अल्लाह के ख़ास बन्दे- 17
पैग़म्बरे इस्लाम को दुश्मन की इस साज़िश का पता चल गया था कि वे उन्हें क़त्ल करना चाहते हैं और इसके लिए घात लगाए बैठे हैं।
इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम मजबूर हुए कि अपने नज़दीकी रिश्तेदारों में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सहित कुछ लोगों को मक्के में छोड़ कर मदीना हिजरत अर्थात पलायन कर जाएं। अलबत्ता पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी हिजरत के साथ साथ हज़रत अली अलैहिस्सलाम को विशेष ज़िम्मेदारी सौंपी और उनसे कहा कि वे अमानतों को उनके मालिकों के हवाले करके रिश्तेदारों के साथ मदीना पहुंचे। इस आधार पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा, अपनी मां हज़रत फ़ातेमा बिन्ते असद सहित कई रिश्तेदारों और मुसलमानों के एक गुट को लेकर मदीना की ओर चल पड़े।
दूसरी ओर क़ुरैश के जासूस जिन्हें हज़रत अली अलैहिस्सलाम की अगुवाई में पलायन करने वालों के कारवां के बारे में पता चल गया था, कारवां का पीछा करते हुए उन तक पहुंच गए। इस दौरान हज़रत अली अलैहिस्सलाम और क़ुरैश के जासूसों के बीच बहस हुयी और जासूसों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को धमकी दी। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम को लगा कि अब पैग़म्बरे इस्लाम के रिश्तेदारों और साथी मुसलमानों को बचाने के सिवा कोई और रास्ता नहीं है तो आपने जासूसों और उनके साथ आने वालों से कहा कि अगर ज़िन्दगी से जी भर गया है तो आगे आओ! जासूसों ने जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम के चेहरे पर क्रोध के चिन्ह देखे तो अपनी बात से पीछे हट गए और बिना किसी हस्तक्षेप के जिस रास्ते से आए थे वापस पलट गए।
पैग़म्बरे इस्लाम ने मदीना में दाख़िल होने से पहले क़ुबा नामक स्थान पर निवास किया और वहां उन्होंने इस्लाम की पहली मस्जिद का निर्माण किया। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के रिश्तेदारों और मुसलमानों के गुट को लेकर क़ुबा पहुंचे तब पैग़म्बर इस्लाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम और दूसरे लोगों के साथ मदीने में दाख़िल हुए। मदीने में पैग़म्बरे इस्लाम ने एक मस्जिद का निर्माण कराया जो मस्जिदुन नबी के नाम से जानी जाती है। पैग़म्बरे इस्लाम इस मस्जिद के निर्माण कार्य में ख़ुद भी मदद करते थे। मस्जिद के निर्माण के अंत में पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने और कुछ पलायनकर्ता मुसलमानों के लिए मस्जिद के चारों ओर कमरे बनवाए और हर एक के कमरे का दरवाज़ा मस्जिदुन नबी की ओर खुलता था ताकि नमाज़ और ज़रूरत के वक़्त मस्जिद में आ सकें। कुछ समय बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली के दरवाज़े को छोड़ सारे दरवाज़े बंद करने का आदेश दिया। पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों ने यह जानते हुए कि पैग़म्बरे इस्लाम ईश्वर के आदेश के बिना कोई काम नहीं करते, पैग़म्बरे इस्लाम के इस आदेश पर आपत्ति करते हुए कहा कि आपने हमारे दरवाज़ों को बंद करने के आदेश दिए जबकि अली के घर के दरवाज़े को इससे अपवाद रखा है। पैमग़म्बरे इस्लाम ने उनके जवाब में कहा, "मैंने यह काम अपने मन से नहीं किया कि तुम लोगों के घर के दरवाज़ों को बंद करवाउं और अली के घर के दरवाज़े को खुला रखने की इजाज़त दूं बल्कि यह ईश्वर का आदेश है कि अली का दरवाज़ा खुला रहे और तुम सबके घरों के दरवाज़े बंद हो जाएं।"
पैग़म्बरे इस्लाम की एक बहुत ही अहम नीति मुसलमानों के बीच आपसी संबंध को मज़बूत बनाने की थी ताकि नैतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और आस्था की दृष्टि से संयुक्त बिन्दुओं के तहत एक मज़बूत व संगठित समाज का गठन हो, सब एक दूसरे के प्रति ज़िम्मेदारी का आभास करें और जीवन के हर उतार चढ़ाव में एक दूसरे के मददगार बनें। इस आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम ने आदेश दिया कि अंसार और मुहाजिर में से हर दो लोग आपस में भाईचारे की संधि क़ायम करें। मदीनावासियों को अंसार कहा जाता है और मक्के से मदीना पलायन करने वाले मुसलमानों को मुहाजिर कहा जाता है। यह संधि औपचारिक व सतही चीज़ नहीं थी बल्कि एक बाध्यकारी संधि थी जिसके तहत दोनों एक दूसरे के साथ साझा कोशिश करते और एक दूसरे के दुख सुख में सहभागी रहते। जब पैग़म्बरे इस्लाम भाईचारे की संधि करवा चुके और हज़रत अली अलैहिस्सलाम तनहा रह गए तो आपने नम आंखों से पैग़म्बरे इस्लाम से सवाल किया कि आपने सबके बीच तो भाईचारे की संधि करवा दी लेकिन आपने मेरी किसी से भाईचारे की संधि नहीं क़ायम करायी तब पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, "हे अली तुम लोक-परलोक में मेरे भाई हो।"
हनफ़ी मत के विद्वान जनाब क़ुन्दूज़ी ने इस घटना को बहुत ही विस्तार से बयान करते हुए लिखा कि पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली के जवाब में फ़रमाया, "जिस ईश्वर ने मुझे पैग़म्बर बनाया, उसकी क़सम मैने तुम्हारे लिए भाईचारे की संधि को इसलिए विलंबित किया क्योंकि मैं चाहता था कि तुम्हें अपना भाई बनाऊं। तुम्हारा मुझसे वही संबंध है जो हारून का मूसा से था। सिर्फ़ इस अंतर के साथ कि मेरे बाद कोई पैग़म्बर न होगा। तुम मेरे भाई और मेरे वारिस हो।"
अभी पैग़म्बरे इस्लाम को मदीना पलायन किए ज़्यादा समय नहीं बीता था कि इस्लाम के दुश्मनों और अनेकेश्वरवाद के सरग़नाओं ने जो इस्लाम के तेज़ी से फैलते प्रभाव को सहन नहीं कर पा रहे थे, दूसरी हिजरी क़मरी में बद्र नामक जंग छेड़ दी। उस समय मुसलमान सैन्य सुविधाओं और सैनिक दृष्टि से किसी भी तरह दुश्मन की फ़ौज के बराबर न थे। इस बात में शक नहीं कि अगर ईश्वर की मदद न होती तो मुसलमान कभी भी यह जंग न जीत पाते। इस सच्चाई का वर्णन पवित्र क़ुरआन के आले इमरान सूरे की 123वीं व 124वीं आयत में इन शब्दों में हुआ है, "इस बात में शक नहीं कि ईश्वर ने बद्र की जंग में तुम्हारी इस हालत में मदद की कि तुम लोग कमज़ोर थे। तो ईश्वर से डरो। शायद ईश्वर की कृपा का आभार व्यक्त करो। हे पैग़म्बर! जिस वक़्त आप मोमिनों से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए यह काफ़ी नहीं है कि तुम्हारे ईश्वर ने 3 हज़ार फ़रिश्तों के ज़रिए तुम्हारी मदद की।"
इस जंग में हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बहुत से अनेकेश्वरवादियों को ढेर किया जिसमें एक इब्ने नोफ़ल नामक व्यक्ति भी था। यह व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम का बड़ा दुश्मन था। जब नोफ़ल के मारे जाने की ख़बर रसूल को मिली तो आपने ईश्वर का आभार व्यक्त किया। यह जंग 70 अनेकेश्वरवादियों के मारे जाने और 70 के गिरफ़्तार होने के साथ अनेकेश्वरवादियों की हार पर ख़त्म हुयी।
दूसरी हिजरी क़मरी की एक अहम घटना हज़रत अली अलैहिस्सलाम की हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से शादी थी। हज़रत अबू बकर और हज़रत उमर ने भी पैग़म्बरे इस्लाम से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का हाथ मांगा था लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम ने सबको मना कर दिया। पैग़म्बरे इस्लाम के कुछ साथियों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा कि वह पैग़म्बरे इस्लाम से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का हाथ मांगें।
उस दिन पैग़म्बरे इस्लाम अपनी पत्नी हज़रत उम्मे सलमा के घर में थे जिस वक़्त हज़रत अली ने दरवाज़ा खटखटाया। पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत उम्मे सलमा से कहा कि दरवाज़ा खोलिए कि वह शख़्स दरवाज़े पर खड़ा है जिसे ईश्वर और उसका पैग़म्बर दोस्त रखता है और वह भी ईश्वर और उसके पैग़म्बर को दोस्त रखता है। हज़रत उम्मे सलमा ने कहा कि हे ईश्वरीय दूत वह कौन है जिसे देखे बिना उसके बारे में आप यह कह रहे हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा हे उम्मे सलमा थोड़ा धैर्य करो और देखो। वह वीर मेरा चचेरा भाई है और मुझे सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है। यह सुनते ही उम्मे सलमा अपनी जगह से उठीं ताकि दरवाज़ा खोलें और देखें कि वह कौन है जिसकी पैग़म्बर इस तरह तारीफ़ कर रहे हैं। जैसे ही उन्होंने दरवाज़ा खोला तो हज़रत अली का दमकता हुआ चेहरा देखा। हज़रत अली ने उनसे घर में दाख़िल होने की इजाज़त ली और फिर दाख़िल होते ही पैग़म्बरे इस्लाम को सलाम किया और शर्म से सिर झुका कर बैठ गए और कुछ कह न सके। थोड़ी देर दोनों हस्तियां ख़ामोश रहीं।
पैग़म्बरे इस्लाम ने इस ख़ामोशी को तोड़ा और कहा, हे अली जिस काम से आए हो कहो! शर्माओ नहीं। अपनी बात कहो! तुम्हारी इच्छा पूरी की जाएगी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, "हे ईश्वरीय दूत! मेरे मां बाप आप पर न्योछावर हो! मैं आपके घर में पला बढ़ा। आपकी अपार कृपा का पात्र बना। आपने मेरे मां बाप से बेहतर ढंग से मेरा पालन पोषण किया। आपके वुजूद की बर्कत से बचपन में ही मेरा सत्य की ओर मार्गदर्शन हुआ। हे ईश्वरीय दूत! ईश्वर की सौगंद लोक परलोक में आपही मेरी पूंजि हैं। अब वक़्त आ गया है कि मैं अपने लिए एक जीवन साथी का चयन करूं ताकि परिवार गठित करूं और सुकून पाऊं। अगर आप बेहतर समझें तो अपनी बेटी फ़ातेमा से मेरा निकाह कर दें ताकि लोक परलोक का कल्याण हासिल करूं।" पैग़म्बरे इस्लाम मानो इसी क्षण के इंतेज़ार में थे। यह सुनकर आप बहुत ख़ुश हुए और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के पास गए और कहा कि तुम अली को अच्छी तरह पहचानती हो! तुम्हारा हाथ मांगने के लिए आए हैं। क्या तुम्हारी इजाज़त है कि उनके साथ तुम्हारी शादी कर दूं। हज़रत फ़ातेमा ने शर्म से सिर झुका लिया जिसे पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत फ़ातेमा की रज़ामंदी समझा। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास पलटे और कहा कि क्या तुम्हें एक शुभसूचना दूं और एक राज़ की बात बताऊं? हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि आप हमेशा शुभसूचना देते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, "तुम्हारे आने से पहले मेरे पास जिबरईल आए और कहा, हे मोहम्मद! ईश्वर ने आपको लोगों में लोगों के मार्गदर्शन के लिए चुना और अली को आपका भाई और उत्तराधिकारी चुना। आप अपनी बेटी की शादी अली से कर दीजिए। शादी का जश्न फ़रिश्तों की मौजूदगी में आसमान में आयोजित होगा। ईश्वर उन्हें नेक संतान देगा। हे अली जिबरईल अभी ऊपर पहुंचे भी नहीं कि तुमने हमारे घर का दरवाज़ा खटखटाया और मेरी बेटी फ़ातेमा का हाथ मांगा।"