अल्लाह के ख़ास बन्दे- 24
आपको बताया था कि लोगों की अप्रसन्नता के बाद उनके भीतर विद्रोह पैदा हुआ और उन्होंने उस्मान ग़नी की हत्या कर दी।
इस हत्या के बाद लोग हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास आए। यह लोग हज़रत अली की बैअत करना चाहते थे किंतु इमाम अली इसके लिए तैयार नहीं थे। लोगों की ओर से हज़रत अली अलैहिस्सलाम से बैअत करने पर लगातार दबाव के बारे में वे कहते हैं कि तुमने मेरी ओर हाथ बढ़ाया। मैंने उसे पीछे हटाया तो तुम फिर उस ओर आगे बढ़ने लगे। बाद में तुम इस तरह टूट पड़े जैसे प्यासा ऊंट पानी पर झपटता है। तुम सबने मुझको इस तरह से घेर लिया कि मेरे जूते भी पैरों से निकल गए और मेरी अबा, कांधे से गिर गई। मुझसे बैअत करने के लिए लोगों में इतनी व्याकुलता बढ गई थी कि कम आयु वाले प्रसन्न थे और बड़े लोग हांफते-कांपते हुए मेरी ओर आ रहे थे।
बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि वे लोग जो इतनी तेज़ी से हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बैअत के लिए आगे बढ़ रहे थे जब उन्होंने यह देखा कि वे तो केवल न्याय स्थापित करना चाहते हैं और इस मार्ग में आने वाली हर बाधा का मुक़ाबला करने के लिए तैयार हैं तो एसे ही लोगों ने हज़रत अली का विरोध आरंभ कर दिया। जब उन्होंने देखा कि हज़रत अली समाज में भेदभाव दूर करने, न्याय स्थापित करने और राजकोष या बैतुलमाल से लूटी गई धन-संपत्ति को वापस लाने में बहुत गंभीर हैं तो फिर बहुत से बैअत करने वाले इमाम अली के विरोधी हो गए। इनमें से कुछ तो एसे थे जो इमाम अली के हितैषी बनकर उनसे कहा करते थे कि आप पहले कुछ नर्मी से काम लें और उनको अनदेखा करें। बाद में उनके बारे में कुछ कीजिएगा। एसे लोगों के जवाब में हज़रत अली अलैहिस्लाम ने कहा कि क्या तुम यह चाहते हो कि मैं भेदभाव और अत्याचार का समर्थन करूं?
क्या तुम यह चाहते हो कि मैं न्याय का राजनीतिकरण करूं? फिर हज़रत अली ने कहा कि ईश्वर की सौगंध मैं एसा कभी भी नहीं करूंगा। मैं भेदभाव और जातिवाद का समर्थन नहीं कर सकता। मैं अन्याय का साथ नहीं दूंगा। उन्होंने कहा कि इस समय जो कुछ मेरे अधिकार में है यदि यह सारा माल मेरा होता और मैं यह चाहता कि इसे लोगों के बीच बांट दूं तब भी मैं भेदभाव से काम नहीं लेता। फिर उन्होंने कहा कि यह माल तो मेरा है ही नहीं यह तो ईश्वर का है एसे में इसके बांटने में भेदभाव के बारे सोचना भी ग़लत है। इसका बंटवारा न्याय के आधार पर होगा।
इस प्रकार हज़रत अली ने दुष्प्रचार और विरोध को अनदेखा करते हुए अयोग्य लोगों को उनके पदों से हटाया और योग्य लोगों को उनके स्थान पर नियुक्त किया। इस तरह से उन्होंने सत्ता का संचालन शुरू किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सरकार के कर्मचारियों और अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि सत्ता को किसी हथकण्डे के रूप में न देखों बल्कि उसे एक अमानत की तरह समझो और एक अच्छे अमानतदार की तरह उसकी सुरक्षा करो। आपने कहा कि किसी भी भ्रष्ट या अत्याचारी व्यक्ति को कोई ज़िम्मेदारी न सौंपो, साधारण जीवन गुज़ारो, आलोचकों की बातों को सुनो और चापलूस लोगों से दूर रहो। आम लोगों से संपर्क में रहो और लोगों से मिलते-जुलते रहो। हर फैसला करते समय न्याय को दृष्टिगत रखों। फैसला करते समय किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव न करो। हमेशा न्याय का साथ दो। यदि तुम्हारे विरुद्ध युद्ध भड़काया जाए तो उसका मुक़ाबल करो और युद्ध के मैदान से कभी न भागो। जीतने की स्थिति में कभी भी अन्याय न करो। लोगों के साथ मानवता के आधार पर व्यवहार करो। भागते हुए लोगों का पीछा न करो। युद्ध कभी भी आरंभ न करो लेकिन अगर युद्ध तुमपर थोप दिया जाए तो फिर पीछे न हटो। हमेशा न्याय से काम लो।
यह वह बातें थीं जो हज़तर अली अलैहिस्सलाम की नीतियों का भाग थीं। इन्ही नीतियों के कारण वे लोग जिन्होंने ख़ूब पैसा कमा लिया था अब स्वयं को संकट में देख रहे थे। न्याय के मार्ग पर चलने की स्थिति में जमापूंजी हाथ से निकल रही थी। एसे में उन्होंने हज़रत अली से मिलकर यह कहना चाहा कि वे अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करें। जब उन्होंने देखा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम किसी भी स्थिति में अपनी न्यायपूर्ण नीति और इस्लामी शिक्षाओं के क्रियान्वयन से पीछे नहीं हट रहे हैं तो फिर उन लोगों ने हज़रत अली के विरुद्ध षडयंत्र आरंभ कर दिये। इस प्रकार बहुत से एसे लोग हज़रत अली के विरुद्ध एकजुट हो गए जो उनकी इस्लामी नीतियों के विरोधी थे। एसे लोगों का यह मानना था कि हज़रत अली उनको कुछ छूट दें या फिर अनदेखा कर दें किंतु इमाम अली ने एसा नहीं किया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का एक कथन है जिसमें आपने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सत्ताकाल के बारे में एक भविष्यवाणी की थी। आपने कहा था कि ईश्वर की सौगंध अली, क़ासेतीन, नाकेसीन और मारेक़ीन के विरुद्ध युद्ध करेंगे अर्थात हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने सत्ताकाल में वर्चस्ववादियों, बैअत तोड़ने वालों और भ्रष्ट लोगतं के विरुद्ध लड़ाई लड़ेंगे। विशेष बात यह है कि इन तीनों गुटों से लड़ना इसलिए बहुत कठिन था कि वे सबके सब धर्म का लबादा ओढ़े हुए थे और लोगों के बीच स्वयं को अच्छा दिखाते थे जबकि अंदर से बुरे थे।
इस संबन्ध में पहले हम जंगे जमल या जमल युद्ध का उल्लेख करेंगे। यह वह युद्ध था जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी “आएशा” की महत्वपूर्ण भूमिका थी। हज़रत उमर और अबूबक्र के काल में उन्हें बहुत मान-सम्मान प्राप्त था किंतु उस्मान ग़नी के काल में उनका सम्मान कम होता गया। यही वजह है कि उस्मान ग़नी और आएशा के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए। बात इतनी बढ़ गई कि उस्मान ग़नी के बारे में हज़रत आएशा ने कहा कि इस नासमझ बूढे को मार दो जो काफ़िर हो गया है। उन्होंने इसी प्रकार कई क़बीलों को ख़त लिखकर उन्हें उस्मान ग़नी के विरुद्ध उकसाया। जब उन्होंने उस्मान ग़नी की हत्या की ख़बर सुनी तो कहा कि वे अपने परिवार के लिए बदनामी का कारण बने। इसके बाद जैसे ही उन्हें हज़रत अली के ख़लीफ़ा बनने की सूचना मिली तो उन्होंने अपना दृष्टिकोण बदल दिया। अब उन्होंने उस्मान ग़नी के हत्यारों से बदला लेने की मांग शुरू कर दी। वास्तव में हज़रत आएशा को आशा थी कि ख़िलाफ़त तल्हा और ज़ुबैर के हाथ में आएगी किंतु जब उन्होंने सुना की अली ख़लीफ़ा बन गए हैं तो फिर उन्होंने उस्मान ग़नी के हत्यारों से बदला लेने का अभियान आरंभ किया। तलहा और ज़ुबैर यह बात भलि भांति जानते थे कि खिलाफ़त तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता यह है कि हज़रत आएशा की सामाजिक स्थिति का लाभ उठाते हुए लोगों को हज़रत अली के विरुद्ध उकसाया जाए। उन्होंने एसा ही किया। इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कहना था कि उन्होंने विद्रोह किया और एसे लोगों की सेना बनाकर सामने आए जिन्होंने मेरी बैअत की थी और वे मेरी बात मानते थे।
जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम को यह पता चला कि जमल की फौज बसरे की तरफ़ बढ़ रही है तो उन्होंने अपने गवर्नर उस्मान बिन हनीफ़ को ख़त लिखा था। इस ख़त में हज़रत अली ने लिखा था कि तुम उन लोगों से बात करना और उन्हें समझाना कि वे युद्ध न भड़काएं। उन्होंने अली के साथ जो बैअत की है उसे न तोड़ें। हालांकि जमल की फौज ने इमाम अली के गवर्नर की कोई बात नहीं मानी। इसका कारण यह था कि वे युद्ध करने, लूटपाट करने और सत्ता हासिल करने के लिए ही निकने थे। यह सेना बसरे की ओर बढ़ने लगी। जब हज़रत अली के गवर्नर उस्मान बिन हनीफ़ ने यह देखा कि अब युद्ध के अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग नहीं बचा है तो उन्होंने अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने का आदेश दिया।
जमल की सेना ने जब यह देखा कि बसरे की सेना मज़बूत है और हम उसका मुक़ाबला नहीं कर सकते तो उन्होंने एक चाल चली। उन्होंने बसरे की सेना से मांग की युद्ध न किया जाए और हज़रत अली के मदीने से यहां पहुंचने की प्रतीक्षा की जाए। फिर अली जो फैसला करेंगे वैसा किया जाएगा। जमल की सेना में यह मांग की कि जबतक अली नहीं पहुंच जाते उस समय तक उन्हें बसरे के भीतर जाने की अनुमति दी जाए। उन्होंने वचन दिया था कि बसरे के भीतर पहुंचकर वे लोग गवर्नर के कार्यालय, जनकोष या ख़जाने और मस्जिद के निकट नहीं जाएंगे। उधर बसरे के गवर्नर उस्मान बिन हनीफ़ ने यह सोचा भी नहीं था कि तलहा और ज़ुबैर जैसे पैग़म्बरे इस्लाम के साथी विश्वासघात भी कर सकते हैं। हांलाकि यही हुआ और जमल की सेना ने बसरे में पहुंचते ही मारकाट शुरू कर दी। मस्जिद में नमाज़ के दौरान लोगों को मारा पीटा। उस्मान बिन हुनैफ़ की हत्या करके उनका गला काट दिया। ख़ज़ाने को लूटा और इस प्रकार से नगर पर अपना कंट्रोल बना लिया।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम को जब यह पता चला कि जमल की सेना ने बसरे पर कंट्रोल कर लिया है तो उन्होंने अपने सैनिकों के साथ बसरे के निकट पड़ाव डाला। जैसे ही यह बात जमल की सेना को पता चली उसने वहां पर हमला कर दिया। अब एसे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के लिए चुप बैठना बहुत कठिन हो चुका था। हज़रत अली ने उन विश्वासघातियों पर हमला किया। कुछ ही देर में पूरा मामला पलट गया। जिन्होंने अली की सेना पर हमला किया था उनको अली के सैनिकों ने धूल चटा दी। इस युद्ध में हज़ारों लोग दोनों तरफ से मारे गए। युद्ध में तलहा और ज़ुबैर भी मारे गए। हज़रत अली ने पूरे सम्मान के साथ हज़रत आयशा को मदीने भिजवाया। इस प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम के विरुद्ध पहला षडयंत्र विफल हो गया। इसके बाद हज़रत अली मदीने वापस नहीं गए बल्कि वे कूफा चले गए।