Jul १७, २०१८ १२:१३ Asia/Kolkata

ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद इस देश में महिलाओं के लिए व्यापक स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने का अवसर उपलब्ध हुआ।

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी, महिलाओं की स्वतंत्रता के पक्षधर के किंतु उस स्वतंत्रता के पक्षधर जो इस्लाम ने पेश की है न कि उस स्वतंत्रता के जिसका पक्षधर पश्चिम है।  इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से ईरान में महिलाओं की शिक्षा की ओर जो विशेष ध्यान दिया गया उसका परिणाम यह निकला कि आज ईरान में विभिन्न क्षेत्रों में महिलाए सक्रिय दिखाई देती हैं।

इस्लाम की दृष्टि यह है कि महिलाएं स्वच्छ वातावरण में आर्थिक गतिविधियां कर सकती हैं।  इसका अर्थ यह है कि पैसा कमाने के उद्देश्य से महिला गतिविधियां कर सकती है किंतु शर्त यह है कि वह वातावरण स्वच्छ हो दूषित न हो।  यहां पर इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि महिला के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि वह घर का ख़र्च चलाने के लिए नौकरी करे बल्कि घर के ख़र्च की पूरी ज़िम्मेदारी पुरूष पर आती है महिला पर नहीं।  पुरूष के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने परिवार की आजीविका का प्रबंध करे।  इस काम के लिए इस्लाम महिला को बाध्य नहीं करता।  यही कारण है कि इस्लाम एसे पुरूष की निंदा करता है जो ख़ाली घर पर पड़ा रहता है और मेहनत-मज़दूरी नहीं करता।  काम का महत्व इतना अधिक है कि इस्लाम में इसे जेहाद बताया गया है।  अर्थात जो व्यक्ति अपने परिवार का ख़र्च चलाने के लिए मेहनत-मज़दूरी या नौकरी करता है उसके काम को जेहाद जैसा बताया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के जीवन में मिलता है कि वे जब भी किसी युवा को देखते थे तो सबसे पहले यही सवाल करते थे कि तुम क्या करते हो?  इस प्रकार से पता चलता है कि पुरूष पर घर के ख़र्च की ज़िम्मेदारी है किंतु महिलाओं के लिए आर्थिक गतिविधियों के रास्ते बंद नहीं किये गए हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि यदि महिलाएं काम करने की इच्छुक हैं तो उनको एसा काम चुनना चाहिए जो उनकी या प्रवृत्ति से मेल खाता हो क्योंकि महिलाएं कोमल प्रवृत्ति की स्वामी होती हैं।  वे कहते हैं कि एसे काम, जिनके लिए अधिक शारीरिक श्रम की आवश्यकता हो या जिनके करने से इन्सान जल्दी थक जाता हो, एसे काम महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं हैं।  हालांकि महिलाओं का मूल कर्तव्य घरदारी है क्योंकि यह काम महिला के अतिरिक्त कोई भी उचित ढंग से कर ही नहीं सकता और वे ही इसमें दक्ष होती हैं।

 

पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के जीवन में हम पाते हैं कि अपने विवाह के बाद वे अपने पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ अपने पिता हज़रत मुहम्मद (स) से मिलने गईं।  उन्होंने अपने पिता से कहा कि हम यह चाहते हैं कि आप घर के कामों को हमारे बीच बांट दीजिए।  यह सुनकर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा कि घर के भीतर के सारे काम फ़ातेमा करेंगी और बाहर के काम की ज़िम्मेदारी अली पर है।  उस दिन के बाद से हज़रत अली ने घर के बाहर के काम अंजाम दिये जबकि घर के अंदर के काम हज़रत फ़ातेमा ही किया करती थीं।  हज़रत अली को जब भी समय मिलता था तो वे घर के कामों में भी हज़रत फ़ातेमा का हांथ बंटाते थे।  यहां पर इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि हज़रत फ़ातेमा की गतिविधियां केवल घर तक ही सीमित नहीं थीं बल्कि अपने काल में उन्होंने कुछ एसी सामाजिक एवं राजनैतिक गतिविधियां अंजाम दी हैं जिनका उल्लेख इतिहास में आज भी मौजूद है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि पश्चिम को महिला की आवश्यक पहचान नहीं है और वह उसकी प्रवृत्ति से भलिभांति अवगत नहीं है।  यही कारण है कि वह महिलाओं को पुरूषों वाले कामों के लिए प्रेरित कर रहा है।  वे पश्चिम की इसलिए आलोचना करते हैं कि वह महिलाओं से उनकी प्रवृत्ति और कोमलता को ही छीन रहा है। उनका कहना है कि महिलाओं को पुरूष बनाने की कोशिश निंदनीय है।  वरिष्ठ नेता का कहना है कि यह काम वास्तव में महिलाओं का खुला अपमान है।

 

इस संदर्भ में वे एक पश्चिमी झूठ से पर्दा उठाते हुए कहते हैं कि जिसे वे स्वतंत्रता का नाम दे रहे हैं वह वास्तव में एक झूठा नारा है।  उनका कहना है कि महिलाओं की स्वतंत्रता की आड़ में महिलाओं पर बहुत अधिक अत्याचार किये गए हैं।  वरिष्ठ नेता कहते हैं कि आज़ादी शब्द का दायरा बहुत ही व्यापक है।  इसमें हर प्रकार की क़ैद से स्वतंत्रता के साथ ही साथ नैतिकता भी शामिल है क्योंकि नैतिक स्वतंत्रता की भी कुछ सीमाएं हैं।  कहीं-कहीं पर महिलाओं को काम के बदले में पैसा बहुत ही कम दिया जाता है।  यह भी आज़ादी के दुरूपयोग का उदाहरण है।

खेद की बात है कि पश्चिम में स्वतंत्रता के उस रूप को पेश किया जाता है जो हानिकारक है।  वहां पर आज़ादी का अर्थ है मनमानी।  अर्थात घर, समाज, परिवार और हर प्रकार की ज़िम्मेदारियों से अलग हटकर अपनी मनमानी करना।  इस आज़ादी में विवाह करना, परिवार का गठन और संतान की ज़िम्मेदारी को अनदेखा करते हुए अनैतिक ढंग से यौन संबन्ध बनाने को प्राथमिकता प्राप्त है।  गर्भपात भी इसी आज़ादी में आता है।  वास्तव में यह बहुत ही ख़तरनाक बाते हैं इनको बहुत ही साधारण अंदाज़ में नहीं लेना चाहिए।

वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पश्चिम, महिलाओं की स्वतंत्रता की आड़ में महिलाओं का दुरूपयोग कर रहा है।  इसी नारे की आड़ में महिलाओं पर वे काम भी लादे जा रहे हैं जो उनकी प्रवृत्ति के अनुरूप नहीं हैं।  एसे कामों को महिलाओं के लिए गौरव के रूप में पेश किया जाता है।  वे बल देकर कहते हैं कि महिलाओं के बारे में सही दृष्टिकोण यह है कि उसको उसकी प्रवत्ति के हिसाब से मांपा जाए।

 

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई का मानना है कि पश्चिम की एक बुराई यह है कि उसने महिला को एक भोग की वस्तु के रूप में पेश किया है।  वे कहते हैं कि यह महिलाओं के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है।  वरिष्ठ नेता का कहना है कि पश्चिम के कुछ विचारक भी इस ख़तरे को भांप गए हैं।  वे कहते हैं कि समलैंगिकता जैसी बुराई इसी सोच का परिणाम है।  उनका कहना है कि निश्चित रूप में पश्चिम के पतन का यही कारक होगा।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता पश्चिम में स्वतंत्रता के नाम पर महिलाओं के दुरूपयोग को रोकने के उपायों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सबसे पहले वहां पर महिलाओं में आध्यात्म और नैतिकता को बढ़ावा दिया जाए।  स्वयं महिलाओं को ही इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।  उनको पारिवारिक मामलों को बहुत ही समझदारी से समझना होगा।

वे कहते हैं कि पश्चिमी समाज में बड़ी होने वाली महिलाएं संजने संवरने और दूसरों के सामने स्वयं को प्रदर्शित करने की ओर आकृष्ट होती हैं।  यह उनके लिए सही नहीं है।  वहां पर महिलाओं को पुरूष के लिए केवल यौन संतुष्टि के रूप में ही देखा जाता है।  यह महलाओं की स्वतंत्रता नहीं है।  वास्वत में यह महिलाओं की नहीं बल्कि पुरूषों की आज़ादी है जिसके अन्तर्गत वे चाहते हैं कि पुरुष स्वतंत्र रहें और महिलाओं का हर हिसाब से दुरूपयोग करें।  इसीलिए उन्होंने महिलाओं को कम से कम कपड़े पहनने के लिए प्रेरित करके अपनी हवस की पूर्ति का काम किया है।  हालांकि जिन समाजों में धर्म को नहीं महत्व दिय जाता था वहां पर भी इस विचार के पुरूष पहले भी हुआ करते थे और आज भी हैं किंतु पश्चिम तो इसके प्रतीक के रूप में उभरा है। एसे में महिलाओं को ईश्वरीय पहचान, अध्ययन और जानकारियों के साल बहुत ही गंभीरता के साथ आगे बढ़ना होगा तभी कुछ हो सकता है।

 

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