Mar १८, २०१९ १७:२१ Asia/Kolkata

हमने अपनी देखभाल के अंतर्गत आत्म गौरव की चर्चा की थी और बताया था कि जो व्यक्ति अपने आप पर गर्व करता है वह जीवन में कठिनाइयों और दबाव के समय अपने शरीर व आत्मा की रक्षा के लिए अधिक कोशिश करता है।

बहुत से लोगों इस ग़लत सोच में रहते हैं कि रोना, कमज़ोर और भावुक लोगों से विशेष है जबकि नए अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग अधिक रोते हैं उनकी भवनाएं और मानसिक स्वास्थ्य अधिक बेहतर होता है। इस प्रकार के लोग भावनात्मक अवसाद के कारण शरीर में पैदा होने वाले विध्वंसक रासायनिक तत्वों को आंसुओं के माध्यम से शरीर से बाहर निकाल देते हैं। चूंकि अवसाद हृदयाघात और मस्तिष्क के कुछ भागों में ख़राबी पैदा करने का ख़तरा बढ़ा देता है इस लिए मनुष्य की रोने की क्षमता इस ख़तरे को रोकने में बड़ी सहायक समझी जाती है। विशेष कर इस लिए कि रोना, रक्त में एंड्रोफ़िन्स के स्राव में मदद करता है। एंड्रोफ़िन्स, वह रासायनिक पदार्थ हैं जिनका स्राव म्योकोसल ग्रंथियों और हाइपोथैलमस इत्यादि से होता है और इनका मुख्य प्रभाव दर्द को कम करना है।

मनुष्यों में आंसू एक समान नहीं होते बल्कि ये विभिन्न प्रकार के होते हैं। उदाहरण स्वरूप बेसल टियर्ज़ या मूल अश्रू आंखों के बाहरी कणों के धुलने का कारण बनते हैं। दिन रात के 24 घंटों में आंखों के कॉर्निया, मूल अश्रुओं के माध्यम से निरंतर गीले होते रहते हैं। इसी तरह से रिफ़्लेक्स टियर्ज़ वह आंसू है जो आकस्मिक रूप से और आंखों को गतिशील बनाने वाली चीज़ों जैसे बाहरी कणों, धूल, प्याज़ या मिर्च इत्यादि के कारण आंखों से निकलने लगते हैं। ये आंसू कोशिश करते हैं कि आंखों को गतिशील बनाने वाले और उन्हें तकलीफ़ देने वाले पदार्थों से उन्हें साफ़ करें। इसी तरह इमोशनल टियर्ज़ या भावनात्मक अश्रू भी होते हैं जो मनुष्य के भावुक हो जाने, अत्यंत दुखी, अत्यधिक ख़ुश होने या फिर दर्द का आभास होने के समय निकलने लगते हैं।

इस प्रकार के आंसू बहुत ज़्यादा ख़ुशी, दुख, रोमांच, भय, मज़ाक़, विफलता या हर प्रकार की उत्तेजना के समय आंखों में आ जाते हैं और ये भावनाओं को बाहर निकाल कर मनुष्य के भीतर एक अच्छा एहसास पैदा करते हैं। आपके लिए यह जानना भी रोचक होगा कि जब आंसु का कारण दुख या दर्द हो तो शरीर को बाहरी स्पर्श की ज़रूरत महसूस होती है। उदाहरण स्वरूप जब बच्चा रोता है और उसकी मां उसे गोद में ले लेती है तो वह जल्दी चुप हो जाता है और यह प्रभाव उस समय और बढ़ जाता है जब उसे गोद में लेने के साथ ही प्यार भी किया जाए।

दर्द, तनाव और दुख से छुटकारा पाने के लिए रोना, एक निःशुल्क, स्वाभाविक और सशक्त तंत्र है। केलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सा विभाग के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डाक्टर स्टीफ़न साइडरोफ़, मनुष्य के मानस पर रोने के प्रभाव के बारे में कहते हैं कि तनाव, मांसपेशियों में खिंचाव पैदा कर देता है। आंसुओं से यह तनाव समाप्त हो जाता है और शरीर संतुलन की स्थिति में आ जाता है। वे इसी तरह कहते हैं कि ऐसे लोगों के लिए, जो किसी भी कारणवश अपनी भावनाओं को बयान नहीं कर सकते, रोने के क्लब बना कर या रोने के लिए किसी भी प्रकार का सुरक्षित स्थान बना कर भावनात्मक समस्याओं और तनाव को दूर किया जा सकता है।

आपके लिए यह जानना भी रोचक होगा कि इस समय ब्रिटेन व जापान जैसे देशों में क्राइंग क्लब या रोने के क्लब बनाए गए हैं जिनका उद्देश्य रोने के लिए लोगों की मदद करना है। इन क्लबों में लोगों के आसानी से रोने के लिए उन्हें दुखद कहानियां सुनाई जाती हैं और उनकी रोने की आवाज़ बढ़ाने के लिए भावुक संगीत प्रसारित किया जाता है। इनमें से कुछ क्लबों का नारा, "आंसू से मुस्कान तक" है। क्लिनिकल मनोचिकित्सा के प्रोफ़ेसर डाक्टर जुडिथ ओरलोफ़ इस बारे में कहती हैं कि अपने आपको नकारात्मक सोचों से मुक्त कीजिए और अपने जीवन को बदल डालिए। यह बड़ी ज़बरदस्त बात है कि आप लोगों की भीड़ में आंसू बहा सकते हैं और रो सकते हैं।

एक अहम बिंदु यह भी है कि रोने की क़ुरआने मजीद और ईश्वरीय पैग़म्बरों ने भी बहुत सिफ़ारिश की है। जैसा कि हमने बताया कि रोने के अत्यधिक लाभ हैं तो उन्हीं में से एक, दुख के समय दिल की शांति है। जब मनुष्य दुखी होता है तो रोने से उसके मन को शांति मिलती है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के एक शिष्य मंसूर सैक़ल का कहना है कि अपने पुत्र की मौत की वजह से मैं इतना अधिक दुखी था कि मुझे भय हुआ कि कहीं मैं पागल न हो जाऊं। मैंने इसका उल्लेख इमाम सादिक़ से किया। उन्होंने कहा कि जब भी तुम इस प्रकार की स्थिति में पहुंच जाओ को रोओ क्योंकि रोना तुम्हें शांत करता है।

क़ुरआने मजीद की कई आयतों और पैग़म्बरे इस्लाम व उनके परिजनों की बहुत सी हदीसों में रोने पर बल दिया गया है। सूरए तौबा की आयत नंबर 82 में कहा गया है कि तो उन लोगों ने जो कुछ बुराई कमाई है उसके लिए उन्हें हंसना कम और अधिक रोना चाहिए। इसी तरह सूरए नज्म की आयत नंबर 43 में कहा गया है। निश्चित रूप से अल्लाह है जो हंसाता और रुलाता है। रोने के संबंध में क़ुरआने मजीद की एक अन्य आयत बहुत अधिक ध्यान योग्य है। सूरए मरयम की आयत संख्या 58 में ईश्वर कहता हैः ये वे पैग़म्बर हैं जो ईश्वर की कृपा के पात्र हुए, आदम की सन्तान में से और उन लोगों के वंशजों में से जिन्हें हमने नूह के साथ (कश्ती में) सवार किया, और इबराहीम और इसराईल के वंशजों में से और उनमें से जिन्हें हमने सीधा मार्ग दिखाया और चुन लिया। जब उन्हें कृपालु (ईश्वर) की आयतें सुनाई जातीं तो वे रोते हुए सजदे में गिर पड़ते थे।

क़ुरआने मजीद के प्रख्यात व्याख्याकार आयतुल्लाह मुहम्मद हुसैन तबातबाई अपनी किताब तफ़सीरे अलमीज़ान में इस आयत के बारे में लिखते हैं कि यह आयत ईश्वर के समक्ष अत्यधिक विनम्रता और भय को दर्शाती है। इसी तरह इस आयत में रोने की बात पैग़म्बरों के लिए की गई है जिससे पता चलता है कि यह काम ईश्वर के अत्यंत निष्ठावान बंदों की निशानियों में से है। इसी तरह एक बार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कुछ युवाओं से कहा कि मैं तुम्हारे सामने क़ुरआने मजीद की कुछ आयतें पढ़ता हूं जो भी इन आयतों को सुन कर रोएगा, वह स्वर्ग में जाएगा। इसके बाद उन्होंने सूरए ज़ुमर की कुछ आयतों की तिलावत की जिनमें नरक का उल्लेख था। सभी रोने लगे लेकिन एक युवा ने कहा है कि हे पैग़म्बर! मैंने रोने की कोशिश की लेकिन मेरी आंखों से आंसू नहीं निकले तो मैंने रोने जैसी शक्ल बना ली। पैग़म्बरे ने कहाः मैं दोबारा पढ़ता हूं, जो भी रोने जैसी शक्ल बनाएगा वह स्वर्ग में जाएगा।

इसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम व उनके परिजनों की ऐसी बहुत सी रवायतें हैं जिनमें रोने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम ने कई बार कहा है कि ईश्वर के समक्ष पाप से प्रायश्चित के लिए मोमिन की आंख से निकलने वाले आंसू उस पानी की तरह हैं जो नरक की आग को बुझा देते हैं। इसी तरह उन्होंने कहा है कि अगर किसी मोमिन की आंख से मच्छर के पर के बराबर भी आंसू निकल आए तो ईश्वर नरक की आग को उसके लिए हराम कर देता है। एक अन्य स्थान पर उन्होंने कहा हैः जो आंख ईश्वर के भय से रोई हो, जो आंख ईश्वर की उपासना में जागी हो और जिस आंख ने ईश्वर द्वारा वर्जित या हराम की गई चीज़ों को न देखा हो, वह नरम को नहीं देखेगी।