अल्लाह के ख़ास बन्दे- 62
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का जन्म इराक़ के सामर्रा शहर में 232 हिजरी क़मरी में हुआ ।
उनके पिता का नाम इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और मां का नाम हदीसा या सूसन था। वह अपने समय की पवित्रतम महिलाओं में शुमार होती थी। चूंकि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अस्कर नामक क्षेत्र में जीवन व्यतीत करते थे इसीलिए वह अस्करी के नाम से प्रसिद्ध हो गये। अस्करी का अर्थ होता है छावनी, क्योंकि अब्बासी ख़लीफ़ा ने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को बुलाकर अपनी छावनी में रखा था इसीलिए उनकी उपाधि अस्करी पड़ गयी। ग्यारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की दो प्रसिद्ध उपाधियां भी हैं जिनमें से एक ज़की और नक़ी है और दोनों का अर्थ है पवित्र और पाक।
अब्बासी ख़लीफाओं की ज़बरदस्ती के कारण इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अपने पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के साथ पवित्र नगर मदीना से सामर्रा चले गये। उस समय सामर्रा अब्बासी शासकों की राजधानी था। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की उम्र यद्यपि 28 वर्ष से अधिक नहीं थी परंतु उन्होंने मूल्यवान इस्लामी शिक्षाओं की बहुत यादगारें छोड़ी है। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की विशेषताओं की व्याख्या में कहा गया है कि आप बहुत ही विनम्र और दयावान थे इस प्रकार से कि लोग उनसे मुलाकात से प्रभावित हो जाते थे। इतिहास में एसे लोगों के नामों का उल्लेख है जो अनभिज्ञता के कारण आंरभ में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से दूर रहते थे परंतु इमाम से मुलाक़ात के बाद वे लोग परिवर्तित हो गये और इमाम अलैहिस्सलाम के चाहने वालों की पंक्ति में शामिल हो गये। इनमें से दो व्यक्ति एसे थे जिन्हें जेल में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को यातना देने के लिए नियुक्त किया गया था। पर जब इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासकों की जेल में थे तो जेलकर्मी इमाम को संगत के कारण परिवर्तित हो गये।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अभी 22 साल के ही थे कि उन्होंने अपने पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इमामत का दायित्व संभाला और समाज के मार्ग दर्शन के ईश्वरीय दायित्वों का निर्वाह शुरु किया। खेद की बात यह है कि उनकी इमामत या ईश्वरीय मार्गदर्शन की अवधि बहुत ही कम है, इतिहास में मिलता है कि उनकी इमामत छह साल से अधिक समय तक नहीं चली। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की आयु अभी 28 साल ही हुई थी कि अब्बासी शासक मोतमद बिल्लाह ने एक षड्यंत्र के माध्यम से उन्हें शहीद करवा दिया। इमाम अलैहिस्सलाम को उनके कई अन्य पूर्वजों की तरह विष देकर शहीद किया गया। उन्हें सामर्रा नगर में उनके पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की क़ब्र के साथ ही दफ़्न किया गया।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के एकमात्र पुत्र हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने अपने पिता के शहीद होने के बाद इमामत का ईश्वरीय दायित्व संभाला जबकि वह केवल पांच वर्ष के ही थे। इस समय भी हज़रत इमाम महदी, ईश्वर के उत्तराधिकारी के रूप में इस धरती पर लोगों की आंखों से ओझल रह कर जीवन बिता रहे हैं। उनका जन्म 15 शाबान वर्ष 255 हिजरी को इराक़ के सामर्रा नगर में हुआ। इमाम महदी वर्ष 260 हिजरी में अपने पिता इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद हज़ारों साल से जारी ईश्वर की अटल परंपरा के आधार पर उसके उत्तराधिकारी बने। इमाम महदी अलैहिस्सलाम ईश्वर के अंतिम उत्तराधिकारी और संसार के मोक्षदाता हैं। ईश्वर जब चाहेगा उन्हें दुनिया में प्रकट करेगा और वह प्रकट होने के बाद संसार में न्याय की स्थापना करेंगे जबकि वह अन्याय और अत्याचार से भरा हुआ होगा।
अलफ़ूसूल अलमुहिम्मा नामक पुस्तक के लेखक इब्ने सब्बाग़ मालेकी हैं वह नवीं शताब्दी हिजरी के प्रसिद्ध सुन्नी समुदाय के धर्मगुरुओं में गिने जाते हैं। वह इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बारे में लिखते हैं कि वह समस्त विशेषताओं और गुणों के मालिक थे और उनमें इमामत का दायित्व संभालने और इस्लामी समाज के मार्गदर्शन की समस्त आवश्यक विशेषताएं पायी जाती थीं, वह ज्ञान और पवित्रता, बुद्धि की परिपूर्णता, पवित्रता, साहस और शक्ति की दृष्टि से और बहुत सी विशेषताओं और गुणों में जो मनुष्य को ईश्वर से निकट करते हैं, अपने समय में सबसे अग्रणी थे, अर्थात उनमें वह समस्त विशेषताएं और गुण पाए जाते थे जो उनके पिता ने उनकी इमामत और ईश्वरीय दायित्व के बारे में स्पष्ट शब्दों में या सांकेतिक रूप से बयान की थी।
शाफ़ेई मत के वरिष्ठ सुन्नी धर्मगुरु मुहम्मद बिन तलहा अपनी पुस्तक में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व के बारे में लिखते हैं कि जान लो कि ईश्वर ने उन्हें विशेषताओं, गुणों और विशिष्टताओं से संपन्न किया था और उन्हें अपनी समस्त सुन्दर विशेषताओं और गुणों के ज़ेवर से सुसज्जित कर दिया था, यह विशेषताएं उनके जीवन के साथ हमेशा के लिए जुड़ी हुई हैं और समय बीतने के साथ उनकी लोकप्रियता को कम नहीं किया जा सका विशेषकर यह है कि मेहदी उनकी नस्ल से हैं, उनके पुत्र हैं और उनसे जुड़े हुए हैं और उनके शरीर का हिस्सा हैं।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के न केवल चाहने वाले बल्कि उनके दुश्मन तक उनकी प्रशंसा किया करते थे और उनके गुणगान करते थे। अब्बास ख़लीफ़ा मुतवक्किल का मंत्री अहमद बिन अब्दुल्लाह ख़ाकान के बारे में इतिहास में मिलता है कि वह बहुत घमंडी, आत्ममुग्ध और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का बहुत बड़ा दुश्मन था। वह इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि वह बुद्धिमान, पवित्र, ईश्वरीय भय रखने वाले, सम्मानीय, प्रतिष्ठित, पाक दामन, सज्जन और बहुत ही अच्छे इन्सान थे, इस प्रकार से कि सभी के दिलों में यहां कि ख़लीफ़ा, मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के दिलों में भी प्रभाव रखते थे। यही कारण था कि सरकारी अधिकारियों और ख़लीफ़ा के निकट उनका ऊच्च स्थान था। वह आगे कहता है कि एक दिन मेरा पिता, जो राजनैतिक दृष्टि से विशेष स्थान रखते थे, बैठे हुए थे कि उन्हें सूचना दी गयी कि इमाम हसन अस्करी पधार रहे हैं। मेरे पिता उनके स्वागत के लिए दरवाज़े तक गये और उनके हाथों को चूमा और उन्हें अपनी जगह बिठाया और एक दास की भांति उनके सामने हाथ बांधे सम्मान में खड़े हो गये। यह देखकर मैं अपने पिता के पास गया और उनसे पूछा कि यह कौन जनाब हैं? मेरे पिता ने कहा कि यह वह हैं कि संसार में इनके अलावा कोई दूसरा ख़िलाफ़त के योग्य नहीं है। वह मनुष्यों की बेहतरीन विशेषताओं से संपन्न हैं, इसी प्रकार उनके पिता भी इन्हीं विशेषताओं और गुणों से संपन्न थे।
जैसा हमने बताया था कि इमामत और विलायत वह पद है जो ईश्वर की ओर से अपने योग्य बंदे को दिया जाता है। यही कारण है कि इस्लाम धर्म के सच्चे मार्गदर्शक, परेशानियों, प्रतिबंधों, सीमित्ताओं, धमकियों और दबावों के बावजूद अल्लाह के सीधे मार्ग से दिगभ्रमित नहीं हुए और उन्होंने लोगों के मार्ग दर्शन के दायित्व को जारी रखा।
प्रसिद्ध हदीसों के ज्ञानी और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से विशेष श्रद्धा रखने वाले अबू हाशिम जाफ़री कहते हैं कि मैं इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचा और उन्होंने कहा कि मेरा उतराधिकारी मेरे पुत्र हसन है। फिर उन्होंने पूछा कि उसके उतराधिकारी से जो मेरा भी उतराधिकारी है तुम कैसा बर्ताव करोगे? मैंने कहा कि कैसे? इमाम ने कहा कि चूंकि वह लोगों की नज़रों से ओझल रहेगा और सही नहीं है कि उसका नाम लोग क्योंकि उसका नाम पैग़म्बरे इस्लाम के नाम पर होगा, मैंने कहा कि तब उन्हें किस प्रकार याद किया जाए? इमाम कहते हैं कि अल्लहुज्जा मिन आले मुहम्मद, अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के तर्क।
खेद की बात यह है कि यह पवित्र और पाक लोगों की इमामत का काल ऐसे लोगों की ख़िलाफ़त के काल में था जिन्होंने अपने हितों की रक्षा और अपनी ग़ैरक़ानूनी ख़िलाफ़त को बचाने के लिए किसी भी प्रकार के अपराध से संकोच नहीं किया। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का काल भी इससे अलग नहीं रहा है और इमाम अलैहिस्सलाम के काल में तीन अब्बास ख़लीफ़ा गुज़रे हैं जिनमें से एक मोअतज़, दूसरा महदी और तीसरा मुअतमद था। मुअतज़ के काल में 70 पैग़म्बरे इस्लाम के निकटवर्तियों और अलवी सैयदों को जिन्होंने हेजाज़ में आंदोलन कर दिया था, बंदी बना लिया गया और उन्हें सामर्रा लाया गया, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के साथियों और दोस्तों को इस ख़िलाफ़त के काल में बहुत अधिक दबाव का सामना करना पड़ता था। कुछ लोगों ने इन हालात से तंग आकर परिस्थितियों के बारे में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को पत्र लिखा ताकि उन्हें पता चले कि इमाम इस बारे में क्या चाहते थे? इमाम ने जवाब में लिखा कि तीन दिन के बाद सारा मामला हल हो जाएगा और यह भविष्यवाणी व्यवहारिक हुई और मोअतज़ के कुछ सिपाहियों ने उस पर विद्रोह कर दिया और राजमहल पर नियंत्रण कर लिया और ख़लीफ़ा को तहख़ाने में डाल दिया और उसके बाद तहख़ाने का दरवाज़ा बंद कर दिय और इस प्रकार वह उसी तहख़ाने में मर गया।
मोअतज़ के बाद महदी सत्ता में पहुंचा और दिल में कुछ रखता था और ज़बान से कुछ और करता था। वह विदित रूप से धर्म का चोग़ा पहने हुए था और स्वयं को अत्याचारग्रस्तों का समर्थक और रखवाला क़रार देता था किन्तु कुछ ही महीनों में उसका अस्ली चेहरा सामने आ गया और उसने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जेल में डाल दिया। महदी अब्बासी ने उन अलवी सैयदों के गुट को जेल में डाल दिया जिन्होंने सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया था। इन लोगों का दमन किया गया और आख़िर में लोग जान की बाज़ी हार गये। इमाम के एक साथी का कहना है कि मैंने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को लिखा कि हमें पता चला है कि उसने आपको धमकी दी है और कहा है कि ईश्वर की सौगंध मैं पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को ज़मीन पर पटख़ दूंगा, इमाम चाहने वाले के पत्र के जवाव में लिखते हैं कि उसकी उम्र कितनी कम है, वह पांच दिन बाद बहुत ही अपमानित होकर मारा जाएगा। जैसा कि इमाम ने कहा ठीक उसी तरह हुआ और महदी विद्रोहियों के साथ मारा गया। (AK)