Jul ०३, २०१८ १३:२५ Asia/Kolkata

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कभी भी मोआविया की पाखंडी नीतियों के मुकाबले में ख़ामोश नहीं रहे जबकि मोआविया सदैव अपने विरोधियों की आवाज़ को दबाने की चेष्टा में रहता था।

इसी प्रकार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उसकी अमानवीय कार्यवाहियों के मुक़ाबले में डट जाते थे और कभी भी वह खामोश नहीं रहे। मोआविया ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम के साथ जो समझौता किया उसमें उसने वचन दिया था कि वह अपने बाद किसी को अपना उत्तराधिकारी नहीं बनायेगा परंतु उसने इस वचन को तोड़कर अपने बेटे यज़ीद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। यज़ीद न केवल इस्लामी मानदंडों के अनुसार इस्लामी समाज का शासक बनने के योग्य नहीं था बल्कि वह जनता की इच्छाओं के छोटे से छोटे मापदंड के अनुसार भी किसी प्रकार की योग्यता व वैधता नहीं रखता था।

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का लालन- पालन नबुव्वत और इमामत की छत्रछाया में हुआ था। वह अदम्य साहस और पूरी दृढ़ता व पारदर्शिता के साथ यज़ीद के मुकाबले में डट गये और जिस समय मदीना का गवर्नर बैअत लेने के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पास आया उन्होंने फरमाया" बेशक हम पैग़म्बर के परिजन रिसालत के केन्द्र, फरिश्तों के उतरने की जगह और ईश्वरीय कृपा व दया नाज़िल होने का स्थान हैं। ईश्वर ने हमारे घर से इस्लाम शुरु किया और अंत तक हमारे परिवार के साथ उसे आगे बढ़ायगा।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यज़ीद की बैअत न करने के लिए तार्किक और धार्मिक वजह बयान करने हेतु सबसे पहले अपने परिवार के उच्च स्थान को बयान करना आरंभ किया और कुछ उन चीज़ों को बयान किया जो उनसे विशेष हैं। इसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यज़ीद की कमियों को बयान करना आरंभ किया और मदीना के गवर्नर से कहा और रहा यज़ीद, तो यह व्यक्ति जिसके लिए तुम मुझसे बैअत लेने की अपेक्षा रखते हो, शराब पीता है और इसके हाथ निर्दोष लोगों के खून से रंगीन हैं। वह ऐसा व्यक्ति है जिसने ईश्वरीय आदेशों की सीमा तोड़ दी है और खुल्लम- खुला और लोगों की नज़रों के सामने पाप करता है। इस तुलना के बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फरमायाः क्या यह उचित है कि मेरे जैसा इंसान इस प्रकार के भ्रष्ट व्यक्ति की बैअत करे? इस संबंध में हमें और तुम्हें भविष्य को दृष्टि में रखना चाहिये और तुम देखो कि हममें से कौन इस्लामी समुदाय के मार्गदर्शन और लोगों से बैअत लेने के योग्य है?

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के इस दृष्टिकोण का समस्त इंसानों विशेषकर उनके सच्चे अनुयाइयों के लिए संदेश यह है कि ईश्वरीय आकांक्षाओं से प्रतिबद्ध व ज़िम्मेदार इंसान कभी भी उन भ्रष्ट लोगों से कोई समझौता या सांठ- गांठ नहीं करता है जो किसी भी मानवीय सिद्धांत के प्रति कटिबद्ध नहीं हैं और उनकी धमकियों से नहीं डरते हैं। उनके द्वारा दिए जाने वाले लालच के चक्कर में नहीं आते हैं और पूरी दृढ़ता के साथ उनकी प्रवृत्ति को स्पष्ट करते हैं।

 

हम सब जानते हैं और एतिहासिक अनुभवों ने भी दर्शा दिया है कि दुनिया के जो अधिकांश टकराव हैं उनकी जड़ सत्ता और व्यक्तिगत और गुटों के हित हैं। इस प्रकार के लोगों ने कभी भी इस संबंध में किसी भी अमानवीय कार्यवाही में संकोच से काम नहीं लिया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का उद्देश्य इस्लामी समाज में केवल सुधार था जबकि यज़ीद का लक्ष्य सत्ताप्रेम था। मरवान बिन हकम जब मदीना का गवर्नर बना तो उसने इस्लामी चोला पहन कर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से कहा कि आपकी भलाई इसी में है कि आप यज़ीद की बैअत कर लें। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यह दिखाने के लिए कि उनका उद्देश्य इस्लाम की रक्षा के अलावा कुछ नहीं है” फरमाया हम सब ईश्वर के लिए हैं और उसी की ओर पलट कर जायेंगे। यानी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कहने का तात्पर्य यह था कि अगर तेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर लूं तो इस्लाम का काम खत्म समझना चाहिये और मुसलमानों को यज़ीद जैसे शासक का सामना है पंरतु तू जान ले कि मैंने अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम से सुना है कि अबू सुफयान के परिवार पर खिलाफत हराम है।"

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यह दृष्टिकोण अपना कर दर्शा दिया कि न केवल यज़ीद बल्कि उसके परिवार का कोई भी व्यक्ति खलीफा बनने लाएक नहीं था और उन्होंने खिलाफत पर कब्ज़ा किया था और पैग़म्बरे इस्लाम के कथनानुसार यह स्थान अबूसुफयान के परिवार के लिए हराम है। इस बात से हटकर कि अबू सुफयान और उसके परिजन एक क्षण के लिए भी पैग़म्बरे इस्लाम और इस्लाम से मुकाबला करने से नहीं रुके, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फरमाया” अगर यज़ीद जैसा शासक ख़िलाफ़त की गद्दी पर बैठता है तो इस्लाम का अंत समझना चाहिये क्योंकि इस्लाम की समाप्ति के अलावा उसका कोई लक्ष्य नहीं है। ऐतिहासिक प्रमाण इस बात के सूचक हैं कि अबू सुफयान और उसके बेटे मोआविया ने पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा मक्के पर विजय के बाद अपनी जान बचाने के लिए इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया परंतु जब वे दोबारा सत्ता में पहुंच गये तो उनका प्रयास इस्लाम को खत्म करना था। जैसाकि जब मोआविया के एक दरबारी ने उससे कहा कि अब तू अपने समस्त लक्ष्यों को प्राप्त और बनी हाशिम को खिलाफत के चक्र से बाहर कर चुका है तो उन्हें कष्ट पहुंचाना क्यों नहीं छोड़ देता इस पर मोआविया ने चिल्लाकर कहा तेरी मां तेरे शोक में बैठे क्या तू सुनता नहीं कि मस्जिदों से दी जाने वाली अज़ानों में मोहम्मद का नाम लिया जाता है! मैं जब तक इस नाम को दफ्न नहीं कर दूंगा सुकून से नहीं बैठुंगा। इसी नीति को जारी रखते हुए जब यज़ीद सत्ता में पहुंचा और उसके कृत्यों के परिणाम में आशूरा जैसी हृदयविदारक महान घटना अस्तित्व में आई और वह स्वयं को विजयी समझ रहा था तो उसने एक शेर पढ़ा जिसका अनुवाद है” बनी हाशिम ने कुछ दिन पद व स्थान से खिलवाड़ किया न कोई वही नाज़िल हुई थी न आसमान से कोई ख़बर आई थी।

बड़े खेद की बात है कि पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद इस्लामी समाज में लोगों ने अतिमहत्वपूर्ण व निर्णायक चीज़ ग़दीरे ख़ुम को भुला दिया, इसी प्रकार जब से हज़रत उसमान मुसलमानों के खलीफा बने उसके बाद मोआविया और यजीद सत्ता में आये तो लोग धीरे- धीरे इस्लामी मापदंडों और इस्लामी मार्गदर्शक की विशेषताओं को भुल गये और नौबत यहां तक आ गयी कि लोगों ने यज़ीद जैसे भ्रष्ट व अत्याचारी इंसान की बैअत को स्वीकार कर लिया। अलबत्ता कुछ अवसरों पर लोग अत्याचार व अन्याय से ऊब कर अहले बैत की शरण में जाते थे परंतु अधिक समय नहीं बीतता था कि धमकी और लालच में आकर लोग पीछ हट जाते थे। इन लोगों में से कूफा के लोग भी थे जो बनी उमय्या के अत्याचार से तंग आ चुके थे और उनके धैर्य का बांध टूट चुका था। इन लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को हजारों पत्र लिखकर कूफे की ओर आने का आह्वान किया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने भी कूफा के लोगों का जवाब दिया परंतु चूंकि वह जानते थे कि लोग एक सच्चे ईश्वरीय दूत की पहचान नहीं रखते हैं और मोआविया और यज़ीद जैसे भ्रष्ट व्यक्तियों के शासन को स्वीकार कर लिया है इसलिए उन्होंने कूफावासियों के पत्र के जवाब में इमामत के सिद्धांतों को बयान किया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम फरमाते हैं मेरी जान की सौगंध सच्चा मार्गदर्शक व इमाम वह है जो ईश्वर की किताब पर अमल करे और न्याय का बर्ताव करे और सत्य का अनुसरण करके स्वयं को ईश्वरीय आदेशों के लिए समर्पित कर दे।“

दूसरे ईश्वरीय दूतों की भांति इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को भी चाहिये था कि वह अत्याचारी शासकों के ग़लत कार्यों के मुकाबले में डट जाते। दूसरी ओर इस्लाम बाक़ी रखने और इस्लामी समाज में एकता की रक्षा के लिए वह शांतिपूर्ण शैलियों से लाभ उठाने पर बाध्य थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस बात का वर्णन उस पत्र में किया है कि जो उन्होंने कूफावासियों के लिए लिखा था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने लिखाः ईश्वर ने लोगों के मध्य मोहम्मद को चुना और उन्हें अपनी नबुअत प्रदान करके प्रतिष्ठा दी और इसके बाद कि जब उन्होंने अपना दायित्व अच्छी तरह निभाया और ईश्वर के बंदों का मार्गदर्शन किया, उनका स्वर्गवास हो गया और हम उनके उत्तराधिकारी हैं और हम लोगों में उनका उत्तराधिकारी बनने के सबसे योग्य थे परंतु एक गुट ने इस अधिकार को हमसे छीन लिया और हम उनकी अपेक्षा अपनी श्रेष्ठता व योग्यता से अवगत हैं परंतु मुसलमानों के मध्य फूट पड़ने से रोकने और जो कुछ हुआ उस पर दुश्मनों का वर्चस्व हो जाने रोकने के लिए मुसलमानों के मध्य शांति को हमने अपने अधिकार पर प्राथमिकता दी। उसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उस गुमराही को बयान किया जो इस्लामी समाज में आ चुकी थी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फरमाया आपका आह्वान ईश्वरीय किताब और पैग़म्बरे इस्लाम की परम्परा की ओर कर रहा हूं क्योंकि मैं एसी स्थिति में हूं कि पैगम्बरे इस्लाम की परम्परा का कोई चिन्ह नहीं देख रहा हूं और उसका स्थान बिदअत ने ले लिया है। यानी ग़ैर धार्मिक चीज़ धार्मिक बन गयी है। अगर मेरी बात सुनो तो तुम्हारा मार्गदर्शन लोक- परलोक के कल्याण की ओर करूंगा और तुम ईश्वरीय कृपा के भी पात्र बनोगे।

 

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