अपनी देखभाल- 13
बहुत से लोगों ऐसे हालात में फंस जाते हैं जहां उन्हें बड़ी शिद्दत से अपनी अयोग्यता का आभास होता है ।
यह भावना न केवल यह कि अच्छी नहीं है बल्कि इस से मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इस लिए सब से अच्छा तरीका यह होता है कि आप अपना ख्याल रखें, अपना आदर सत्कार करें।
हम ने बताया था कि हर व्यक्ति अपने लिए , अपने घर वालों के लिए और अपने परिवार के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी कुछ काम करता है ताकि उनकी सुरक्षा करे। यह सुरक्षा, मानसिक भी हो सकती है। वास्तव में अधिकांश लोगों के जीवन में एेसा समय आता है जब उन्हें नकरात्मक विचार घेर लेते हैं और वह बुरी तरह से हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। यह भावनाएं न केवल यह कि मनुष्य को कोई लाभ नहीं पहुंचाती बल्कि इससे नुक़सान होता है और समस्याओं का सामना करने में मनुष्य को कठिनाई होती है इस लिए यह कहा जाता है कि इन्सान को सब से पहले खुद अपने अपने पर कृपा करना चाहिए और स्वंय से प्रेम करना चाहिए।
जब अपने ध्यान रखने की बात की जाती है तो बहुत से लोग इस से स्वार्थ का अर्थ निकाल लेते हैं जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है क्योंकि जो लोग स्वंय से प्रेम करते हैं उन्हें मानवीय संबंधों की अच्छी समझ होती है और वह दूसरों का दुख दर्द ज़्यादा अच्छी तरह से समझ सकते हैं। कहा जाता है कि इस प्रकार के लोगों में अन्य लोगों के प्रति सहानुभूति अधिक होती है। वास्तव में स्वंय से प्रेम और घंमड में बारीक सा अंतर होता है जिसे समझना ज़रूरी है। स्वंय से प्रेम और स्वार्थ में भी अंतर होता है , उसे समझने की ज़रूरत है। घंमडी व्यक्ति स्वंय अपने से प्रेम करता है और अपनी हर चीज़ उसे प्यारी होती है लेकिन स्वंय से प्रेम करने वाला दूसरों को तुच्छा नहीं समझता है अपनी बुराइयों और कमियों से अनभिज्ञ नहीं रहता बल्कि स्वंय से प्रेम का मतलब यह है कि वह जैसा होता है वैसा ही स्वंय को स्वीकार करता है और अपने बारे में किसी गलत फहमी में नहीं पड़ता । अब चूंकि वह जैसा होता है वैसा ही लोगों के सामने जाता है इस लिए वह लोकप्रिय होता है क्योंकि लोग उसमें बनावट का अभास नहीं करते और एक तरह की शुद्धता का आभास होता है।
जो लोग स्वंय से प्यार करते हैं वह अपने मानसिक स्वास्थ्य पर भी काफी ध्यान देते हैं। स्वंय पर टिप्पणी करने और स्वंय को बुरा भला करने के बजाए वह अपनी नाकामी को और अपनी पराजय को आगे बढ़ने की शक्ति के रूप में प्रयोग करते हैं। स्वंय के साथ कृपा शीर्षक के तहत किताब लिखने वाले डाक्टर क्रिस्टीन नेफ का यह मानना हे कि अपने जीवन की पिछली गलतियों से पाठ लिया जा सकता है क्योंकि इससे नयी समस्याओं का सामना करने की अधिक शक्ति मिलती है। आप उस छात्र के बारे में सोचें जिसे पास होने के लिए पर्याप्त नंबर नहीं मिले हैं तो अगर वह बार बार स्वंय से यह कहे कि मैं किसी लायक़ नहीं हूं और मुझे में कुछ भी करने की योग्यता नहीं है तो शायद आरंभ में वह थोड़ी कोशिश कर ले लेकिन इस प्रकार के विचार अन्ततः उसके मन में अवसाद पैदा कर देंगें और धीरे धीरे उसमें आत्मविश्वस पूरी तरह से खत्म हो जाएगा । लेकिन अगर वह भावुता के मामले में अपने लिए अधिक भावुक रहे और स्वंय से प्यार करे और अपने से कहे कि हार हरेक के लिए होती है और हर व्यक्ति कभी कभी गलती करता है अहम बात यह है कि हम नयी शैली अपना कर और अधिक पढ़ कर अपने नंबंर अच्छे कर सकते हैं। निश्चित रूप से यदि छात्र के मन में यह विचार पैदा होंगे तों वह निश्चित रूप से अधिक प्रयास करेगा और उसमें आत्मविश्वास भी बढ़ेगा जिससे उसको पूरा फायदा भी मिलेगा ।
जो लोग स्वंय से प्रेम करते हैं उन्हें यह बहुत अच्छी तरह मालूम होता है कि दुख दर्द, इस दुनिया में सब के लिए है और समस्याएं आसमान से केवल उसी के लिए नहीं उतरी हैं इस लिए हाथ पर हाथ धर कर बैठने और दूसरों को और अपने भाग्य को कोसने के बजाए वह आगे का कार्यक्रम बनाते हैं और स्वंय से कभी यह आशा नहीं रखते कि उनका सारा काम बिना किसी गलती के हो और सब कुछ पूरी तरह से ठीक हो।
जो लोग स्वंय से प्रेम करते हैं वह अन्य लोगों से प्रतिस्पर्धा के बजाए, अपने अतीत से प्रतिस्पर्धा करते हैं क्योंकि किसी भी क्षेत्र में स्वंय की अन्य लोगों से तुलना के परिणाम में तनाव पैदा हो सकता है। क्योंकि जो स्वंय की अन्य लोगों से तुलना करता है तो वास्तव में वह अपने विशेष गुणों की अनदेखी करता है , इस प्रकार के लोग, अपना मूल्यांकन , अन्य लोगों से तुलना करके करते हैं यहां तक कि कुछ लोगों में यह आदत इतना बढ़ जाती है कि वह अपने जीवन के हर क्षेत्र की तुलना अन्य लोगों से करते हैं और इस तरह से धीरे धीरे अपने मूल्यों अपनी मान्यताओं और अपनी पसन्द जैसी हर चीज़ पीछे छोड़ देते हैं और पूरा जीवन अन्य लोगों की पसन्द और अन्य लोगों के मूल्यों पर व्यतीत कर देते हैं । इस प्रकार के लोग वास्तव में कभी संतुष्ट नहीं होते क्योंकि इस दुनिया में भांति भांति के लोग होते हैं अच्छे बुरे हर तरह के। इसके साथ ही हर एक से बेहतर लोग भी होते हैं इस लिए हर आदमी अपने से बेहतर को देख देख कर स्वंय की उससे तुलना करेगा तो निश्चित रूप से मानसिक तनाव में रहेगा। इसी लिए कहा जाता है कि इन्सान को हमेशा अपने से कम लोगों पर ध्यान देना चाहिए न कि अपने से बेहतर लोगों पर ।
मनुष्य को हमेशा यह सोचना चाहिए कि इस धरती पर, उस से प्रेम करने वाला उससे बेहतर कोई नहीं है। अर्थात मनुष्य का सब से बड़ा प्रेमी वह स्वंय होता है। इस लिए यह यकीन रखना चाहिए कि निराशा के समय आप की सहायता भी स्वंय आप से अधिक कोई नहीं कर सकता क्योंकि आप का , आप से निकट, कोई और नहीं है क्योंकि अपने दुख सुख की सही मात्रा, आप ही समझ सकते हैं और आप ही उसका निवारण कर सकते हैं। इस लिए मनुष्य को सदैव स्वंय से प्रेम करना चाहिए लेकिन स्वार्थ और घमंड से दूर रह कर। अगर कोई ऐसा करने में सफल हो जाता है तो फिर वही वास्तविक रूप से सफल होता है। (Q.A.)