Jul २८, २०१८ १५:०० Asia/Kolkata

हमने इमाम मुहम्मद बाक़िर की जीवनशैली की समीक्षा करते हुए बताया था कि उन्होंने क्यों अपने काल में सांस्कृतिक क्रांति की आवश्यकता पर बल दिया था। 

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों का महत्व और उनके प्रति लगाव दो एसी बाते थीं जिनके माध्यम से उस काल में सांस्कृतिक क्रांति की भूमिका प्रशस्त की जा सकती थी।  हालांकि उमवी शासकों ने दुष्प्रचारों से क्रांति लाने के इन दोनों आधारों को आघात पहुंचाया था।

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने काल में जो महत्वपूर्ण क़दम उठाया वह था आम लोगों के साथ सीधा संपर्क का उमवी शासकों ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के विरुद्ध दुष्प्रचार करके इन लोगों को बहुत प्रभावित कर रखा था।  इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर इमाम और जनता के बीच सीधा संपर्क होना चाहिए ताकि लोग उनके विचारों और दृष्टिकोणों को निकट से समझें और उनको आदर्श के रूप स्वीकार करें।  इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत आम लोगों से दूर आत्ममुग्ध शासक, समाज और उस व्यक्ति के बीच दूरी बनाने के प्रयास करते रहते थे जो समाज में नेतृत्व कर रहा हो।

यही कारण है कि तानाशाह उमवी शासक हेशाम बिन अब्दुल मलिक ने जब यह देखा कि आम लोग अधिक से अधिक संख्या में इमाम बाक़िर से निकट होते जा रहे हैं तो अपने निकटवर्तियों से पूछा कि वे कौन हैं जिसके चारों ओर लोग एकत्रित हो रहे हैं।  हालांकि वह भलिभांति जानता था कि इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम कौन हैं?  हेशाम के निकटवर्तियों में से एक ने कहा कि वे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नवासे हैं जिनको इस्लामी शिक्षाओं का पूरा ज्ञान है।  इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम यह जानते थे कि हेशाम उनके प्रति बहुत ही संवेदनशील है किंतु इसके बावजूद वे मुसलमानों के साथ सदैव संपर्क में रहते थे।  वे विरोधियों से शास्त्रार्थ भी करते थे।  लोगों को इस्लामी जानकारी देने का वे हरसंभव प्रयास करते रहते थे।

एक दिन इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम एक स्थान से गुज़र रहे थे।  आपने देखा कि एक स्थान पर बड़ी संख्या में लोग मौजूद हैं।  उन्होंने पूछा कि वे लोग कौन हैं? आपको बताया गया कि यह इसाई धर्म के सन्यासी हैं जो वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए आए हैं।  यह सब अपने वरिष्ठ इसाई धर्मगुरू की प्रतीक्षा में खड़े हैं जो उनके दर्शन के साथ ही उनसे अपनी समस्याओं का समाधान भी कराना चाहते हैं।

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम एक अजनबी व्यक्ति के रूप में भीड़ में प्रविष्ठ हो गए।  हेशाम के जासूसों ने यह ख़बर, दरबार में पहुंचाई।  हेशाम ने अपने एक अन्य जासूस को भेजकर उससे कहा कि वह भी भीड़ में उपस्थित होकर मुहम्मद बाक़िर की गतिविधियों पर नज़र रखे।  थोड़े ही समय में इसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरू वहां पर पहुंचे।  उन्होंने एक बार उपस्थित लोगों पर नज़र दौड़ाई।  जब उसकी नज़र इमाम बाक़िर पर पड़ी तो उसने इमाम से पूछा कि आप हम इसाइयों से हैं या मुसलमान हैं? इमाम ने जवाब दिया कि मुसलमानों में से।  फिर इसाई धर्मगुरू ने उनसे पूछा कि आप उनके विद्वानों में से हैं या न जानने वालों में से? इमाम ने कहा कि मैं न जानने वालों में से नहीं हूं।  उसने कहा कि अब मैं तुमसे सवाल करूं या फिर तुम मुझसे सवाल करोगे? इमाम ने जवाब दिया कि जैसी आपकी इच्छा।  इसाई धर्मगुरू ने अपने हिसाब से जितने भी कठिन सवाल हो सकते थे इमाम से किये और उनके जवाबों से वह संतुष्ट रहा।  इसके बाद उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि एक वरिष्ठ विद्वान को मेरे सामने लाया गया है ताकि मुझे बदनाम कर सको।  जान लो कि वे बहुत बड़े विद्वान हैं।

यह बात बहुत ही तेज़ी से दमिश्क़ में जंगल की आग की तरह फैली जो मुसलमानों की खुशी का कारण बनी।  हेशाम, इस ख़बर से खुश होने के बजाए बल्कि बहुत क्रोधित हुआ।  अब वह इमाम बाक़िर के ज्ञान और उनके प्रभाव से अधिक भयभीत हो गया।  उसने आदेश दिया कि इमाम बाक़िर को शाम से मदीना लाया जाए।  हेशाम ने साथ ही मदीने के गवर्नर सहित अन्य को पत्र भेजे जिनमें लिखा था कि अबूतुराब के बेटे मुहम्मद बिन अली, अपने बेटे के साथ मेरे पास आए थे। वे मेरे आदेश पर मदीना जाने से पहले इसाइयों के एक समारोह में गए और उनमें मिल गए।  मैने उनसे अपनी रिश्तेदारी के कारण उन्हें उनके इस काम से क्षमा कर दिया लेकिन जब वे तुम्हारे नगर में पहुंचे तो तुम लोगों में यह एलान कर देना कि मैं उनसे अप्रसन्न हूं।

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने हेशाम के विषैले दुष्प्रचारों को प्रभावहीन बनाने के लिए लोगों के बीच भाषण दिये।  उन्होंने तत्कालीन शासक की शक्ति से न डरते हुए निर्भीक होकर जनता को संबोधित करते हुए कहा कि लोगो! तुम कहां जा रहे हो और तुमको किस रास्ते पर ढकेला जा रहा है।  तुमको भ्रष्टाचार की ओर ले जाया जा रहा है।  तुम्हारे पूर्वजों का हमारी ओर से मार्गदर्शन किया गया।  यदि तुम अपना अंजाम अच्छा चाहते हो तो भले काम करो।  इन लोगों के हाथों में कुछ दिनों के लिए सत्ता की बागडोर है किंतु हमेशा रहने वाली सरकार हमारे पास है।  हमारी वास्तविक सरकार के गठन के बाद फिर कोई सरकार नहीं होगी।  इस बारे में ईश्वर कहता है कि और मुत्तक़ियों का अंजाम अच्छा है।

पांचवें इमाम की दूरदर्शितापूर्ण नीतियों के कारण लोगों की जागरूकता बढ़ती जा रही थी और इमाम की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ रही थी।  लोग अधिक से अधिक जानकारी के लिए इमाम बाक़िर की सेवा में स्वयं उपस्थित होते थे।  इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के एक साथी कहते हैं कि एक बार हम लोग इमाम की सेवा में उपस्थित थे।  इसी बीच बेंत का सहारा लिए एक बूढ़ा व्यक्ति वहां पर आया।  उसने इमाम से कहा कि आप पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो।  इसके बाद उसने वहां पर उपस्थित लोगों को सलाम किया और इमाम को संबोधित करते हुए कहा कि हे पैग़म्बरे के पुत्र आप पर ईश्वर की कृपा हो।  ईश्वर की सौगंध मैं आपसे प्रेम करता हूं और आपसे प्रेम करने वालों से भी प्रेम करता हूं।  आपसे और आपके चाहने वालों से मेरा यह प्रेम, सांसारिक नहीं है।  मैं आपको केवल ईश्वर की वजह से चाहता हूं।  जिस चीज़ को आप हलाल समझते हैं उसे मैं भी हलाल समझता हूं।  जिसे आप हराम समझते हैं उसे मैं भी हराम समझता हूं।  हे पैग़म्बर के पुत्र क्या इस सोच के साथ मुझको कल्याण प्राप्त हो सकता है? इसपर इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम मेरे निकट आओ।  इमाम ने उसे अपने निकट बैठाया और कहा कि एक व्यक्ति मेरे पिता अली इब्नुल हुसैन (ज़ैनुलआबेदीन) की सेवा में उपस्थित हुआ।  उसने भी उनसे यही सवाल किया था।  उसके जवाब में मेरे पिता ने कहा था कि तुम यदि इन्ही विचारों के साथ इस संसार से चल बसे तो तुम पैग़म्बरे इस्लाम, अली इब्ने अबूतालिब, हसन इब्ने अली, हुसैन इब्ने अली और मेरे साथ होगे।  तुम्हारे मन को शांति मिलेगी, तुम खुश होगे और तुम्हारी आखों को ज्योति मिलेगी।  तुम हमारे साथ उच्च स्थल पर उपस्थित होगे।  बूढ़े व्यक्ति ने, जिसे इस प्रकार की बात सुनने की अपेक्षा तक नहीं थी, बहुत ही आश्चर्य में कहा कि हे पैग़म्बर के पुत्र यह आपने क्या कहा? क्या मैंने सही सुना है?  पांचवे इमाम ने उस व्यक्ति को आशवस्त करने के उद्देश्य से अपने इसी कथन को दुबारा दोहराया।  बूढ़ा व्यक्ति यह सुनकर बहुत ही प्रभावित हुआ और एसी स्थिति में लोगों के बीच से उठकर चला गया कि उसकी आखों में आंसू थे।  इसके बाद इमाम ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि हर वह इन्सान जो यह चाहता है कि स्वर्ग के व्यक्ति को अपनी आखों से देखे उसको चाहिए कि वह इस बूढ़े व्यक्ति पर निगाह डाले।

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार व प्रसार के लिए विभिन्न अवसरों का प्रयोग किया करते थे।  इन अवसरों में से एक हज का अवसर है।  हज एसा अवसर होता है जब विश्व के कोने-कोने से लोग मक्का पहुंचते हैं।  एक कथन में मिलता है कि मैंने पवित्र काबे के निकट एसे व्यक्ति को देखा जिसको चारों ओर से लोग घेरे हुए थे और अपने सवाल पूछ रहे थे।  वे अपने कठिन प्रश्नों के उत्तर के लिए वहां पर मौजूद थे।  वह व्यक्ति बड़ी आसानी से लोगों के प्रश्नों के उत्तर दे रहा था।  जब इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम वहां से जाने के लिए आगे बढे तो किसी ने ऊंची आवाज़ में कहा कि वे मार्गदर्शन का सूरज हैं।  इसी बीच किसी ने पूछा कि यह कौन है तो उत्तर मिला कि वह मुहम्मद बिन अली बिन हुसैन बिन अली बिन अबीतालिब अर्थात बाक़िरुल उलूम हैं।

इमाम बाक़िर ने आम लोगों के साथ संपर्क स्थापित करके लोगों को इमामत के महत्वपूर्ण स्थान को बताया।  उन्होंने इसी प्रकार इमाम को आम लोगों से दूर करने के अत्याचारी शासकों की चालों को विफल बना दिया।  आपने अपने पूरे जीवन इस्लाम की शुद्ध शिक्षाओं का प्रचार व प्रसार किया।

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