अपनी देखभाल- 19
हमने मानवता प्रेमी और भले कामों पर चर्चा की थी और बताया था कि जब कोई मनुष्य किसी की सहायता करता है, दूसरों की समस्याओं को समझता और निकट से देखता है और फिर उनका निवारण करता है तो इसके बाद उसके मन में जो शांति पैदा होती है वह किसी और चीज़ से पैदा नहीं हो सकती।
इसके साथ ही उसके मन में एक और भावना पैदा होती है और वह होती है शुक्र की। वह दूसरों की समस्याओं को देख कर ही यह समझता है कि वह कितने सुख में है और उस ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करता है जिसने स्वंय उसे इन समस्याओं से दूर रखा।
किसी की ओर से अच्छाई या सहायता के जवाब में उसके प्रति आभार प्रकट करना वास्तव में मानसिक स्वास्थ्य का चिन्ह है। मनोविज्ञान में आभार प्रकट करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति की भांति होता है जो बौद्धिक विकास तक पहुंच चुका होता है, जिसके पास पहचान की आवश्यक शक्ति होती है और जो भले बुरे की पहचान रखता है और उसे यह भी मालूम होता है कि कौन सी चीज़ उसके भले में हैं और कौन सी चीज़ उसके नुक़सान में है। यह निश्चित है कि जो अपने ऊपर उपकार करने वाले और अपने साथ भलाई करने वाले के प्रति आभार प्रकट करता है तो इसका मतलब यह होता है कि उसे कोई मानसिक रोग नहीं है और वह ईर्ष्या , द्वेष, घमंड जैसे मनोरोगों में ग्रस्त नहीं है। इस तरह से हम देखते हैं कि जिसका मन व मस्तिष्क जितना अधिक स्वस्थ्य होगा, उसके भीतर अन्य लोगों के प्रति और विशेषकर ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करने की भावना उतनी ही अधिक होगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि अन्य लोगों के प्रति आभार प्रकट करके मनुष्य स्वंय में शांति उत्पन्न कर सकता है और इस प्रकार से समाज पर अच्छा प्रभाव डाल सकता है। मनोविज्ञान में यह साबित हो चुका है कि इन्सान के दिल में आशा और मस्तिष्क में सकारात्मकता जितना अधिक होगी उसके शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता उतना अधिक होगी और वह अन्य लोगों की तुलना में कम बीमार होगा।
अध्ययनों से पता चलता है कि सही तौर पर आभार व कृतज्ञता की भावना, मस्तिष्क व ह्रदय में तालमेल बिठाने में सहायक होती है और यदि दोनों में तालमेल होता है तो शरीर अच्छी तरह से काम करता है और मस्तिष्क अधिक बेहतर तौर पर चीज़ों को समझता है। स्नायू तंत्र , छोटी छोटी सी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं पर संवेदनशील दिल व दिमाग को सुस्त कर देता है। इसके साथ ही रक्तचाप भी बेहतर होता है और बहुत से रोगों से बचाव हो जाता है। नींद अच्छी आती है और बुढ़ापा देर में आता है इस तरह से इन्सान में यदि कतज्ञता की भावना मज़बूत होगी तो समाज के अलावा स्वंय उसके शरीर को भी बहुत से लाभ होते हैं।
कृतज्ञता और दूसरों के प्रति आभार प्रकट करना इतना ही महत्व पूर्ण है कि इस्लामी शिक्षाओं और पैगम्बरे इस्लाम और उनके उत्तराधिकारियों के कथनों में भी उस पर बहुत बल दिया गया है। उदाहरण स्वरूप कहा गया है कि ईश्वर और उसके बन्दों के प्रति आभार प्रकट करने से ईश्वर की कृपा दृष्टि होती है। कुरआने मजीद में भी इस विषय पर बार बार बल दिया गया है। वास्तव में जब किसी इन्सान में कृतज्ञता की भावना मज़बूत होती है तो ईश्वर से उसका रिश्ता व संबंध भी मज़बूत हो जाता है और इस तरह से वह बहुत सी मानसिक समस्याओं से दूर रहता है। वास्तव में आभार व कृतज्ञता की भावना, इन्सान को आत्ममुग्धता में ग्रस्त होने से बचाती है और उसे यह आभास दिलाती है कि इस दुनिया में दूसरे लोग भी हैं जो अच्छे काम करते हैं और उनका भी महत्व है। इस तरह से मनुष्य यह भी सीखता है कि उसे किस तरह दूसरे की मदद करना चाहिए और किस तरह से दूसरे, मदद पाकर खुश होते हैं।
एसे लोग भी होते हैं जिन के मन में अन्य लोगों के प्रति आभार और कृतज्ञता की भावना पैदा होती है मगर उनमें उसे प्रकट करने की शक्ति नहीं होती या फिर उन्हें लगता है कि इस भावना को ज़बान पर नहीं लाना चाहिए और बोल कर आभार प्रकट नहीं करना चाहिए। यह वास्तव में किसी भी व्यक्ति में एक प्रकार के रोग का लक्षण हो सकती है क्योंकि इन लोगों का मन तो दूसरे के प्रति कृतज्ञता से भरा होता है लेकिन वह इस के लाभों से वंचित रहते हैं क्योंकि जब तक वह इस भावना को प्रकट नहीं करेंगे तब तक उसके सामाजिक लाभ नहीं मिलेेंगे। इस लिए यह ज़रूरी है कि इन्सान कृतज्ञता और आभार प्रकट करने का तरीक़ा सीखे। कुल मिलकार यह कहना चाहिए कि आभार प्रकट करना भी एक कला है जिसे सीखना चाहिए।
अमरीका के लेखक व सकारात्मकता वादी शॅान एकोर ने इस संद्रभ में एक बहुत अच्छा अभ्यास बताया है। वह कहते हैं कि हर दिन सुबह नींद से जब आप जागें तो एक कागज़ पर ईश्वर की उन तीन कृपाओं के बारे में लिखे जो अाप के जीवन में हैं और फिर उन पर ईश्वर का आभार प्रकट करें और इस तरह से 21 दिन खत्म होने पर आप को उस कागज़ पर एसी 63 ईश्वरीय कृपा नज़र आएगी जिनका आप के जीवन में बेहद महत्व है किंतु पहले आप उनकी अनदेखी करते रहे हैं। आप हर दिन यह काम कर सकते हैं। इस तरह से आप सुख व शांति प्राप्त कर सकते हैं।
यही वजह है कि पैगम्बरे इस्लाम और उनके उत्तराधिकारियों के कथनों में कहा गया है कि जो किसी इन्सान का शुक्रिया अदा नहीं करता वह ईश्वर का भी शुक्रिया अदा नहीं करता। दूसरों का आभार प्रकट करना, बेहतर समाज के निर्माण में भी बेहद लाभदायक होता है। कुरआने मजीद में बार बार शुक्र करने पर बल दिया गया है और लोगों से कहा गया है कि वह शुक्र करें। इसके साथ ही कुरआने मजीद में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि तुम नेमतों का शुक्र करो तो हम उसे बढ़ाएंगे और अगर तुम इन्कार करोगो तो जान लो कि मेरा दंड कड़ा है।
फारसी भाषा में भी इसी अर्थ की एक कहावत है कि नेमत पर शुक्र नेमत ज़्यादा करता है। फारसी की इस कहावत के पीछे एक शिक्षाप्रद कहानी भी कही जाती है। कहते हैं कि पत्थर तराशने वाला एक व्यक्ति अपने काम से अप्रसन्न था और उसे लगता था कि उसका काम अच्छा नहीं है। एक दिन वह एक व्यापारी के घर से गुज़रा तो जब उस व्यापारी का शानदार घर , बाग बगीचा , नौकर- चाकर देखे तो उसे अपनी हालत पर बहुत अफसोस हुआ । वह सोचने लगा कि यह व्यापारी कितना शक्तिशाली है कितना बड़ा आदमी है काश वह भी वैसा ही हो जाए! उसके मन की बात ईश्वर ने सुन ली और अचानक ही वह एक बड़ा व्यापारी बन गया। वह बड़ा खुश था और अकड़ कर चलता था उसे लगता था कि अब उससे बड़ा कौन हो सकता है? एक दिन वह सड़क पर जा रहा था कि अचानक उस की नज़र एक व्यक्ति पर बड़ी जिसके आगे पीछे नौकरों की भीड़ थी, सैनिक थे और बड़े बड़े व्यापारी झुक झुक कर उसे सलाम कर रहे थे , पूछने पर पता चला कि वह इस क्षेत्र का शासक है। शासक की शान व शौकत देख कर उसने ईश्वर से कामना की कि काश वह कहीं का शासक होता तो कितना अच्छ होता। ईश्वर ने उसकी सुन ली और अचानक ही वह उस नगर का शासक बन गया। जहां से गुज़रता लोग उसे सलाम करते और जो चाहता करता , मगर जब बाहर निकलता तो घूप उसे परेशान करती, उसने सोचा यह सूरज कितना शक्तिशाली है राजा भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता काश वह सूरज होता, अचानक ही वह सूरज बन गया, सूरज बन कर उसका घमंड आसमान पर था, उसने सोचा पूरी धरती को गर्म कर दूंगा लेकिन तभी देखा कि उसके और धरती के बीच में बाद है जो उसकी किरणों को रोक रहा है, उसने कामना की और बादल बन गया क्योंकि उसे सब से अधिक शक्तिशाली बनना था और उसे लगा कि बादल सूरज से अधिक शक्तिशाली है । कुछ ही दिनों बाद तेज़ हवांए चलनी लगी और वह इधर से उधर उड़ने लगा तब उसे महसूस हुआ कि हवा बादल से भी अधिक शक्तिशाली है उसने कामना की और हवा बन गया। उसने हर चीज़ को उड़ाने का मन बनाया लेकिन जब एक पहाड़ के पास पहुंचा तो उससे हार गया और लाख कोशिश के बावजूद वह चट्टान को हिला नहीं पाया। उसे लगा कि यही दुनिया की सब से अधिक शक्तिशाली चीज़ है इस लिए उसने कामना की और पहाड़ बन गया। अब उसे विश्वास हो गया था कि वह सब से अधिक शक्तिशाली है लेकिन अचानक ही उसे कुछ आवाज़ें सुनायी दीं और लगा कि वह टूट रहा है उसने घबरा कर नीचे देखा तो क्या देखता है कि एक पत्थर का काम करने वाला व्यक्ति हथौड़ी लिए उसे तोड़ने में व्यस्त है।
इस शिक्षा प्रद कहानी से संतोष और शुक्र का पाठ मिलता है। मनुष्य को सदा मन को शांत रखना और अन्य लोगों के प्रति और अपने ईश्वर के प्रति कुतज्ञता प्रकट करना चाहिए। (Q.A.)