Mar ०९, २०१९ १६:४७ Asia/Kolkata

कुछ लोग, बिना वास्तविक पराजय का स्वाद चखे अपनी भरपूर सफलता के बावजूद पिछड़ेपन का आभास करते हैं।

इस प्रकार की समस्याओं से निपटने के लिए आत्म गौरव की भावना पैदा की जानी चाहिए।

हमने भावनात्मक देखभाल के बारे में बात की थी और बताया था कि अपनी देख-भाल की इस शैली में व्यक्ति लोगों, दोस्तों व परिवार के सदस्यों के साथ एक स्वस्थ व घनिष्ठ संबंध पर ध्यान देते हुए स्वयं भी स्नेहपूर्ण व्यवहार अपनाता है।

इस प्रकार का व्यक्ति अगर किसी काम में रुकावट या समस्या का शिकार होता है तो अपने आपको प्रोत्साहित करता है और इस बात की कोशिश करता है कि स्वयं को यह समझाए कि वह अभी मज़बूत है और इस बात की शक्ति रखता है कि पहले से अधिक सुदृढ़ता से अपना रास्ता जारी रखे। भावनात्मक देख-भाल की इसी चर्चा को जारी रखते हुए हम आत्म गौरव के बारे में बात कर रहे हैं।

 

कुछ लोग, वास्तविक पराजय का स्वाद चखे बिना अपनी भरपूर सफलता के बाद भी हतोत्साह और पिछड़ेपन का आभास करते हैं। यह भावना अधिकतर इस कारण होती है कि वे उन चीज़ों पर ध्यान नहीं देते जो उनके पास है बल्कि जो चीज़ें उनके पास नहीं हैं उनके बारे में सोच कर अपने आपको पराजित इंसान समझते हैं। अगर यह भावना बढ़ती चली जाए तो मनुष्य अवसाद और इसी प्रकार की दसियों अन्य मानसिक, आत्मिक और भावानात्मक समस्याओं में ग्रस्त हो जाता है। इस प्रकार की समस्याओं से निपटने के लिए आत्म गौरव की अच्छी भावना पैदा करना एक उचित मार्ग है।

आत्म गौरव, मनुष्य को बहुत सी समस्याओं से सुरक्षित रखने में सक्षम है और उसे इस बात की ओर से संतुष्ट करता है कि वह कठिनाइयों में आत्म सम्मान के साथ पराजय और पिछड़ेपन की भावना को स्वयं से दूर कर सकता है। अंदर से आने वाली बहुत से आवाज़ें जो मनुष्य को यातनाएं पहुंचाती हैं वे इस कारण होती हैं कि वे अपने आप पर गर्व नहीं करते बल्कि हमेशा अपने कार्यों पर आपत्ति करते रहते हैं।

यहां इस बात पर ध्यान रहे कि अपने ग़लत कामों पर ध्यान देना और उनसे पाठ सीखना, ग़लत काम नहीं है लेकिन यह काम उस समय कठिनाई जनक हो जाता है जब यह आत्म सम्मान के समाप्त होने का कारण बनता है और व्यक्ति में पराजय व पिछड़ेपन की भावना पैदा करता है। इसी लिए भावनात्मक देख-भाल में कुछ मार्ग सुझाए जाते हैं जिन पर चल कर आत्म सम्मान को मज़बूत किया जा सकता है और जीवन के विभिन्न चरणों में अपने आप पर गर्व किया जा सकता है।

 

जब आत्म गौरव की बात आती है तो कुछ लोग इसे घमंड और आत्म मुग्धता समझने की ग़लती कर बैठते हैं जबकि आत्म गौरव, प्रभावी होने की भावना की उपलब्धिहै। जो व्यक्ति प्रयत्न करता है और अपने प्रयासों से अपने लिए कोई गौरव प्राप्त करता है वह उस व्यक्ति से बहुत भिन्न होता है जो घमंडी, अहंकारी और आत्म मुग्ध होता है तथा अपनी सफलता को केवल अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं का परिणाम समझता है। जो व्यक्ति अपने आप पर गर्व करता है वह घमंडी व्यक्ति के विपरीत, अगर उसके पास कोई अहम पद या नौकरी है तो उस पद या नौकरी के प्रति दायित्व के आभास के साथ उससे अपने और अपने अधीन लोगों के वैज्ञानिक व नैतिक विकास और इसी तरह समाज के सेवा के लिए लाभ उठाता है।

इसी तरह से अगर वह किसी राजनैतिक दल या गुट में शामिल होता है तो यह अपनी ज़िम्मेदारी की उस भावना के अंतर्गत होता है जो वह समाज की प्रगति और उत्थान के लिए महसूस करता है। जो व्यक्ति अपने आप पर गर्व करता है वह निर्धनता के समय में भी कभी हीन भावना में ग्रस्त नहीं होता बल्कि वैध आय के लिए कोशिश करता है और कार्यक्रम बनाता है। इसके विपरीत एक घमंडी और अहंकारी व्यक्ति चूंकि अपने आपको सबसे अधिक सक्षम, बुद्धिमान और श्रेष्ठ समझता है इस लिए उसे अपेक्षा होती है कि वह हमेशा क़ानून से इतर रहे और वह जो भी करे, कोई उस पर आपत्ति न करे तथा सभी सफलताएं और अच्छी बातें उसी से विशेष हों। इसी तरह चूंकि वह यह सोचता है कि वह जो भी करता है उसमें कोई कमी नहीं होती इस लिए अगर कोई उस पर आपत्ति करता है उसके अंदर हीन भावना पैदा होती है और वह उस व्यक्ति से घृणा करने लगता है और उससे बदला लेने के चक्कर में रहता है।

आत्म गौरव के लिए अपने अतीत को छोड़ का वर्तमान में जीना चाहिए। अधिकतर लोग अपने आपको अतीत में जकड़े रहते हैं और यह चीज़ उन्हें वर्तमान क्षण के बारे में सोचने और भविष्य की ओर क़दम बढ़ाने से रोकती है। अलबत्ता अतीत के अनुभवों से फ़ायदा उठाना चाहिए लेकिन ग़लतियों को दोहराना नहीं चाहिए। खेद की बात है कि कुछ लोग अपनी पीड़ादायक यादों को हमेशा याद रखना चाहते हैं और यह बात उनके अंदर से आगे बढ़ने और लक्ष्य तक पहुंचने की भावना को ख़त्म कर देती है। वास्तव में जो कुछ अतीत में हो चुका है वह अहम नहीं है बल्कि अहम यह है कि फ़ैसला किया जाए कि वह घटना अब हमें नुक़सान न पहुंचाए।

 

अतीत के अनुभवों के बारे में हम हज़रत अली अलैहिस्सलाम की वसीयत का एक भाग आपकी सेवा में पेश कर रहे हैं। वे अपने पुत्र इमाम हसन से की गई वसीयत में कहते हैं कि हे मेरे बेटे! मैंने तुम्हारे प्रशिक्षण में जल्दी की इससे पूर्व कि तुम्हारा हृदय कड़ा हो जाए और तुम्हारी बुद्धि व्यस्त हो जाए ताकि तुम पूरी गंभीरता से उन बातों का स्वागत करो कि अनुभवी लोगों के कारण जिन्हें चाहने या जिनका अनुभव करने की तुम्हें आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस प्रकार से तुम्हें खोज करने का परिश्रम नहीं करना पड़ेगा और अनुभव की राहों पर नहीं चलना पड़ेगा तो इससे तुम्हें वह सब कुछ मिल जाएगा तो हमने किया है और इस प्रकार से कुछ ऐसे विषय भी तुम पर स्पष्ट हो जाएंगे जो हमसे छिपे हुए थे।

एक अनुभवी प्रशिक्षणकर्ता और एक नवयुवक के बीच अंतर यही है। वृद्ध व्यक्ति ने अपनी पूरी आयु असंख्य कटु व मधुर बातों और विभिन्न प्रकार की घटनाओं के दौरान गुज़ारी है और बड़े दुख सहन करके इधर उधर से अनुभव हासिल किया। अब जब उसकी आयु समाप्ति की ओर अग्रसर है तो वह अपने उन सभी अनुभवों को पूरी अपना ईयत और स्नेह के साथ अपने बच्चों या आगामी पीढ़ियों तक स्थानांतरित करना चाहता है। उसने हज़ारों कठिनाइयां सहन करके, रास्तों के कांटे सहते हुए और छोटी बड़ी समस्याओं को झेलते हुए ये बातें सीखीं हैं और सही जीवन के रहस्यों को हासिल किया है।

लेकिन नई पीढ़ी को बिना कठिनाइयां सहन किए हुए, बिना समय बिताए हुए और बिना झंझट के एक वृद्ध व्यक्ति के जीवन के अनुभवों का निचोड़ हासिल हो जाता है। उसे यह सोचना चाहिए कि अगर उस बूढ़े व्यक्ति ने अत्यधिक कठिनाइयां सहन करके उसके लिए लाभदायक अनुभवों को हासिल न किया होता तो आज उसे कितना परिश्रम करना पड़ता? अतः उसे इन मूल्यवान अनुभवों के लिए उसका किस प्रकार और कितना आभार व्यक्त करना चाहिए? बड़े खेद की बात है कि बिना कठिनाई के मोती हासिल करने वाले अधिकतर लोग उसके मूल्य को नहीं समझते।

 

आत्म गौरव के मार्ग में रुकावट का एक कारण फ़ैसले करने और उन्हें लागू करने में स्थिरता न होना और पल पल रुचियां बदलना है। खेद की बात है कि अधिकतर लोग अपना मूल्य स्वयं समझने से अधिक इस बात के प्रयास में रहते हैं कि दूसरे उनकी पुष्टि करें। जो लोग, दूसरों की ओर से पुष्टि के प्रयास में चिंतित रहते हैं वे अपने मूल्य की अनदेखी कर देते हैं। अपने आपको सम्मानीय समझना, लक्ष्यों तक पहुंचने के मार्ग में सबसे अहम क़दम है और गर्व की भावना के बिना सफलता का कोई मूल्य नहीं है। ऐसे लोग कम नहीं हैं जो आर्थिक दृष्टि से सफल हैं लेकिन चूंकि वे अपना मूल्य नहीं समझते इस लिए उनकी संपत्ति उनकी मानसिक और भावनात्मक समस्या का समाधान नहीं करती। अपना मूल्य समझने और गर्व की भावना हासिल करने के लिए किसी भौतिक साधारन की ज़रूरत नहीं है केवल इतना ही काफ़ी है कि मनुष्य अपने आपको उसी प्रकार स्वीकार करे जैसा वह है। (HN)