Oct १६, २०१८ १५:५९ Asia/Kolkata

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन में राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियां अंजाम देने के अलावा बहुत से शिष्यों का भी प्रशिक्षण किया।

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने धर्मशास्त्र, पवित्र कुरआन की व्याख्या और शास्त्रार्थ आदि के क्षेत्र में जिन शिष्यों का प्रशिक्षण किया उनमें से किसी एक की तुलना दूसरों से नहीं की जा सकती और व्यवहार, शिष्टाचार और मुसलमानों की सेवा करने में अपना उदाहरण वे स्वयं थे और उनका नाम सबकी ज़बान पर था। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने जिन शिष्यों का प्रशिक्षण किया था उनकी आध्यात्मिक महानता इस प्रकार की थी कि उसने विरोधियों विशेषकर अब्बासी शासकों को हतप्रभ कर रखा था। अब्बासी शासक इस बात से चिंतित थे कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के शिष्यों ने लोगों के मध्य जो स्थान प्राप्त कर लिया है उसके सहारे वे आंदोलन न कर बैठें और लोग भी उनका अनुसरण करना छोड़ दें क्योंकि लोग अब्बासी शासकों के अत्याचारों से थक गये हैं। चर्चा को लंबी होने से बचने के लिए हम संक्षेप में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के कुछ शिष्यों की जीवनी पर प्रकाश डाल रहे हैं।

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने जिन शिष्यों का प्रशिक्षण किया उनमें से एक इब्ने अबी उमैर हैं। उन्होंने सातवें, आठवें और नवें इमाम का ज़माना देखा है और उनकी गणना अपने समय के प्रख्यात विद्वानों में होती है और वे शीया एवं सुन्नी धर्मगुरूओं के विश्वासपात्र थे। इब्ने बत्ता कुम्मी जैसे हदीस बयान करने वाले कुछ विद्वानों ने इब्ने अबी उमैर की रचनाओं की संख्या 94 बताई है और बड़े खेद की बात है कि उनमें से बहुत सी किताबों को उनके जीवनकाल में ही और इमाम रज़ा अलैहिस्लाम की शहादत के बाद नष्ट कर दिया गया। इब्ने अबी उमैर को जो कुछ याद था उसके सहारे उन्होंने चालिस किताबें लिखीं और उन सबका नाम अन्नवादिर रखा। उनकी किताबों में से अब कुछ का केवल नाम ही बाकी है जैसे अलमग़ाज़ी, अलकुफ्र वल ईमान, अलबेदाअ, अलएहतेजाज फिल इमामत, अलमलाहम, अन्नवादिर, यौम व लैलह, अत्तौहिद और धर्मशास्त्र की कुछ किताबें।

जाहिज़ एक सुन्नी विद्वान हैं। वह इब्ने अबी उमैर के बारे में लिखते हैं" इब्ने अबी उमैर अपने काल में हर चीज़ में अनोखे व अद्वितीय थे। अब्बासी सरकार के किसी जासूस ने सूचना दे दी कि इब्ने अबी उमैर आम शीयों का नाम जानते हैं। इस बात की जानकारी मिलने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और शीयों का नाम बताने के लिए उनसे कहा गया पर उन्होंने शीयों का नाम नहीं बताया और पूरी कड़ाई से प्रतिरोध किया। जब उन्होंने शीयों का नाम नहीं बताया तो उन्हें निर्वस्त्र करके खजूर के दो पेड़ों के बीच में टांग दिया गया और उन्हें 100 कोड़े मारा गया और उनका माल भी छीन लिया गया परंतु उन्होंने न तो शीयों का नाम बताया और न ही अब्बासी शासकों के अत्याचार बयान करने से पीछे हटे। शैख मुफीद के अनुसार जब हर प्रकार का अत्याचार करके थक गये और कोई परिणाम नहीं निकला तो उन्हें जेल में डाल दिया और 17 वर्षों तक वे जेल में रहे।

 

इब्ने अबी उमैर का जो राजनीतिक और शैक्षिक स्थान था उसके अलावा वह मानवीय गुणों व शिष्टाचार से सुसज्जित थे। एक व्यक्ति उनका ऋणी था और उनका ऋण चुकाने के लिए उसने अपना घर 10 हज़ार दिरहम में बेच दिया। जब वह पैसा लेकर इब्ने अबी उमैर के पास गया तो इब्ने अबी उमैर ने उससे पूछा कि तुम यह पैसा कहां से लाये? कोई खज़ाना मिल गया है या तुम्हें विरासत में मिला है? तो उस व्यक्ति ने कहा ऋण चुकाने के लिए मैंने अपना घर बेच दिया है। इस पर इब्ने अबी उमैर ने कहा कि इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्लाम ने फरमाया है कि रहने वाला मकान ऋण से अपवाद है इसी कारण तुम जो पैसा लाये हो मैं उसे स्वीकार नहीं करता यद्यपि मुझे पैसे की ज़रूरत है।

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने जिन शिष्यों का प्रशिक्षण किया था उनमें से एक सफवान बिन मेहरान थे। वह नैतिक व मानवीय गुणों से सुसज्जित थे। वह विद्वानों के विश्वासपात्र थे। विद्वान उनके द्वारा बयान की गयी हदीसों और रवायतों को प्रमाण के रूप में पेश करते थे। वह नैतिक व मानवीय गुणों से इस प्रकार सुसज्जित थे कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम उनकी सराहना करते थे। एक बड़े विद्वान शैख तूसी उनके बारे में लिखते हैं” सफवान बिन मेहरान हदीस बयान करने वाले विद्वानों के मध्य अपने समय के सबसे अधिक विश्वास पात्र और सदाचारी व्यक्ति थे।

सफवान बिन मेहरान ने आठवें इमाम का काल भी देखा था और उनके निकट भी उनका उच्च स्थान था। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम सफवान बिन मेहरान की प्रशंसा करते हुए कहते हैं” मैं सफवान बिन मेहरान से प्रसन्न हूं और ईश्वर भी उनसे प्रसन्न रहे। उन्होंने कभी भी मेरे और मेरे पिता के आदेशों की खिलाफवर्ज़ी नहीं की बल्कि उनके अनुपालन में सदैव नतमस्तक की भावना रखते थे। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने सफवान बिन मेहरान की स्थिति के दृष्टिगत फरमाया था कि मुसलमान व्यक्ति के धर्म के लिए सत्तामोह से अधिक कोई चीज़ ख़तरनाक नहीं है। सत्ता मोह का खतरा मुसलमान के धर्म के लिए उससे भी अधिक है कि चरवाहे के बिना गल्ले पर दो भेड़िया टूट पड़ें परंतु सफवान में सत्तामोह नहीं था।

 

जिन शिष्यों का प्रशिक्षण इमाम जाफर सादिक और इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने किया था उनमें से एक मोहम्मद बिन अली बिन नोअमान थे और उनकी उपाधि मोमिने ताक़ थी। वह कूफा के बाज़ार में काम करते थे। जिस जगह पर वह काम करते थे उसका नाम ताक़ुल महामिल था और इसी वजह से उनकी उपाधि मोमिने ताक़ पड़ गयी थी। छठें और सातवें इमाम के निकट उनका विशेष स्थान था और दोनों इमाम उनकी याद अपने साथियों व अनुयाइयों में करते थे। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम कम योग्यता होने के कारण अपने कुछ शिष्यों को इल्मे कलाम अर्थात वादशास्त्र की बहसों में भाग लेने से मना करते थे पंरतु उन्होंने अली बिन नोअमान के बारे में फरमाया था कि साहिबे ताक़ अर्थात ताक़ वाला विरोधियों के साथ बहस करता है पंरतु शिकारी बाज़ की भांति अपने शिकार के पास आता है और उस पर हावी हो जाता है।

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के एक शिष्य का नाम हेशाम बिन हकम था। चौथी हिजरी कमरी के प्रसिद्ध किताब विशेषज्ञ इब्ने नदीम लिखते हैं” हेशाम प्रसिद्ध शीया मुतकल्लिम अर्थात आस्था के बारे में बहस करने वाले थे। वह विशेषकर इमामत की बहस करने में बहुत दक्ष थे। वह उन लोगों में से थे जो वादशास्त्र में असाधारण क्षमता व योग्यता के स्वामी थे और बहुत ही हाज़िर जवाब थे यानी तुरंत जवाब देते थे।

हेशाम बिन हकम ने बहुत किताबें लिखी हैं और विभिन्न धर्मों के विद्वानों से ध्यान योग्य शास्त्रार्थ किया है और उनमें से हम यहां एक का उल्लेख कर रहे हैं। हेशाम बिन हकम एक जवान थे। एक दिन इमाम जाफर सादिक़ ने उनसे कहा कि तुम अम्र बिन अमीद अब्द अत्मीमी बसरी से बसरा की मस्जिद में जो शास्त्रार्थ किये थे उसे बयान करो। इस पर हेशाम ने कहा मुझे लज्जा आती है कि आपकी उपस्थिति में बात करने के लिए ज़बान खोलूं। इमाम ने फरमाया जब मैं तुम्हें आदेश देता हूं तो उसे अंजाम दो। इस पर हेशाम ने इमाम के आदेश का पालन करते हुए कहा मैंने सुन रखा था कि अम्र बिन अमीद बसरा की मस्जिद में बैठता है और लोगों के सामने इमामत जैसी चीज़ की आवश्यकता का इंकार करता है। मैं लोगों की भीड़ को चीरते हुए उसके निकट बैठ गया और कहा हे विद्वान मैं अनजबी हूं। क्या अनुमति है कि मैं आपसे सवाल करूं? उसने कहा कि बच्चे क्या सवाल है? मैंने कहा क्या आपके पास आंख है? वह नाराज़ हो गया और कहा यह कौन सा सवाल है? मैंने कहा मेरे सवाल इसी सतह के होंगे उसने कहा अच्छा पूछ। यद्यपि तेरे सवाल मूर्खतापूर्ण हैं। मैंने दोबारा उससे पूछा क्या तुम्हारे पास आंख है? उसने जवाब दिया हां। मैंने पूछा उससे क्या देखते हो? उसने कहा रंगों और रूपों को देखता हूं। मैंने पूछा क्या तुम्हारे पास नाक है उसने कहा हां। मैंने पूछा उससे क्या करते हो? उसने कहा महक का आभास करता हूं। मैंने उससे पूछा तुम्हारे पास मुंह है? उसने कहा हां। मैंने पूछा उससे क्या करते हो?कहा कि खाना खाता हूं। अंत में मैंने उससे पूछा क्या तुम्हारे पास दिमाग़ और सोच विचार का केन्द्र है और तुम उससे क्या करते हो? इस पर उसने कहा मैं जितना काम करता हूं सबका संचालन दिमाग़ करता है सबका आदेश दिमाग़ देता है और जब किसी काम में संदेह होता है तो दिमाग़ का सहारा लेता हूं ताकि संदेह खत्म हो और विश्वास हासिल हो जाये। तो मैंने कहा कि ईश्वर ने दिमाग़ को पैदा किया है ताकि शरीर के अंगों के जिन कार्यों में संदेह हो जाये दिमाग़ उस संदेह को दूर करे और उसकी ज़रूरत है। इस पर उसने कहा हां एसा ही है जैसा तुम कह रहे हो। हेशाम ने कहा ईश्वर ने तुम्हारे शरीर के अंगों को इमाम और उस केन्द्र के बिना नहीं छोड़ा है जो सही और गलत का पता बताये तो क्या वह समस्त इंसानों को संदेह व असमंजस की स्थिति में और इमाम व मार्गदर्शक के बिना छोड़ देगा? इस पर अम्र बिन अमीद चुप हो गया और उसने मुझसे पूछा कहां के रहने वाले हो? मैंने कहा कूफा का। इस पर उसने कहा कि तू हेशाम है वह मुझे अपने पास ले गया और अपने स्थान पर बिठाया और उसके बाद कुछ नहीं बोला। थोड़ी देर के बाद मैं उठा और वहां से चला आया। इस पर इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम मुस्कराये और फरमाया यह तर्क तुम्हें किसने सिखाया? हेशाम ने कहा कि हे पैग़म्बरे इस्लाम के बेटे नहीं जानता कि क्या कहूं? इमाम ने फरमाया हे हेशाम ईश्वर की सौगन्ध यह तर्क इब्राहीम और मूसा के सहीफों में अर्थात पुस्तिका में लिखा है।

अंत में हम इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधियों के निचोड़ के रूप में कह सकते हैं कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने बहुत ही दूरदर्शिता से काम लेकर और कार्यक्रम बनाकर अब्बासी शासकों के अत्याचारों से पर्दा हटाया और लोगों को वास्तविकता से परिचित कराया। अब्बासी शासक हारून रशीद इस चीज़ से बहुत चिंतित था और खतरे का आभास करता था। इसी कारण उसने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को गिरफ्तार करके जेल में बंद करने का आदेश दिया। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने बसरा और कूफा के कारवास के कर्मियों को प्रभावित कर दिया और उन्हें अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। इससे हारून रशीद की चिंता और बढ़ गयी। परिणाम स्वरूप हारून रशीद ने इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को बगदाद की जेलों की एक काल कोठरी में स्थानांतरित करने का आदेश और अपने एक अत्यंत क्रूर व्यक्ति को आदेश दिया कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के साथ कड़ा से कड़ा बर्ताव करे ताकि उनके अंदर प्रतिरोध की जो भावना है वह समाप्त हो जाये। जब उसे पता चला कि धैर्य एवं प्रतिरोध की इस प्रतिमूर्ति को सत्य से लेशमात्र भी विचलित नहीं किया जा सकता तो उसने इमाम को विष देने का आदेश दिया। इस प्रकार 25 रजब सन 182 हिजरी कमरी को इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम शहीद हो गये और एक बार फिर इस्लामी जगत शोकाकुल हो गया।

 

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