May ०६, २०१८ १६:०२ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई कहते हैं कि किसी भी मानव समाज के लिए ज्ञान एक ईश्वरीय उपहार है।

वह ज्ञान चाहे वैचारिक ज्ञान हो या प्रायोगिक ज्ञान तो प्रकृति में मौजूद संसाधनों के बेहतर प्रयोग और निहित ख़ज़ानों की पहिचान का रास्ता प्रशस्त करते हैं। जब से इंसान की सृष्टि हुई है प्रकृति के रहस्यों को समझने की कोशिश जारी है। यह एसा जटिल मौदान है जिसमें एक गली से जुड़ी हुई दूसरी गली और एक तह के नीचे दूसरी तह है जिसका पता लगाने की सतत कोशिश जारी रहती है और इस्लाम तथा सभी ईश्वरीय धर्म इस प्रक्रिया का समर्थन भी करते हैं।

 

युवाकाल इंसान की शक्ति और क्षमता का काल होता है। यह वह काल खंड है जिसमें आत्म निर्माण, शरीर तथा आत्मा के प्रशिक्षण और ज्ञान की प्राप्ति की क्षमता अधिक होती है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई का विचार है कि युवा अपनी अधिक ऊर्जा ज्ञान ग्रहण करने शारीरिक रूप से ख़ुद को स्वस्थ बनाने के लिए व्यायाम करने तथा अध्यात्मिक ऊंचाई पर पहुंचने के लिए प्रयोग करे। उनका कहना है कि यदि मुझसे यह कहा जाए कि एक वाक्य में बताइए कि आप युवा से क्या चाहते हैं तो मैं यही कहूंगा कि ज्ञान, पवित्रता और व्यायाम। मेरे विचार में युवाओं को इन तीनों गुणों के लिए काम करना चाहिए।

 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता विश्वविद्यालयों के छात्रों और मेधावी युवाओं से कहते हैं कि ज्ञान किसी भी मानव समाज के लिए ईश्वर की दी हुई नेमत है ज्ञान प्राप्ति के लिए बहुत गंभीरता से प्रयास करना चाहिए। उनका कहना है कि वह ज्ञान की प्राप्ति पर यह आग्रह एक सूक्ष्म व समग्र अध्ययन के आधार पर करते हैं। दुनिया में धौंस धमकी का ज़माना है। वर्चस्ववादी तत्व अपनी ताक़त का इस्तेमाल करते हैं। उनके पास जो ताक़त और संसाधन हैं वह उन्होंने ज्ञान की मदद से हासिल किए हैं। अतः ज्ञान के बग़ैर उनका मुक़ाबला नहीं किया जा सकता। मैंने एक जगह कथन पढ़ा कि ज्ञान, शक्ति े यह कहा जाए कि एक वाक्य में बताइए कि आप युवा से क्या चाहते हैं तो मैं है। जिसके पास भी यह शक्ति होगी वह आगे बढ़ेगा। जिस राष्ट्र और समाज के पास यह ताक़त नहीं होगी वह दूसरों का अनुसरण करने पर मजबूर होगा। अतः यह बिल्कुल परखा हुआ विचार है।

 

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई का मानना है कि ज्ञान की शक्ति प्राप्त होती है और देश को इस पहलू से शक्तिशाली बनाने और ऊंचाइयों पर पहुंचाने में युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। उनका यह भी कहना है कि ज्ञान वही लाभकारी है जो आत्मा की शुद्धि और पवित्रता के साथ हो। उनका विचार है कि यदि इंसान सदाचारी और मोमिन है तो ज्ञान प्राप्त होने की स्थिति में उसे अन्य इंसानों के भी विकास और उन्नति के लिए प्रयोग करेगा। लेकिन यदि इंसान के अंदर पवित्रता नहीं है तो वह इसी ज्ञान को मानवता के ख़िलाफ़ इसतेमाल करेगा।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इसी संदर्भ में कहते हैं कि दो प्रकार के लक्ष्यों के लिए ज्ञान अर्जित किया जाता है पवित्र लक्ष्यों के लिए और अपवित्र लक्ष्यों के लिए। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई युवाओं से कहते हैं कि यदि पश्चिम की वैज्ञानिक उन्नति की पूरी प्रक्रिया को देखा जाए तो बड़ी कड़वी और खेदजनक सच्चाई सामने आती है। यह एसी सच्चाई है कि जिसकी ओर कोई भी जाना पसंद नहीं करेगा। ज्ञान विज्ञान का पश्चिम में जो विकास हुआ चाहे वह सोलहवीं शताब्दी से इटली, ब्रिटेन और अन्य स्थानों पर शुरू होनी वाली वैज्ञानिक प्रगति की प्रक्रिया हो या 18वीं शताब्दी का वह ज़माना हो जब ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति आई, बड़े बड़े कारख़ाने बनाए गए और बड़ी बड़ी मशीनें लग गईं, धन सृजन की तीव्र प्रक्रिया शुरू हो गई। वहां जो कुछ हुआ उसमें कितने लोगों के अधिकार मारे गए, कितने ग़रीब वर्ग मिट गए उनकी बात अलग है, इस वैज्ञानिक विकास की प्रक्रिया का असर दूसरे यूरोपीय देशों में यह देखने में आया कि बहुत से राष्ट्रों की आज़ादी छिन गई, बहुत से राष्ट्रों की पहचान ख़तरे में पड़ गई और बहुत से राष्ट्रों के साथ दरिंदगी का बर्ताव किया गया। वैज्ञानिक और औद्योगिक रूप से विकास कर रहे देशों को यह पता था कि उन्हें कच्चे माल की ज़रूरत है तभी उनके उद्योग काम कर सकेंगे इसी तरह उन्हें अपने उत्पादों के लिए बाज़ार की भी ज़रूरत है। यह दोनों ही चीज़ें अन्य देशों में थीं। अब उन्होंने अपने इसी ज्ञान और उद्योग का प्रयोग अन्य राष्ट्रों के खिलाफ़ किया। उन्होंने तलवारों और भालों को पराजित करने के लिए तोपख़ाना तैयार कर लिया। इसके बाद फ़्रांसीसी, हालैंडी, पुर्तगाली, ब्रितानी तथा कुछ अन्य यूरोपीय देशों के लड़ाके दुनिया में चारों ओर निकल पड़े। उन्होंने अपने विज्ञान से दुनिया के कोने कोने में एसी विडंबनाएं उत्पन्न कीं कि यदि उन्हें एक स्थान पर जमा कर दिया जाए तो दर्जनों खंडों पर आधारित हृदय विदारक इंसाइक्लोपीडिया तैयार हो जाएगी। बाद में अमरीका भी इन्हीं देशों में शामिल हो गया।

 

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई का कहना है कि उस काल में ज्ञान को धन दौलत हासिल करने का माध्यम बनाया गया और नैतिक, मानवीय व धार्मिक मूल्यों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि उस समय भी यूरोपीय देश अपने सभ्य होने के बड़े बड़े दावे करते थे लेकिन उनका बर्ताव और उनके हमले जंगली क़बायलियों से भी अधिक बर्बर होते थे। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई का कहना है कि मैं यह जो बातें कह रहा हूं ये नारेबाज़ी नहीं है बल्कि उसको प्रमाणित करने वाले साक्ष्य और दस्तावेज़ मौजूद हैं सब लिखित रूप में है और बयान मौजूद हैं यदि इनका एक छोटा सा भाग भी पेश किया जाए तो पता चले कि पूर्वी एशिया में, अफ़्रीक़ा में और अन्य स्थानों पर इन्हीं यूरोपियों और पश्चिम वालों ने विज्ञान की मदद से क्या क्या हरकतें की हैं। इसलिए कि उनका लक्ष्य था धन हासिल करना, नैतिकता का नामोनिशान नहीं था, धार्मिक मूल्यों का कोई ख़याल नहीं था, ईश्वर पर उन्हें विश्वास नहीं था।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता युवाओं से कहते हैं कि हम इस प्रकार के ज्ञान विज्ञान की खोज में नहीं हैं। इसलिए कि इस प्रकार के विस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता युवाओं से कहते हैं कि हम इस प्रकार के ज्ञान विज्ञान की खोज में नहीं हैं। इसलिए कि इस प्रकार के वज्ञान का नतीजा परमाणु बम और हीरोशीमा की त्रासदी के रूप में निकलता है। इस प्रकार के ज्ञान विज्ञान के पीछे से दूसरों पर अत्याचार निकल कर सामने आता है। अमरीका लोकतंत्र के बड़े बड़े दावे करता है लेकिन इसी देश में सामाजिक वर्गों के बीच खाई इतनी गहरी और चौड़ी है कि दसियों लाख लोगों के पास घर नहीं हैं और दसियों लाख लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं जबकि यह दुनिया का धनी देश माना जाता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि यह समस्या उस विज्ञान की देन है जो मानवीय भावनाओं और मूल्यों से रिक्त है। यह ज्ञान मानवता की सेवा नहीं करता और ईश्वरीय दूतों की शिक्षाओं से बहुत दूर है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई कहते हैं कि इस्लाम की दृष्टि में वह ज्ञान जिसके साथ पवित्रता न हो सही रास्ते से हट जाता है। फिर यह ज्ञान हत्यारे व्यक्ति के हाथ में मौजूद हथियार का काम करता है जबकि यही हथियार कसी सदाचारी व्यक्ति के हाथ में हो तो इंसानों की रक्षा और परिवारों तथा समाज के संरक्षण का माध्यम बनता है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि छात्र और विद्यार्थी जो ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में सक्रिय हैं और खुद को देश के संचालन में अलग अलग स्तर के दायित्वों के लिए तैयार कर रह हैं वह वास्तव में समाज और देश के लिए आशा की किरण हैं। अर्थात इस देश, इस राष्ट्र और इस व्यवस्था को अपने भविष्य के लिए इन युवाओं की ज़रूरत है। किसी भी देश की प्रतिष्ठा और गौरव के प्रमुख तत्वों में वह युवा हैं जो इस समय शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उनकी शिक्षा, उनकी उपयोगिता, नैतिक वैचारिक व धार्मिक प्रशिक्षण जितना अच्छा होगा देश का भविष्य उतना ही अधिक सुरक्षित होगा।

 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि युवा, देश की वैज्ञानिक प्रगति और उत्थान की प्रक्रिया में आशा की किरण हैं। देश के युवाओं से उनकी कुछ मांगें हैं। उनकी एक मांग देश में वैज्ञानिक साइकिल को पूरा करना है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता अपनी इस मांग का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि देश में जिस चीज़ की ज़रूरत है और देश की पोज़ीशन को जो चीज़ बेहतर बना सकती है एक संपूर्ण वैज्ञानिक साइकिल का मौजूद होना है। हर विभाग में अनेक भागों पर आधारित एक साइकिल होती है जिसमें कई प्रकार के विज्ञान और तकनीकें होती हैं। यह सारी तकनीकें और विज्ञान देश के भीतर मौजूद होना चाहिए ताकि वह एक दूसरे की मदद करें और एक दूसरे के विस्तार में भूमिका निभाएं। देश के भीतर वैज्ञानिक चक्र पूरा होना चाहिए। यह अलग अलग द्वीप एक दूसरे से जुड़ जाने चाहिएं एक संपूर्ण क्रम तैयार हो जाना चाहिए जिसमें हर भाग दूसरे की मदद करे और आगे ले जाए और इस सृष्टि में नए वैज्ञनिक मैदानों की खोज का रास्ता तैयार हो। सवाल उठाए जाएं और उन सवालों के जवाब खोजे जाएं।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की दूसरी मांग यह है कि विज्ञान चक्र पूरा करने के साथ ही नए वैज्ञानिक विचारों का स्वागत किया जाए और उस पर काम किया जाए। अर्थात उद्योग नए विचारों की मदद करे और नए विचारों वाले विशेषज्ञ उद्योग के क्षेत्र में काम करें अपने विचारों को व्यवहारिक करें क्योंकि इस तरह संभव है कि वह नया विचार नए विज्ञान को जन्म दे और यह विज्ञान देश के लिए व्यापारिक लाभ और धौलत पैदा करे।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई का कहना है कि विज्ञान को व्यापारिक लाभ के चरण तक पहुंचाना बहुत महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक और उद्योगिक क्षेत्र में देश को होने वाली प्रगति और उपलब्धियों से देश के लिए दौलत पैदा होनी चाहिए अलबत्ता दौलत सही रास्ते से पैदा की जानी चाहिए उस तरह से नहीं जैसी पश्चिम में की जाती है।

 

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