Jul ०२, २०१८ १५:३३ Asia/Kolkata

आपको याद होगा कि हमने इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जीवन की समीक्षा में यह बताया कि उनके लिए यह मुमकिन न था कि वह भ्रष्ट उमवी व्यवस्था, अन्याय तथा धर्म में अलग से शामिल की जा रही बातों के संबंध में ख़ामोश बैठे रहें क्योंकि वह अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के मार्ग का पालन कर रहे थे कि जिनका लक्ष्य न्याय पर आधारित व्यवस्था क़ायम करना, अत्याचारियों से संघर्ष करना, पीड़ितों के अधिकारों का समर्थन करना और क़ुरआन व पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के सम्मान की रक्षा करना था।  

इसी वजह से इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने मोआविया को ख़त लिखा जो इस प्रकार था।

ईश्वर के नाम से जो बहुत मेहरबान व कृपालु है। ईश्वर के बंदे हसन बिन अली अमीरुल मोमेनीन की तरफ़ से मोआविया बिन अबी सुफ़ियान को। तुम पर सलाम हो! मैं अनन्य ईश्वर का आभार व्यक्त करता हूं। ईश्वर ने मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम को दूत नियुक्त किया जो पूरे दुनिया के लिए कृपालु थे और उन्होंने ईश्वर के संदेश को पूरी तरह पहुंचाया यहां तक कि इस नश्वर संसार से चले गए लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद, अरबों में सत्ता को लेकर आपस में रस्साकशी हुयी और चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम मे पवित्र परिजन होने के नाते हमने उनसे न्याय चाहा तो सबके सब हमारे पास से तितर-बितर हो गए और हमारे ख़िलाफ़ दुश्मनी व जंग में एकजुट हो गए। अलबत्ता हमने उनके साथ लड़ाई से परहेज़ किया क्योंकि हमें इस्लाम और इस्लामी जगत की एकता की फ़िक्र थी और इस बात का डर था कि कहीं धर्म का पाखंड करने वाले, नास्तिक और अनेकेश्वरवादी साज़िश करके इस्लाम को ख़त्म करने की कोशिश न करें। लेकिन आज हमें तुम्हारे इस दावे पर हैरत है कि जिसके तुम योग्य नहीं हो। न तो धर्मपरायणता की दृष्टि से तुम्हारा अतीत अच्छा रहा है और न इस्लाम लाने वालों में अग्रणी रहे हो। तुम उसके बेटे हो जो पैग़म्बरे इस्लाम से सबसे ज़्यादा द्वेष रखने वाले क़ुरैश के सरदारों में था। जान लो कि इस ख़त लिखने का उद्देश्य तुम पर हुज्जत तमाम करना है ताकि प्रलय के दिन ईश्वर के की अदालत में किसी शिकायत का मौक़ा न रहे। तो अत्याचार से अपना हाथ रोक लो और मुसलमानों का ख़ून न बहाओ। लेकिन जान लोग कि अगर तुम इसी तरह अपनी भ्रष्टता पर अड़े रहे, तो मैं मुसलमानों की फ़ौज लेकर तुम्हारी ओर तेज़ी से बढ़ूंगा और तुम्हें मुक़ाबले के लिए बुलाउंगा ताकि ईश्वर मेरे और तुम्हारे बीच जज हो कि वह बेहतरीन फ़ैसला करने वाला है।

मोआविया ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम का ख़त पाने के बाद उन्हें जवाब लिखा जिसमें मोआविया ने अपने और अपने परिवार से संबंधित विगत की बातों का इंकार किया। वह यह बात अच्छी तरह जानता था कि ईश्वर की ओर से पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को नवाज़े गए नैतिक सद्गुण, राजनैतिक व धार्मिकि सूझबूझ की किसी से तुलना नहीं की जा सकती लेकिन उसने इमाम हसन अलैहिस्सलाम के नाम अपने जवाबी ख़त में लिखा, "आपका ख़त मिला और आपने जो पैग़म्बरे इस्लाम और उनके सद्गुणों का वर्णन किया उसे मैंने समझा और यह बात जानता हूं कि वह आदम से लेकर संसार के अंत तक सबसे योग्य व्यक्ति थे। इस्लामी जगत पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी को लेकर हुए मतभेद के बावजूद आपकी महानता और पैग़म्बरे इस्लाम से आपके रिश्ते को नहीं भूला है और इस्लाम में आपके स्थान का इंकार नहीं किया है।" इसके साथ मोआविया ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को दो एलचियों से कहा, "पलट जाओ कि हमारे और तुम्हारे बीच अब तलवार से फ़ैसला होगा।"      

       

इमाम हसन अलैहिस्सलाम और मोआविया के बीच काफ़ी पत्राचार हुआ कि जिनकी संख्या को देखकर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने पूरी कोशिश की कि जंग न छिड़े लेकिन जब उन्होंने देखा कि मोआविया एक बड़ी फ़ौज के साथ इराक़ की ओर निकल पड़ा है तो तुरंत आपने पैग़म्बरे इस्लाम के महान साथियों में से एक हुज्र बिन उदय को इस बात के लिए नियुक्त किया कि वे लोगों और सेनाधिकारियों को इस बात के लिए सूचित करें कि वे मोआविया की फ़ौज से लड़ने के लिए तय्यार रहें। हुज्र बिन उदय हज़रत अली सहित पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के निष्ठावान साथियों में थे। इसके अलावा इमाम हसन अलैहिस्सलाम के आदेश से उनके एक साथी ने लोगों से मस्जिद में इकट्ठा होने का आह्वान किया। जब लोग इकट्ठा हुए तो इमाम हसन अलैहिस्सलाम मिंबर पर गए और लोगों को संबोधित करते हुए फ़रमाया, "अनन्य ईश्वर ने अपने बंदों पर जेहाद को अनिवार्य किया है। लोगो! जान लो कि तुम उस वक़्त तक अपनी मर्ज़ी की चीज़ हासिल नहीं कर सकते जब तक मुसीबत पर संयम से काम न लो। मुझे ख़बर मिली है कि मोआविया फ़ौज के साथ इराक़ की ओर निकल पड़ा है। मैं तुम लोगों से चाहता हूं कि उससे निपटने के लिए इस्लाम की सैन्य छावनी की ओर बढ़ चलो।" लेकिन अफ़सोस मस्जिद में मौजूद लोगों ने ख़ामोशी के ज़रिए अपनी अरूचि ज़ाहिर की और इमाम हसन अलैहिस्सलाम को कोई जवाब न दिया। उदय बिन हातिम अपनी जगह से उठे और लोगों को संबोधित करते हुए कहा, "ईश्वर की शरण चाहता हूं! तुम लोगों का व्यवहार कितना बुरा है। क्या तुम्हें हक़ को पाने और अपने इमाम की मदद करने का आह्वान नहीं सुना? ईश्वर के क्रोध से डरो!" उसके बाद उन्होंने इमाम हसन अलैहिस्सलाम की ओर रुख़ करते हुए कहा, "हमने आपकी बात सुनी और आपके आदेश के सामने नत्मस्तक हूं। मैं सैन्य छावनी की ओर जाने के लिए तय्यार हूं जो चाहे वह हमारे साथ चले।" उसके बाद वह मस्जिद से बाहर निकले और कूफ़े से बाहर नख़ीला नामक स्थान की ओर चल पड़े। नख़ीला सीरिया के मार्ग पर स्थित है। इस तरह उनके अलावा कुछ और लोग अपनी जगह से खड़े हुए और लोगों फटकार लगाते हुए उन्हें ईश्वर के मार्ग में जेहाद के लिए प्रेरित किया। लेकिन चूंकि बहुत कम लोग इमाम हसन के आह्वान का सार्थक जवाब दिया, इसलिए इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने तीन दिन तक इंतेज़ार किया और लोगों को दोबारा संबोधित करते हुए कहा कि इससे ज़्यादा ढिलाई न दिखाएं और मोआविया के ख़िलाफ़ जेहाद के लिए तय्यार हों लेकिन इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इस कोशिश पर भी बहुत कम लोग साथ देने के लिए तय्यार हुए। ये वही लोग थे जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के बाद चार ख़लीफ़ाओं का दौर देखा था और अब उनके सामने पांचवें ख़लीफ़ा का दौर था। ये वही लोग थे जिन्होंने इससे पहले के चार में से तीन ख़लीफ़ाओं की हत्या की थी। उन्होंने हालांकि विदित रूप में इमाम हसन अलैहिस्सलाम के आज्ञापालन का प्रण लिया था लेकिन संवेदनशील मौक़ों पर अपनी मनमानी करते। जैसा कि वे इमाम अली अलैहिस्सलाम की ख़िलाफ़त के काल में ऐसा ही करते थे और संवेदनशील व निर्णायक चरण में उन्हें अकेला छोड़ देते थे और विभिन्न बहानों से उन्हें दुखी करते थे।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने लोगों की उदासीनता की परवाह न करते हुए उबैदुल्लाह इबने अब्बास को बुलाया और उनसे कहा, "हे चचेरे भाई! मैं तुम्हारे साथ अरब के सवार सिपाहियों का एक गुट रवाना कर रहा हूं। इन लोगों के साथ आगे बढ़ो! इन लोगों के साथ अच्छा व्यवहार अपनाओ! नम्रता से पेश आना। और जब मोआविया का सामना हो तो उससे लड़ाई में पहल मत करना यहां तक कि वह पहल करे तब उससे जंग करना। मैं भी एक और लश्कर लेकर तुमसे  आकर मिलूंगा।" लेकिन अभी कुछ समय ही बीता था कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम को यह ख़बर पहुंची कि उबैदुल्लाह इबने अब्बास 10 लाख दिरहम लेकर मोआविया से मिल गए हैं। मोआविया ने सिर्फ़ उबैदुल्लाह इबने अब्बास को ख़रीदना काफ़ी न समझा बल्कि उसने इमाम हसन अलैहिस्लाम को दो और कमान्डरों को लालच देकर ख़रीद लिया।

इन सब हालात के साथ इमाम हसन अलैहिस्सलाम मोआविया से निपटने के लिए चल पड़े और मदाएन के निकट साबात नामक क्षेत्र में पड़ाव डाल दिया और रात वहीं गुज़ारी। जब सुबह हुयी तो इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपनी बाक़ी बची हुयी फ़ौज की वफ़ादारी को परखने का फ़ैसला कि इस फ़ौज के सिपाहियों की संख्या लगभग 4 हज़ार थी। इस काम के लिए इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने सामूहिक रूप से नमाज़ के लिए सिपाहियों को इकट्ठा होने का आदेश दिया। उसके बाद आपने आख़िरी बार भाषण देते हुए कहा, "ईश्वर का आभार व्यक्त करता हूं जिस तरह आभार व्यक्त करने वाले ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं। मैं इस बात की गवाही देता हूं कि ईश्वर के सिवा कोई पूज्य व पालनहार नहीं। मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद उनके बंदे और दूत हैं जिन्हें ईश्वर ने सत्या को पहुंचाने के लिए नियुक्त किया और अपने संदेश का अमानतदार क़रार दिया। ईश्वर की सौगंद मुझे उम्मीद है कि उसकी सदैव प्रशंसा करने वाला और लोगों की सबसे ज़्यादा भलाई चाहने वाला बंदा रहूंगा। मेरे दिल में कभी भी किसी मुसलमान के प्रति कोई द्वेष नहीं रहा है  और न ही कभी किसी का बुरा चाहा है। जान लो कि एकता फूट से बेहतर है। मैं उससे ज़्यादा तुम्हारे भले के बारे में सोचता हूं जितना तुम अपने भले के बरे में नहीं सोच सकते। अनन्य ईश्वर मुझे और तुम्हें अपनी कृपा का पात्र बनाए और हमारा उस मार्ग की ओर मार्गदर्शन करे जिसमें उसकी प्रसन्नता हो।"

जैसे ही इमाम हसन अलैहिस्सलाम का भाषण ख़त्म हुआ वहां मौजूद लोग एक दूसरे को देखते हुए यह सवाल करने लगे कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम का क्या इरादा है? कुछ ने कहा कि हमें लगता है कि वह मोआविया को शासन हवाले करने का इरादा रखते हैं। और उसके बाद वे इमाम हसन अलैहिस्सलाम को नास्तिक कहने लगे। ये वही लोग थे जिन्हें ख़्वारिज कहा जाता है और उन्होंने ने सिफ़्फ़ीन नाम जंग में मोआविया के ख़िलाफ़ हज़रत अली को हकमियत के लिए मजबूर किया था और जब उन्हें लगा कि उन्हें दुश्मन ने धोखा दिया है तो इमाम अली अलैहिस्सलाम को नास्तिक कहने लगे।

 

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