Aug २०, २०१८ १२:३१ Asia/Kolkata

पवित्र क़ुरआन के सूरे बलद की आठवीं आयत में ईश्वर कहता है कि क्या हमने इंसान को दो आंखें नहीं दीं। 

मनुष्य, ईश्वर की महत्वपूर्ण निशानी है।  मनुष्य के भीतर पाई जाने वाली जटिलता से ईश्वर की महानता का पता चलता है।  वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य के शरीर का हर अंग, आश्चर्यचकित कर देने वाला है।  मनुष्य की सृष्टि, हर सोचने वाले को ईश्वर की महानता के बारे में सोचने पर विवश करती है।  वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि मनुष्य जैसी ईश्वर की रचना की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती।  इसलिए ऐसा होना चाहिए कि सृष्टि की अचंभित करने वाली चीज़ों को केवल आकाशों, आकाश गंगाओं या अन्य चीज़ों में ढूंढने के बजाय मनुष्य स्वयं अपने में ढूंढे।  मनुष्य के आश्चर्य चकित कर देने वाले अंगों में से एक उसकी आंख है।

आखों या नेत्रों के माध्यम से हम वस्तुओं को देखते हैं।  यह मनुष्य के शरीर का बहुत महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील अंग है।  क्या आपने आजतक कभी भी आखों की बनावट के बारे में सोचा है? वर्तमान समय में जो आधुनिक कैमरे बनाए गए हैं और जो रंगों को बहुत ही स्पष्ट रूप में प्रदर्शित करते हैं, वे भी आंखों की उपयोगिता के सामने तुच्छ हैं।  वैज्ञानिकों का कहना है कि अथक प्रयासों के बावजूद विद्वान अब तक ऐसे कैमरे नहीं बना सके हैं जो रंगों को ठीक उसी प्रकार से प्रतिबिंबित करें जिस प्रकार से आंख करती है।  उनका कहना है कि मनुष्य की आंख, समस्त वस्तुओं को बहुत ही अच्छे और अद्वितीय ढंग से देखती है।  बाहर की दुनिया से संपर्क बनाने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम आंख है।  ईश्वर पवित्र क़ुरआन में आंखों की रौशनी के महत्व का उल्लेख करते हुए कहता है कि क्या हमने मनुष्य को आखें नहीं दीं? एक अन्य स्थान पर कहता है कि ईश्वर ने तुम्हें तुम्हारी माताओं के पेट से एसी स्थिति में पैदा किया कि जब तुम कुछ नहीं जानते थे और तुमको आंख, कान और बुद्धि दी ताकि तुम उसकी नेमतों का आभार व्यक्त कर सको।  वैज्ञानिकों का कहना है कि आंख की सात परतों में से हर एक परत, बहुत ही सूक्ष्म और ध्यान योग्य है।  उनके अनुसार संसार में बनाए गए अत्याधुनिक कैमरों में से कोई भी कैमरा, आंखों जैसी विशेषताओं का स्वामी नहीं है।

ऐसे लोगों ने जिन्होंने वास्तविकताओं की ओर से मुंह मोड़ लिया है और वे सृष्टि की वास्तविकताओं की अनदेखी करते हैं, वास्तव में अपनी आखों पर पर्दा डाल लिया है और वे सृष्टि को उस पर्दे के पीछे से देखते हैं।  कहते हैं कि यदि मनुष्य, ईश्वर की महानता को समझना चाहता है तो वह सृष्टि में भटकने के बजाए अपने शरीर में ईश्वर की ओर से दी गई आखों के बारे में भी सोच-विचार करे तो यही उसके लिए काफ़ी है।

 

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