुत ही अनुकंपाओं को प्राप्त किया जा सकता है।  उनके माध्यम से हलाल और हराम को पहचाना जा सकता है।  उनकी शिक्षाओं से वास्तविक धर्म को बहुत ही सरलता से समझा जा सकता है।

अपने पिता के स्वर्गवास के बाद पिता की जुदाई और उनके बाद परिवर्तित होने वाले वातावरण के कारण हज़रत फ़ातेमा बीमार हो गईं।  वे कुछ समय तक बीमार रहीं और अंततः आपने यह नश्वर संसार छोड़ दिया।  आपके स्वर्गवास के बारे में कहा जाता है कि अपने पिता हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के इस संसार से विदा लेने के 75 दिनों के बाद या फिर 95 दिनों के बाद आपने भी इस संसार से विदा ली।  यही कारण है कि हज़रत फ़ातेमा की शहादत की दो तिथियां मानी जाती हैं।  तीन जमादिस्सानी और 13 रबीउस्सानी।

अपने पिता के स्वर्गवास के बाद की परिस्थितियों से दुखी होकर उन्होंने अपने पति हज़रत अली से वसीयत की थी कि आपही मुझको ग़ुस्ल दीजिएगा और आप ही कफ़न।  उन्होंने कहा था कि मुझको रात में दफन किया जाए।  हज़रत फ़ातेमा ने कहा था कि मैं यह नहीं चाहती कि वे लोगों जिन्होंने मुझपर अत्याचार किये हैं वे मेरे जनाज़े में शिरकत करें।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने इस संसार में मात्र 18 वर्ष ही बिताए, इसके बावजूद वे संसार की महिलाओं के लिए आदर्श बन गईं।  आपके भीतर इतने अधिक गुण निहित थे जिनकी चर्चा नहीं की जा सकती।  केवल इतना ही कहा जा सकता है कि मात्र 18 वर्षों के जीवन में तरह-तरह की कठिनायां सहन करने के बावजूद अपनी अनगिनत विशेषताओं के कारण वे रहती दुनिया तक संसार की महिलाओं के लिए आदर्श रहेंगी।

 

 

टैग्स