Mar १६, २०१९ १२:३२ Asia/Kolkata

लोक-परलोक के सरदारों के बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने एक पाठ में कहा कि दानी व्यक्ति वह होता है जो दूसरों की मदद करता है, आर्थिक मदद करता है।

हदीस में कहा गया है कि इस तरह के लोग दुनिया के सरदार हैं, दुनिया के लोगों के लिए ये सरदार और आज्ञापालन योग्य होते हैं लेकिन सवाल यह है कि परलोक में कौन से लोग सरदार होंगे? क्योंकि वहां तो माल या आर्थिक मदद की बात ही नहीं है। वास्तविकता यह है कि दुनिया में दानशीलता दो तरह की हो सकती है, अच्छी और बुरी। अच्छी दानशीलता वह है जो अच्छी नीयत और अच्छे लक्ष्य के लिए की गई हो। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए किसी ग़रीब व्यक्ति की मदद अच्छी दानशीलता है। किसी मोमिन व्यक्ति की मदद अच्छी दानशीलता है। एक अच्छे लक्ष्य को व्यवहारिक बनाने के लिए की गई आर्थिक मदद, बड़ी अच्छी बात है। कभी ऐसा भी होता है कि दान बुरे लक्ष्य के लिए किया जाता है, सांसारिक नीयत से किया जाता है, इसे बुरी दानशीलता कहा जाता है। अच्छे दानी संसार के लोगों के सरदार हैं। तो फिर परलोक के सरदार कौन हैं? जो लोग सही अर्थ में ईश्वर से डरते हैं, जिनके कर्मपत्र में अच्छे कर्मों का पल्ला भारी होता है वे परलोक के सरदार होते हैं। यही लोग वास्तव में लोगों की दृष्टि में महान होते हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने एक पाठ में ईश्वरीय दया से आशा के बारे में कहा कि ईश्वर से आशा रखनी चाहिए और वह आशा ऐसी हो जो व्यक्ति में उद्दंडता का दुस्साहस पैदा होने का कारण न बने। अर्थात इस प्रकार की आशा में सबसे पहले ईश्वर से आशा होनी चाहिए, फिर ईश्वरीय दया, ईश्वरीय क्षमा और ईश्वरीय मदद की आशा होनी चाहिए। यहां तक कि ईश्वर की दया से निराशा को बड़े पापों में बताया गया है। अतः ईश्वर की ओर से आशा हमेशा होनी चाहिए अर्थात आपके और ईश्वर के बीच यह संपर्क हमेशा होना चाहिए लेकिन यह आशा ऐसी न हो कि हमें पाप करने का दुस्साहस प्रदान कर दे। इस लिए हमें ईश्वर से डरते रहना चाहिए लेकिन यह डर भी ऐसा न हो कि हमें ईश्वर की दया की ओर से निराश कर दे। इस लिए ईश्वर की गहरी पहचान आवश्यक है, हमें हमेशा ईश्वर की पहचान में गहराई पैदा करने की कोशिश करना चाहिए। अगर ईश्वर की सही पहचान होगी तो हम उसकी दया से सही आशा रखेंगे। (HN)