Jul २५, २०१८ १३:४२ Asia/Kolkata

हमने बताया था कि ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने समस्त इंसानों के लिए बेहतरीन आदर्श पेश किये हैं और हर इंसान इन आदर्शों का अनुसरण करके लोक- परलोक में अपने जीवन को सफल बना सकता है।

इस कार्यक्रम में हम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम की प्राणप्रिय सुपुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह से परिचित करायेंगे जबकि हम इस बात को भी जानते हैं कि कुछ देर के इस कार्यक्रम में हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह का परिचय कराना संभव ही नहीं है और जो कुछ यहां बयान किया जायेगा वह इस महान महिला की विशेषताओं के समुद्र की कुछ बूंदें होगी। हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का पावन जीवन सबके लिए विशेषकर महिलाओं के लिए बेहतरीन आदर्श है। आपसे अनुरोध है कि आज के कार्यक्रम में भी हमारे साथ रहिये।

हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की एक सुन्दर विशेषता यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम विशेषरूप से इस महान महिला पर धयान देते थे। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत फातेमा ज़हरा की विशेषताओं को बयान करते हुए इस प्रकार फरमाते हैं" मेरी बेटी फातेमा आरंभ से लेकर अंत तक विश्व की समस्त महिलाओं की सरदार है। वह मेरे शरीर का टुकड़ा है, मेरी आंखों की ठंडक है, मेरे दिल का चैन है, मेरा टुकड़ा है और इंसान के रूप में वह स्वर्ग की अप्सरा है। वह जब भी महान ईश्वर के समक्ष उपासना के लिए खड़ी होती है तो उसका प्रकाश आसमान के फरिश्तों के लिए प्रतिबिंबित होता है जिस तरह से तारों का प्रकाश ज़मीन वालों के लिए प्रतिबिंबित होता है और महान ईश्वर अपने फरिश्तों से कहता है हे मेरे फरिश्तो दुनिया की महिलाओं की सरदार फातेमा को देखो जो मेरी बारगाह में उपासना के लिए खड़ी है और मेरी हैबत व रोब से कांप रही है और पूरे ध्यान से वह मेरी उपासना कर रही है। तुम गवाह रहना कि मैंने उसके अनुयाइयों को नरक की आग से सुरक्षित कर दिया है।"

 

यह बात भली- भांति स्पष्ट है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत फातेमा की जो विशेषता बयान की है वह बाप- बेटी के बीच लगाव का परिणाम नहीं था बल्कि उनकी बातें हज़रत फातेमा के महान व्यक्तित्व का परिचय देती हैं और उनके समतुल्यह की कल्पना नहीं की जा सकती।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई कहते हैं" हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अर्थपूर्ण ईश्वरीय  शब्द हैं और वह एक गहरे समुद्र की भांति हैं। वरिष्ठ नेता का मानना है कि हज़रत फातेमा का स्थान बयान करने से ज़बान असमर्थ है और पैग़म्बरे इस्लाम, इमामों और महान हस्तियों के कथनों में हज़रत फातेमा ज़हरा के बारे में जो चीज़ें व निशानियां मौजूद हैं उससे हज़रत फातेमा ज़हरा की महानता एवं स्थान के कुछ पहलुओं को समझा जा सकता है। वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं हमारे पास कुछ निशानियां व कथन हैं जो पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से आये हैं। पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं” तुम्हारे बाप तुम पर न्यौछावर” उनका यह कथन स्वयं एक निशानी है। यह जो रवायत में है कि जब हज़रत फातेमा ज़हरा पैग़म्बरे इस्लाम के घर में जाती थीं या उस स्थान पर जाती थीं जहां पैग़म्बरे इस्लाम बैठे होते थे तो वे हज़रत फातेमा ज़हरा के सम्मान में खड़े होकर कुछ क़दम उनकी ओर बढ़ते थे तो उनका यह कार्य स्वंय एक निशानी है एक महानता है।                                              

इसी प्रकार वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस्लामी जगत में शीया- सुन्नी सभी उस दिन से लेकर आज तक हज़रत फातेमा ज़हरा को महानता एवं वैभव की दृष्टि से देखते हैं यह स्वयं एक  निशानी है। यह संभव ही नहीं है कि समस्त बुद्धिमान, विद्वान और विचारक विभिन्न आस्थाओं के साथ एक राष्ट्र के इतिहास में एक चीज़ की सराहना पर एकमत हों किन्तु यह कि वह चीज़ स्वयं महान हो और यह स्वयं एक निशानी है। ये समस्त महानताएं एक 18 वर्षीय महिला, एक जवान लड़की से संबंधित हैं! हज़रत फातेमा ज़हरा के लिए विभिन्न इतिहासों के अनुसार जो सबसे अधिक उम्र बयान की गयी है वह 18 से 22 साल है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम जो सम्मान हज़रत फातेमा ज़हरा का करते थे और जिस सम्मान का उल्लेख हज़रत फातेमा ज़हरा के बारे में समस्त इमामों के हवाले से किया गया है उन सबसे इंसान यह समझता है कि हज़रत फातेमा ज़हरा के बारे में इमामों के जो कथन हैं वे उनकी महानता के सूचक हैं। हर इमाम ठाठें मारता समुद्र है जिसने अपने ज्ञान से मानवता को तृप्त किया है और सारे समुद्रों का स्रोत हज़रत फातेमा ज़हरा हैं”।

हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने बचपने से ही बहुत कठिनाइयां सहन कीं। हज़रत फातेमा ज़हरा मक्का में आठ साल की थीं जब इस्लाम के प्रचार -प्रसार के लिए उन्होंने अपने पिता का भरपूर साथ दिया। पैग़म्बरे इस्लाम ने जब लोगों को इस्लाम का निमंत्रण दिया तो उन्होंने अपने माता- पिता के साथ बहुत कठिनाइयां सहन कीं। जब अनेकेश्वरवादियों ने शेबे अबी तालिब में पैग़म्बरे इस्लाम का तीन वर्षों तक कड़ा परिवेष्टन कर रखा था तो हज़रत फातेमा ज़हरा भी अपनी माता के साथ पैग़म्बरे इस्लाम के साथ थीं। उस समय यह महान महिला हज़रत फातेमा ज़हरा थीं जिन्होंने कठिन हालात का सामना किया और जब अनेकेश्वरवादी पैग़म्बरे इस्लाम को कष्ट पहुंचाते थे तो यह फातेमा ज़हरा थीं जो पैग़म्बरे इस्लाम को ढारस बंधाती थीं और उनके घावों का उपचार करती थीं। इस प्रकार था कि पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि फ़ातेमा अपने बाप की मां है।

हज़रत फातेमा ज़हरा सदैव अपने पिता यानी पैग़म्बरे इस्लाम के साथ विनम्रता एवं शालीनता से पेश आती थीं। यद्यपि उनका व्यववहार बहुत ही प्रेमपूर्ण एवं भावना से भरा था परंतु उनका यह व्यवहार अपने पिता के साथ विन्रम स्वभाव की दिशा में कभी भी रुकावट नहीं बना। हज़रत फातेमा ज़हरा के हवाले से आया है जिसमें आपने फरमाया है कि जब पैग़म्बर पर आयत नाज़िल हुई कि पैग़म्बर को उनके नाम से न बुलाओ तो मुझ पर पैग़म्बर का रोब छा गया इस प्रकार से कि मैं हे बाबा न कह सकी और मैंने उनको हे ईश्वरीय दूत कह कर पुकारा तो उन्होंने मेरी तरफ से मुंह मोड़ लिया। मैंने कई बार इसी तरह से बुलाया किन्तु उन्होंने मेरा कोई जवाब नहीं दिया। उसके बाद उन्होंने फरमाया मेरी बेटी यह आयत तुम्हारे और तुम्हारे घर वालों के बारे में नहीं नाज़िल हुई है। तू मुझ से है और मैं तुझसे हूं। यह आयत घमंडी और गर्व करने वाले लोगों के बारे में नाज़िल हुई है। तुम हे बाबा कह कर बुलाया करो। चूंकि इस तरह बुलाना मुझे अधिक प्रिय है और ईश्वर को अधिक प्रसन्न करने वाला है।

हज़रत इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” पैग़म्बरे इस्लाम के निधन के बाद हज़रत फातेमा ज़हरा बहुत दुःखी थीं इसलिए जीब्रइल प्रतिदिन उनकी शहादत तक उनके पास आते थे और उन्हें ढारस बंधाते थे। वह पैग़म्बरे इस्लाम के स्थान और जो कुछ पैग़म्बरे इस्लाम की संतान के साथ होने वाला था और भविष्य की बातों से हज़रत फातेमा ज़हरा को बताते थे।

 

ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी इस रवायत के उल्लेख के साथ कहते हैं” मैं नहीं समझता कि महान पैग़म्बरों के अलावा किसी और के साथ ऐसा हुआ हो। यानी जीब्राईल का आना कोई साधारण बात नहीं है। कोई यह न सोचे कि हज़रत जीब्रईल सबके पास आ सकते हैं। जिसके पास हज़रत जीब्राईल आते हैं उसकी और हज़रत जीब्रईल की आत्मा में एक समन्वय होना आवश्यक है। मैं इस प्रतिष्ठा और विशेषता को उन समस्त विशेषताओं से बेहतर मानता हूं जिनका उल्लेख हज़रत फातेमा ज़हरा के बारे में किया गया। यह विशेषता हज़रत फातेमा ज़हरा से विशेष है।“

ऐसा लगता है कि मानो हज़रत फातेमा ज़हरा ने अपनी आध्यात्मिक विशेषताओं, नैतिक सदगुणों और अपने सदव्यवहार से समस्त लोगों से प्रतिस्पर्धा ही ले ली है और अपनी मूल्यवान विशेषताओं से अज्ञानी अरबों को अलग- थलग कर दिया है। यह महान महिला हज़रत फातेमा ज़हरा थीं जो वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश उतरने के परिवार के लिए गर्व थीं। इस्लामी इतिहास में सूरज की भांति चमक रही हैं। हज़रत फातेमा ज़हरा वह महान महिला हैं जिनके सदगुण व विशेषताएं पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के समान हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज्मा सैयद अली ख़ामनेई हज़रत फातेमा ज़हरा की महानता के बारे में कहते हैं एक महिला वह भी जवानी में आध्यात्मिक दृष्टि से उस स्थान पर पहुंचती है कि कुछ रवायतों के अनुसार फरिश्ते उससे बात करते हैं और वास्तविकताओं को उससे बयान करते हैं। मोहद्देसा है यानी वह जिससे फरिश्ते बात करते हैं। दुनिया की समस्त महिलाओं के मुकाबले में यह आध्यात्मिक स्थान ऊंचाई का शिखर बिन्दु है। हज़रत फातेमा ज़हरा ऊंचाई के इस शिखर बिन्दु पर खड़ी हैं और वहां से वह विश्व की समस्त महिलाओं को संबोधित कर रही हैं और उन सबका आह्वान इस मार्ग को तय करने के लिए कर रही हैं।

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