अल्लाह के ख़ास बंदे- 49
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के सुपुत्र थे।
सन 128 हिजरी शमसी की बात है। छठे इमाम, जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम हज करने के लिए गए थे। आपके साथ आपके कई साथी भी थे। हज़ की इस पवित्र यात्रा में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की धर्मपत्नी "हमीदा" ख़ातून भी आपके साथ थीं। जब हज का आयोजन समाप्त हुआ तो लोग अपने-अपने देशों की ओर जाने लगे। इमाम जाफ़र अलैहिस्सलाम का कारवां भी हज से वापस मदीने की ओर जा रहा था। मदीने के निकट "अबवा" नामक गांव में उनका कारवां आराम के लिए ठहरा हुआ था। इसी बीच हमीदा ख़ातून की ओर से इमाम के पास संदेश भिजवाया गया। इमात संदेश पाते ही तुरंत उनके ख़ेमे में गए। थोड़ी सी देर के बाद वे मुस्कुराते हुए अपने साथियों के बीच वापस लौटे। इमाम के साथियों ने उनसे कहा कि क्या कोई ख़ुशख़बरी है? उनके जवाब में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि ईश्वर ने आज मुझको एसे बेटे को उपहार स्वरूप प्रदान किया है जो अपने समय का सबसे अच्छा व्यक्ति और भविष्य का मार्गदर्शक होगा।
हमीदा ख़ातून छठे इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की पत्नी मां थीं। वे नैतिक गुणों से सुसज्जित थीं। उनकी पवित्रता और विशेषताओं का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा था कि हमीदा, शुद्ध सोने की भांति हैं। उन्होंने कहा कि यह हमपर और मेरे बाद के इमामों पर ईश्वर की अनुकंपा है कि उसने इस प्रकार की पवित्र महिला को हमारे घर भेजा। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के घर में रहकर हमीदा ख़ातून के व्यक्तित्व में अधिक निखार आया। उनके ज्ञान का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा था कि महीलाएं, उनसे ज्ञान की बातें पूछ सकती हैं।
इस प्रकार से इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम, महान पिता के साथ ही महान माता रखते थे। उनका लालन-पालन एसी ही महान महिला के निरीक्षण में हुआ था। यही कारण है कि उनके भीतर बचपने से ही कुशाग्रता, दूरदर्शिता और अन्य योग्यताएं दिखाई देने लगी थीं। इससे पता चलता था कि उनका भविष्य कैसा होगा। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ज्ञानी परिवार के सदस्य थे और उसी के उत्तराधिकारी भी। अपने पिता इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत तक इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अपने पिता से उच्च ज्ञान अर्जित किया था। इस प्रकार से उन्हें समाज मे विशेष स्थान प्राप्त था। अपने काल के सभी ज्ञानों से वे अवगत थे। उन्होंने अपने पिता की शिक्षाओं को आगे बढ़ाने में अथक प्रयास किये।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम, ज्ञान की दृष्टि से तो अपने काल में सर्वश्रेष्ठ थे ही साथ ही नैतिक विशेषताओं के कारण भी लोगों में बहुत लोकप्रिय थे। उस काल के जितने भी विद्वान इमाम के ज्ञान से अवगत थे वे सब उनका बहुत सम्मान किया करते थे। सुन्नी मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू "इब्ने हजर अस्क़लानी" और "शेख सुलैमान क़ंदूज़ी" लिखते हैं कि मूसा काज़िम, अपने पिता के ज्ञान के स्वामी थे। उनका कहना है कि ज्ञान के साथ ही वे बहुत सी नैतिक विशेषताओं के भी मालिक थे। वे दूसरों की ग़लतियों को माफ़ कर दिया करते थे। वे बहुत ही धैर्यवान थे। यही कारण है कि उनको "काज़िम" की उपाधि से सम्मानित किया गया था। काज़िम का अर्थ होता है क्रोध को पी जाने वाला।
विशेष बात यह है कि जिस प्रकार से इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के काल के विद्धान उनके ज्ञान के कारण और आम लोग उनकी विशेषताओं के साथ दिल से उनका सम्मान किया करते थे ठीक उसी के विपरीत तत्कालीन अब्बासी शासक, इमाम की लोकप्रियता से भयभीत रहते थे। जनता के बीच इमाम के प्रभाव को वे कदापि पसंद नहीं करते थे। वे लोग इमाम को अपने लिए ख़तरा समझते थे। यही कारण है कि अब्बासी शासक सदैव इमाम को अपने रास्ते से हटाने के प्रयास में लगे रहते थे।
मंसूर अब्बासी, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की उपलब्धियों से बहुत क्रोधित था। उसने विष देकर इमाम बाक़िर को शहीद करवाया था। बाद में उसने अपने जासूसों को इस बात के लिए लगा दिया था कि वे इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी अर्थात इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को ढूंढकर उनकी हत्या कर दें। इस प्रकार उसका सोचना था कि मूसा काज़िम की हत्या करने के बाद इमामत के क्रम को समाप्त कर दिया जाएगा। इसी उद्देश्य से उसने अपने एक गवर्नर "मुहम्मद बिन सुलैमान" को पत्र भेजकर आदेश दिया था कि वे इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के घर में जाएं और उन्होंने जिसे भी अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया हो उसकी वहीं पर हत्या कर दे। मदीने का गवर्नर इस पत्र के मिलते ही छठे इमाम के घर की ओर रवाना हुआ। वहां पहुंचकर उसने इमाम जाफ़र सादिक़ का वसीयतनामा उठाया ताकि उसमें जिसका भी नाम लिखा हो उसकी वह हत्या कर दे। मंसूर अब्बासी के गवर्नर ने जब यह चाहा कि वह उस व्यक्ति की हत्या करे जिसका नाम उत्तराधिकारी के रूप में लिखा है तो देखा कि वहां पर 5 लोगों के नाम लिखे हुए हैं। यह देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उत्तराधिकारियों के नामों में सबसे पहले तत्कालीन शासक मंसूर दवानेक़ी, मदीने के गवर्नर मुहम्मद बिन सलमान, इमाम मूसा काज़िम के बड़े भाई अब्दुल्लाह बिन जाफ़र बिन मुहम्मद, इमाम की धर्मपत्नी हमीदा और इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के नाम थे।
इस वसीयतनामे को देखकर मदीने के गवर्नर मुहम्मद बिन सलमान अचंभे में पड़ गया। उसने पूरी बात शासक मंसूर को बताते हुए पूछा कि इनमें से किसकी हत्या की जाए। इस संदेश को सुनकर मंसूर को बहुत ग़ुस्सा आया। उसने ग़ुस्से में कहा कि इन सबको तो मारा नहीं जा सकता। इस प्रकार से मंसूर की योजना विफल हो गई। हालांकि उसकी योजना विफल हो गई किंतु वह सातवें इमाम के विरुद्ध षडयंत्रों को जारी रखे हुए था।
हालांकि इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम ने अपनी दूरदर्शिता से इमाम मूसा काज़िम के विरुद्ध बहुत बड़े षडयंत्र को विफल बना दिया था किंतु मंसूर इसको अपनी बहुत बड़ी पराजय मान रहा था। अब उसका केवल यही प्रयास रह गया था कि किसी भी स्थिति में जाफ़र सादिक़ के उत्तराधिकारी का पता लगाकर उसकी हत्या कर दी जाए। यही कारण था कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम इस बात को सार्वजनिक करने से बच रहे थे कि वे ही इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के वैध उत्तराधिकारी हैं। उन्होंने अपने नज़दीक के लोगों से कह रखा था कि वे भी इसी शैली को अपनाएं। वास्तव में यह एक राजनैतिक रणनीति थी जिसके माध्यम से इमाम को अधिक से अधिक काम करने का मौक़ा मिला था। उस समय उनकी यही रणनीति थी जिसे वे अपनाए हुए थे।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के एक बहुत निकटवर्ती साथी थे "हेशाम बिन सालिम"। वे कहते हैं कि इमाम सादिक़ की शहादत के बाद उनके सबसे बड़े बेटे "अब्दुल्लाह" ने इमाम होने का दावा किया। कुछ लोग उनके साथ हो गए। एक बार मैं अपने एक साथी के साथ अब्दुल्लाह के पास गया। हमने यह परखने के लिए कि क्या अब्दुल्लाह इमाम है या नहीं उनसे कुछ प्रश्न किये। उन्होंने हमें जो जवाब दिये उनमें से कुछ तो ग़लत थे और कुछ अन्य संतुष्ट करने वाले नहीं थे। उनके जवाबों से हम जहां असंतुष्ट थे वहीं पर यह जानने के लिए भी बहुत व्याकुल थे कि इमाम का सही उत्तराधिकारी कौन है। हम इसी सोच में जा रहे थे कि एक बूढ़े व्यक्ति ने हमे सलाह दी कि हम मूसा काज़िम के पास जाकर उनसे अपने सवाले पूछें। सवालों के बीच हमने उनसे यह भी पूछा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के बाद अब हमारा इमाम कौन है। हमारी इस बात पर मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर ईश्वर चाहेगा तो तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा। हेशाम कहते हैं कि हमने उनसे कुछ और सवाल किये और फिर यह पूछा कि इमाम सादिक़ का उत्तराधिकारी कौन है। मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने फिर वही उत्तर दिया कि अगर ईश्वर चाहेगा तो तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा।
हेशाम कहते हैं कि मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की बातों से हमें एसा लगा कि तत्कालीन संवेदनशील राजनीतिक स्थिति के दृष्टिगत वे यह उचित नहीं समझ रहे थे कि स्पष्ट रूप में बताया जाए कि इस समय इमाम कौन है। यही कारण था कि हमने अपनी शैली को बदलते हुए पूछा कि क्या आप हमारे इमाम हैं? मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरा कोई इमाम नहीं है। हेशाम ने कहा कि उनके इस जवाब से हम समझ गए कि इस समय हमारा इमाम कौन है। इस प्रकार हमारे लिए एक बहुत बड़े संकट का समाधान हुआ और हमें बड़ी शांति मिली। यह जानकरी की हमारा वर्तमान इमाम कौन है हमें बहुत खुशी हुई। बाद में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने हमसे कहा कि यह बात आम न करो क्योंकि अभी ख़तरा मौजूद है।
हेशाम कहते हैं कि मैने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से कहा कि आपके बहुत से मानने वालों को यह मालूम नहीं है कि इस समय उनका इमाम कौन है। क्या आप हमें अनुमति देते हैं कि हम दूसरों को बताएं की वर्तमान समय का इमाम कौन है। इमाम मूसा काज़िम ने कहा कि अभी ख़तरा टला नहीं है। एसे में केवल उन लोगों को बताओं जो बहुत अधिक विश्वसनीय हैं। उनको भी इस शर्त पर बताओ कि वे यह बात दूसरों से न कहें।
हेशाम का कहना है कि वास्तव में इमाम सही शैली अपनाए हुए थे। इसका कारण यह था कि मंसूर के जासूस हर स्थान पर यह पता लगाने के लिए मौजूद थे कि इस समय इमाम जाफ़र सादिक़ का वैध प्रतिनिधि कौन है। उनकी कोशिश थी कि उसे गिरफ़्तार करके उसकी हत्या कर दी जाए। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अपने पूर्वजों के ज्ञान और उनकी शिक्षाओं को दूसरों तक पहुंचाने के लिए लोगों के प्रशिक्षण और उन्हें पढ़ाने का काम किया।
सातवीं हिजरी शमसी शताब्दी के जानेमाने विद्वान "सैयद बिन तावूस" लिखते हैं कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की सेवा में बनी हाशिम और अन्य आम लोग उपस्थित होकर ज्ञान अर्जित किया करते थे। वे इमाम से तरह-तरह से प्रश्न करते और उनके सही जवाब पाते थे। इमाम मूसा काज़िम अन्य विचारधारों के विद्वानों से शास्त्रार्थ भी करते और उन्हे सच्चाई बताते थे। उनके काल के बहुत से विद्वानों ने इमाम से ज्ञान अर्जित किया। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अपने पिता इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के ज्ञान संबन्धी प्रयासों को आगे बढ़ाने में बहुत परिश्रम किया। भारत के एक इतिहासकार सैयद अमीर अली इस बारे में लिखते हैं कि सन 148 हिजरी कम़री में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को मदीने में शहीद कर दिया गया जो बहुत ही दुख की बात है किंतु एक अच्छी बात यह है कि उनकी शहादत से उनकी विचारधारा का अंत नहीं हुआ बल्कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अपने अथक प्रयासों से इमाम सादिक़ की विचारधारा को सुरक्षित रखते हुए उसको आगे बढ़ाया।