May १४, २०१८ १३:४१ Asia/Kolkata

इस्लामी जगत में विशेषकर वर्तमान समय में एकता महत्वपूर्ण विषयों में से एक है।

इस्लामी एकता का महत्वपूर्ण दुश्मन अमरीका के नेतृत्व में विश्व साम्राज्यवाद है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि इस्लामी एकता के शत्रु जो वास्तव में शुद्ध इस्लाम के दुश्मन हैं, इस्लामोफ़ोबिया फैलाने और इस्लाम धर्म की सुन्दर छवि को तबाह करने के लिए बहुत अधिक पैसे ख़र्च कर रहे हैं और उन्होंने इसके लिए दीर्घावधि कार्यक्रम बनाए हैं। ऐसे हालात में मुसलमानों के लिए शालीन नहीं है कि वह भी उनकी मदद करें और आपसी मतभेदों से और एक दूसरे बुरा भला कह कर दुश्मनों को उनके लक्ष्यों तक पहुंचाएं। वरिष्ठ नेता इस कार्यवाही को दूरदर्शिता और राजनीति के विरुद्ध बताते हैं।

वरिष्ठ नेता का मानना है कि मुसलमानों को चाहिए कि आपस में एकजुट रहें और एक दूसरे की सहायता करें, मुस्लिम सरकारें भी, मुस्लिम राष्ट्र भी। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस्लामी सरकारें, मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने के लिए मुसलमानों की अपार क्षमताओं से लाभ उठा सकती हैं और एकता की मज़बूती में अपनी भूमिका अदा कर सकती हैं।

 

खेद की बात यह है कि आज दुनिया में जो कुछ हो रहा है वह मुसलमानों के बीच एकता के संबंध में उचित नहीं है। वरिष्ठ नेता की नज़र में जो चीज़ एकता की राह में रुकावट है उनमें से ज़्यादातर चीज़ अज्ञानता और संकीर्ष सोच है। एक दूसरे से अज्ञान में रहना और दूसरों की आस्था और विचारों की ओर से शंका में ग्रस्त रहना, उन नमूनों में से है जिनसे मुसलमान एक दूसरे से दूर होते हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि शिया, सुन्नियों के बारे में, सुन्नी, शियों के बारे में, अमुक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के बारे में, अपने पड़ोसियों के बारे में शंका में ग्रस्त रहते हैं, दुश्मन भी पूरी ताक़त से यही भ्रांति फैलाने के प्रयास में हैं, खेद के साथ कहना पड़ता है कि कुछ लोग भी इसी भ्रांति का शिकार हो जाते हैं, दुश्मन की योजना की अनदेखी करते हुए, दुश्मनों के हाथों का खिलौना बन जाते हैं और दुश्मन उससे लाभ उठाते हैं। कभी कभी एक छोटी सी बात मनुष्य को बात कहने पर मजबूर कर देती है और उसको दृष्टिकोण अपनाने पर विवश कर देती है, ऐसा काम करने पर मजबूर कर देती है कि दुश्मन उस बात से अपनी योजना के लिए फ़ायदा उठाए और दोस्तों के बीच मतभेद की खाई और गहरी कर दे।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि द्वेष के कारण दो अलग अलग आस्था रखने वालों के बीच मतभेद एक स्वभाविक बात है और यह बात शिया और सुन्नी मुसलमानों से विशेष नहीं है। आस्था का यह द्वेष शिया मुसलमानों के विभिन्न मतों में और सुन्नी मुसलमानों के विभिन्न मतों में काफ़ी समय से चला आया है, इतिहास पर नज़र डालने से पता चलता है कि सुन्नी मुसलमानों में धर्मशास्त्र और उसूल के मतों में, उदाहरण स्वरूप अशाएरा और मोतज़ला, उदाहरण स्वरूप हंबलियों, शाफ़ई और हनफ़ियों में भी पाया जाता था, इसी प्रकार शिया मुसलमानों के विभिन्न मतों में मतभेद पाए जाते थे।

वरिष्ठ नेता बताते हैं कि जब यह मतभेद निचले स्तर पर, आम लोग तक पहुंचता है तो यह ख़तरनाक हद तक पहुंच जाता है और एक दूसरे का गिरेबान पकड़ने तक की नौबत आ जाती है! धर्मगुरु आपस में मिल बैठकर बातें करते हैं, चर्चा करते हैं, किन्तु जब बात उस तक पहुंचती है जिसमें ज्ञान के हथियार नहीं होते तो वह भावनाओं, मुक्के और हथियारों का प्रयोग करता है, यह बहुत ही ख़तरनाक है। दुनिया में यह चीज़ हमेशा से रही है, हमेशा मोमेनीन भी और शुभ चिंतकों ने भी इसको रोकने का प्रयास किया है, धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों का भी यही प्रयास होता था कि आम लोग झगड़े में न फंसे लेकिन इसी बीच दूसरे लोग मैदान में कूद पड़े, यह साम्राज्यवादी थे, मैं यह नहीं कहना चाहता कि हमेशा से शिया सुन्नी मतभेद साम्राज्यवादियों से संबंधित रहा है, नहीं ऐसा नहीं है, उनकी भावनाएं इसमें शामिल रही हैं, कुछ अज्ञानता के कारण, कुछ द्वेष के कारण, कुछ भावनाओं के कारण और कुछ संकीर्ष सोच के कारण इस मामले में उलझ गये लेकिन जब साम्राज्यवादी इस मामले में घुसे तो उन्होंने इन हथियारों का अधिक से अधिक प्रयोग किया।

मुसलमानों को इस महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान देना चाहिए कि दुश्मन हमारी छोटी सी ना समझी से लाभ उठाकर मतभेद की आग लगा देते हैं। इस आधार पर इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता मुसलमानों के बीच एकता और मुसलमानों को दूर करने वाली गांठों को खोलने को वर्तमान समय में सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता समझते हैं। वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैं कि प्राचीन काल से ही अपने लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से साम्राज्यवादियों ने नीच राजनीति चला रखी है किन्तु आज इस्लामी चेतना की विभूति से मुस्लिम राष्ट्र साम्राज्यवाद और ज़ायोनिज़्म के मोर्चे की दुश्मनी से भलि भांति अवगत हो चुके हैं और उसके मुक़ाबले में दृष्टिकोण अपनाए हुए हैं। मुसलमानों के बीच मतभेद के बीज बोने का काम तेज़ी से शुरु हो गया है। मक्कार दुश्मन अब मुसलमानों के बीच गृह युद्ध की आग भड़काकर उनमें प्रतिरोध और संघर्ष के अर्थ को दिगभ्रमित करना चाहता है और ज़ायोनी शासन और साम्राज्यवादियों के पिट्ठुओं को जो वास्तविक दुश्मन हैं, सुरक्षित रखना चाहता है। पश्चिमी एशिया के देशों में तकफ़ीरी आतंकवादी गुटों और दूसरे तरह के आतंकियों को सक्रिय करना, इन्हीं धूर्ततापूर्ण नीतियों का भाग है। यह चेतावनी हम सबके लिए है कि मुसलमानों के बीच एकता को आज अपने अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय दायित्व में सर्वोपरि करें।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता हज को एकता, भाईचारे और आपसी मेल का बेहतरीन प्रतीक बताते हैं। उनका मानना है कि हज में सभी लोगों को संयुक्त बातों पर ध्यान देना और मतभेद को दूर करने का पाठ सीखना चाहिए। वरिष्ठ नेता एकता की वास्तविकता को एकेश्वरवाद की मूल इच्छा बताते हैं और निष्ठा के साथ उपासना की छत्रछाया में एकता तक पहुंचने को संभव समझते हैं। वरिष्ठ नेता का मानना है कि जैसे ही मन में एकेश्वरवाद की आत्मा ज़िंदा होती है, वैसे ही दिल एक दूसरे से निकट होते हैं और महान इस्लामी राष्ट्र के तन एक दूसरे से जुड़ जाते हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की नज़र में हज्जे इब्राहीमी ही हज्जे मुहम्मदी है जिसके दौरन एकेश्वरवाद और एकता की ओर बढ़ा जाता है और इसी बीच एकता के प्रतीक के रूप में काबा, इस्लामी भाईचारे और एकेश्वरवाद का पाठ सिखाता है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता हज के मौसम को स्वच्छ झरने की भांति बताते हैं जो हाजियों को एक साथ एकेश्वरवाद और एकता जैसी वास्तविकता से अवगत कराता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई की नज़र में मुसलमानों के लिए हज का सबसे बड़ा पाठ यह है कि मुसलमान एकता तक पहुंचने के लिए निष्ठापूर्ण ढंग से एकेश्वरवाद का दामन पकड़ लें और स्वयं को इस विषय से मज़बूती से जकड़ दें।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि हज आज हमको यह सिखाता है कि यह कोई व्यक्तिगत उपासना नहीं है बल्कि मुसलमानों की समस्याओं पर ध्यान देने और ज़माने के शैतान से दूरी कभी भी हाजियों के एकेश्वरवाद और अध्यात्म की भावना के विरुद्ध नहीं है और हाजी हज के विशेष अवसर से जो उसे आत्मनिर्माण का मौक़ा देता है, मुसलमानों की समस्याओं से निश्चेत नहीं रह सकता। यह दोनों विषय, एक ही प्रक्रिया के पूरक हैं, यह कोई दो अलग अलग कार्यवाही नहीं है। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि स्वयं का सुधार और मुसलमानों का सुधार, दो कभी न अलग होने वाले दायित्व हैं जो हज के मौसम में व्यवहारिक होते हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने और इस्लाम के दुश्मनों के षड्यंत्रों को दूर करने में हज के बहुत अधिक महत्व के बारे में कहते हैं कि मुस्लिम राष्ट्रों को शताब्दियों और वर्षों के दौरान ज़मीन पर पटक दिया, अपमानित किया, असहाय कर दिया, निराश कर दिया और नये संसाधनों द्वारा उनके अध्यात्म को, उनके ध्यान और एकाग्रता को कमज़ोर करने का प्रयास किया। हज समस्त समस्याओं को ठीक करता है, मुसलमानों की एकता को प्रतिष्ठित करता है, उनको शक्ति का आभास दिलाता है, आशा दिलाती है, हज इसी तरह है। हज का पहला प्रभाव मुसलमानों के भीतर है, स्वयं हमारे दिलों में है। दूसरी ओर इसके अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव भी हैं, दुश्मनों को कमज़ोर करता है, दुश्मनों के मनोबल को कमज़ोर करता है, इस्लाम के वैभव को दुश्मनों के सामने पेश करता है, मुसलमानों की एकता को दुश्मनों के सामने ज़ाहिर करता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि उन पर अल्लाह की धिक्कार हो जिन्होंने मुसलमानों की एकता को इस्लामी जगत के महत्व को मन से दूर करने का प्रयास किया, मुसलमानों को विभिन्न वर्गों और लक्ष्यों में विभाजित किया, महान इस्लामी राष्ट्र के वैभव के मुक़ाबले में जातीवाद को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया, राष्ट्र को एक दूसरे से अलग कर दिया जबकि मुस्लिम राष्ट्र महत्वपूर्ण है, वैभव इस्लामी राष्ट्र से संबंधित है, ईश्वर मुसलमानों और इस्लामी राष्ट्र को अपने वैभव का पात्र बनाता है, हज मुस्लिम राष्ट्र के गठन का प्रतीक है। यह सब चीज़ें दुनिया में हज के अलावा कहां व्यवहारिक होती हैं, हज के सामाजिक आयामों में से एक एकता का विषय है। (AK)

 

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