Sep २९, २०१८ १७:३९ Asia/Kolkata

हमने कहा था कि ईरान की इस्लामी क्रांति का एक लक्ष्य जीवन को पवित्र बनाना है।

यानी वह जीवन जिसमें महान ईश्वर के आदेशों के पालन को प्राथमिकता प्राप्त हो। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की दृष्टि में ईश्वरीय शासन को स्वीकार करना, पैग़म्बरे इस्लाम और आसमानी ग्रंथ कुरआन पर ईमान लाना, भले कार्य अंजाम देना और ईश्वर की सृष्टि में चिंतन- मनन करना आदि। ये सब वे चीज़ें हैं जिनका पवित्र जीवन में होना ज़रूरी है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई का मानना है कि इस्लामी क्रांति इन उच्च आकांक्षाओं को केवल ईरानियों के लिए नहीं चाहती है बल्कि वह समस्त इस्लामी देशों के मुसलमानों के लिए पवित्र जीवन की कामना करती है।

पवित्र जीवन के लिए बहुत बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है। क्योंकि इस्लामी देश अभी इस उच्च आकांक्षा से बहुत दूर हैं और सबसे पहले इस्लामी सभ्यता में परिवर्तन उत्पन्न होना चाहिये ताकि एक नई इस्लामी सभ्यता अस्तित्व में आ सके। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि इस नई इस्लामी सभ्यता को अस्तित्व में लाने का कार्य ईरानी राष्ट्र से आरंभ होना चाहिये और हम अभी इस कठिन मार्ग के आरंभ में हैं। वह कहते हैं" जब ईरानी राष्ट्र स्वयं को उस बिन्दु पर पहुंचा ले कि वह पूरी दुनिया में स्वयं का परिचय एक मुसलमान राष्ट्र के रूप में करा सके तो यह इस्लाम के लिए बहुत बड़ा प्रचार होगा। उस समय दूसरे राष्ट्र भी इस दिशा में कदम बढ़ायेंगे और महान इस्लामी राष्ट्र गठित होगा।"

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि अगर यह बात व्यवहारिक हो जाये और मुसलमान राष्ट्र विश्व वासियों के समक्ष एक नई इस्लामी सभ्यता पेश कर सकें तो उस वक्त यह गर्व करने वाली और कल्याणदायक सभ्यता पश्चिम की गुमराह करने वाली भौतिक सभ्यता पर हावी हो जायेगी और विश्ववासी भी इस उच्च सभ्यता को देखकर उसकी ओर आयेंगे। वरिष्ठ नेता स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि इस्लामी सभ्यता का अर्थ सीमा विस्तार नहीं है बल्कि उसका अर्थ राष्ट्रों का इस्लामी शिक्षाओं से प्रभावित होना और उसका स्वीकार करना है।"

वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैं कि यह महान आकांक्षा ऐसी चीज़ नहीं है जिसे एक- दो साल में प्राप्त किया जा सके बल्कि बड़ा उद्देश्य है जिस तक पहुंचने के लिए समय की आवश्यकता है। उनका मानना है कि ईरानी राष्ट्र को नई इस्लामी सभ्यता बनाने के लिए गम्भीर व प्रभावी प्रयास की ज़रूरत है।

एक समय था जब इस्लामी सभ्यता शिखर बिन्दु पर थी और दूसरे देशों को ज्ञान का प्रचार -प्रसार इस्लामी जगत से होता था। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस संबंध में कहते हैं" चौथी और पांचवीं शताब्दी में इस्लामी सभ्यता अपने शिखर पर थी जो शैक्षिक व वैज्ञानिक दृष्टि से सबसे आगे थी और इस्लामी दुनिया में बड़े- बड़े विद्वान, शोधकर्ता और दर्शनशास्त्री पैदा हुए और वे दुनिया को विकास की ओर ले गये और आज पश्चिम की बहुत सी प्रगतियां उन्हीं के प्रयासों की ऋणी हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस महान आकांक्षा को और बेहतर ढंग से बयान किया है। वरिष्ठ नेता की दृष्टि में नई इस्लामी सभ्यता बनाने के लिए दो चीज़ें ज़रूरी हैं एक संसाधन जैसे ज्ञान, आविष्कार, उद्योग, राजनीति, अर्थ व्यवस्था, राजनीतिक व सैनिक शक्ति, अंतरराष्ट्रीय महत्व और प्रचार। ये सब वे चीज़ें हैं जो नई इस्लामी सभ्यता के लिए ज़रूरी हैं और यह सब उपकरण की भांति काम करती हैं।

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की दृष्टि में नई इस्लामी सभ्यता बनाने के लिए दूसरी वे चीज़ें हैं जो इंसान की ज़िन्दगी को गठित करती हैं या जिनकी वजह से इंसान का जीवन गठित होता है। जैसे परिवार, विवाह करने का तरीक़ा, मकान का प्रकार, वस्त्र का प्रकार, उपभोग का आदर्श, खाने का प्रकार, खाना पकाने का प्रकार, मनोरंजन, लिखावट, ज़बान, कार्य,  सार्वजनिक एवं निजी स्थानों पर लोगों का व्यवहार आदि सभ्यता के असली भाग हैं जो इंसान की ज़िन्दगी है।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस संबंध में बल देकर कहते हैं” सभ्यता के इस भाग को साफ्ट वेयर का स्थान प्राप्त है जबकि सभ्यता के पहले भाग को हार्ड वेयर समझना चाहिये। अगर हम इस भाग में जो इंसान का जीवन है प्रगति न करें तो पहले भाग की समस्त प्रगतियां हमें सफल नहीं बना सकतीं, वे हमें शांति व सुरक्षा और मानसिक शांति प्रदान नहीं कर सकतीं। जैसा कि आप देख रहे हैं कि पश्चिमी दुनिया समस्त प्रगतियों के बावजूद शांति व सुरक्षा और मानसिक शांति नहीं प्रदान कर सकी है। पश्चिम में अवसाद है, निराशा है, अंदर से तितर- बितर है, परिवार और समाज में लोगों को सुरक्षा नहीं है, कोई उद्देश्य नहीं है, जबकि उनके पास सम्पत्ति है, परमाणु बम है, विभिन्न वैज्ञानिक प्रगति है, सैनिक शक्ति भी है। असल बात यह है कि हम जिन्दगी और सभ्यता के असली भाग का सुधार करें।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की दृष्टि में यूरोप के लोग मुसलमानों के ज्ञान से लाभ उठाकर एक भौतिकवादी सभ्यता की बुनियाद रख सके हैं। यूरोप ने 16वीं और 17वीं शताब्दी में एक नई भौतिकवादी सभ्यता की बुनियाद रखी। उन्होंने जो भौतिक प्रगति की थी उसके माध्यम से राष्ट्रों को अपने अधीन करने की दिशा में कदम बढ़ाया और राष्ट्रों की सम्पत्तियों को लूटना आरंभ किया। उन्होंने ज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में प्रगति करके और जिस अनुभव को उन्होंने संचित किया है और जिस साम्राज्य को अस्तित्व में लाये, इस सभ्यता को मानव समाज पर थोप दिया। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई का मानना है कि यह वह कार्य है जिसे यूरोपियों ने चार- पांच शताब्दियों तक अंजाम दिया। जो सभ्यता उन्होंने दुनिया के सामने पेश की, तकनीक की सुन्दरता, शीघ्र, सरल, और जीवन के संसाधनों को लोगों को दिया किन्तु लोगों को शांति नहीं दी, न्याय स्थापित नहीं किया बल्कि इसके विपरीत न्याय के खिलाफ काम किया, राष्ट्रों को गुलाम बनाया, राष्ट्रों को निर्धन बनाया, राष्ट्रों को तुच्छ किया और स्वयं अपने अंदर विरोधाभास का शिकार हुआ, पश्चिम नैतिक दृष्टि से खराब व भ्रष्ट हो गया, अध्यात्मिक दृष्टि से खोखला हो गया। आज स्वयं पश्चिमी इस बात की गवाही देते हैं। इस सभ्यता में विदित में चमक है परंतु उसका अंदर मानवता के लिए ख़तरनाक है।

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैं हमें मानवता के लिए नई इस्लामी सभ्यता के प्रयास में रहना चाहिये। यह सभ्यता बुनियादी अंतर रखती है उस चीज़ से जो मानवता के बारे में पश्चिमी शक्तियां सोचती एवं अमल करती हैं। नई इस्लामी सभ्यता का अर्थ ज़मीनों व क्षेत्रों पर कब्ज़ा करना नहीं है, इसका अर्थ दूसरे राष्ट्रों के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं है, इसका अर्थ दूसरे राष्ट्रों पर अपनी नैतिकता व संस्कृति थोपना नहीं है। इसका अर्थ ईश्वरीय उपहार को राष्ट्रों के सामने पेश करना है ताकि राष्ट्र पूरी आज़ादी और अपनी मरज़ी से सही रास्ते का चयन करें। वह रास्ता ग़लत और गुमराही है जिसकी ओर विश्व शक्तियां राष्ट्रों को खींच कर लायी हैं।“

 

विश्व साम्राज्य नई इस्लामी सभ्यता के अस्तिव में आने से बहुत भयभीत है और पूरी क्षमता के साथ उसके मुकाबले में खड़ा है। पश्चिम ने पिछली एक दो शताब्दी से अपना हित इसमें देखा कि मुसलमानों में फूट डाल दे क्योंकि पश्चिम केवल इस मार्ग से इन देशों की सम्पत्तियों की लूट सकता और उन्हें विकास करने से रोक सकता था। जैसाकि हमने देखा कि जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प सऊदी अरब की यात्रा पर गए थे तो अरबों डालर के हथियारों का समझौता हुआ और मध्यपूर्व में मतभेद की नई लहर दौड़ गयी और दूसरी ओर आतंकवादी गुटों ने अपनी क्षमता व शक्ति में वृद्धि कर ली जबकि ईरान की इस्लामी क्रांति जब से आई और सफल हुई है तब से उसने समस्त देशों विशेषकर इस्लामी देशों के साथ एकता और मित्रता को अपना एक लक्ष्य बनाया है और वह इन देशों का आह्वान करती है कि वे दुश्मनों के षडयंत्रों के मुकाबले में डट जायें। बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि कुछ इस्लामी देश विशेषकर सऊदी अरब दाइश जैसे आतंकवादी गुटों को बनाकर इस्लामी देशों पर हमले कर रहा है और प्रतिदिन मुसलमानों को नये आघात पहुंचा रहा है और इस्लाम की छवि को बिगाड़ कर पेश कर रहा है। दूसरे शब्दों में सऊदी अरब इस्लाम की वह छवि पेश कर रहा है जो इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं के खिलाफ है जबकि इस्लाम का आधार प्रेम, दया और कृपा है और उसमें किसी पर अत्यार करने, किसी पीड़ित व अत्याचारग्रस्त का सिर कलम करने का कोई स्थान नहीं है।

 

ईरान की इस्लामी क्रांति, दुश्मनों और वर्चस्ववादियों के समस्त षडयंत्रों के बावजूद अपने सिद्धातों पर डटी हुई है और उसने ईरान के बाहर दूसरे राष्ट्रों के लाखों लोगों के दिलों को अपनी ओर आकृष्ट किया है और यह विशेषता अपने आपमें नई ज्योति है। ईरान की इस्लामी क्रांति अपने सही अर्थों में आगे की ओर बढ़ने वाली रचनात्मक प्रक्रिया है और वह अपने कार्यों को सदैव इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार बनाने का प्रयास कर रही है ताकि मानवता को मुक्ति दिलाने वाले महामुक्तिदाता हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने की उचित भूमिका बन सके। इस आधार पर ईरान की इस्लामी क्रांति इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार की दिशा में एक कदम है।

इस्लामी देशों के नेताओं के मध्य काफी मतभेद होने के बावजूद वहां रहने वाले नई इस्लामी सभ्यता बनाने और महामुक्तिदाता के प्रकट होने की दिशा में कदम बढ़ा और प्रयास कर सकते हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस उद्देश्य की प्राप्ति को दूर नहीं देख रहे हैं और वे फरमाते हैं” आज इस्लाम की बारी है। पवित्र कुरआन के सूरे आले इमरान की आयत नंबर 140 में महान ईश्वर कहता है” ये वे दिन हैं जिन्हें हम लोगों के मध्य डालते- रहते हैं” आज मुसलमानों की बारी है कि वे नई इस्लामी सभ्यता के गठन की दिशा में प्रयास करें जिस तरह उस दिन यूरोप ने मुसलमानों के ज्ञान से लाभ उठाया, मुसलमानों के अनुभवों से लाभ उठाया, मुसलमानों के दर्शनशास्त्र से लाभ उठाया हम भी आज दुनिया के ज्ञान से लाभ उठा रहे हैं दुनिया में मौजूद संभावनाओं से लाभ उठा रहे हैं नई इस्लामी सभ्यता के गठन के लिए किन्तु इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार। यह आज हम सबका दायित्व है।

 

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