Jul ३१, २०१८ १२:४६ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में कहते हैं कि वस्तुतः वे एक चमकता प्रकाश हैं और इमामत का सूरज उन्हीं के प्रकाश से निकला है, वे एक ऊंचा आसमान हैं जिसकी गोद में इमामत और विलायत के चमकते सितारे पले हैं।

सभी इमाम अपनी इस महान माता का अत्यधिक सम्मान व गुणगान करते थे और उनकी ओर से इस प्रकार का सम्मान कम ही लोगों के लिए देखा जाता है।

हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के जो कथन मिलते हैं उनसे पता चलता है कि वे आध्यात्मिकता, प्रकाश और पवित्रता की मूर्ति थीं। ईश्वर की अत्यधिक उपासना करने के कारण उन्हें बड़ी मूल्यवान उपाधियां दी गई हैं। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की जो ज़ियारत बयान की है उसमें हम इनमें से कुछ बेजोड़ उपाधियों को देखते हैं। ज़ियारत में हज़रत फ़ातेमा के लिए कहा गया है कि आप अत्यंत पवित्र हैं, पवित्र बनाई गई हैं, चुनी गई हैं, अवगुणों से दूर हैं, ईश्वर आपको पसंद करता है और आप ईश्वर से डरने वाली हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के विचार में हमारे लिए हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन का सबसे बड़ा पाठ, पवित्रता के साथ जीवन बिताना और सही मार्ग पर आगे बढ़ना है। पवित्रता, प्रयास और जेहाद के साथ एक ईमान वाला जीवन, हज़रत ज़हरा के जीवन की तरह है जो इंसान को जीवन के सही मार्ग पर ला सकता है और उसे परिपूर्णता व उत्थान तक पहुंचा सकता है।

 

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की अद्वीतीय विशेषताएं उनके पूरे जीवन में इतनी त्रुटिहीन व प्रकाशमान हैं कि उन्होंने हज़रत फ़ातेमा को मानव इतिहास की सबसे महान महिला में बदल दिया है। माता पिता के सम्मान के साथ उनका कृपालु व्यवहार, आदर्श दांपत्य जीवन, बच्चों का उत्तम प्रशिक्षण और सबसे बढ़ कर ईश्वर की भरपूर उपासना और ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए ही सारे काम करना, हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के विभूतिपूर्ण जीवन के पाठ हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की बेजोड़ विशेषताओं में से सबसे अहम विशेषता उनकी उपासना थी। हदीसों व रिवायतों में है कि वे अपनी घरेलू ज़िम्मेदारियों को उत्तम ढंग से निभाने के अलावा ईश्वर की इतनी उपासना करती थीं और इतनी नमाज़ें पढ़ती थीं कि उनके पैर सूज जाते थे। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के अनुसार हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की राह पर चलना और उनके व्यवहार को अपनाना मुसलमानों का दायित्व है और कल्याण व मोक्ष की चोटियों पर पहुंचने के लिए इस ईश्वरीय प्रकाश के पदचिन्हों पर चलना आवश्यक है।

 

ग़रीबों को खाना खिलाना और उनकी मदद करना हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की एक अन्य प्रमुख विशेषता थी। क़ुरआने मजीद का सूरए दहर हज़रत फ़ातेमा, उनके पति हज़रत अली और उनके बच्चों इमाम हसन व इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम की इसी विशेषता के बारे में आया है। इस सूरे के बारे में प्रख्यात सहाबी इब्ने अब्बास कहते हैं कि एक बार हज़रत इमाम हसन और इमाम हुसैन बीमार पड़े। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम अपने कुछ सहाबियों के साथ उन्हें देखने आए और उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा कि वे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कोई मन्नत मानें।

हज़रत अली, हज़रत फ़ातेमा और उनकी दासी फ़िज़्ज़ा ने मन्नत मांगी कि अगर बच्चे ठीक हो जाएं तो वे लोग तीन दिन रोज़ा रखेंगे। बच्चे भी इस मन्नत में शामिल हो गए और उन्होंने कहा कि हम भी रोज़ा रखेंगे। जब इमाम हसन और इमाम हुसैन को स्वास्थ्य लाभ हुआ तो घर में सभी लोगों ने रोज़ा रखा। उस दिन घर में खाने को कुछ भी नहीं था। हज़रत अली गए और किसी से थोड़ा सा जौ क़र्ज़ मांग कर ले आए। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने उस जौ के एक तिहाई भाग को पीस कर आटा बनाया और उससे पांच रोटियां तैयार कीं। जब हज़रत अली, हज़रत फ़ातेमा, इमाम हसन, इमाम हुसैन और इफ़्तार के लिए बैठे तो दरवाज़े पर आकर किसी ने आवाज़ दी। आप लोगों पर सलाम हो हे पैग़म्बर के परिजन! मैं ग़रीब हूं मुझे खाने के लिए कुछ दे दीजिए, ईश्वर आप लोगों को स्वर्ग का खाना प्रदान करे। उन लोगों ने ग़रीब को स्वयं पर प्राथमिकता दी और सारी रोटियां उसे दे दीं। उस रात सभी पानी पी कर सो रहे। अगले दिन भी सबने रोज़ा रखा और जब इफ़्तार करने बैठे तो एक अनाथ घर के दरवाज़े पर आया और उसने खाना मांगा। सबने उस दिन भी सारा खाना अनाथ को दे दिया और पानी से इफ़्तार किया। तीसरे दिन भी इफ़्तार के समय एक बंदी उनके दरवाज़े पर आया और उसने भी खाना मांगा। तीसरे दिन भी पैग़म्बर के परिजनों ने सारी रोटियां दान कर दीं।

अगली सुबह हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत इमाम हसन और इमाम हुसैन को लेकर पैग़म्बरे इस्लाम के पास आए। पैग़म्बर ने देखा कि वे लोग भूख के कारण कांप रहे थे। उन्होंने कहा कि तुम लोगों को इस स्थिति में देखना मेरे लिए अत्यंत कठिन है। इसके बाद वे उठे और उन लोगों के साथ हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के घर पहुंचे। उन्होंने देखा कि उनकी बेटी नमाज़ पढ़ रही हैं और अत्यधिक भूख के कारण उनका पेट, पीठ से चिपक गया है और उनकी आंखों के गिर्द गढ़े पड़ गए हैं। उसी समय ईश्वर के दूत हज़रत जिब्रईल वहां आए और उन्होंने कहा कि हे पैग़म्बर! यह सूरा ईश्वर ने भेजा है और इतने अच्छे परिवार के लिए वह आपको बधाई देता है। इसके बाद उन्होंने सूरए दहर उन्हें सौंपा।

 

सूरए दहर की आठवीं आयत में कहा गया हैः और वे लोग खाने की ज़रूरत होने के बावजूद उसे ग़रीब, अनाथ और बंदी को दे देते हैं। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई इस बारे में कहते हैं कि क्या हम यह नहीं कहते कि उन्होंने ऐसा काम किया कि उनके, उनके पति और बच्चों के बारे में सूरए दहर नाज़िल हुआ? स्वयं को भूखा रख कर ग़रीबों और वंचित के प्रति त्याग, हमें भी यही काम करना चाहिए। यह तो नहीं हो सकता कि हम हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से प्रेम का दावा करें लेकिन उनके पद्चिन्हों पर न चलें। उन्होंने किसी भूखे के लिए हसन व हुसैन जैसे अपने बच्चों और उनके पिता के सामने से रोटी उठा कर दे दी और वह भी एक दिन नहीं बल्कि तीन दिन तक, हमें भी अपने जीवन में उन्हीं को आदर्श बनाना चाहिए, हम उन जैसे तो नहीं बन सकते लेकिन उनके पद्चिन्हों पर चलने की कोशिश तो करना ही चाहिए।

एक रिवायत में है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम अपनी माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में कहते हैं कि एक रात मेरी माता ने सुबह तक उपासना की और नमाज़ें पढ़ीं। मैंने सुना कि वे निरंतर लोगों के लिए दुआएं करती रहीं। इस्लामी जगत की सार्वजनिक समस्याओं के समाधान के लिए प्रार्थनाएं करती रहीं। सुबह मैंने उनसे पूछाः माताजी आपने जिस तरह दूसरों के लिए दुआ की उसी तरह अपने लिए भी एक दुआ क्यों नहीं की। हज़रत फ़ातेमा ने उत्तर दिया। हे मेरे बेटे! पहले पड़ोसी और फिर घर वाले। यह सभी इंसानों के लिए एक बड़ा पाठ है। यह वही महान भावना और ईश्वर का भय है जो इंसान को आत्म मोह और स्वार्थ से मुक्त करता है और उसे उच्च दृष्टि प्रदान करके उसके सामने एक बड़ा मैदान खोल देता है। इस मैदान में स्वार्थ और आत्म मोह अपना स्थान ईश्वर से प्रेम और दूसरों की मदद को दे देते हैं।

 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की महानता के बारे में कहते हैं कि उनका जीवन हर पहलू से एक मनुष्य के प्रयास, परिपूर्णता और आत्मिक उत्थान  से भरा एक जीवन है। उनका युवा पति हमेशा मोर्चों पर और युद्ध के मैदानों में है लेकिन कठिनाइयों और समस्याओं के बावजूद हज़रत फ़ातेमा का घर और उनका जीवन आम लोगों और मुसलमानों की समस्याओं के समाधान के केंद्र की तरह है। वे पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी हैं और इन परिस्थितियों में भी जीवन को बड़े गौरवपूर्ण तरीक़े से आगे बढ़ाती हैं। इमाम हसन, इमाम हुसैन और हज़रत ज़ैनब जैसे बच्चों का प्रशिक्षण करती हैं, अली जैसे पति का ध्यान रखती हैं और पैग़म्बरे इस्लाम जैसे पिता को प्रसन्न रखती हैं। युद्धों में इस्लाम की विजय का मार्ग खुल जाता है और बड़ी मात्रा में धन आने लगता है लेकिन पैग़म्बर की सुपुत्री सांसारिक आनंदों, ऐश्वर्य और दुनिया की चकाचौंध को तनिक भी अपने जीवन में आने नहीं देतीं। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की उपासना एक आदर्श उपासना है।

वे कहते हैं कि जिन लोगों ने प्राचीन काल में या वर्तमान समय में इस बात की कोशिश की है कि औरत को तुच्छ दर्शाएं, उसे इन भौतिक श्रंगारों और धन संपत्ति की लोभी बताएं, फ़ैशन, परिधान, आभूषण और सोने चांदी पर मोहित बताएं और उसे अपनी वासना का साधन बनाएं, उनका तर्क बर्फ़ की तरह हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक स्थान के सूरज की गर्मी के सामने पिघल कर समाप्त हो जाता है। (HN)

 

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