Aug १३, २०१८ १४:०७ Asia/Kolkata

हमने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की ओर से अपने जीवन काल में लाई जाने वाली सांस्कृतिक क्रांति के बारे में विस्तार से बताया था। 

हमने यह बताया था कि उन्होंने लोगों के प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी और शुद्ध इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार व प्रसार किया।  उन्होंने धर्म विशेषकर शियत की रक्षा की।  उनका एक काम, वास्तविक शियों की विशेषताओं को बताना था।

इस्लाम की शिक्षाओं में एक बात पर विशेष बल दिया गया है जो है, "असालते अमल"।  यह अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ यह है कि लोगों को पहचानने का मूल मानदंड, अमल या कर्म है।  कोई भी व्यक्ति अमल या कर्म के बिना किसी भी स्थान तक नहीं पहुंच सकता।  इस्लाम में कर्म को विशेष महत्व दिया गया है।  इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार केवल नारेबाज़ी या दावा करने से कुछ नहीं होता बल्कि कर्म से ही सबकुछ होता है।

एक बार इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने एक साथी जाबिर को संबोधित करते हुए कहा कि क्या स्वयं को शिया कहना और यह दावा करना कि हम पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रेम करते हैं, काफ़ी है? बाद में स्वयं इमाम कहते हैं कि वास्तव में वह शिया नहीं है जो ईश्वर के आदेशों का पालन नहीं करता।  उन्होंने कहा कि हे जाबिर वास्तविक शियों को इन विशेषताओं से पहचाना जा सकता है।  उनके भीतर विनम्रता हो, वे अमानतदार हों, ईश्वर को अधिक से अधिक याद करता हो, रोज़े रखता हो, नमाज़ का पाबंद हो, अपने माता-पिता के साथ भलाई करता हो, अपने ज़रूरतमंद पड़ोसियों का ध्यान रखता हो, यतीमों का ख़याल रखता हो, सच बोलने वाला हो, लोगों का शुभचिंतक या हितैषी हो, रिश्तेदारों को उसपर भरोसा हो।  इतना कहने के बाद इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि हर वह व्यक्ति जो ईश्वर के आदेशों का पालन करता हो वह हमारा दोस्त है और जो भी उसके आदेशों की अवहेलना करे वह हमारा शत्रु है।  हमारी दोस्ती या मुहब्बत, ईश्वर के भय और कर्म से मिलती है।

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारा या अली का शिया वह है जो पूरी निष्ठा के साथ हमारा समर्थन करता है।  वह धर्म को बचाए रखने के लिए एकजुट और हमारा समर्थक है।  वह यदि क्रोधित होता है तो अत्याचार नहीं करता और यदि प्रसन्न हो तो सीमा से आगे नहीं बढ़ता।  उसके पड़ोसी को उससे क्षति नहीं पहुंचती।  जो उसका विरोधी है वह भी उससे भयभीत नहीं होता।

 

हालांकि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का यह प्रयास रहता था कि ज्ञान के आधार पर वे पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के समर्थकों और उनकी विशेषताओं को बयान करें किंतु उमवी शासकों का यह प्रयास रहता था कि वे इमाम बाक़िर और उनके समर्थकों की छवि को ख़राब करके पेश करें ताकि इस प्रकार, शुद्ध इस्लाम की शिक्षाओं के प्रसार को रोक दें।  शुद्ध इस्लाम के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से इन शासकों ने कई नए पंथों को जन्म देकर उनका समर्थन करना आरंभ किया।  यह ठीक उसी प्रकार से है जैसे वर्तमान समय में बड़ी शक्तियां इस्लाम की छवि को ख़राब करके पेश करने के लिए दाइश और वहाबियत का प्रयोग कर रही हैं।

एक बार इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने बड़े बेटे इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के साथ हज करने के लिए गए।  हज के संस्कार अदा करने के उद्देश्य से बड़ी संख्या में लोग वहां पर मौजूद थे।  तत्कालीन शासक "हेशाम बिन अब्दुल मलिक" भी हज करने के उद्देश्य से वहां पहुंचा था।  ऐसे में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने सोचा कि उमवी शासकों की इस्लाम विरोधी नीतियों को क्षतिग्रस्त करने का यह बेहतरीन अवर है।  इसी उद्देश्य से उन्होंने वहां पर खड़े होकर बहुत ही स्पष्ट अंदाज़ में शुद्ध इस्लामी शिक्षाओं का उल्लेख किया।  अपने भाषण का अंत उन्होंने अपने इस वाक्य से किया कि वे लोग अर्थात शिया, आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक साथी और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के वास्तविक दोस्त हैं।

हेशाम बिन अब्दुल मलिक जब हज से वापस लौटा तो उसने आदेश दिया कि इमाम बाक़िर और इमाम सादिक़ को मदीने से दमिश्क़ ले जाया जाए।  इस बारे में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जब हम मदीने से दमिश्क़ पहुंचे तो तीन दिनों तक हमें पता नहीं था कि क्या होने वाला है।  चौथे दिन हमें महल में बुलवाया गया।  इमाम कहते है कि जब हम महल में पहुंचे तो देखा कि हेशाम सिंहासन पर बैठा हुआ है।  उसके दरबारी हेशाम की उपस्थिति में तीरअंदाज़ी कर रहे थे।  इमाम सादिक़ कहते हैं कि हेशाम ने मेरे पिता को उनके नाम से पुकारते हुए कहा कि आप भी इन लोगों के साथ तीरअंदाज़ी कीजिए।  मेरे पिता ने कहा कि मैं बूढ़ा हो गया हूं और अब यह मेरे लिए उचित नहीं है।  हेशाम ने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का अपमान करने और दूसरों के सामने उन्हें कमज़ोर दिखाने के उद्देश्य से उनसे कई बार निवेदन किया कि वे तीरअंदाज़ी करें।  बाद में उसने अपने एक दरबारी से कहा कि जाओ तीर और धनुष लेकर आओ।  हेशाम के बार-बार बल देने पर मेरे पिता ने अपनी इच्छा के बिना तीन-धनुष को हाथ में लिया।  उन्होंने तीर से निशाना साधा और उसे लक्ष्य की ओर छोड़ दिया।  उनका पहला तीर सीधे निशाने पर जाकर लगा।  इसके बाद उन्होंने दूसरा तीर भी निशाने पर मारा जो पहले तीर के ठीक पीछे जाकर लगा।  इस प्रकार उन्होंने एक-एक करके दस तीर चलाए जो ठीक एक-दूसरे के पीछे लगते रहे।  जब इमाम बाक़िर ने निशाने पर सटीक तीर साधे तो चारों ओर से उनकी प्रशंसा में आवाज़ें उठने लगीं।  वहां पर उपस्थित लोग देर तक इमाम की प्रशंसा करते रहे।

जब हेशाम ने यह देखा तो वह व्याकुल हो उठा उसने इमाम की प्रशंसा करते हुए कहा कि वास्तव में पूरे अरब और अजम में आप जैसा कोई भी तीरअंदाज़ नहीं है।  यह हमारे लिए बहुत ही गौरव की बात है।  उसने इमाम से पूछा कि आपने तीर चलाना कहां और किससे सीखा? मेरे पिता ने कहा कि तुमकों पता होगा कि मदीने के लोगों को तीरंदाज़ी का शौक था।  अपनी जवानी के समय में मैं भी तीर चलाता था।  उनकी बात सुनकर हेशाम ने कहा कि मैंने अपने जीवन में आप जैसा कोई सटीक तीरअंदाज़ नहीं देखा।  फिर उसने कहा कि मैं समझता हूं कि इस समय धरती पर आप जैसा कोई भी तीर चलाने वाला नहीं होगा।  इसके बाद हेशाम ने इमाम बाक़िर से पूछा कि क्या आपका बेटा भी आप ही तरह तीरअंदाज़ी कर सकता है।  इसपर इमाम ने कहा कि हम परिपूर्णता को अपने पूर्वजों से प्राप्त करते हैं।  जैसाकि ईश्वर सूरे माएदा की तीसरी आयत में कहता है कि आज मैंने धर्म को तुम्हारे लिए परिपूर्ण किया और विभूतियां तुमपर समाप्त कीं और राज़ी हुआ कि इस्लाम तुम्हारा धर्म है।  इसके उपरांत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि धरती कभी भी ऐसे से ख़ाली नहीं होगी जिसके भीतर यह दो विशेषताएं मौजूद हों।

हेशाम बिन अब्दुल मलिक ने जहां विभिन्न षडयंत्रों के माध्यम से आम लोगों में इमाम के प्रभाव को रोकने का प्रयास किया वहीं आम लोगों में उनका प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था।  उनके काल में इस्लाम की शुद्ध शिक्षाओं का व्यापक स्तर पर प्रचार व प्रसार हुआ।  हालांकि हेशाम ने सोचा था कि वह इमाम बाक़िर और उनके सुपुत्र को मदीने से दमिश्क़ बुलाने का आदेश देकर और फिर उन्हें वापस मदीने भेजने का आदेश देकर उनके मान-सम्मान को घटा देगा किंतु हुआ इसके बिल्कुल ही विपरीत।  यही कारण था कि उसने इमाम को शहीद कराने का फैसला कर लिया।  हेशाम के तत्वों के हाथों इमाम मुहम्मद बाक़िर को 7 ज़िलहिज सन 114 हिजरी को शहीद कर दिया गया।  शहादत के समय आपकी आयु 57 साल की थी।  अपनी शाहदत की पूर्व संध्या पर इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने सुपुत्र इमाम सादिक़ से कहा था कि आज की रात मैं इस नश्वर संसार को त्याग दूंगा।  उन्होंने कहा कि मैंने अपने पिता इमाम सज्जाद को देखा है जो मेरे पास शर्बत लेकर आए हैं जिसे मैंने पी लिया।  उन्होंने मुझको सदा रहने वाले संसार की शुभ सूचना दी है।

अगले दिन इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को पवित्र नगर मदीना के बक़ी क़ब्रिस्तान में इमाम सज्जाद और इमाम हसन मुजतबा के बग़ल में दफ़न कर दिया गया।  इमाम मुहम्मद बाक़िर की क़ब्र उस बक़ी क़ब्रिस्तान में है जहां पर चार मासूम दफ़न हैं।  इमाम हसन, इमाम ज़ैनुलआबेदीन, इमाम मुहम्मद बाक़िर और इमाम जाफ़रे सादिक़।

कार्यक्रम के अंत मे हम आपकी सेवा में इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के कुछ उपदेश पेश कर रहे हैं।  इमाम कहते हैं कि परिपूर्णता प्राप्त करने के लिए कुछ चीज़े ज़रूरी हैं जैसे धर्म की पहचान, समस्याओं के समय धैर्य, जीवन व्यतीत करने के लिए योजना बनाना।  इसी के साथ आप कहते हैं कि मनुष्य का अपने ईमान वाले भाई से मुस्करा कर सिलना सदकर्म है।  यदि कोई अपने मुसलमान भाई का छोटे-से छोटा दुख दूर करता है तो यह काम भी सदकर्म माना जाएगा।  इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) से जब यह पूछा गया कि ईश्वर का सबसे अच्छा बंदा कौन है तो उन्होंने कहा था कि वह बंदा जो नेकी करने पर खुश हो और बुराई करने पर प्रायश्चित करे।  उसे जब कोई नेमत दी जाए तो वह ईश्वर का आभार व्यक्त करे और जब किसी परेशानी में घिर जाए जो उसपर सब्र करे।  जब उसे ग़ुस्सा आए तो उसे चाहिए कि वह दूसरों के बुरे कामों को अनदेखा करें।

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