अल्लाह के ख़ास बन्दे- 51
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम और इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के दौर की एक गंभीर चुनौती यह थी कि अब्बासी शासन श्रंख्ला के शासक ख़ुद को पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा का संबंधी बताते थे और इसे हथकंडे के रूप में इस्तेमाल करते हुए ख़ुद को ख़िलाफ़त का वारिस कहते थे। हालांकि ख़िलाफ़त का विरासत से कोई संबंध नहीं है क्योंकि ख़िलाफ़त ईश्वरीय आदेश है और 12 इमाम ही ख़िलाफ़त के योग्य हैं।
ये इमाम ग़दीर में घटी ऐतिहासिक घटना के दिन ईश्वर के आदेश से पैग़म्बरे इस्लाम के ज़रिए इस पद पर नियुक्त हुए। ये इमाम उच्च नैतिक व मानवीय मूल्यों के प्रतीक और हर प्रकार की बुराइयों से दूरे थे। इन इमामों की बढ़ती लोकप्रियता की बुनियाद भी यही विशेषताएं थीं लेकिन अब्बासी शासक हारून और अन्य अब्बासी शासकों को इस विषय से तकलीफ़ होती थी।
एक दिन हारून ने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को काबे के निकट देखा तो कहाः "क्या आप ही वह हैं जिनसे लोग हमारे कारिंदों की आंखों से बच कर गुप्त रूप से वफ़ादारी का प्रण लेते और आपको इमामत व जनता के मार्गदर्शन के लिए चुनते हैं।?" इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः इसका कारण यह है कि हम लोगों के दिलों पर हुकूमत करते और तुम उनके शरीर पर और तुम्हारा आम लोगों के मन में कोई स्थान नहीं है।
हारून ने जो इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के सटीक तर्क के सामने बेबस हो गया था, आम लोगों को धोखा देने के लिए ख़ुद को पैग़म्बरे इस्लाम का संबंधी दर्शाने का हथकंडा अपनाया। इसी लक्ष्य के लिए एक दिन वह मदीना पहुंचा और वह क़ुरैश सहित दूसरे क़बीलों के लोगों के बीच पैग़म्बरे इस्लाम के रौज़े में गया और उसने पैग़म्बरे इस्लाम की क़ब्र की ओर मुंह करके कहाः "हे ईश्वरीय दूत! आप पर ईश्वर की कृपा हो। हे चाचा के बेटे! आप पर ईश्वर की कृपा हो।" इस बीच इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने जो लोगों के बीच मौजूद थे, हारून की बातों पर ध्यान दिए बिना, आसमान की ओर देखते हुए कहाः "आप पर ईश्वर की कृपा हो पैग़म्बरे इस्लाम! आप पर ईश्वर की कृपा हो हे पिता!" हारून जिसे इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं थी, इस बार क्रोधित हो गया और उसने आपत्ति स्वरूप कहाः "आप किस तरह यह दावा करते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम की संतान हैं हालांकि आप हज़रत अली की संतान हैं क्योंकि हर शख़्स का कुल उसके दादा से चलता है न कि नाना से?"
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने तुरंत सूरए अनआम की आयत नंबर 84 और 85 की तिलावत की जिसमें ईश्वर कह रहा हैः "हमने इब्राहीम को इस्हाक़ और याक़ूब दिए, हर एक को मार्ग दिखाया, और नूह को हमने इससे पहले मार्ग दिखाया था और उनकी संतान में दाऊद, सुलैमान, अय्यूब, यूसुफ़, कूसा और हारून को भी और इस तरह हम शुभ कर्म करने वालों को बदला देते हैं। ज़करिया, यहया, ईसा और इल्यास को भी मार्ग दिखाया। इनमें से हर एक नेक व योग्य था।" उसके बाद इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः इस आयत में हज़रत ईसा को पैग़म्बरों की संतान में गिनवाया गया है हालांकि उनके पिता नहीं थे बल्कि वह सिर्फ़ अपनी मां की संतान थे लेकिन उन्हें पैग़म्बरों के वंश से बताया गया है। इसलिए इस आयत की बुनियाद पर बेटी की संतान भी संतान समझी जाती है और हम भी हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के ज़रिए से पैग़म्बरे इस्लाम की संतान समझे जाते हैं। हारून जो हर तरह से ख़ुद को बेबस देख रहा था, ख़ामोश हो गया लेकिन एक और मौक़े पर उसने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से सवाल किया कि आपको पैग़म्बरे इस्लाम की संतान क्यों कहते हैं? इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि अगर पैग़म्बरे इस्लाम ज़िन्दा हो जाएं और तुमसे तुम्हारी बेटी का हाथ मांगें तो क्या तुम अपनी बेटी की शादी पैग़म्बरे इस्लाम से करोगे? हारून ने जिसे लग रहा था कि अपनी बातों के बचाव के लिए अच्छा मौक़ा हाथ लगा है, जवाब दियाः "न सिर्फ़ यह कि ऐसा करुंगा बल्कि इस बात पर अरब और ग़ैर अरब के बीच गर्व करूंगा।" इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने हारून की बातों के विपरीत कहाः "पैग़म्बर न तो हमारी बेटी का हाथ मांगेंगे और न ही मैं अपनी बेटी से उनका विवाह करुंगा।" हारून ने बड़ी हैरत से पूछाः "क्यों?" इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "क्योंकि मैं पैग़म्बरे इस्लाम की नस्ल से हूं और इस तरह की शादी वर्जित है जबकि तुम पैग़म्बरे इस्लाम की नस्ल से नहीं हो।" हारून ने जो एक बार फिर लाजवाब हो गया था, इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की बात की पुष्टि की लेकिन वह मन ही मन में तिलमिला रहा था और हमेशा इस चक्कर में रहता था कि किस तरह इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से बदला ले।
हारून इस कोशिश में था कि अपनी निरंतर हार की खीज को उन बिके हुए शायरों व लेखकों को क़ीमती इनामों के ज़रिए दूर करे जो उसकी तारीफ़ में अतिशयोक्ति से काम लेते थे। इस तरह के शायरों व लेखकों में मानो होड़ लगी हो। वे कभी कभी हारून की तारीफ़ में इतना आगे बढ़ जाते थे कि उसे ईश्वरीय दूतों के व्यक्तित्व का स्वामी कहते थे। एक शायर ऐसा भी था जिसने हारून को पैग़म्बरे इस्लाम के बाद एक और पैग़म्बर कहा और हारून ने जो इस तारीफ़ से बहुत ख़ुश हो गया था, उस शायर को विशेष इनाम दिया।
इस्लाम को हमेशा एक चीज़ से ख़तरा रहा है और वह है पाखंड। पाखंड अर्थात लोगों में ख़ास तौर पर वे लोग जिनके हाथ में सत्ता हो और वे धर्मपरायणता का दिखावा करते हैं लेकिन व्यवहार में इस्लामी, मानवीय व नैतिक मूल्यों का अनुसरण नहीं करते। ऐसे लोग इस्लामी जगत के दुश्मनों से हाथ मिलाते और अपनी सत्ता को मज़बूत करने के लिए किसी भी अपराध से संकोच नहीं करते। इसी तरह के लोगों में अब्बासी शासक और ख़ास तौर पर हारून रशीद था। उसके पूरे वजूद में पाखंड भरा हुआ था। हारून रशीद एक ओर इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की गतिविधियों की अपने किराए के टट्टुओं के ज़रिए निगरानी करवाता तो दूसरी ओर इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शख़्सियत को ख़राब करने के लिए ऐसा व्यवहार करता था कि लोग उसे पैग़म्बरे इस्लाम के ख़ानदान का समर्थक समझें। अर्थात विदित रूप से पैग़म्बरे इस्लाम का संबंधी होने का दावा करता और कभी कभी इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का सम्मान भी करता था लेकिन हक़ीक़त में ऐसा न था।
हारून रशीद के धूर्त्तापूर्ण क़दमों में एक यह भी है कि एक बार जब वह हज करने गया तो हज के बाद मदीने गया और पैग़म्बरे इस्लाम के रौज़े में पहुंचा। उसने रौज़े में पहुंच कर पैग़म्बरे इस्लाम की क़ब्र को संबोधित करते हुए कहाः "हे ईश्वरीय दूतः मैं आपके बेटे मूसा बिन जाफ़र की गिरफ़्तारी के संबंध में आपसे माफ़ी चाहता हूं। क्योंकि वह इस्लामी जगत की एकता को फूट में बदलना चाहते हैं जिससे उनके बीच रक्तपात होगा।"
जैसा कि हमने इससे पहले कहा, हारून की इस बात से पूरी तरह पाखंड झलकता है क्योंकि वह इस्लामी जगत के बीच एकता, सुरक्षा व शांति के समर्थक, ईश्वर की ओर से चुने गए इमाम, नैतिक व ईश्वरीय मूल्यों व अच्छाइयों के प्रतीक को अशांति, फूट व रक्तपात का समर्थक दर्शाना चाहता था। यही वजह है कि पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाया करते थेः "मुझे इस्लामी जगत के भविष्य के संबंध में मोमिनों और नास्तिकों की ओर से चिंता नहीं है क्योंकि ईश्वर मोमिन बंदे की उसकी आस्था की वजह से रक्षा करेगा और नास्तिक व अनेकेश्वरवादी को उसके अनेकेश्वरवाद की वजह से अपमानित करेगा लेकिन तुम्हारे बारे में पाखंडियों से डरता हूं जिनका ज़ाहिरी रूप तो अच्छा है लेकिन मन में पाखंड है। वे अपनी ज़बान से ऐसी बातें कहते हैं जिन्हें तुम पसंद करते हो लेकिन ऐसा कर्म करते हैं जिसे तुम नापसंद करते हो।"
जी हां इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को अगर नास्तिकों व अनेकेश्वरवादियों का सामना होता तो उनके ख़िलाफ़ संघर्ष आसान था क्योंकि उनका चेहरा मोमिन बंदों के सामने स्पष्ट था लेकिन हारून रशीद जैसे पाखंडी शासक का मुक़ाबला कठिन काम था। क्योंकि वह धर्म का पाखंड कर आम लोगों को धोखा देने में सफल हो गया था। उसने अब्बासियों की नस्ल को पैग़म्बरे इस्लाम के चचा से संबंधी बता कर कुछ सम्मान हासिल कर लिया था। इन सब बातों के बावजूद, इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम अब्बासी शासन का मुक़ाबला करने के लिए हर अवसर का अब्बासी शासन की अस्लियत को ज़ाहिर करने के लिए उपयोग करते।
सातवें इमाम इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने हारून के दरबार में पैठ बनाने और जनकोष से वंचितों व पीड़ितों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए अपने एक अनुयायी की जिनका नाम अली बिन यक़्तीन था, प्रशासनिक व्यवस्था में नियुक्ति का समर्थन किया इस शर्त के साथ कि वह ज़रूरतमंदों की मुश्किलों को हल करने के लिए क़दम उठाएं और ज़रूरतमंदों के साथ सम्मान से पेश आएं। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अली बिन यक़्तीन को संबोधित करते हुए फ़रमाया थाः "जान लो कि जो व्यक्ति किसी इंसान को ख़ुश करता है, सबसे पहले ईश्वर उससे राज़ी होता है, उसके बाद पैग़्बरे इस्लाम ख़ुश होते और अंततः हम पवित्र परिजन ख़ुश होते हैं।" इसके बावजूद अली बिन यक़्तीन हारून के दरबार में काम करने की वजह से चिंतित रहते थे और एक बार वह इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की सेवा में हाज़िर हुए और उनसे निवेदन किया कि वे उनके इस्तीफ़ा देने के फ़ैसले पर राज़ी हो जाएं। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अली बिन यक़्तीन के इस्तीफ़ा देने के इरादे का विरोध करते हुए फ़रमायाः "महान ईश्वर अत्याचारी शासन में अपने ऐसे दोस्त रखता है जिनके ज़रिए वह अपने दोस्तों की मदद करता है और तुम उन्हीं में से हो।"
इतिहास में है कि सफ़वान जम्माल नामक एक व्यक्ति की हारून के दरबार में पैठ थी और वह इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से भी श्रद्धा रखता था। उसने हज के अवसर पर अपने ऊंट हारून रशीद को किराए पर दे रखे थे। जब इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को यह बात पता चली तो आपने सफ़वान को बुलवाया और उसके इस क़दम को ग़लत कहा। उसने इमाम की सेवा में कहाः "हे पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र! मैंने किसी ग़लत काम के लिए अपने ऊंट हारून को किराए पर नहीं दिए हैं।" इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "क्या तुम यह चाहते हो कि हारून हज के सफ़र से वापस लौटे और ऊंट का किराया तुम्हें अदा करे।" सफ़वान ने जवाब में कहाः हां मैं ऐसा चाहता हूं। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "जब तक हारून अब्बासी हज से नहीं लौटता, उस वक़्त तक उसके अधीन क्षेत्रों में जितने भी ज़ुल्म होंगे उसमें तुम भी भागीदार होगे।" यह सुन कर सफ़वान हारून के पास गया और उसने जो समझौता किया था उसे निरस्त किया।