Aug २७, २०१८ ११:३९ Asia/Kolkata

बहुत से विचारकों का यह मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति को अस्तित्व प्रदान करने में धर्म की सबसे बड़ी भूमिका है।

वे यह कहते हैं कि इस्लामी शिक्षाओं, जनता पर पूरे विश्वास और स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी जैसे महान व्यक्ति पर पूरी आस्था ने ईरान में राजशाही व्यवस्था को धराशाई कर दिया।  बाद में ईरान में इस्लाम के आधार पर लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का गठन किया गया।

इस्लामी शिक्षाओं के साथ ईरानी जनता का अटूट संबन्ध और धर्म के प्रति जनता की निष्ठा जैसी बातों ने एक जनसैलाब को स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के साथ कर दिया।  इसका मुख्य कारण यह है कि वे एक दूरदर्शी धर्मगुरू, पवित्र क़ुरआन के व्याख्याकार, जानेमाने दर्शनशास्त्री और आध्यात्म से सुसज्जित थे।

ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले जानकारों का यह कहना था कि क्रांतियां आने के कारकों में से एक आर्थिक समस्याएं और उनका जनता पर प्रभाव होता है।  विशेष बात यह है कि ईरान में इस्लामी क्रांति ऐसे लोग लेकर आए जो ख़ाली हाथ थे जबकि उनके मुक़ाबले में जो शासन था वह पूरी तरह से आधुनिक शस्त्रों से लैस था।  इन निहत्थे लोगों ने इस्लामी नारों के साथ एक नई सोच को पेश किया।  उन्होंने  बतया कि निहत्थे रहकर भी सम्मानीय ढंग से क्रांति लाई जा सकती है।

धर्मगुरूओं विशेषकर स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में ईरान में 1961 से लेकर 1978 के बीच जो क्रांतिकारी घटनाएं घटीं वे ही इस्लामी क्रांति की भूमिका थीं।  ईरान की जनता सन 1961 से धीरे-धीरे इमाम ख़ुमैनी के संधर्ष की शैली से अवगत हुई।  इमाम ख़ुमैनी ने ईरानी जनता के धर्म के प्रति लगाव को देखते हुए पहलवी तानाशाह के विरुद्ध आन्दोलन आरंभ किया।  धीरे-धीरे उनके इस आन्दोलन से क्रांतिकारी धर्मगुरू और उनके अनुयाई मिलते गए।  सन 1963 के "15 ख़ुरदाद" नामक आंदोलन ने ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता में बहुत ही निर्णायक भूमिका निभाई थी।

 

उस घुटन भरे माहौल में जनता का दमन करके ईरान में अमरीकी साम्राज्यवाद की जड़ों को सुदृढ़ किया जाता था।  उस काल में अनैतिकता, निरंकुशता, समाज में लोगों को बांटना, आर्थिक एवं समाजिक भेदभाव, इस्लाम विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता था।  इस प्रकार से शाह की सरकार की तानाशाही दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।  यही वे कारक थे जिन्होंने शाह की तानाशाही सरकार के विरुद्ध जनता को उठ खड़ा होने के लिए प्रेरित किया।  अलबत्ता इमाम ख़ुमैनी सदैव ही शाह की सरकार के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष के विरोधी थे।  समय गुज़रने के साथ ही लोग इमाम ख़ुमैनी के आन्दोलन से जुड़ने लगे और समाज के हर वर्ग के लोग इमाम के साथ हो गए।  इस प्रकार से शाह के विरोधियों की संख्या बढ़ती जा रही थी।

इमाम ख़ुमैनी ने अपने आन्दोलन का आरंभ पवित्र क़ुरआन के सूरे सबा की 46वीं आयत से किया जिसमे ईश्वर कहता है कि अनेकेश्वरवादियो से कह दो कि मैं तुमको केवल एक नसीहत देता हूं कि अल्लाह के लिए दो-दो और एक-एक करके उठ खड़े हो।

 

इस आयत की व्याख्या करते हुए इमाम ख़ुमैनी कहते हैं कि प्रतिरोध अल्लाह के लिए होना चाहिए जिसने हज़रत इब्राहीम को जन्नत में पहुंचाया।  उसने मूसा अलैहिस्सलाम को केवल एक असा के माध्यम से फ़िरऔन पर विजय दिलाई।  इस प्रकार से फ़िरऔन का तख़्त और ताज सबकुछ चला गया।  ईश्वर के लिए प्रतिरोध करने के कारण ही पैग़म्बरे इस्लाम (स) को अज्ञानता के काल की परंपराओं पर विजय मिली।

ईरान के तत्कालीन समाज में शाह के विरुद्ध घोर आपत्ति ने उसकी तानाशाही व्यवस्था के विरुद्ध जनता को इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में एकजुट कर दिया।  जनता के बीच इमाम ख़ुमैनी की गहरी पैठ के ही कारण वे एक आदर्श नेता के रूप में विश्व पटल पर उभरे।  उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति के दौरान एक अति दक्ष वास्तुकार की भांति ईरानी जनता की बहुत बड़ी सेवा की।  उन्होंने ख़तरनाक और जटिल परिस्थितियों में एक अच्छे नेता की भांति देश की जनता की सेवा की।  इमाम ख़ुमैनी ने अपना आन्दोलन सत्ता या ख्याति अर्जित करने के उद्देश्य से नहीं किया था बल्कि उन्होंने यह काम ईश्वर की प्रशंसा और उसकी निकटता के लिए किया।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई बताते हैं कि इमाम ख़ुमैनी को ईरानी जनता की कितनी पहचान थी।  वे कहते हैं कि उनको ईरानी जनता की बहुत ही गहरी पहचान थी।  उनको इस बात का विश्वास था कि यह ऐसा राष्ट्र है जो बहुत ही वीर, ईमानदार, दूरदर्शी और संघर्षकर्ता है।  अगर इसको उचित मार्गदर्शक मिल जाए तो यह राष्ट्र विभिन्न क्षेत्रों में सूरज की तरह चमक सकता है।

 

इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी को इराक़ और फ़्रांस दे निकाला दिया गया था।  उनपर सदैव नज़र रखी जाती थी।  ऐसे संवेदनशील हालात में भी इमाम ख़ुमैनी यथासंभव जनता का मार्गदर्शन किया करते थे।  क्रांति से पहले और बाद में विश्व के जिन नेताओं ने इमाम खुमैनी से भेंट की उनका मानना था कि वे एक पूर्ण मार्गदर्शक थे।  यही कारण है कि जनता भी उनको मन की गहराइयों से चाहती थी।  इमाम ख़ुमैनी ने अपनी जान हथेली पर रखकर पहलवी शासन का मुक़ाबला किया।

उधर शाह, जो जनता के बीच इमाम ख़ुमैनी के गहरे प्रभाव से बहुत ही भयभीत था, बिना सोचे-समझे बार-बार सरकारों को बदल दिया करता था।  उसने इस दौरान कई प्रधानमंत्री नियुक्त किये।  हर बार नया प्रधानमंत्री नियुक्त करने से शाह का उद्देश्य यह था कि शायद इस प्रकार से जनाक्रोश को रोका जा सके किंतु एसा नहीं हो सका।  उधर जनता की इस्लामी जानकारी और इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में उस की गहरी आस्था के कारण अंततः शाह को ईरान से भागने पर विवश होना पड़ा।  ईरान की जनता ने फ़रवरी 1979 में इमाम ख़ुमैनी की स्वदेश वापसी का बड़े जोश के साथ स्वागत किया।  बाद में देश में होने वाले जनमत संग्रह में ईरान की जनता ने इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के गठन के हित में 98 प्रतिशत मतदाना किया।  इस प्रकार जनता के भारी सहयोग और उनकी भागीदारी से ईरान में एक इस्लामी लोकतांत्रित व्यवस्था का गठन किया गया।

ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई का मानना है कि ईरान में इस्लामी क्रांति सैनिक विद्रोह से नहीं आई।  विश्व की अन्य क्रांतियों की भांति यहां पर ऐसा नहीं हुआ कि कुछ सैनिक विद्रोह करके एक सरकार को गिरा दें और बाद में उसके स्थान पर दूसरी सरकार बन जाए।  नहीं ऐसा नहीं हुआ बल्कि यह क्रांति, क्रांतिकारी जनता के माध्यम से आई है।  वे कहते हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति जनता के हाथो आई, जनता ने ही इसकी रक्षा करी और यह जनता के बीच खूब फूली-फली।  यह जनता थी जो निडर थी।  यह ईरान के महान लोग थे जिन्होंने कड़ा प्रतिरोध किया।  वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ईरान की जनता कड़ा प्रतिरोध करके पवित्र क़ुरआन के सूरे आले इमरान की 173वीं आयत का (उदाहरण) बन गई कि ये वही लोग है जिनसे लोगों ने कहा, "तुम्हारे विरुद्ध लोग इकट्ठा हो गए है, अतः उनसे डरो।" तो इस चीज़ ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया। और उन्होंने कहा, "हमारे लिए तो बस अल्लाह काफ़ी है और वही सबसे अच्छा कार्य साधक है।

हमको हमेशा धमकिया दी गईं, हमसे बारंबार यह कहा गया है तुमपर हमला किया जाएगा, हम पर प्रतिबंध लगाए गए।  हम न तो धमकियों से डरे और न ही प्रतिबंधों ने हमें निष्क्रिय बनाया।  हम अब भी निर्भीक होकर आगे की ओर बढ़ रहे हैं।  इसके बाद भी एसा ही होगा।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमारी जनता, समाज के विभिन्न वर्ग, हमारे युवा, हमारे धर्मगुरू, हमारे विशेषज्ञ, हमारे शोधकर्ता, हमारे अधिकारी, हमारे सांसद और हमारी सरकारें आदि सबको चाहिए कि वे क्रांतिकारी काम करें।  हम सब क्रांतिकारी रहें ताकि सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ सकें।

 

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