क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-644
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-644
وَيَوْمَ يَعَضُّ الظَّالِمُ عَلَى يَدَيْهِ يَقُولُ يَا لَيْتَنِي اتَّخَذْتُ مَعَ الرَّسُولِ سَبِيلًا (27) يَا وَيْلَتَى لَيْتَنِي لَمْ أَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِيلًا (28) لَقَدْ أَضَلَّنِي عَنِ الذِّكْرِ بَعْدَ إِذْ جَاءَنِي وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِلْإِنْسَانِ خَذُولًا (29)
और जिस दिन अत्याचारी (खेद से) अपने दोनों हाथ चबा लेगा (और) कहेगा, काश! मैंने (ईश्वरीय) पैग़म्बर के साथ कोई मार्ग अपनाया होता! (25:27) हाय मेरा दुर्भाग्य! काश, मैंने अमुक व्यक्ति को मित्र न बनाया होता! (25:28) निश्चय ही उसने मुझे भटका कर (क़ुरआन और ईश्वर की) याद से विमुख कर दिया, इसके पश्चात कि वह मेरे पास आ चुकी थी। और शैतान तो सदैव ही मनुष्य को अपमानित करने वाला रहा है। (25:29)
وَقَالَ الرَّسُولُ يَا رَبِّ إِنَّ قَوْمِي اتَّخَذُوا هَذَا الْقُرْآَنَ مَهْجُورًا (30)
और (प्रलय में) पैग़म्बर कहेंगे, हे मेरे पालनहार! निस्संदेह मेरी जाति (के लोगों) ने इस क़ुरआन को (व्यर्थ चीज़ की भांति) छोड़ दिया था। (25:30)