अपनी देखभाल- 10
हमने आपको बताया कि अपनी देखभाल कामों के उस समूह को कहते हैं जो व्यक्ति अपने, अपने परिवार और अन्य लोगों के लिए करता है ताकि उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करे।
प्रकृति, मनुष्य के लिए एक स्नेही मां की तरह है और इंसान उसकी बांहों में शांति प्राप्त करता है। जब इंसान ईश्वर की सुंदर प्रकृति में डूब जाता है तो उसके शरीर में ख़ुशी के हारमोन सेरोटोनिन का स्राव होने लगता है। जब इस हारमोन का स्राव होता है तो मनुष्य अपने आपको हलका व ख़ुश महसूस करता है। प्रकृति भ्रमण, चाहे वह जंगल में जाना हो, किसी पर्वत पर चढ़ना हो या फिर मरुस्थल में जाना हो, मुनष्य के मन व शरीर को असाधारण शांति प्रदान करता है। अगर प्रकृति के मौन में हम पक्षियों, हवा या फिर कीड़े-मकोड़ों की आवाज़ सुनें तो हम आश्चर्यजनक ढंग से अपने मन व हृदय में उत्पन्न होने वाली शांति को महसूस करेंगे।
मनुष्यों की आत्मा व मानस की शांति में प्रकृति का अत्यंत अहम भाग है। क़ुरआने मजीद प्रकृति की ओर संकेत करते हुए पेड़-पौधों को प्रसन्नता प्रदान करने वाला बताता है। इस्लामी शिक्षाओं और हदीसों में आत्मा व मानस के स्वास्थ्य के लिए प्रकृति में उपस्थिति और उससे लाभान्वित होने पर बल दिया गया है। आज चिकित्सक भी कैंसर, मधुमेह, मोटापे, उच्च रक्तचाप और अवसाद जैसे ख़तरनाक रोगों में परिस्थितियों को सहन करने के लिए रोगियों को प्रकृति में जाने की सलाह देते हैं।
प्रकृति में पैदल चलने, खेलने और व्यायाम करने जैसी गतिविधियों के, शरीर के स्वास्थ्य पर जो सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं वे तो अपने स्थान पर हैं ही, यह अवसाद, तनाव और नकारात्मक विचारों से मुक़ाबला करने में अपनी देखभाल आप का बेजोड़ रास्ता भी है। मिशिगन विश्वविद्यालय में परिवार चिकित्सा की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर सारा वारबर कहती हैं कि प्रकृति भ्रमण विशेष कर सामूहिक रूप से प्रकृति भ्रमण ध्यान योग्य ढंग से अवसाद व तनाव में कमी और मानसिक स्वास्थ्य का कारण बनता है। उनका कहना है कि हमारे अनुसंधान के अनुसार जो लोग हाल ही में एक गंभीर बीमारी, किसी निकट परिजन की मौत, तलाक़ या बेरोज़गारी जैसी दुखद व तनावयुक्त घटनाओं में ग्रस्त हुए थे, पर्यटन भ्रमण के कारण उनके भीतर काफ़ी सकारात्मक बदलाव आए।
एक गुलदस्ता हमेशा हर किसी की मनोदशा को बेहतर बना सकता है लेकिन नरगिस के फूलों का प्रभाव अधिक होता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की हदीस है कि नरगिस के फूल को साल में कम से कम एक बार ज़रूर सूंघो क्योंकि मनुष्य के मन में एक स्थिति है जिसे सिर्फ़ नरगिस का फूल ही दूर कर सकता है। नरगिस के फूल, अवसाद के उपचार में अहम सिद्ध हो सकते हैं। वैज्ञानिकों की खोज से पता चला है कि नरगिस के फूलों में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो मस्तिष्क की रक्षा दीवार को पार कर सकते हैं।
यह रक्षा दीवार, अवसाद के उपचार में चिकित्सकों के सामने एक बहुत बड़ी रुकावट है। यह दीवार विशेष बारीक रगों से बनी होती है जो अन्य बारीक रगों के साधारण ढांचे के विपरीत होती हैं। कोशिकाओं के बीच इनका संपर्क अत्यंत मज़बूत होता है और इसके परिणाम स्वरूप अणु और बेकटेरिया इनसे गुज़रने और मस्तिष्क के केंद्रीय भाग तक नहीं पहुंच पाते। कोपनहेग विश्वविद्यालय में यह अनुसंधान करने वाले डाक्टर बीगर ब्रोडिन इस बारे में कहते हैं कि नरगिस के फूलों में मौजूद तत्व इस दीवार से गुज़र कर अवसाद की बीमारी के उपचार में मदद कर सकते हैं।

आज बड़े शहरों में जनसंख्या बढ़ने के कारण अन्य रोगों से अधिक मानसिक रोगों में बढ़ोतरी हुई है। बहुत से लोग मानसिक स्वास्थ्य पर शहरों की भीड़ और शोर के नकारात्मक प्रभावों से तो अवगत हैं लेकिन वे इस बात की ओर से निश्चेत हैं कि उनके स्वास्थ्य पर प्रकृति के कितने सकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। दो अलग अलग गुटों पर किए गए अध्ययन के रोचक परिणाम सामने आए हैं। इनमें से एक गुट को डेढ़ घंटे तक प्रकृति में रखा गया जबकि दूसरे गुट को नागरिक माहौल में रखा गया। प्रकृति में रखे गए लोगों पर किए गए शोध के परिणामों के अनुसार उन्होंने अपने व्यक्तित्व के नकारात्मक आयामों पर कम ही ध्यान केंद्रित किया बल्कि उनके भीतर कुछ मानसिक बीमारियों के संबंध में सकारात्मक परिवर्तन पैदा हुए।
एक अन्य रोचक बिंदु यह है कि तनाव पैदा करने वाली एक घटना के बाद केवल प्रकृति के दृश्य देखने से ही नागरिक चित्रों को तुलना में स्नायु तंत्र का क्रियाकलाप बेहतर सिद्ध हुआ। जब इस अनुसंधान में भाग लेने वाले थके हुए थे तो उन्हें विभिन्न प्राकृतिक क्षेत्रों के दृश्य दिखाए गए और इसके बाद उन लोगों की गहन समीक्षा की गई। जिन लोगों ने पेड़ों, झीलों व पर्वतों के चित्र देखे थे उनका ध्यान, नागरिक चित्र देखने वालों की तुलना में अधिक केंद्रित रहा। इसी तरह इस अनुसंधान में भाग लेने वाले सभी लोगों को डरावनी फ़िल्म दिखाई गई और इसके बाद एक गुट को प्रकृति के चित्र दिखाए गए जबकि दूसरे को शहरों के चित्र दिखाए गए। इसके बाद उनकी मानसिक स्थिति की समीक्षा की गई। इस समीक्षा के परिणामों से पता चला कि पहले गुट का शिष्टाचार बेहतर था। इस आधार पर प्रकृति भ्रमण, मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा और उसे बेहतर बनाने में आश्चर्यजनक प्रभाव रखता है।

इस्लाम ने भी अवसाद और तनाव से मुक्ति के कई मार्ग बताए हैं। उदाहरण स्वरूप जो मानसिक बीमारियां पाप के परिणाम में अस्तित्व में आती हैं उनका उपचार, वह पाप छोड़ना और तौबा करना है। इसी तरह जिन लोगों की बीमारियों का कारण वातावरण का प्रदूषण इत्यादि है, उन लोगों को वह स्थान छोड़ कर कहीं अन्य जा कर बसने की सिफ़ारिश की गई है। यह बड़ी स्पष्ट बात है कि शहरों में पाया जाने वाला प्रदूष मनुष्य के शरीर के साथ ही उसके मानस पर भी प्रभाव डालता है। हम सभी जानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग, शहरों में रहने वालों की तुलना में इन रोगों में कम ग्रस्त होते हैं।
चिकित्सकों के साथ ही स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी मानसिक बीमारियों विशेष कर अवसाद से मुक़ाबले के मार्ग सुझाए हैं। उदाहरण स्वरूप उनका कहना है कि हर दिन पंद्रह से तीस मिनट तक व्यायाम करने से बड़ी हद तक मानसिक रोगों से छुटकारा मिल सकता है। इसी तरह उनका कहना है खाने-पीने का ध्यान रखने से भी इंसान के शिष्टाचार, आदतों और भावनाओं में परिवर्तन आता है। अगर नियमित रूप से फल और सब्ज़ियां खाई जाएं तो मानसिक तनाव को कम करने में मदद मिलती है।
इसके अलावा उनका यह भी कहना है कि मनुष्य को अपनी उन समस्याओं को सही ढंग से पहचानना चाहिए जिनके चलते वह अवसाद या तनाव में ग्रस्त होता है। अगर वह उन समस्याओं को सही ढंग से पहचान लेगा तो फिर उसके लिए उन्हें समाप्त करना भी सरल होगा लेकिन अगर वह अवसाद का कारण बनने वाली अपनी समस्याओं को ही नहीं समझ पाएगा तो उनका उपचार कैसे करेगा? मनोचिकित्सकों का कहना है जो लोग मानसिक रोगों में ग्रस्त होते हैं उनमें से अधिकतर नकारात्मक सोच वाले होते हैं। अगर हम अपने आस-पास के लोगों और चीज़ों के बारे में सकारात्मक सोच रखेंगें तो फिर अवसाद या तनाव में ग्रस्त होने की संभावना बहुत कम होगी। (HN)