Jul ०२, २०१८ १६:११ Asia/Kolkata

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के छोटे नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जन्म मदीना नगर में हुआ था। 

सन चार हिजरी क़मरी के शाबान महीने की तीन तारीख़ को इमाम अली और हज़रत फ़ातेमा के दूसरे बेटे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ था।  जब पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) को उनके छोटे नवासे के जन्म की सूचना दी गई तो आप अपनी बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के घर आए।  आपने नवजात को अपने पास लाने का आदेश दिया।  असमा, एक सफेद कपड़े में लपेटकर नवजात को पैग़म्बरे इस्लाम के पास ले गईं।  आपने बच्चे को अपनी गोद मे लिया और उसके कानों में अज़ान तथा अक़ामत कही।

इमाम हुसैन के जन्म के समय ही ईश्वरीय संदेश लाने वाले फरिश्ते जिब्रील आए और उन्होंने पैग़म्बर को सलाम करने के बाद कहा कि इस नवजात का नाम हारून के छोटे बेटे और हज़रत मूसा के उत्तराधिकारी के नाम पर शब्बीर होना चाहिए।  शब्बीर को अरबी में हुसैन कहा जाता है।  इसका कारण यह है कि अली (अ) आपके लिए वैसे ही हैं जैसे मूसा के लिए हारून।  अंतर केवल इतना है कि आपके बाद अब कोई दूसरा पैग़म्बर नहीं आएगा क्योंकि आप अन्तिम ईश्वरीय दूत हैं।  इस प्रकार हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा की दूसरी संतान या दूसरे पुत्र का नाम हुसैन रखा गया।  अबुल हुसैन का कहना है कि ईश्वर ने हसन और हुसैन के नाम तबतक लोगों की नज़रों से छिपा रखे थे जो उसने हज़रत फ़ातेमा के दो बेटों को दिये।  इमाम हसन और इमाम हुसैन के जन्म से पहले तक अरब जगत में यह नाम लगभग नहीं होते थे।

ईश्वर ने कई आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों के महत्व को समझाया है जैसे आयतें ततहीर और आयते मुबाहेला।  इसके अतिरिक्त भी क़ुरआन में पैगम्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों अर्थात पंजेतने पाक की प्रशंसा की गई है।  एक स्थान पर ईश्वर अपने पैग़म्बरे हज़रत मुहम्मद को संबोधित करते हुए कहता है कि हे रसूल आप लोगों से कह दीजिए कि मैं अपनी रेसालत के बदले में तुमसे कुछ भी नहीं चाहता हो मैं यह चाहता हूं कि मेरे परिजनों से प्रेम किया जाए।  पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों में से एक इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भी हैं।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महत्व के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक साथी सलमान फ़ारसी कहते हैं कि एक बार मैं पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में गया।  उस समय इमाम हसन और इमाम हुसैन खाना खा रहे थे।  वे कहते हैं कि मैंने देखा कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने नवासों को अपने हाथों से खाना खिला रहे हैं।  कभी वे एक लुक़मा, इमाम हसन को देते तो कभी इमाम हुसैन को।  जब ख़ाना ख़त्म हो गया तो पैग़म्बरे इस्लाम ने इमाम हसन को अपने कंधे और इमाम हुसैन को अपनी रान पर बैठाकर कहा कि हे सलमान! क्या तुम इनको पसंद करते हो? इसपर मैंने कहा कि हे ईश्वर के दूत, उनसे क्यों प्यार न किया जाए जबकि उनका महत्व आपके निकट इतना अधिक है।  आपने कहा कि हे सलमान! जो भी इनसे मुहब्बत करता है वह मुझसे मुहब्बत करता है और जो भी मुझसे मुहब्बत करता है वह ईश्वर से प्रेम करता है।  इसके बाद आपने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कांधे पर हाथ रखते हुए कहा कि यह ख़ुद भी इमाम है और इसकी नस्ल से 9 और इमाम होंगे। हुसैन की नवीं पीढी का इमाम, क़ाएम होगा।

इसी बारे में पवित्र क़ुरआन के महान व्याख्याकार इब्ने अब्बास से उदद्दारित है कि पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि अली मेरे उत्तराधिकारी हैं।  उनकी पत्नी फ़ातेमा पूरी दुनिया की औरतों की सरदार हैं जो मेरी सुपुत्री हैं।  हसन और हुसैन जन्नत के जवानों के सरदार हैं जो मेरे नवासे हैं।  जिसने भी इनसे प्यार किया उसने मुझसे प्यार किया और जिसने ही इनसे शत्रुता की उसने वास्तव में मुझसे शत्रुता की।  जिसने भी इनका विरोध किया उसने मेरा विरोध किया।  जिसने भी उनपर अत्याचार किये उसने मुझपर अत्याचार किये।  जिसने उनके साथ नेकी की उसने मेरे साथ नेकी की।  ईश्वर उनके साथ जुड़ जाता है जो इनके साथ जुड़ जाते हैं और वह उन लोगों से अलग हो जाता है जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से अलग हो जाता है।

 

यहां पर पैग़म्बरे इस्लाम का वह कथन भी पेश किया जा सकता है जिसमें वे कहते हैं कि हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूं।  इस वाक्य का एक अर्थ यह है कि इमाम हुसैन का संबन्ध पैग़म्बरे इस्लाम से है।  इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि पैग़म्बरे इस्लाम के मिशन को आगे बढ़ाने वाले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम है।  इस बात का अनुमान इमाम हुसैन के उस कथन से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने अपने आन्दोलन का कारण बताते हुए स्पष्ट किया था कि मैं अपने आन्दोलन में अपने नाना के मार्ग को ही अपनाऊंगा।  इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस्लाम की नीव पैग़म्बरे इस्लाम ने डाली और अपने आन्दोलन से इमाम हुसैन ने उसको अमर बना दिया।

इमाम हुसैन ने अपने जीवन के 6 वर्ष, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथ बिताए।  आपका प्रशिक्षण हज़रत फ़ातेमा ज़हरा जैसी महान महिला ने किया।  इस प्रकार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का लालन-पालन ऐसे परिवार में हुए जहां पर ईशवर के महान लोग रहते थे।  उनका प्रशिक्षण ऐसे हाथों से हुआ जो स्वयं पूरी दुनिया के लिए आदर्श थे।  इमाम हुसैन के प्रशिक्षण के बारे में स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी कहते हैं कि उस महान महिला अर्थात हज़रत फ़ातेमा ने एक छोटे से घर में ऐसे महान लोगों का प्रशिक्षण किया जिनका प्रकाश पूरे संसार में फैला।  इन बातों से आप अनुमान लगा सकते हैं कि इमाम हुसैन का प्रशिक्षण कैसे घराने में हुआ था।  यह वह घराना था जिसके रहने वालों ने रहती दुनिया तक संसार को प्रभावित किया।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन में बहुत उतार चढ़ाव देखे।  उनके जीवन में बहुत कटु घटनाएं घटीं जैसे पैग़म्बरे इस्लाम का स्वर्गवास, हज़रत फ़ातेमा की शहादत, बड़े भाई इमाम हसन की शहादत और पिता हज़रत अली की शहादत।  इन सभी कटु घटनाओं को इमाम हुसैन ने बहुत निकट से देखा और महसूस किया।  शिष्टाचार में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक आदर्श थे। वे आज भी सारी दुनिया में सूरज की भांति प्रकाशमान हैं। उनसे सब प्रेम करते हैं। उस समय भी सब उनके प्रति श्रद्धा रखते थे जब वे जीवित थे। यदि उस समय कहा जाता कि इन्हीं लोगों में से कुछ लोग एक दिन इमाम हुसैन को शहीद कर देंगे तो कोई यक़ीन नहीं कर सकता था।  इमाम हुसैन का नाम कर्बला की क्रान्ति की याद से जुड़ा हुआ है। अत्याचार के मुक़ाबले में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के संघर्ष की स्वर्णिम कहानी, इतिहास के पन्नों पर हमेशा के लिए अंकित हो चुकी है।  इमाम हुसैन ने बहादुरी, न्याय, प्रेम और बलिदान का वह पाठ दिया जो कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।

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