अनमोल बातें- 9
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मोमिनों के ईमान की संपूर्णता में तीन विशेषताएं प्रभावी हैं और ये तीनों विशेषताएं उसे अपने मुख्य स्रोत अर्थात ईश्वर और उसके पैग़म्बरों व प्रिय बंदों से सीखनी चाहिए।
ईश्वर से सीखने वाली पहली विशेषता रहस्यों को छिपाना है। अपने रहस्यों को भी और दूसरों के रहस्यों को भी। समाज की अनेक समस्याओं का कारण दूसरों की गुप्त बातों और रहस्यों को सबके सामने लाना है। जो विशेषता हमें पैग़म्बर से सीखनी चाहिए वह लोगों के साथ मेल-जोल है। यहां तक कि जो लोग पूरी तरह हमारे विरोधी हैं उनके साथ भी अच्छे से पेश आना चाहिए। हां, जहां ज़रूरत पड़े वहां उन्हें भलाइयों का आदेश देना चाहिए और बुराइयों से रोकना चहिए। जो चीज़ हमें ईश्वर के प्रिय बंदों से सीखनी चाहिए वह समस्याओं व कठिनाइयों में संयम है। ईश्वर के प्रिय बंदे धैर्यवान और संयमी होते हैं। वे कठिनाइयां सहन करते हैं, चाहे वे व्यक्तिगत कठिनाइयां हों या प्रतिबंध और विभिन्न प्रकार के षड्यंत्रों जैसे सार्वजनिक कठिनाइयां हों। वे इन कठिनाइयों के मुक़ाबले में संयम से काम लेते हैं और आगे बढ़ते रहते हैं।
शिष्टाचार और नैतिकता के मैदान में एक अहम विषय अपने पिछले पापों पर ईश्वर से व्यवहारिक रूप से क्षमा मांगना या तौबा करना है। व्यवहारिक तौबा और बुरे कर्मों व व्यवहार से पलट जाने के बाद ईश्वर मनुष्य के उन पापों को क्षमा कर देता है जो उसने किए थे लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम तौबा करने के बाद फिर पाप करने लगें। बल्कि जिस क्षण मनुष्य तौबा करता है उसी क्षण से उसे उस पाप को हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए और अगर वह ऐसा नहीं करता है तो मानो वह अपना ही मज़ाक़ उड़ाता है। मनुष्य को यह पता नहीं होता कि उसकी मौत कब आएगी अतः सभी को तत्काल तौबा करनी चाहिए। (HN)