अल्लाह के ख़ास बन्दे- 15
हम कुछ कार्यक्रमों में पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन की घटनाओं और उनकी शिक्षाओं के बारे में बात करेंगे।
उन्होंने पूरे इतिहास में सभी क्षेत्रों में एक आश्चर्यजनक आदर्श पेश किया है। उनकी सराहना केवल शिया व सुन्नी विद्वान नहीं करते बल्कि जार्ज जुर्दाक़, विल डोरेंट और सुलैमान कतानी जैसे ईसाई विद्वान भी उनका गुणगान करते हैं। मिस्र के प्रख्यात विद्वान व धर्मगुरू शैख़ मुहम्मद अब्दोह हज़रत अली के भाषणों, पत्रों व कथनों पर आधारित किताब नहजुल बलाग़ा की व्याख्या की भूमिका में लिखते हैं। अली की आत्मा एक महान व बहुआयामी आत्मा है। वे एक न्याय करने वाले शासक और रातों के उपासक हैं। उपासना करते हुए रोते हैं और युद्ध में हंसते हैं। वे शिक्षक भी हैं और वक्ता भी। नयायाधीश भी हैं और मुफ़्ती भी। किसान भी हैं और दक्ष लेखक भी। वे एक संपूर्ण मनुष्य हैं और मानवता के सभी आत्मिक आयामों पर उनकी पूरी नज़र है।
इस आधार पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन के अहम बिंदुओं को रेखांकित करना न केवल आसान काम नहीं है बल्कि यह एक अत्यंत कठिन काम है और हमारे सीमित ज्ञान से संभव नहीं है लेकिन कहा जाता है कि अगर समुद्र के पूरे पानी को खींचना संभव न हो तो कम से कम अपनी प्यास भर चखा तो जा ही सकता है इसी लिए हम अपनी क्षमता भर उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं से आपको अवगत कराने की कोशिश करेंगे।
एक सरसरी नज़र में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन को तीन चरणों में बांटा जा सकता हैः जन्म से पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के मदीना पलायन तक, मदीने से पैग़म्बरे इस्लाम के निधन तक और उनके निधन से हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत तक। इतिहास में वर्णित है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम की माता हज़रत फ़ातेमा बिंते असद ने जब प्रसव पीड़ा का आभास किया तो तुरंत ईश्वर के घर अर्थात काबे के निकट पहुंचीं और उसका तवाफ़ किया। इसके बाद उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की और गिड़गिड़ाते हुए उससे दुआ मांगी कि उनके लिए बच्चे के जन्म को सरल और बच्चे को सभी के लिए विभूतिपूर्ण बना दे। उनकी दुआ के बारे में इतिहास में इस प्रकार आया है कि उस एकेश्वरवादी महिला ने इन वाक्यों के साथ प्रार्थना की थी। प्रभुवर! मैं तेरे अनन्य होने पर ईमान रखती हूं और तूने अपने पैग़म्बरों के माध्यम से जो आसमानी किताबें भेजी हैं उन सब पर विश्वास रखती हूं और इसी तरह तूने अपने बंदों के मार्गदर्शन के लिए जितने भी पैग़म्बर भेजे हैं उन सब पर आस्था रखती हूं। प्रभुवर! तुझे तेरे पैग़म्बरों का वास्ता, तुझे तेरे निकटवर्ती फ़रिश्तों की क़सम, तुझे इस शिशु का वास्ता जिसे तूने मेरे शरीर में अस्तित्व प्रदान किया है और जिसके जन्म का समय आ गया है, मेरे प्यारे शिशु के प्रसव की पीड़ा को मेरे लिए सरल बना दे।
इस प्रकार के आध्यात्मिक वातावरण में अचानक ही एक आश्चर्यजनक घटना घटी और एकेश्वरवाद के सबसे पुराने उपासना स्थल की दीवार लोगों की नज़रों के सामने दो भागों में विभाजित हो गई और फ़ातेमा बिंदे असद लोगों की आश्चर्यचकित नज़रों के सामने काबे में प्रविष्ट हो गईं। उनके अंदर जाते ही काबे की दीवार जुड़ कर पहले की तरह हो गई। इस प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने दुनिया में क़दम रखा। इससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह है कि आज चौदह शताब्दियों से अधिक का समय बीत जाने और काबे का कई बार पुनर्निर्माण होने बाद भी मुस्तजार की ओर काबे की दीवार में पड़ी हुई दरार अब भी मौजूद है और हाजियों व तवाफ़ करने वालो। का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करती है।
इस विचित्र घटना को तीन दिन गुज़र चुके थे और इसके बारे में मक्के में हर तरफ़ बातें हो रही थी। फ़ातेमा बिंते असद अब भी ईश्वर के घर अर्थात काबे के अंदर थीं। जिन लोगों के पास काबे की चाबी थी उन्होंने दरवाज़ा खोलने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। अचानक फ़ातेमा बिंते असद उसी स्थान से जहां दीवार फटी, नवजात शिशु को गोद में लेकन बाहर निकलीं और उनके निकलते ही दीवार फिर से जुड़ गई। आश्चर्य और चिंता में डूबे हुए लोग, जो बड़ी संख्या में वहां एकत्रित हो चुके थे, उनकी ओर दौड़े ताकि उनकी ज़बान से इस घटना का रहस्य जान सकें। उन्होंने कहाः हे लोगो! महान ईश्वर ने अपनी रचनाओं के बीच से मुझे चुना और अपनी निकटवर्ती महिलाओं में मुझे प्राथमिकता दी। उसी समय उनके पति हज़रत अबू तालिब उनके स्वागत के लिए आगे बढ़े और अपने प्रिय पुत्र को गोद में लेकर सीने से लगाया। ठीक उसी समय पैग़म्बरे इस्लाम सल्ल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम भी वहां पहुंच गए और उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को गोद में लिया और उन्हें कई बार चूमा। इसके बाद उन्होंने इस पवित्र व मुबारक शिशु के जन्म के लिए ईश्वर का आभार प्रकट किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जन्म रजब की तेरह तारीख़ को तीस आमुल फ़ील में हुआ था। आमुल फ़ील का अर्थ होता है हाथियों का साल। यह साल उस घटना की याद दिलाता है जब अब्रहा नामक एक क्रूर शासक ने हाथियों के समूह के साथ काबे को ध्वस्त करने की कोशिश की थी।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने जीवन के आरंभिक बरसों से ही पैग़म्बरे इस्लाम सल्ल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के साथ रहे। एक समय सूखे और अकाल के कारण हज़रत अबू तालिब के लिए अपने परिवार का पालन पोषण कठिन हो गया और वे आर्थिक तंगी में ग्रस्त हो गए। पैग़म्बरे इस्लाम ने प्रस्ताव दिया कि हज़रत अबू तालिब के सभी भाई उनके एक एक बच्चे को अपने घर ले जाएं ताकि उनका बोझ हल्का हो जाए। उनके इस युक्तिपूर्ण उपाय का सभी ने स्वागत किया और इस तरह वे स्वयं हज़रत अल को अपने घर ले आए और उनका लालन पालन करने लगे।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के सबसे अहम चरण में पैग़म्बरे इस्लाम सल्ल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के इस साथ और उनके प्रशिक्षण में पैग़म्बर की भूमिका का अपने एक ख़ुत्बे में इस प्रकार उल्लेख किया है। तुम लोग पैग़म्बर से मेरे निकट रिश्ते और मेरे विशेष स्थान के कारण उनकी दृष्टि में मेरी स्थिति से अवगत हो। वे मुझे बचपन में अपनी गोद में लेते, सीने से लगाते और अपने बिस्तर पर सुलाते थे। उनकी ख़ुशबू मेरी नाक में पहुंचती रहती थी। वे खाना चबा कर उसे मेरे मुंह में डालते थे। उन्होंने मुझसे कभी झूठी बात नहीं सुनी और न ही कोई ग़लत काम देखा। मैं हमेशा उनके पीछे पीछे चलता रहता था, ठीक ऊंट के उस बच्चे की तरह जिसका दूध अभी अभी छुड़ाया गया हो और वह अपनी मां के पद चिन्हों पर चल रहा हो। मैं हर दिन उनके शिष्टाचार से कुछ न कुछ सीखता था और हमेशा उनके आदेशों का पालन करता था।
प्रशिक्षण की इस बेजोड़ शैली ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की महान आत्मा पर अमिट प्रभाव छोड़ा और उन्हें अपने अद्वितीय शिक्षक व प्रशिक्ष की छत्रछाया में हर परिस्थिति में परिपूर्णता के उच्च चरण तक पहुंचना सिखाया। इस प्रकार से सभी ईश्वरीय व मानवीय मान्यताएं उनके अस्तित्व में प्रतिबिंबित हुईं और वे ईश्वर तथा पैग़म्बर की विशेष दृष्टि के पात्र बने। यह वैभवपूर्ण व निर्णायक चरण धीरे धीरे समाप्त हो गया, यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम, ईश्वर की ओर से पैग़म्बरी के पद पर आसीन हुए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस अहम घटना के बारे में कहते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहिमा के घर के अलावा किसी भी घर में इस्लाम नहीं पहुंचा था। उन दोनों के अलावा मैं ही तीसरा था जो पैग़म्बरी और ईश्वरीय संदेश के प्रकाश को देखता और पैग़म्बरी के सुगंध को महसूस करता था।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम वह पहले पुरुष थे जिसने इस्लाम स्वीकार करने की घोषणा की। वे इस बारे में कहते हैं। मैं पहला व्यक्ति हूं जिसने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ इस्लाम स्वीकार किया। इसी तरह उन्होंने कहा है कि मैं वह पहला व्यक्ति हूं जिसने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ नमाज़ पढ़ी। पैग़म्बरे इस्लाम सल्ल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस महान गौरव की पुष्टि करते हुए करते हुए कहते हैं। वे पहले व्यक्ति हैं जिसने मेरी पैग़म्बरी को स्वीकार किया और मेरे निमंत्रण पर ईमान लाए। वे पहले व्यक्ति हैं जो प्रलय के दिन मेरे सामने आएंगे और हम एक दूसरे से हाथ मिलाएंगे। वही इस्लाम लाने वाले सबसे बड़े सच्चे हैं।