Jun २०, २०१८ १६:०९ Asia/Kolkata

हमने पिछले कार्यक्रम में बताया कि जमल युद्ध समाप्त होने के बाद हज़रत अली अलैहिसस्लाम ने कूफ़ा नगर को अपना शासन केन्द्र बनाया ताकि वहां से मुआविया की गतिविधियों पर नज़र रख सकें।

पहले तो हज़रत अली अलैहिसस्लाम ने मुआविया के नाम पत्र लिखा। इस पत्र में हज़रत अली अलैहिसस्लाम ने लिखा कि सारी प्रशंस और शुक्र ईश्वर के लिए है। यह निश्चित है कि लोगों ने अपनी मर्ज़ी से उसमान की हत्या की और मुझे इस बारे कुछ भी पता न था और फिर आपसी सलाह मशविरे से वह मेरे घर के सामने जमा हो गए और मेरी बैअत कर ली। जैसे ही यह पत्र तुम्हें मिले लोगों से मेरी बैअत लोग और शाम के प्रतिष्ठित लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल अपनी ओर से मेरे पास भेजो।

मुआविया ने ऐसा करने में कोई रूचि नहीं दिखाई बल्कि जमल युद्ध छेड़ने वालों की तरह उसमान की हत्या को बहाना बनाया और कहा कि जब तक मैं उसमन के हत्यारों से इंतेक़ाम नहीं ले लेता चैन से नहीं बैठूंगा। इसके साथ ही मुआविया ने लोगों को डरा धमकाकर उनसे अपनी बैअत करवा ली और दूसरी ओर एक बड़ी सेना तैयार करके हज़रत अली अलैहिसस्लाम की ख़िलाफ़त का अंत करने की योजना बनाई ताकि ख़ुद खलीफ़ा बन जाए। उसने अपना यह लक्ष्य हासील करने के लिए छह हज़ार सिपाहियों की एक सेना फ़ुरात नदी के किनारे भेजी। सेना फ़ुरात नदी पार करके अलअंबार की सीमा तक पहुंच गई और सैनिकों ने बस्तियों में रहने वाले बेगुनाह लोगों की हत्या और लूटपाट शुरू कर दी।

हज़रत अली अलैहिसस्लाम को जब इस घटना की जानकारी मिली तो वह मस्जिदे कूफ़ा में गए और बड़ा ज्ञानवर्धक प्रवचन देते हुए कहा कि हे लोगो याद रखो कि अंधकार और दुष्टता की सेना ने अलअंबार पर हमला किया है और वहां के गवर्नर आपके भाई बक्री को क़ैदी बना लिया है। गवर्नर ने अपनी क्षमता भर सेना के हमलों का सामना किया तथा ईश्वर की प्रसन्नता को धन दौलत और दुनिया की चमक दमक पर प्राथमिकता दी। मैं आपसे चाहता हूं कि तत्काल उठ खड़े होइए और एकजुट होकर अपनी मज़बूत पंक्ति की मदद से दुशमन को एसा सबक़ सिखाइए कि फिर कभी भी आपकी सीमाओं पर हमला करने का साहस उसके भीतर पैदा न हो और वह हमेशा के लिए हमला और युद्ध करना भूल जाए।

मगर लोगों की सुस्ती और हज़रत अली की चेतावनियों को बार बार नज़रअंदाज़ करने की वजह से मुआविया ने बसर बिन अरताह के नेतृत्व में एक और सेना भेजी जो अपनी बेरहमी के लिए बहुत कुख्यात था। इस सेना ने यमन और हेजाज़ के इलाक़े में हज़रत अली अलैहिसस्लाम के शासन वाले क्षेत्रों पर हमले किए और कुछ लोगों की हत्या कर दी। जब इस दुखद घटना का समाचार हज़रत अली अलैहिसस्लाम को मिला तो उन्होंने फिर अपने एक प्रवचन में लोगों की सुस्ती और लापरवाही की आलोचना की और उन्हें जेहाद की दावत दी। मगर लोगों ने उसे भी अनदेखा कर दिया।

 

मुआविया ने जब देखा कि हज़रत अली अलैहिसस्लाम के साथी सुस्ती और लापरवाही दिखा रहे हैं तो उसने फ़ैसला किया कि एक सेना इराक़ भेजे ताकि इराक़ियों को डराकर उनसे अपनी बैअत करवा ले। इस सेना ने भी बड़े पैमाने पर लोगों का जनसंहार किया।

हज़रत अली अलैहिसस्लाम को जब यह सूचना मिली तो बहुत दुखी हुए। एक बार फिर मजबूर होकर लोगों को जेहाद की दावत दी। उन्होंने प्रवचन में कहा कि मैं आप जैसे निःसंकल्प लोगों के बीच अत्याचार और अतिक्रमण के ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ हूं और न्याय की आवाज़ बुलंद करके आप लोगों से मदद की अपील कर रहा हूं लेकिन आप मेरी बात नहीं सुन रहे हैं और मेरी योजनाओं का समर्थन नहीं कर रहे हैं, मेरे आदेश सुनकर सुस्ती दिखाते हैं। न तो आपके सहारे कोई इंतेक़ाम लिया जा सकता है और न आप की मदद से कोई बड़ा लक्ष्य पूरा किया जा सकता है।

इसके अलावा हज़रत अली अलैहिसस्लाम और मुआविया के बीच पत्राचार हुआ और बातचीत के लिए दोनों तरफ़ से दूत भेजे गए। हज़रत अली अलैहिसस्लाम का सारा प्रयास यह था कि युद्ध को रोका जाए। लेकिन उनके प्रयास सफल नहीं हुए और सिफ़्फ़ीन युद्ध के हालात बन गए।

सच्चाई यह थी कि हज़रत अली अलैहिसस्लाम के पास मालिक अशतर और अम्मार यासिर जैसे त्यागी व बलिदानी साथी थे लेकिन आम लोग जागरूकता से दूर और आराम पसंद थे जो अपने इमाम का साथ देने का कष्ट नहीं उठाना चाहते थे। कूफ़ावासियों का तो शाम के लोगों से पुराना मुक़ाबला था लेकिन वह युद्ध के लिए उस समय तैयार हुए जब उन्हें युद्ध का ख़तरा अपने सिर पर मंडराता महसूस होने लगा।

जब हज़रत अली अलैहिसस्लाम और मुआविया की सेनाए आमने सामने खड़ी हो गईं तो हज़रत अली अलैहिसस्लाम ने अपने साथियों को संबोधित करते हुए कहा कि आप लोग युद्ध की शुरुआत न कीजिए, जंग की शुरूआत दुशमन की ओर से हो तभी लड़िए। ऐसी स्थिति में हक़ आपके साथ होगा। जो दुशमन मैदान छोड़कर भाग रहा है उसकी हत्या न कीजिए जो अपनी रक्षा में अक्षम हो जाए उसे नुक़सान न पहुंचाइए, घायलों की हत्या न कीजिए।

हज़रत अली अलैहिसस्लाम की इस महानता के जवाब मे मुआविया ने सबसे पहला काम यह किया कि अपने सैनिकों को आदेश दिया कि फ़ुरात का पानी हज़रत अली की सेना के लोगों तक न पहुंचने दें। हज़रत अली अलैहिसस्लाम ने अपनी सेना को आदेश दिया कि वह हमला करके मुआविया की सेना को फ़ुरात से पीछे ढकेल दे। हज़रत अली अलैहिसस्लाम की सेना ने फ़ुरात नदी के किनारों पर नियंत्रण कर लिया लेकिन फिर भी मुआविया की सेना पर पानी नहीं बंद किया।

 

दोनों सेनाओं के बीच युद्ध शुरू हो गया। कभी सामूहिक हमला होता कभी दो दो का मुक़ाबला होता। सिफ़्फ़ीन युद्ध 36 हिजरी क़मरी के बारहवें महीने ज़िलहिज्जा में हुआ। जब यह महीना ख़त्म हुआ और मुहर्रम का महीना आ गया तो युद्ध रुक गया क्योंकि इस महीने में युद्ध करना हराम है। लेकिन युद्ध रुक जाने के बाद भी युद्ध की आग धधकती रही। अतः जैसे ही सफ़र का महीना शुरू हुआ युद्ध फिर छिड़ गया। हज़रत अली अलैहिसस्लाम की सूझबूझ और साथियों की साहसी जंग से धीरे धीरे हज़रत अली अलैहिसस्लाम की सेना की विजय के लक्षण स्पष्ट होने लगे और मुआविया की सेना को अपनी पराजय क़रीब नज़र आने लगी। इस संवेदनशील चरण में अम्रे आस नामक मुआविया के सलाहकार ने जो बड़ा धूर्त व्यक्ति माना जाता था मुआविया की सेना को हार से बचाने के लिए एक चाल चली। उसने सिपाहियों को आदेश दिया कि अपने भालों पर क़ुरआन रख कर ऊपर उठा दें इस तरह हज़रत अली अलैहिसस्लाम की सेना को यह संदेश जाएगा कि हम कुरआन का अनुसरण करने वाले हैं और वह युद्ध रोक देंगे इस तरह उनकी सेना को विजय नहीं मिल पाएगी।

खेद की बात यह हुई कि यह चाल कामयाब हो गई। हज़रत अली अलैहिसस्लाम की सेना में शामिल कुछ लोग इस धोखे में आ गए और उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया कि अब हम युद्ध नहीं करेंगे। हज़रत अली अलैहिसस्लाम ने बार बार कहा कि मैं बोलता क़ुरआन हूं जिस क़ुरआन को दुशमन ने भालों पर उठाया है वह मौन क़ुरआन है मगर यह लोग नहीं माने और हंगामा करते रहे उन्होंने हज़रत अली को धमकी दी कि युद्ध करते हुए मुआविया के तंबू के क़रीब पहुंच चुके सेना पति मालिक अशतर को वापस न बुलाया तो हम उसमान की तरह आपको क़त्ल कर देंगे। हज़रत अली अलैहिसस्लाम ने मजबूर होकर मालिक अशतर को युद्ध से वापस बुला लिया। मालिके अशतर ने संदेश लाने वाले व्यक्ति से कहा कि क्या तुम नहीं देख रहे हो कि मैं विजय के बिल्कुल क़रीब पहुंच चुका हूं। दूत ने कहा कि क्या आपको यह अच्छ लगेगा कि जब युद्ध जीतकर आप लौटें तो हज़रत अली को शहीद या क़ैदी के रूप में देखें? मालिक अशतर युद्ध को अधूरा छोड़कर वापस हटने पर मजबूर हो गए। वह जब धोखा खा जाने वाले लोगों के पास पहुंचे तो उनसे कहा कि हे इराक़ वासियो हे अपमान को स्वीकार कर लेने वालो दुशमन ने उस समय भाले पर क़ुरआन उठाया जब उसे यक़ीन हो गया कि पराजय होने वाली है काश तुम लोग मुझे थोड़ा सा मौक़ा और देते कि मैं इस युद्ध को जीत लेता। हे लोगो जिनके माथों पर घट्ठे हैं मैं समझता था कि यह सजदों की वजह से है लेकिन अब पता चला कि यह दुनिया के लोभ में हैं।

हज़रत अली अलैहिसस्लाम ने मजबूर होकर युद्ध की समाप्ति की घोषणा की। यह तय हुआ कि दोनों ओर से कुछ लोगों को नियुक्त किया जाए जो ख़लीफ़ा के बारे में फ़ैसला करें। हज़रत अली अलैहिसस्लाम चाहते थे कि उनकी ओर से अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास या मालिक अशतर को नियुक्त जाए लेकिन उपद्रव करने वाले इन्हीं लोगों ने फिर हंगामा कर दिया और अबू मूसा अशअरी को फ़ैसला करने के लिए प्रतिनिधि नियुक्त किया जो इससे पहले हज़रत अली अलैहिसस्लाम के विरोधी रह चुके थे। इस तरह इन लोगों ने प्रतिनिधि के रूप में एसे व्यक्ति को थोपा जिन्हें हज़रत अली अलैहिसस्लाम नहीं चाहते थे। मुआविया की ओर से अम्रे आस को नियुक्त किया गया जो बहुत चालाक और धूर्त व्यक्ति था और धोखाधड़ी के लिए कुख्यात था। दोनों ने कई महीने तक बातचीत की और फिर लोगों के बीच में आए। अबू मूसा अशअरी धोखा खा चुके थे। उन्होंने एलान कर दिया कि जिस तरह मैं अपनी अंगूठी उंगली से उतार रहा हूं इसी तरह हज़रत अली को ख़िलाफत के पद से हटाता हूं। मगर अम्रे आस ने वादा तोड़ दिया और उसने कहा कि जिस तरह अबू मूसा ने हज़रत अली को ख़िलाफ़त से हटाया मैं भी उन्हें हटाता हूं और मुआविया को ख़िलाफ़त पर इसी तरह बिठाता हूं जिस तरह मैं यह अंगूठी पहन रहा हूं।

इस पर वही उपद्रवी लोग फिर हंगामा करने लगे और उन्होंने कहा कि शासन का अधिकार केवल ईश्वर को है और हम अपनी ग़लती पर तौबा करते हैं और हज़रत अली को भी तौबा करना चाहिए। हज़रत अली अलैहिसस्लाम ने कहा कि मैंने तो कोई पाप नहीं किया कि तौबा करूं। धोखा तो तुमने खाया था और असत्य पर सत्य की जीत को अंतिम क्षणों में रोक दिया। इन लोगों को इतिहास में ख़वारिज कहा जाता है। ख़वारिज ने इसके बाद से हज़रत अली अलैहिसस्लाम के ख़िलाफ़ दुशमनी शुरू कर दी। उन्होंने हज़रत अली को काफ़िर घोषित कर दिया और उनके क़त्ल की योजना बना ली। वह हज़रत अली अलैहिसस्लाम को काफ़िर कहते फिरते थे। इस पर हज़रत अली अलैहिसस्लाम ने उन सबको जमा करके उनसे बात की जिसके बाद उनमें से 8000 लोगों ने हज़रत अली अलैहिसस्लाम की दुशमनी से तौबा कर ली। मगर 4000 लोगों ने युद्ध का एलान कर दिया। यह युद्ध नहरवान नामक स्थान पर हुआ। इस युद्ध में लगभग सभी ख़वारिज मारे गए। इसके बाद हज़रत अली अलैहिसस्लाम कूफ़ा लौट आए और मुआविया का काम तमाम करने के लिए सेना तैयार करने में लग गए। लेकिन कुछ ही समय बात ख़वारिज में से बच गए तीन लोगों ने हज़रत अली अलैहिसस्लाम, मुआविया और अम्रे आस की हत्या की योजना बनाई। इब्ने मुलजिम ने 40 हिजरी कम़री 19 रमज़ान से पहले वाली रात में कूफ़ा की मस्जिद में नमाज़ के दौरान हज़रत अली पर तलवार से हमला करके उन्हें घायल कर दिया और तीन दिन के बाद हज़रत अली अलैहिसस्लाम इस दुनिया से सिधार गए और मानवता शोक में डूब गई।

 

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