अल्लाह के ख़ास बन्दे- 21
मोटे तौर पर जब हम ग़दीर की घटना पर नज़र डालते हैं तो देखते हैं कि यह केवल एक घटना नहीं है, बल्कि यह एक विचारधारा है जो पूरे इतिहास में बाक़ी है, इसलिए कि लोगों का भाग्य मानव समाज की इमामत और नेतृत्व पर निर्भर करता है।
निसंदेह अगर हज़रत अली (अ) को वह स्थान दे दिया मिल जाता जो ईश्वर ने उनके लिए विशेष किया था और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बाद समाज के मार्गदर्शन एवं नेतृत्व की ज़िम्मेदारी उन्हें सौंप दी जाती तो न केवल इस्लामी जगत बल्कि विश्व समुदाय को कल्याण का एक सीधा रास्ता मिल जाता।
ईश्वर और अंतिम ईश्वरीय दूत के निकट हज़रत अली का स्थान बहुत ऊंचा है, पैग़म्बरे इस्लाम ग़दीर के ख़ुतबे के एक अन्य भाग में फ़रमाते हैं, हे लोगों ईश्वर ने निःसंदेह अली इब्ने अबी तालिब को समस्त लोगों पर वरीयता प्रदान की है और जब तक ईश्वर आजीविका प्रदान करता रहेगा और कोई भी एक व्यक्ति दुनिया में बाक़ी रहेगा वह मेरे बाद हर पुरुष एवं महिला से श्रेष्ठ हैं। हे लोगों उनके मार्ग से भटको नहीं और उनकी ओर से अपना चेहरा मत फेरना और उनके नेतृत्व का इनकार नहीं करना, इसलिए कि वह सच्चे मार्गदर्शक, सच्चाई पर चलने वाले और बातिल को नष्ट करने वाले और उसे रोकने वाले हैं। वे ईश्वर के मार्ग में किसी भी बुराई की निंदा करने में संकोच से काम नहीं लेते हैं। वे पहले ऐसे शख़्स हैं, जो ईश्वर और उसके पैग़म्बर पर ईमान लेकर आये है और मुझ पर ईमान लाने में किसी भी व्यक्ति को उन पर प्राथमिकता हासिल नहीं है। वह ऐसे व्यक्ति हैं, जिसने पैग़म्बरे इस्लाम की जान बचाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा दी और हर अच्छे एवं बुरे वक़्त में पैग़म्बर के साथ रहे और पुरुषों में उनके अलावा किसी ने भी ईश्वरीय दूत के साथ ईश्वर की इबादत नहीं की। इसलिए हे लोगों उन्हें सबसे अधिक श्रेष्ठ मानो, इसलिए कि ईश्वर ने उन्हें श्रेष्ठाता प्रदान की है, उनके नेतृत्व को स्वीकार करो, ईश्वर ने उन्हें इस पद पर नियुक्त किया है।
पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली की जो विशेषताएं एवं गुण बयान किए हैं, उसके अलावा उन्होंने उनके बारे में एक बहुत ही बुनियादी बिंदु का उल्लेख किया है। पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं, ईश्वर ने उन्हें यह श्रेष्ठता एवं समस्त गुण प्रदान किए हैं और ईश्वर ने उन्हें इमामत के पद पर नियुक्त किया है। पैग़म्बरे इस्लाम के इस कथन का अर्थ यह है कि अन्य लोगों को यह अद्वितीय श्रेष्ठाता हासिल नहीं है। उन्हें ईश्वर ने इमामत जैसी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी प्रदान की है। दूसरे लोग इस क्षेत्र में कोई भूमिका नहीं निभा सकते हैं, इसलिए जो कोई भी ऐसा करेगा वह ईश्वर की इच्छा की अवज्ञा करेगा।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ख़ुतबे को जारी रखते हुए ज्ञान और धर्मनिष्ठता जैसे दो विशेष गुणों की ओर संकेत करते हैं, इन गुणों से सुसज्जित होना उस व्यक्ति के लिए ज़रूरी है जो समाज का नेतृत्व करना चाहता है। पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं, हे लोगों कोई ऐसा ज्ञान नहीं है जो ईश्वर ने मुझे प्रदान नहीं किया हो और जो भी ज्ञान मुझे सिखाया गया है, उसे मैंने अली को सिखाया है, वह स्पष्ट रूप से इमाम हैं, ईश्वर ने सूरए यासीन में इसका उल्लेख किया है और फ़रमाता है, हमने हर चीज़ इमामे मुबीन को प्रदान कर दी है।
यहां ध्यान योग्य बिंदु यह है कि इमाम दुनिया में आकर ज्ञान प्राप्त नहीं करता है, बल्कि उसके ज्ञान का स्रोत ईश्वरीय ज्ञान होता है, जिससे आम लोग वंचित रहते हैं। इसके अलावा, केवल मासूम और हर प्रकार के गुनाह से दूर रहने वाली हस्तियां ही ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करती हैं, पैग़्मबरे इस्लाम ने इसी बिंदु की ओर संकेत करते हुए फ़रमाया था, ईश्वर ने वह समस्त ज्ञान जो मुझे प्रदान किया है वह मैंने अली और धर्म में गहरी आस्था रखने वाली उनकी संतान को प्रदान किया।
इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपना ख़ुतबा जारी रखते हुए फ़रमाते हैं, हे लोगो, यही अली हैं, जिन्होंने प्रत्येक व्यक्ति से अधिक मेरी सहायता की है और यह तुम लोगों के बीच मुझसे सबसे अधिक निकट, सबसे प्रिय और सबसे प्रतिभाशाली शख़्स है। ईश्वर भी और मैं भी उससे प्रसन्न हूं। क़ुरान में अली के अलावा ईश्वर के किसी से प्रसन्न होने के बारे में कोई आयत नहीं है। क़ुरान में जहां भी ईमान लाने वालों की बात हुई है उसमें सर्वप्रथम अली हैं। ईश्वर ने सूरए हल अता में अली के बारे में गवाही दी है और उनसे वादा किया है और ईश्वर ने इस सूरे को अली के अलावा किसी और के बारे में नाज़िल नहीं किया है और उनके अलावा किसी और की प्रशंसा नहीं की है।
हज़रत अली (अ) के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ग़दीर के ख़ुतबे में जिन विशिष्टताओं का ज़िक्र किया है उनमें से एक उल्लेखनीय विशिष्टता ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम का हज़रत अली से प्रसन्न होता है, इस प्रकार से कि पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं, अली के अलावा क़ुरान में कोई भी आयत ईश्वर की प्रसन्नता के बारे में नाज़िल नहीं हुई है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत अली के जिन अन्य गुणों का उल्लेख करते हैं वह यह हैं, जहां भी क़ुरान ईमान लाने वालों का ज़िक्र करता है, उनमें सबसे आगे हज़रत अली का चेहरा चमकता है। इन समस्त स्पष्ट बयानों के बावजूद पैग़म्बरे इस्लाम ने यही कोशिश की कि हज़रत अली की इमामत के बारे में किसी तरह का कोई संदेह बाक़ी नहीं रहे, यही कारण है कि ग़दीर के ख़ुतबे में फ़रमाया, हे लोगों वह मेरा क़र्ज़ अदा करने वाला और मेरे अधिकार की रक्षा करने वाला है। वह एक पवित्र तपस्वी एवं मार्गदर्शन प्राप्त मार्गदर्शक है, उसका पैग़म्बर ईश्वरीय दूतों में सबसे श्रेष्ठ और वह बेहतरीन वली और मेरा उत्तराधिकारी है और हर पैग़म्बर की नस्ल उसके वंश से है, लेकिन मेरी नस्ल अली के वंश से है।
पैग़म्बरे इस्लाम यह बताना चाहते हैं कि हज़रत अली के गुण केवल उतने ही नहीं हैं, जितने उन्होंने बयान किए हैं, वे फ़रमाते हैं, हे लोगो निःसंदेह अली के गुण और वह गुण जिनका क़ुरान में ईश्वर ने उल्लेख किया है, बहुत अधिक हैं जिन्हें एक बैठक में बयान नहीं किया जा सकता, इसलिए जो कोई भी तुम्हें अली के गुणों के बारे में सूचना दे उसकी पुष्टि करो।
इस संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण अवसर पर जिबरईल फिर से नाज़िल हुए और यह आयत नाज़िल हुई, आज जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे आपके धर्म से निराश हो गए, इसलिए उनसे डरने की ज़रूरत नहीं है और मुझसे डरो। आज मैंने तुम्हारे धर्म को तुम्हारे लिए संपूर्ण बना दिया और अपनी अनुकंपाओं को पूरा कर दिया और इस्लाम को धर्म के रूप में तुम्हारे लिए चुना और मैं उससे प्रसन्न हूं।
इस आयत में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर संकेत किया गया है। ईश्वर कहता है कि आज काफ़िर तुम्हारे धर्म से निराश हो गए, दूसरे यह कि आज तुम्हारे धर्म को संपूर्ण बना दिया, तीसरा यह कि अनुकंपाओं को पूरा कर दिया और अंतिम बिंदु यह कि इस्लाम को तुम्हारे लिए ईश्वर ने पसंद किया है।
ग़दीर की घटना के इन बिंदुओं के कारण, अनेक इस्लामी विद्वानों का मानना है कि अगर ग़दीरे ख़ुम में ईश्वरीय आदेश के अनुसार अली (अ) को इमाम और पैग़म्बरे इस्लाम का उत्तराधिकारी नहीं बनाया गया होता तो इस्लाम धर्म अधूरा रह जाता और संपूर्ण नहीं हो पाता, लेकिन ईश्वर के आदेश और पैग़म्बरे इस्लाम के इस क़दम के कारण, ईश्वर ने न केवल इस्लामी उम्मत बल्कि मानव समाज के लिए अपनी अनुकंपाओं को पूरा कर दिया। ईश्वर के प्रसन्न होने से घात लगाकर बैठा दुश्मन निराश हो गया, क्योंकि दुश्मन समझता था कि पैग़म्बरे इस्लाम के बाद इस्लाम का काम ख़त्म हो जाएगा। ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को अपना दूत बनाने के बाद यह शुभ सूचना दी थी कि वह वही है जिसने अपने दूत को सच्चे धर्म और मार्गदर्शन के साथ भेजा, ताकि हर धर्म पर विजयी हो, चाहे अनेकेश्वरवादियों को यह अच्छा न लगे।
ग़दीरे ख़ुम में हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी बनाने के बाद, पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमानों से कहा कि अली (अ) की बैयत करें। उमर बिन ख़त्ताब मुसलमानों के एक बड़े समूह के साथ पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में उपस्थित हुए और अली (अ) के इमाम एवं उत्तराधिकारी बनने की बधाई दी। इस प्रकार मुसलमान उज्जवल भविष्य की आशा लेकर अपने घरों को वापस लौटे। ग़दीर का संदेश इस्लामी राष्ट्र के कोने कोने तक फैस गया।
लेकिन अभी इस घटना की मीठे यादें लोगों के दिमाग़ में थीं कि मदीने में पैग़म्बरे इस्लाम के बीमार होने की दुख भरी ख़बर फैल गई। ईश्वरीय दूत कि जो अच्छी तरह जानते थे कि कुछ अवसरवादी लोग ईश्वरीय आदेश की अनदेखी करते हुए अली (अ) को पैग़म्बर का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर देंगे, इसलिए उन्होंने इसका एक समाधान खोजा और ओसामा के नेतृत्व में रूम से लड़ाई के लिए एक लश्कर तैयार करके आगे बढ़ने का आदेश दिया, लेकिन सत्ता के भूखों ने ईश्वरीय दूत के आदेश का पालन नहीं किया, जैसा कि क़ुरान कहता है, ईश्वर और उसके दूत का पालन करो, लेकिन उन्होंने आज्ञा पालन नहीं किया और पैग़म्बरे इस्लाम की बीमारी का बहाना बनाकर ओसामा के लश्कर को आगे बढ़ने से रोक दिया और व्यवाहरिक रूप से पैग़म्बरे इस्लाम के आदेश का पालन नहीं किया। धीरे धीरे पैग़म्बर की बीमारी बढ़ती गई और पैग़म्बरे इस्लाम ने अली (अ) के ख़िलाफ़ होने वाली साज़िश को नाकाम बनाने के लिए काग़ज़ और क़लम लाने का आदेश दिया, ताकि अली (अ) की इमामत पर एक दस्तावेज़ छोड़ जाएं। लेकिन इस अवसर पर भी कुछ लोगों ने हंगामा मचाकर काग़ज़ और क़लम लाने से इनकार कर दिया। इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम के आदेश को नहीं मानने की बुनियाद पड़ गई और इस्लामी जगत का भविष्य अंधकार में पड़ गया और वे लोग पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी बन गए जो उसके योग्य नहीं थे।