Jul २८, २०१८ १०:५४ Asia/Kolkata

अधिकांश लोगों के जीवन में बहुत से मूल और संयुक्त सवाल होते हैं।

साधारण लोगों से लेकर विशेष लोग और बुद्धिजीवी तक अपने जीवन के किसी न किसी चरण में सवालों का सामना करते हैं और कई बार उन सवालों की अनदेखी के बाद भी कभी न कभी उन सवालों के जवाब के बारे में उन्हें सोचना पड़ता है। इस सृष्टि की रचना, उसके रचयिता, और यह कि क्या इस रचना में रचयिता के चिन्ह हैं जैसे सवालों के बारे में ज़रूर सोचते हैं। इन सवालों को मनुष्य के मन में पैदा होने वाले मूल प्रश्नों में शामिल समझा जाता है। दुनिया के विभिन्न मतों और धर्मों में इन्सानों के इन बुनियादी सवालों के जवाब दिये गये हैं।

 

रोचक बात यह है कि इस्लाम धर्म ने सभी को सृष्टि में चिंतन की ओर बुलाया है और स्वंय भी सृष्टि के बारे में विचारधारा पेश की है। इस्लामी बुद्धिजीवियों ने , इस्लामी शिक्षाओं, कुरआने मजीद की आयतों और हदीसों के आधार पर इस सृष्टि पर चिंतन किया और इन सवालों का उत्तर खोजने का प्रयास किया कि हमारे आस पास की चीज़ें किस हद तक रचयिता के अस्तित्व का पता देती हैं।

हमने मानव शरीर के विभिन्न अंगों पर चर्चा की और साधारण रूप से और बिना किसी गहरे तर्क वितर्क के सृष्टि की वास्तविकताओं की झलक देखी थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का एक प्रसिद्ध कथन है कि क्या तुम यह सोचते हो कि तुम एक छोटा सा शरीर हो जबकि तुम्हारे भीतर एक बहुत बड़ी दुनिया बसी है। पिछले कार्यक्रमों में हम ने मानव शरीर के विभिन्न अंगों का उल्लेख किया था और यह समझा था कि मानव शरीर के हर अंग की बनावट में विशेष प्रकार का तर्क निहित है। मानव शरीर भी इस सृष्टि का भाग है और इसी लिए अंत में वह इसी सृष्टि का अंश बन जाता है। पिछले कार्यक्रमों में हमने मानव शरीर के अंगों पर चर्चा की थी जिसे  अब आगे नहीं बढ़ाएगें। हमारी इस चर्चा का विषय वास्तव में सत्य की खोज है उस सत्य की खोज जो इस सृष्टि के कण कण में निहित है मगर उसे देखने के लिए विशेष प्रकार की नज़र चाहिए।

 

मनुष्य खाता है पीता है और बहुत से अन्य काम करता है लेकिन सवाल यह है कि कौन सा कारक, उससे यह सारे काम कराता है? भूख की वजह से इन्सान खाद्य पदार्थ तलाश करता है ताकि अपना पेट भर सके और खाने के बाद उसमें शक्ति आती है और उसका शरीर मज़बूत होता है। थकन और न सोने के बाद इन्सान का मन सोने को करता है और नींद द्वारा वह अपनी खोयी हुई शक्ति वापस पाता है। कामेच्छा के कारण मनुष्य यौन संबंध स्थापित करता है जिससे इन्सान की नस्ल आगे बढ़ती है और मानव समाज बाक़ी रहता है।

आप ज़रा सोचे कि अगर मनुष्य में भूख प्यास और स्वाद न होता और वह अपने शरीर की खाने की ज़रूरत से किसी अन्य प्रकार से अवगत होता तो क्या होता? इस दशा में यह बहुत संभव था कि मनुष्य आलस्य में खाने पीने की किसी चीज़ को खोजता ही न या यह समझता कि खाने के बाद आलस्य आता है तो खाना ही न खाए। इस तरह से निश्चित रूप से धीरे धीरे उसका शरीर कमज़ोर होने लगता और फिर वह मर भी सकता था। जैसा कि हम देखते हैं कि बहुत से लोगों को खाने पीने की बहुत सी चीज़ों के नुकसान के बारे में पता होता है लेकिन फिर भी उसे इस्तेमाल करते हैं या अपने शरीर में किसी बीमारी का पता होता है फिर उसकी दवा नहीं करते क्योंकि भूख या प्यास  या दर्द जैसा कोई कारण उन्हें मजबूर नहीं करता और इस तरह से वह अपनी बीमारी को बढ़ा लेते हैं और अन्त में अपनी मृत्यु का कारण भी बन जाते हैं।

 

 

इसी प्रकार अगर इन्सान को नींद न आती बल्कि उसे केवल यह पता होता कि शरीर के लिए नींद भी ज़रूरी है और उसे सोना चाहिए तो निश्चित रूप से बहुत से लोग कामों में व्यस्त रहने या किसी भी अन्य वजह से नींद के लिए समय ही न निकाल पाते और धीरे धीरे उनका शरीर प्रभावित हो जाता और फिर ख़त्म भी हो जाता।

 

 

या  अगर मनु्ष्य में कामेच्छा न होती और इन्सान सिर्फ इस वजह से यौन संबंध बनाता कि उसकी नस्ल आगे बढ़े और दुनिया की आबादी बढ़े और मानव समाज बचा रहे तो क्या  इस प्रकार से मानव समाज आगे बढ़ पाता? क्या यह संभव नहीं था कि बहुत से लोग , एक बच्चा पालने की कठिनाइयों की वजह से नस्ल बढ़ाने के बारे में सोचना भी पसन्द न करें तो क्या इस तरह से मानव समाज का अंत नहीं हो जाता? रोचक तथ्य यह है कि यह सब कुछ इस दुनिया और इन्सान के लिए जरूरी है इसी लिए ईश्वर ने एक कारक द्वारा मनुष्य को यह सब करने पर प्रोत्साहित किया है।

 

मनुष्य हमेशा पुरानी बातों को याद करता रहता है, सोचता रहता है और नयी नयी खोज करता है। आप ज़रा सोचें यदि मनुष्य में स्मरण शक्ति न होती या कमज़ोर होती तो क्या होता? इस दशा में वह जो कुछ देख चुका होता , जो कुछ सुन चुका होता वह सब कुछ भी उसे याद न होता या गलत तरह से याद होता। उसे यह याद ही न होता कि उसके साथ किस ने बुराई की है किसने अच्छाई की है, कौन उसे नुकसान पहुंचाना चाहता है और कौन उसके हितों की रक्षा करता है। इस दशा में मानव जीवन में बहुत सी समस्याएं पैदा हो जातीं और कोई कुछ भी सीख नहीं सकता था और न ही मानव जीवन में विकास की कोई गुंजाइश होती। इस प्रकार से स्मरण शक्ति ऐसी ईश्वरीय कृपा है कि जिसके न होने पर संसार की सारी मानव व्यवस्था ही खतरे में पड़ जाती।

 

इसी तरह बोलना लिखना और अन्य काम भी हैं। ज़रा सोचें ईश्वर ने मनुष्य को बोलने की शक्ति दी है और वह इस तरह से अपने दिल की बात दूसरों तक पहुंचा सकता है, अपने विचारों से दूसरों को अवगत करा सकता है और अन्य लोगों की सोच और उनके मन की बात को समझ सकता है यदि यह शक्ति न होती तो कोई भी दूसरे को अपने विचारों से अवगत नहीं करा पाता कोई भी दूसरे की भावनाओं और विचारों  को समझ नहीं पाता। तो इस दशा में क्या होता?

 

मनुष्य की एक क्षमता लिखना है, मनुष्य के अलावा किसी अन्य प्राणी में यह क्षमता नहीं है कि वह अपने विचारों को लिख सके। लिखने की क्षमता की वजह से इन्सान गुज़रे हुए लोगों के अनुभवों से लाभ उठा सकता है और अतीत को वर्तमान और वर्तमान को भविष्य में पहुंचा सकता है। लिखने की क्षमता के बल पर ही ज्ञान विज्ञान का प्रसार संभव होता है और उपस्थित लोग अनुस्पिथित लोगों को सूचनाएं दे सकते हैं।  यदि लिखने की क्षमता न होती तो अतीत की घटनाएं और अनुभव, अतीत में ही रह जाते, जन जातियों की संस्कृति , पुरानी सभ्यताओं के बारे में किसी को कोई  जानकारी न होती और इस तरह से मानव जीवन को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता।

 

हो सकता है कि यह कहा जाए कि इन्सानों ने खुद ही शब्द बनाए और फिर उससे एक दूसरे को अवगत कराया और इस तरह से बोलने लगे , विभिन्न बोलियां , भाषाएं अस्तित्व में आयीं। लिखने की यह कला खुद मनुष्य की मेहनत से पैदा हुई है और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने फारसी, अरबी, इंगलिश, चीनी हिन्दी उर्दु जैसी भाषाओं को जन्म दिया है तो फिर इसे किस प्रकार से ईश्वरीय कृपा कहा जा सकता है?

 

इस सवाल के जवाब में कहना चाहिए कि यह सही है कि मनुष्य ने अपनी मेहनत से लिखना पढ़ना सीखा है लेकिन लिखने पढ़ने की कला , किस काम की अगर विचार करने की क्षमता मनुष्य में न होती? यह ईश्वर ही है जिसने मनुष्य में यह क्षमता रखी कि वह अपने विचारों को प्रकट करने के लिए विभिन्न प्रकार के साधन खोजे। यदि मनुष्य में विचार की शक्ति न होती, बोलने के लिए ज़बान न होती, लिखने के लिए उचित उंगुलियां न होतीं तो वह क्या करता ? और फिर ईश्वर ने ही मनुष्य को वह बुद्धि दी है जिसका प्रयोग करके वह जीवन की विभिन्न समस्याओं का समाधान करता है, अलग अलग ज़रूरतों को अलग अलग साधनों से पूरा करने की युक्ति सोचता है । क्योंकि ईश्वर ही हमारा रचयिता है इस लिए उसे हमारी हर ज़रूरत का बहुत अच्छी तरह से ज्ञान है यह ऐसा सत्य है जिसकी ओर इस सृष्टि का कण कण इशारा करता है तो क्या हमारा यह कर्तव्य नहीं है कि हम इतने सुन्दर सत्य के प्रति आभार प्रकट करें? (Q.A.)

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