Jun ३०, २०१८ १५:०० Asia/Kolkata

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम की ख़िलाफ़त के काल में इमाम हसन अलैहिस्सलाम युवा थे।

वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम का न केवल एक पिता बल्कि एक इमाम और मार्गदर्शक के रूप में अनुसरण करते थे और उनके सच्चे अनुयायियों में शुमार होते थे। दूसरी ओर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जो अपने पुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम की योग्यता और क्षमता से भलि भांति अवगत थे, जमल युद्ध के दौरान उनको एक पत्र लेकर अम्मार यासिर के साथ कूफ़ा वासियों की ओर भेजा ताकि वह शीघ्र ही हज़रत अली अलैहिस्सलाम की आज्ञापालन की प्रतिबद्धता ले सकें। यह लोग जैसे ही कूफ़ा में पहुंचे तो लोग दौड़ते हुए उनके पास पहुंचे। इस बीच इमाम हसन अलैहिस्सलाम अपनी जगह से उठे और ईश्वर की सराहना और प्रशंसा करने के बाद ईश्वर के पैग़म्बर पर दूरूद भेजा और लोगों को रणक्षेत्र की ओर बढ़ने का अह्वान किया। इस अवसर पर इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार कहा कि हे लोगों, हम आप लोगों को ईश्वर, उसकी किताब, पैग़म्बरे इस्लाम की परंपरा, दुनिया के सबसे ज्ञानी, योग्य और शालीन व्यक्ति के अनुसरण का निमंत्रण देता हूं। वह जिसकी प्रशंसा पवित्र क़ुरआन ने की और पैग़म्बरे इस्लाम के अनुसरण में उनसे आगे कोई भी नहीं निकल सका। वह व्यक्ति जो एक ओर पैग़म्बरे इस्लाम के भाई है, दूसरी ओर पैग़म्बरे इस्लाम के दामाद हैं। वह दुनिया में हर व्यक्ति से हर अच्छा और गुण में आगे हैं, वह व्यक्ति जो हर एक से अधिक पैग़म्बरे इस्लाम से निकट थे जबकि दूसरे उनसे दूरी बनाने का प्रयास कर रहे थे, वह व्यक्ति जिसने आरंभ में ही पैग़म्बरे इस्लाम के साथ नमाज़ अदा की, जबकि लोग ईश्वर के अलावा दूसरों की पूजा करते थे, वह व्यक्ति जो हमेशा से दुश्मनों के मुक़ाबले में पैग़म्बरे इस्लाम के साथ रहे जबकि लोग भय के मारे भाग जाते थे, वह व्यक्ति जिसने पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की पुष्टि की जबकि लोग उनको झुठला रहे थे, वह व्यक्ति जो हर चीज़ में लोगों से आगे रहा और कोई भी व्यक्ति उनके बराबर या उनके जैसा नहीं हो सकता।

 

जी हां इस प्रकार का प्रसिद्ध और विख्यात व्यक्ति तुम लोगों सहायता मांग रहा है, तुम लोगों को सत्य की ओर बुला रहा है, तुमसे चाहता है कि उनसे मिल जाए ताकि जमल के वचन तोड़ने वालों को उनकी अतिक्रमणकारी कार्यवाही पर पछतावे पर विवश कर सकें और तुम्हारे भाग्य में सफलता लिख दें, यही वह गुट है जिसने हज़रत अली के सच्चे और योग्य साथियों की हत्याएं की, उनसे उनके कामों का बदला लिया, सरकारी कोष को बंधक बना लिया है और उनके मुक़ाबले में खड़े हो गये हैं, तो हे लोगों अच्छाई का आदेश देने और बुराई से रोकने का दायित्व अंजाम दें और उस युद्ध के लिए तैयार रहें जिसमें भले और पवित्र लोग शामिल हो रहे हैं, इस हालत में महान ईश्वर आपको अपनी कृपा का पात्र बनाएगा।

 

इमाम हसन अलैहिस्सलाम की तत्वदर्शिता से हटकर और ख़िलाफ़ात तथा हज़रत अली के विरोधियों की प्रवृत्ति के उजागर होने तथा ग़लत और अज्ञानताभरी समीक्षाओं के विपरीत विरोधियों ने हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया और उनकी छवि को किसी झंझट में न पड़ने वाला दिखाने का प्रयास किया जबकि इमाम हसन अलैहिस्सलाम एक शक्तिशाली और योद्धा व्यक्ति थे और वह किसी से भी नहीं डरते थे।  उन्होंने सत्य के मार्ग की रक्षा करने और शुद्ध इस्लाम के आधारों को मज़बूत करने और अमवी इस्लाम को नकारने में किसी भी प्रकार के बदिलान और त्याग से संकोच नहीं किया। हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम हमेशा ईश्वर के मार्ग में जेहाद और संघर्ष के लिए तैयार रहते थे, जैसा कि जमल युद्ध में उन्होंने अपने पिता के साथ शक्ति का प्रदर्शन किया, जो ओहद, बद्र और हुनैन के युद्धों में नायक रह चुके थे और उन्होंने दुश्मनों की पंक्तियों को उथल पुथल कर रख दिया, वह हज़रत अली अलैहिस्सला के साथियों से हमेशा आगे रहते थे और दुश्मनों की सेना के केन्द्र पर हमला करते थे और उनको भारी हानि पहुंचाते थे।

सिफ़्फ़ीन के युद्ध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सैनिकों को एकत्रित करने और मआविया के साथ युद्ध करने के लिए सैनिकों को तैयार करने में इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने अपने जोशीले भाषण से कूफ़ा के लोगों में इस्लाम के दुश्मनों से संघर्ष करने और हज़रत अली के नेतृत्व में जेहाद करने का निमंत्रण दिया और उनमें जेहाद का जोश भर दिया।

हज़रत इमाम हसन और हज़रत इमाम हुसैन का देश की रक्षा और सत्य के मार्ग में संघर्ष इतना भीषण था कि सिफ़्फ़ीन के युद्ध में यह ख़तरा हो गया कि वह शहीद हो जाते। पैग़म्बरे इस्लाम के इन दोनों नवासों ने सिफ़्फ़ीन के युद्ध में अपनी शक्ति का ज़बरदस्त प्रदर्शन किया। इसीलिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम स्वयं अपने साथियों से कहते हैं कि हसन और हुसैन का ख़्याल रखना, यह दोनों पैग़म्बरे इस्लाम की संतान हैं।

जमल और सिफ़्फ़ीन के युद्धों में इमाम हसन अलैहिस्सलाम की उपस्थिति से हटकर निसंदेह ख्वारिजों के साथ प्रसिद्ध नहरवान युद्ध में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ख़्वारिज गुट अम्रे आस के झांसे में आ गया था, उन्होंने न्यायाधीश की बात स्वीकार करने पर अली को बाध्य किया था, सत्य का मोर्चा सफलता के निकट था कि उन्होंने बाज़ी पटलट थी, इस गुट का वर्तमान समय में दाइशी और तकफ़ीरियों से तुलना की जा सकती जो दुश्मनों के हाथों का हथकंडा बने हुए थे, इस पथभ्रष्ट गुट ने इमाम हसन का न केवल साथ नहीं दिया बल्कि मुआविया के विरुद्ध इमाम हसन मुजतबा की योजना को विफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के दुश्मनों की सफलता का मार्ग प्रशस्त किया।

यही कारण है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत और ख़िलाफ़त के काल में उस शुद्ध इस्लाम को दोबारा पुनर्जीवित किया जैसा इस्लाम पैग़म्बरे इस्लाम लाए थे और उनके काल में इस्लाम धर्म था। इस काम के लिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना मूल्यवान समय कई युद्धों में बिताना पड़ा और उन्होंने अपने काल में विवशतः कई युद्ध किए। इतिहास में मिलता है कि हज़रत अली के शत्रुओं की चाल ही यही थी कि उन्हें युद्धों में उलझा रखो ताकि वह उनका ध्यान इस्लाम की मूल आवश्यकता पर पड़ने ही न पाए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अभी युद्ध में व्यस्त थे कि दुनिया के सबसे खूंख़ार व्यक्ति इब्ने मुलजिम ने मस्जिद में उन पर जान लेवा हमला किया जिसमें हज़रत अली बुरी तरह घायल हो गये और तीन दिन के बाद शहीद हो गये। जब इब्ने मुलजिम को गिरफ़्तार करके हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास लाया गया तो इमाम हसन ने उसको देखा और कहा कि धिक्कार हो तुझपर, हे ईश्वर की कृपा से दूर, हे अल्लाह के दुश्मन, तूने अमीर्रल मोमेनीन की हत्या कर दी, तूने मुसलमानों के इमाम को हमसे छीन लिया, क्या यह उसका बदला था कि उन्होंने तुम्हें शरण दी और तुमको स्वयं से निकट किया, क्या वह तुम्हारे बुरे इमाम थे कि तुमने उन्हें शहीद कर दिय? इब्ने मुलजिम ने कहा, हे अबू मुहम्मद, क्या आप उस व्यक्ति को जो आग में गिर गया और जलना चाहता है, मुक्ति दिलाना चाहते हैं, उसके बाद इमाम हसन दुख व दर्द के कारण रोने लगे और यह देखकर वहां खड़े हज़रत अली के साथी और समस्त परिजन भी दहाड़ मार कर रोने लगे, तभी इमाम हसन अलैहिस्सलाम, घायल हज़रत अली के निकट हुए और उनके माथे पर चूम कर कहा कि पिता जी, यह अल्लाह और आपका दुश्मन है जिस पर अल्लाह ने हमको नियंत्रण दिया, कुछ क्षण के बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी आंख खोली और कहा हे ईश्वर के फ़रिश्तों मेरा ध्यान रखो, और उसके बाद उन्होंने बहुत धीरी आवाज़ में, इब्ने मुलजिम की ओर रुख़ करके कहा तुमने बहुत बड़ी ग़लती है और महापाप किया है, क्या मैं तैरा बुरा इमाम और नेता था कि अपने हाथ को मेरे ख़ून से रंगीन कर लिया, क्या मैं तूम पर दया नहीं करता था और तुमसे भलाई नहीं करता था? तुम्हारे बारे में बहुत सी बातें की जाती थीं लेकिन मैंने तुझे स्वतंत्र रखा और तुम्हें उपहार और तोहफ़े दिए जबकि मुझे पता था कि तू अपनी मूर्खता और ना समझी के कारण मेरी हत्या करना चाहता था, लेकिन मैं फिर भी मुझे आशा थी और तुझे पथभ्रष्टता से निकालने के लिए प्रयास करता रहा। उसके बाद हज़रत अली ने अपने बड़े बेटे इमाम हसन की ओर रुख़ किया और कहा कि अपने बंदी का ध्यान रखना, उस पर दया करना, उसके साथ भलाई करना, उस पर दया करना। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने पिता से कहा, पिता जी इन सब पापों और अपराध के बावजूद क्या यह व्यक्ति दया और माफ़ी के लायक़ है? हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा, हां मेरे बेटे, हम वह परिवार हैं जिनके शिष्टाचार और आचरण कृपा और क्षमाशीलता है और हमारी महानता और आदत व शैली क्षमा करना और माफ़ करना है।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इस्लामी समाज के नेतृत्व की गंभीर ज़िम्मेदारी इमाम हसन मुतजबा के कंधों पर आ गयी जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में बहुत ही अच्छे ढंग से इस ईश्वरीय ज़िम्मेदारी को निभाया। ऐसे समय में जब इस्लामी समाज निरंतर जमल, सिफ़्फ़ीन और नहरवान जैसे युद्धों में हज़ारों लोगों का बलिदान दे चुका था तो शुद्ध इस्लाम की जगह पथ भ्रष्ट अमवी इस्लाम ने लिया था और इस्लाम में साधारण जीवन यापन की जगह महलों और कोठियों ने लिया था। अब अमवी काल में न तो भाईचारा दिखाई दे रहा था बल्कि समाज में वर्गभेद बढ़ गया था।  अबूज़र जैसे पैग़म्बरे इस्लाम के महान साथी को देश निकाला दे दिया गया और मीसमे तम्मार जैसे निष्ठावान साथी को फांसी पर लटका दिया गया। विरोधियों ने लोभ देकर या धमका, इस्लाम धर्म पर चलने वालों का दमन शुरु कर दिया और हज़रत अली के चाहने वालों और उनके अनुयायियों को मआविया के आदेश पर दमन किया जाने लगा और उनको रास्ते से हटाया जाने लगा। यदि हज़रत अली का कोई अनुयायी उस समय सरकारी पद पर होता तो उसे तुरंत हटा दिया जाता।

इन परिस्थितियों में हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने पिता की सैद्धांतिक और संयुक्त नीति की परिधि में ज़िम्मेदारी का आभास किया और वह पथभ्रष्टता, राजनैतिक, सांस्कृतिक व सामाजिक ऊंच नीच पर चुप नहीं बैठे रहे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम अत्याचार को सहन नहीं कर सकते थे और वह शुद्ध इस्लाम को बाक़ी रखने के लिए संघर्ष के बिना नहीं रह सकते थे। इसीलिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद उन्होंने जेहाद के लिए मस्जिदे कूफ़ा में जनता को आने की अपील की किन्तु इसी बीच इमाम हसन और मुआविया के बीच पत्रों का आदान प्रदान हुआ जिसके बारे में हम अगले कार्यक्रम में चर्चा करेंगे। (AK)   

 

 

 

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