Jan २९, २०१९ १७:०५ Asia/Kolkata

हमने जामेआ के नाम से मशहूरू ज़ियारत के बारे में चर्चा की थी जिसमें यह बताया गया है कि इमामों का कितना महान स्थान है।

यह ज़ियारत वास्तव में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम से मिलने वाला एक अनमोल ख़ज़ाना है जो अब तक सुरक्षित है। इससे यह भी पता चलता है कि जिन हस्तियों को ईश्वर ने अपना विशेष दूत और इमाम बनाया है तथा उन्हें समाज के मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी सौंपी है किसी भी काल में किसी भी व्यक्ति की किसी भी आयाम से उनसे तुलना नहीं की जा सकती। मगर यह बड़ी दुखद बात है कि इतनी महान हस्तियों को समाज का नेतृत्व करने से रोका गया और कुछ शासकों ने भौतिक स्वार्थों और लालच के चलते ख़िलाफ़त शासन अपने क़ब्ज़े में कर लिया इस तरह इन शासकों ने इमामों को नहीं बल्कि मानव जाति को नुक़सान पहुंचाया क्योंकि सत्ता हथियाने के चक्कर में उन्होंने इमामों के अस्तित्व की बरकतों से समाज को वंचित कर दिया।

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इमामत शुरू होने से पहले दो अब्बासी शासकों मामून और उसके भाई मोअतसिम का ज़माना गुज़रा अतः वह दोनों शासकों की शैतानी राजनीति से पूरी तरह अवगत थे। मगर जब इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इमामत का दौर शुरू हुआ तो उसके बाद उन्हें बड़ी भयानक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस दौर में चार अब्बासी ख़लीफ़ा गुज़रे और वह अपनी अत्याचारी सरकार की नींव मज़बूत रखने के लिए कोई भी अत्याचार करने से हिचकचाते नहीं थे। इन अब्बासी शासकों में मुतवक्किल को पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से सबसे अधिक दुशमनी थी। उसकी यह नफ़रत उस समय खुलकर सामने आई जब उसने 236 हिजरी क़मरी में आदेश दिया कि हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रौज़े को ढा दिया जाए तथा उस स्थान पर खेती की जाए ताकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के श्रद्धालु उनकी क़ब्र की ज़ियारत न कर पाएं। मगर इतिहास बताता है कि भारी ख़तरों के बावजूद लोग अपनी जान की क़ुरबानी देकर भी इमाम हुसैन की क़ब्र की ज़ियारत करने जाते थे।

मुतवक्किल को धीरे धीरे यह पता चल चुका था कि उसकी कोई भी चाल सफल नहीं हो पायी और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से लोगों की श्रद्धा और प्रेम में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आई है। उसने एक दिन अपने एक दरबार से कहा कि क्या वजह है कि हम कुछ भी करें मगर लोग हमसे प्रेम नहीं करते। हम कोशिश करते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की मुहब्बत लोगों के दिलों से निकल जाए मगर वह बढ़ती ही जाती है? दरबारी ने डरते हुए जवाब दिया कि कारण यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन लोगों के दिलों पर राज करते हैं और आप का राज केवल शरीर पर है। कुरआन ने इस तथ्य को बड़ी सुंदरता से बयान करते हुए कहा है कि निश्चित रूप से जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए ईश्वर दिलों में उनका प्रेम और उनकी श्रद्धा डाल देता है।

 

मुतवक्किल को अच्छी तरह आभास हो चुका था कि उसने लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से दूर करने के लिए जितनी भी चालें चलीं कोई भी कामयाब नहीं हुई और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की मुहब्बत लोगों के दिलों में बढ़ती ही जा रही है अतः जिस तरह मामून ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को मदीना से जबरन मर्व बुला लिया था और मोअतसिम ने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को बग़दाद बुला लिया था मुतवक्किल ने भी इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम सामर्रा बुला लिया। मगर वह इस सच्चाई को भूल गया कि जिस प्रकार उसके पूर्वज अपनी इन चालों से ईश्वरीय युक्तियों को नाकाम नहीं बना सके थे वह भी अपनी चाल में सफल नहीं होगा। यही हुआ कि उसने जब इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को सामर्रा बुला लिया तो उनके श्रद्धालुओं की संख्या और तेज़ी से बढ़ी। इतिहास में मौजूद साक्ष्यों से पता चलता है कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के चाहने वाले मुतवक्किल के दरबार के भीतर तक पहुंच गए थे। सरकार में शामिल बहुत से लोग इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम से गहरी श्रद्धा रखते थे। इनमें एक इब्ने सिक्कीत थे जो उस समय के बहुत बड़े शायर और साहित्यकार थे। इब्ने सिक्कीत मुतवक्किल के बेटों के शिक्षक भी थे।

एक दिन मुतवक्किल ने अपने दोनों बेटों मोअतज़्ज़ और मुअय्यद की ओर संकेत करते हुए इब्ने सिक्कीत से पूछ लिया कि तुम्हारे निकट यह दोनों ज़्यादा प्रिय हैं और हसन और हुसैन? इब्ने सिक्कीत ने देखा कि इस सवाल के बाद वह अपनी पवित्र भावना और श्रद्धा को छिपा नही सकते अतः उन्होंने यह जानते हुए भी कि उन्हें सच बोलने की कठोर सज़ा मिल सकती है निडर होकर कहा कि हज़रत अली के गुलाम क़ंबर भी मेरे निकट तुमसे और तुम्हारें दोनों बेटों से ज़्यादा प्रिय हैं। मुतवक्किल को इतने ठोस और मुंहतोड़ जवाब की अपेक्षा नहीं थी। वह गुस्से से तिलमिला उठा। उसने आदेश दिया कि इब्ने सिक्कीत की ज़बान मुंह से खींच ली जाए। इस तरह इस महान विद्वान की 58 साल की उम्र में शहादत हो गई।

मुतवक्किल इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की लोकप्रियता तथा लोगों में उनकी श्रद्धा देखकर हमेंशा परेशान और चिंतित रहता था। वह इस कोशिश में था कि किसी तरह इमाम को नीचा दिखाने का कोई मौक़ा हाथ आ जाए। सुन्नी समुदाय के महान धर्मगुरु इब्ने जौज़ी लिखते हैं कि एक दिन मुतवक्किल को जासूसों ने बताया कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के घर में कुछ हथियार, ख़त तथा दूसरी ज़रूरी चीज़ें रखी हैं जो उनके चाहने वालों ने उनके लिए भेजी हैं। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इसकी मदद से सरकार के ख़िलाफ़ बग़ावत करना चाहते हैं। मुतवक्किल को ऐसे ही मौक़े की तलाश थी उसने अपने आदमियों को आदेश दिया कि वह अचानक इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के घर पर धावा बोल दें और घर में जो भी दस्तावेज़ या सामान मिले उसे ज़ब्त करके उसके पास पहुंचाएं। सरकारी कारिंदों ने रात के समय इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम आवास पर हमला कर दिया। घर का कोना कोना छान मारा मगर उन्हें कुछ भी नहीं मिला। उन्होंने देखा कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम एक कमरे में ज़मीन पर  बैठकर बड़ी  निष्ठा के साथ ईश्वर के स्मरण में लीन हैं और क़ुरआन की तिलावत कर रहे हैं। सरकारी कारिंदे उसी हालत में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को लेकर मुतवक्किल के दरबार में गए और बताया कि हमें घर में कुछ नहीं मिला बस यह ख़ुद घर में थे और क़िबला की ओर मुंह करके नमाज़ और कुरआन में व्यवस्त थे।

मुतवक्किल अपने को हारा हुआ महसूस कर रहा था और उस पर इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का रोब भी छा गया था। वह अचानक अपनी जगह से खड़ा हो गया और उसने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को अपने पास बिठाया। मगर उसने थोड़ी देर बाद बड़ी बेशर्मी का प्रदर्शन करते हुए अपने हाथ में मौजूद शराब का जाम इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की सेवा मे पेश करने की कोशिश की। इस तरह उसने इमाम का अपमान करना चाहा। मगर इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने बड़ी दृढ़ता और ठोस रुख का प्रदर्शन किया और क़सम खाकर कहा कि मेरा गोश्त और मेरा ख़ून इस शैतानी चीज़ से पाक है। मुतवक्किल शराब पीकर मस्त हो  गया। उसने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम से कहा कि कोई शेर सुनाइए। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने उत्तर दिया कि मुझे ज़्यादा शेर याद नहीं हैं। मुतवक्किल ने दबाव डाला कि हर हाल में आपको शेर सुनाना होगा। इस पर इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने कुछ शेर पढ़े जिनका अनुवाद यह है बादशाह पहाड़ों की चोटियों पर रात गुज़ारते हैं जबकि शक्तिशाली पहरेदार उनकी रक्षा करते हैं मगर यह चोटियां भी उन्हें मौत के ख़तरे से मुक्ति नहीं दिला सकीं। वह लंबा समय सम्मान में गुज़ारने के बाद सुरक्षित स्थान से नीचे खींच लिए जाते हैं और क़ब्रों के भीतर जगह पाते हैं। यह कितनी बुरी और अप्रिय मंज़िल है।

 

जब वह मिट्टी में दफ़्न कर दिए जाते हैं तो कहने वाला कहता है कि कहां हैं वह हाथों के आभूषण, वह ताज, और वैभवशाली परिधान? कहां हैं नेमतों में पहले वह चेहरे जिनके सम्मान में पर्दे लगाए जाते थे?

उनका जवाब क़ब्र देगी कि उन चेहरों पर इस समय कीड़े रेंग रहे हैं, इस समय कीड़ों में इन चेहरों को खाने की होड़ लगी हुई है।

वह दुनिया में लंबे समय तक खाते पीते रहे मगर यही लोग जो हर चीज़ खाते थे आज क़ब्र के कीड़ों की ख़ुराक बने हुए हैं।

इमाम ने यह शेर पढ़े तो दरबार में सन्नाटा छा गया। मुतवक्किल का चेहरा सफ़ेद पड़ गया उसने शराब का जाम एक तरफ फेंक दिया। दरबार में मौजूद दूसरे लोग भी रोने लगे। कोई सोच भी नहीं सकता था कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इस तरह अपने शेर से मुतवक्किल का सारा दबदबा ख़त्म कर देंगे। सब इमाम की यह हैबत देखकर दंग रह गए। फिर सबने बड़े सम्मान के साथ इमाम को उनके घर पहुंचाया।

मुतवक्किल का ज़माना समाप्त हुआ। उसके बेटे मुंतसिर ने सैनिकों का एक गुट तैयार किया जिसने मुतवक्किल और उसके वज़ीर फ़त्ह बिन ख़ाक़ान को उस समय मार डाला जब वह शराब पीने में व्यस्त थे। जिस रात मुतवक्किल को क़त्ल किया गया उसकी अगली सुबह मुंतसिर राजगद्दी पर बैठ गया। उसे अच्छी तरह पता था कि उसके पिता के अत्याचारों से लोगों के हृद्य में नफ़रत पैदा होने के अलावा कोई नतीजा नहीं निकला था। उसने वातावरण को बदलने और नर्मी बरतने का इरादा किया। उसने लोगों को अनुमति दी कि वह इमाम हुसैन की क़ब्र की ज़ियारत के लिए जा सकते हैं। उसने शीयों पर होने वाले अत्याचार पर भी विराम लगाने की कोशिश की मगर उसके शासन की अवधि बहुत छोटी थी। उसका शासन छह महीने से ज़्यादा नहीं चल सका और सन 248 हिजरी क़मरी में उसका निधन हो गया।

मुंतसिर के बाद कई अब्बासी शासक एक के बाद एक सत्ता में पहुंचे और उन्होंने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम तथा शीयों पर अत्याचार किए। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के ज़माने में आखिरी अब्बासी ख़लीफ़ा मोअतज़्ज़ था। उसने भी मुतवक्किल की तरह इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम पर अत्याचार ढाए और आख़िरकार उन्हें शहीद कर दिया। 3 रजब 254 हिजरी क़मरी को इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को मोअतज़्ज़ ने ज़हर देकर शहीद कर दिया। इमाम को सामर्रा में उनके घर के भीतर ही दफ़्न कर दिया गया।

 

 

 

 

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