अपनी देखभाल- 12
हमने आपको बताया कि अपनी देखभाल कामों के उस समूह को कहते हैं जो व्यक्ति अपने, अपने परिवार और अन्य लोगों के लिए करता है ताकि उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करे।
पिछले कार्यक्रम में अपनी देखभाल आप के भावनात्मक पहलू के बारे में बात की गई थी और बताया गया था कि मज़बूत सामाजिक व पारिवारिक संबंध, मनुष्य की भावनात्मक आवश्यकताओं की बुनियाद है जिसे मज़बूत बनाया जाना चाहिए।
परिवार के सदस्यों के साथ अच्छे और घनिष्ठ संबंध स्थापित करने की योग्यता व दक्षता, भावनात्मक स्वास्थ्य तक पहुंचने का एक अहम मार्ग है। परिवार का भावनात्मक वातावरण का लोगों के व्यक्तित्व निर्माण, आत्मविश्वास, सीखने की क्षमता, चयन की शक्ति और कई अन्य अच्छी व सकारात्मक विशेषताओं से सीधा संबंध है। भावनात्मक स्वास्थ्य, बच्चों के सोचने की शैली, जीवन के बारे में उनके विचार, मानसिक स्तर के विकास और इसी तरह जीवन की विभिन्न घटनाओं के बारे में प्रभावी होता है।
जो लोग अपनी देख-भाल को अहमियत देते हैं और अपना और अपने परिवार का भावनात्मक स्वास्थ्य उनके लिए अहम है, वे परिवार के सदस्यों, दोस्तों व सहयोगियों के बीच घनिष्ठ और मैत्रिपूर्ण संबंध स्थापित करने की कोशिश करते हैं। परिवार के माहौल को घनिष्ठ बनाने के लिए एक आरंभिक लेकिन साथ ही महत्वपूर्ण मार्ग, परिवाद के सदस्यों की बात सुनना है। विदित रूप से दूसरों की बात सुनना बहुत सरल काम है लेकिन अगर श्रोता को सुनने की कला अच्छी तरह न आती हो या वह उसे सही ढंग से प्रयोग न कर पाए तो वह परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अच्छा संबंध स्थापित नहीं कर सकता क्योंकि सुनने का मतलब बात का सिर्फ़ कान में जाना नहीं है कि जो कुछ सामने वाला कह रहा है वह दूसरे के कान में चला जाए बल्कि बोलने वाले की भावनाओं और अपेक्षाओं पर भी ध्यान देना चाहिए और बात उचित होने पर उससे समरसता भी जतानी चाहिए।
समरसता व सहृदयता एक ऐसा प्रयास है जिसके अंतर्गत हम अपने आपको दूसरे पक्ष के स्थान पर रख सकते हैं। समरसता में किसी के बारे में कोई फ़ैसला किए बिना इतना ही काफ़ी होता है कि हम उसकी बातों को दोहराएं और उसे समझा दें कि हम उसकी बात समझ गए हैं। वास्तव में उसकी बातों को दोहरा कर हम उसकी बात और उसकी भावना की पुष्टि करते हैं, उसकी बात को अपनी बात बताते हैं और इस प्रकार उसकी भावनात्मक आवश्यकता की पूर्ति करते हैं।
परिवार के सदस्यों के बीच घनिष्ठता और प्रेम को मज़बूत बनाने के लिए यह बात स्वीकार करनी होगी कि यह आवश्यक नहीं है कि सभी एक दूसरे की तरह सोचें और उसी तरह काम करें। अकसर यह होता है कि परिवार के सदस्यों के विचार और आस्थाएं एक दूसरे से अलग-अलग होती हैं। इस प्रकार के अवसरों पर दूसरों के विचारों व भावनाओं को न तो रद्द करना चाहिए और न ही अपने विचारों व भावनाओं को दूसरों पर थोपना चाहिए।
इस प्रकार की स्थिति में न केवल यह कि उनकी भावनात्मक आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं बल्कि पारिवारिक संबंधों के लिए जो शांति आवश्यक है वह भी समाप्त हो जाती है। अगर हम यह मान लें कि दूसरे हमारी तरह नहीं हैं तब हम उचित शैली में उनके विचारों व आस्थाओं का, जो हमारी दृष्टि में सही नहीं हैं, विरोध कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में बिना विध्वसंक बहस के, जो प्रायः क्रोध और चीख़-पुकार के साथ होती है, हम उचित परिणाम हासिल कर सकते हैं।
दूसरों के विचारों व आस्थाओं के विरोध की एक अत्यंत उचित शैली, निरस्त्रीकरण की शैली है। इस शैली में व्यक्ति, दूसरे पक्ष की बात में, चाहे वह उसकी पूरी बात से सहमत न हो तब भी, एक सच्चाई और वास्तविकता को ढूंढता है और फिर उसकी पुष्टि करता है। यह शैली दूसरे पक्ष पर विचित्र प्रकार का शांतिपूर्ण प्रभाव डालती है और वह अधिक तैयारी के साथ दूसरे की बात सुनता है। उदाहरण स्वरूप अगर आपका छोटा भाई आपसे कहता है कि मैं आपकी बात बिल्कुल नहीं मानता तो आपका जवाब यह हो सकता है कि हां तुम ठीक कह रहे हो, हमें हमेशा दूसरों की बात को शत प्रतिशत नहीं मानना चाहिए। अलबत्ता बात का स्वर भी काफ़ी अहम है। जो बात नर्मी और प्यार से कही जाती है वह मधुर लगती है और उसे मानना आसान होता है। इस लिए अगर आवाज़ में नर्मी और स्नेह हो तो वह भावनाओं को जगा देती है। अलबत्ता बात में नर्मी उसी समय मूल्यवान है जब वह दृढ़ता और पारदर्शिता के साथ हो।
अंतिम बात यह है कि खाने के समय परिवार के सदस्यों का एकत्रित होना स्वर्णिम समय होता है जिसे हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। दस्तरख़ान पर जहां परिवार के सभी सदस्य इकट्ठा हों, खाना खाना, प्रेम और घनिष्ठता को बढ़ाता है। दस्तरख़ान पर एक साथ बैठने को एक अहम पारिवारिक बैठक के रूप में समझा जा सकता है क्योंकि यह भावनात्मक संपर्क का सबसे अच्छा समय होता है। स्नेह, प्रसन्नता, प्रफुल्लता, सभी सदस्यों के दिन भर के कार्यक्रमों के बारे में बात करना ये सभी पूरे परिवार के एक साथ खाना खाने के लाभों में शामिल हैं और इससे पारिवारिक संबंधों को मज़बूत बनाने में मदद मिलती है। अध्ययनों से पता चलता है कि जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ खाना खाते हैं उनमें अवसाद बहुत कम होता है और उनका आत्मिक व भावनात्मक स्वास्थ्य अधिक मज़बूत होता है। (HN)