अपनी देखभाल- 3
हमने अपनी इस चर्चा में बताया कि अपनी देखभाल की प्रक्रिया के तहत लोग जानकारी के साथ लक्ष्यपूर्ण काम करते हैं ताकि अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के साथ साथ सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें भी पूरी करते रहें।
हमने अपने बारे में जानकारी के महत्व का उल्लेख करते हुए यह भी बताया कि किसी भी इंसान का अपने अस्तित्व की ओर उन्मुख रहना कितना महत्वपूर्ण है। कारण यह है कि किसी भी इंसान के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की इस बात पर निर्भरता होती है कि वह अपने बारे में क्या महसूस करता है।
यदि इंसान अपने आप से अवगत होता है ख़ुद को पहचानता है अपनी क्षमताओं और संभावनाओं के बारे में जागरुक है तो वह ऐसे लक्ष्यों को चुनता है जिन्हें वह अपनी इन क्षमताओं की मदद से हासिल कर सकता हो और ऐसा व्यक्ति काफ़ी संतुष्ट दिखाई पड़ता है। यदि हम अपनी क्षमताओ, कमियों और कमज़ोरियों से अवगत हैं तो यह भी तथ्य है कि हम अपना ज़्यादा बेहतर ढंग से ख़याल रख सकते हैं। आप जानते हैं कि कुछ लोग एसे भी होते हैं जिन्हें अपनी क्षमताओं और कमज़ोरियों की जानकारी नहीं होती अतः जब वह कोई लक्ष्य निर्धारित करते हैं या कोई योजना बनाते हैं तो अपनी वास्तविक क्षमताओं के अनुकूल नहीं बनाते बल्कि वह ऐसा लक्ष्य निर्धारित करते हैं जो उन्हें पसंद होता है यह समझे बग़ैर कि लक्ष्य प्राप्त करने की उनके पास क्षमता नहीं है। वह अपने आइडियल और आदर्श को अपनी दृश्टि में रख लेते हैं लेकिन क्षमताओं के अंतर के कारण वह कभी भी अपने इस लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते। जबकि जिन लोगों को अपनी क्षमता का ज्ञान होता है वह उसी के आधार पर योजना बनाते है या अगर उनके पास क्षमता की कमी होती है तो अपनी क्षमता बढ़ाने का प्रयास करते हैं उसके बाद लक्ष्य हासिल करने की प्रक्रिया शुरू करते हैं। ऐसे इंसान अपने आदर्श लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं। यही नहीं वह दूसरों के लिए भी आदर्श बन जाते हैं।
कुछ विशेषताएं एसी होती हैं जो इंसान को सही आत्मावलोकन तथा अपनी क्षमताओं और अपने आप के सही ज्ञान से रोकती हैं। अर्थात यह विशेषताएं एक प्रकार से इंसान के मार्ग में पर्दे और रुकावट का काम करती हैं। ऐसी ही एक विशेषता घमंड है। घमंड को कुछ लोग सकारात्मक विशेषता मान बैठते हैं जबकि यह पूरी तरह नकारात्मक विशेषता है। यह बिंदु भी महत्वपूर्ण है कि घमंड और आत्म विश्वास में अंतर है। दोनों में गडमड नहीं करना चाहिए। आत्म विश्वास वह आभास है जो अपनी क्षमताओं और योग्यताओं के सही आवलोकन व मूल्यांकन के आधार पर किसी भी ईरान के भीतर उत्पन्न होता है। जबकि घमंड वह आभास है जो पूरी तरह काल्पनिक होता हैं यह आभास इंसान को अपनी नज़र में बहुत बड़ा ज़ाहिर करता है जबकि वास्तव में इंसान उतनी ऊंचाई पर नहीं होता। इस तरह यह आभास इंसान की आंख पर पर्दा डाल देता है और वह सही आत्मावलोकन भी नहीं कर पाता।

हमें यदि अपनी सही पहचान हासिल करनी है तो ज़रूरी है कि हम अपनी क्षमताओं और कमियों के बारे में यथार्थवादी सोच करें। अमरीका के प्लास्टिक सर्जरी के विशेषज्ञ डाक्टर मैक्सवेल माल्ट्ज़ इस बारे में कहते हैं कि बहुत बार ऐसा हुआ कि मैने अपने रोगी का बिलकुल सफल आप्रेशन किया और प्लास्टिक सर्जरी पूरी तरह कामयाब रही मगर वह संतुष्ट नहीं थे अपनी नज़र में सुदंर नहीं हुए अतः उन्होंने इसके बाद फिर प्लास्टिक सर्जरी करवा डाली। मैंने उन्हें सर्जरी से पहले की उनकी तसवीर भी दिखाई और संतुष्ट करना चाहा कि आप्रशेन पूरी तरह सफल रहा है लेकिन वह फिर भी संतुष्ट नहीं हुए। इसके बाद डाक्टर मैक्सवेल ने परिकल्पना के बारे में किबात लिखी। इस किताब में उन्होंने बताया कि हर इंसान के ज़ेहन में अपनी ज़ाहिरी रूप की एक तसवीर होती है। जब तक वह काल्पनिक तस्वीर उनके मन में नहीं बदलती वह उस समय तक किसी भी तरह की प्लास्टिक सर्जरी से संतुष्ट नहीं होते।
आत्म ज्ञान हासिल करने के हमने जो तरीक़े बताए उनके साथ ही कुछ और भी उपाय हैं जो इस संदर्भ में इंसान की मदद कर सकते हैं और इंसान उन उपायों की मदद से आत्मज्ञान हासिल कर सकता है। सबसे पहला उपाय यह है कि इंसान पहले आपने आप को स्वीकार करे। तात्पर्य यह है कि इंसान पहले अपने आप को अपनी सभी अच्छी और बुरी आदतों के साथ स्वीकार करे और अपने आप से प्रेम करे। इसके लिए ज़रूरी है कि पहले आप यह मानें कि आप से भी कभी कभी ग़लतियां होती हैं, कभी वह अपना काम करने में सफल नहीं हो पाता, कभी आप वह नहीं बन पाते जिससे ख़ुद आप और दूसरे संतुष्ट हों। आप हर व्यक्ति को खुश भी नहीं कर सकते और हर इंसान की इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते। अतः यदि इस प्रकार की कोई स्थिति पैदा हो तो ग्लानि का आभास करने के बजाए आप यह सोचें कि आप भी आम इंसान हैं। आप अपने अस्तित्व से हद से ज़्यादा अपेक्षा न कीजिए।

कुछ मनोविशेषज्ञ इस विषय के उचित ज्ञान के लिए बड़े रोचक बिंदु बयान करते हैं। उनका कहना है कि एक वक्ता ने एक सभा में भाषण देते हुए जेब से सौ डालर का नोट निकाला और सवाल किया कि कौन चाहता है कि यह नोट उसे मिले? जितने लोग उपस्थित थे सबने हाथ उठा दिया। वक्ता ने कहा कि बहुत अच्छी बात है मैं यह नोट आप में से एक व्यक्ति को दे दूंगा लेकिन इससे पहले एक काम करना चाहता हूं। उसने यह कहकर नोट को मसल दिया और फिर सवाल किया कि यह नोट कौन लेना चाहता है? सबने फिर हाथ उठा दिया। अब उस व्यक्ति ने वह नोट ज़मीन पर डालकर पैर से खूब मसल दिया और फिर वह नोट हाथ में उठाकर सवाल किया कि यह नोट कौन लेना चाहता है? फिर सबने हाथ उठा दिए। वक्ता ने कहा कि मेरे साथियो मैंने इस नोट का दुर्गत कर दी लेकिन चूंकि नोट फटा नहीं है अतः इसके मूल्य में कोई कमी नहीं आई है और आप सब चाहते हैं कि यह नोट आपको मिल जाए।
जीवन में वास्तविक आत्म ज्ञान ऐसा ही होता है। बहुत से मामलों में जब हम फ़ैसला करते हैं या समस्याओं से रूबरू होते हैं तो हम झुक जाते हैं, कुचल दिए जाते हैं, मिट्टी में गिर जाते हैं। हमें लगता है कि अब हमारी कोई क़ीमत नहीं रह गई लेकिन एसा नहीं है जो भी संकट भी आए हमारा मूल्य उससे समाप्त नहीं होता बल्कि हम आज भी बहुत से लोगों के लिए मूल्यवान हैं। हमें यह भी समझना चाहिए कि घटनाओ और परिवर्तनों के चलते मुसीबतों के चलते यदि हम अपनी ज़ाहिरी चमक खो बैठे हैं तो कोई बात नहीं है। हमारा वास्तविक महत्व हमारे ज़ाहिरी रूप के कारण नहीं है बल्कि हमारा मूल्य तो हमारे अस्तित्व की वजह से है। हमें उन बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए और वह बिंदु अपने भीतर पैदा करना चाहिए जो हमारा महत्व बढ़ सकते हैं। विदित रूप पर बहुत अधिक ध्यान केन्द्रित करना समय नष्ट करने के समान है। इंसान का महत्व और उसकी क़ीमत उसका विदित रूप नहीं बल्कि उसकी आत्मा में मौजूद विशेषताएं हैं।
यह एक बड़ी समस्या है कि बहुत से लोग अपने ज़ाहिरी रूप को बहुत अधिक महत्व देते हैं जबकि अपने वास्तविक महत्व की ओर से निष्चेत रहते हैं। इस प्रकार के लोग अपना पूरा समय अपने ज़ाहिर को ठीक करने में नष्ट कर देते हैं। उन्हें हमेशा इस बात की फ़िक्र लगी रहती है कि दूसरे लोग उन्हें देख रहे हैं या नहीं अगर देख रहे हैं तो उनकी नज़रे मेरे बारे में क्या है। एसे इंसान को अगर कहीं से भनक भी लग जाए कि दूसरे लोग मेरे बारे में अच्छा नहीं सोचते तो उसका आत्म विश्वास पूरी तरह समाप्त हो जाता है और वह बड़ी विचित्र स्थिति में फंस जाता है। ऐसा व्यक्ति अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों की नज़र में अच्छ दिखाई देने के लिए बहुत कुछ क़ुरबान करने पर तैयार हो जाता है और यह स्थिति कारण बनती है कि वह ग़लतियों पर ग़लतियां करे।
यहीं से पता चलता है कि इंसान का अपने अस्तित्व के बारे में जानकारी रखना और अपने बारे में सही मूल्यांकन कितना महत्वपूर्ण है। जिसके पास भी इसका अभाव होता है वह कभी भी चैन से नहीं रह पाता बल्कि हमेशा दुविधा में पड़ा रहता है। यह स्थिति कभी कभी इतनी बिगड़ जाती है और विक्राल रूप धारण कर लेती है कि इंसान गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है।