अपनी देखभाल - 20
हमने ईश्वरीय कृपा पर आभार प्रकट करने के विषय पर चर्चा की थी और बताया था कि किसी की ओर से अच्छाई या सहायता के जवाब में उसके प्रति आभार प्रकट करना वास्तव में मानसिक स्वास्थ्य का चिन्ह है।
मनोविज्ञान में आभार प्रकट करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति की भांति होता है जो बौद्धिक विकास तक पहुंच चुका होता है। इसके साथ ही हमने बताया था कि इस्लामी शिक्षाओं और पैगम्बरे इस्लाम और उनके उत्तराधिकारियों के कथनों में भी आभार प्रकट करने पर - बहुत बल दिया गया है। उदाहरण स्वरूप कहा गया है कि ईश्वर और उसके बन्दों के प्रति आभार प्रकट करने से ईश्वर की कृपा दृष्टि होती है। कृतज्ञता के मन व मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव के बाद आज के कार्यक्रम में हम एक अन्य महत्वपूर्ण भावना अर्थात मूल्यवान होने के आभास पर चर्चा कर रहे हैं।
महत्वपूर्ण होने का आभास वास्तव में वह विचारधारा है जो हर व्यक्ति की अपने बारे में होती है । इस विचारधारा के अंतर्गत मनुष्य अपनी योग्यताओं और क्षमताओं के बारे में एक विचार रखता है और उसी के आधार पर अन्य लोगों के साथ अपने व्यवहार की शैली का निर्धारण करता है। उदाहरण स्वरूप एक व्यक्ति को यदि किसी आफिस में तरक्की दे दी जाए और उसे महत्वपूर्ण पद दिया जाए और उसका वेतन भी बढ़ा दिया जाए तो विदित रूप से उसके हालात ठीक हैं किंतु यदि यही व्यक्ति इस पूरी अवधि में स्वंय को अयोग्य समझता रहे और उसे यह हमेशा लगे कि वह इस पद के योग्य नहीं है तो वास्तव में वह व्यक्ति स्वंय के साथ अन्याय कर रहा है और इस प्रकार से वह स्वंय को विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों के दलदल में फंसा रहा है।

स्वंय को महत्वहीन समझना, स्वंय को बर्बाद करने की प्रक्रिया का आरंभ है। यदि आप को यह पता करना है कि आप में यह चीज़ है या नहीं तो आप इस बात पर ध्यान दें कि आप स्वंय की दूसरों से तुलना कितनी करते हैं। आप दूसरो से अपनी तुलना जितना अधिक करते हैं , उतना ही अधिक आप हीन भावना में ग्रस्त हैं। जो लोग हीन भावना में ग्रस्त होते हैं वह हमेशा दूसरों से अपनी तुलना करते हैं और स्वंय को कमतर समझते हैं। वास्तव में इस प्रकार के लोगों को स्वंय से अपेक्षा बहुत अधिक होती है और उन्हें यह लगता है कि उनमें चुनौतियों का सामना करने की क्षमता नहीं है और वह स्वंय को बदल नहीं सकते। इसकी वजह यह है कि यह लोग दूसरों को बाहर से देखते हैं और स्वंय के भीतर से उसकी तुलना करते हैं अर्थात हमेशा दूसरों के ड्राइंग रूम की तुलना अभी सर्वेंट क्वाटर से करते हैं इस प्रकार से उन्हें अपने में हमेशा कमी नज़र आती है। इसी लिए कहा जाता है कि अन्य लोगों के बाहरी रूप से अपने भीतर की वास्तविकताओं की तुलना नहीं करना चाहिए।
मुर्फ्य्स लॉ के अनुसार जिन लोगों में हीन भावना होती है वह स्वंय को तबाह करते हैं अर्थात जो यह महसूस करता है कि उससे गलती होगी तो उससे गलती ज़रूर हो जाती है। इस प्रकार से लोग हर घटना के लिए स्वंय को ज़िम्मेदार समझते हैं विशेषकर विफलताओं के लिए स्वंय को ज़िम्मेदार समझते हैं और सफलताओं का सेहरा दूसरों के सिर बांधते हैं। इस कानून के अनुसार जब आप समस्या के बारे में सोचेंगे और उससे बचने पर बहुत अधिक ध्यान देंगे तो वह समस्या अवश्य आप को हो जाएगी। उदाहरण स्वरूप आप रोज़ खाना खाते हैं और सामान्य रूप से कुछ नहीं होता लेकिन अगर किसी दिन आप ने सफेद चकमता हुआ कपड़ा पहन रखा हो और आप की यह डर हो कि कहीं खाते में कोई चीज़ आप के कपड़े पर गिर न जाए या दाग न लग जाए तो विश्वास कीजिएगा इस बात की बहुत संभावना है कि एसा हो ही जाए।
जो लोग स्वंय के बारे में अच्छी सोच और भावना रखते हैं वह दूसरों को भी अच्छा ही देखते हैं। वास्तव में यह भावना, आस पास के माहौल से बहुत अधिक प्रभावित होती है और हर मनुष्य के आस पास के वातावरण से बदलती रहती है। जब किसी व्यक्ति में आत्मविश्वास और स्वंय के बारे में भावना समस्या ग्रस्त हो जाती है तो निश्चित रूप से अपने साथ साथ दूसरों के बारे में भी उसकी भावना बदल जाती है। इस प्रकार के लोग हमेशा, आधे भरे हुए गिलास के आधे खाली भाग पर ही ध्यान देते हैं और उसे हमेशा यह लगता है कि कुछ न कुछ बुरा होने वाला है और जो भी बुरा होगा उसके मुकाबले में उसकी क्षमता कम है और वह उसका सामना नहीं कर पाएगा ।
स्वंय में आत्मविश्वास पैदा करने के लिए और सब से पहले स्वंय अपनी योग्यताओं में विश्वास पैदा करना ज़रूरी है। स्वंय को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि आप योग्य हैं , यह कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है कुछ अभ्यास , कुछ कोशिश से आप यह क्षमता अपने भीतर पैदा कर सकते हैं। इसके साथ यह भी हमें समझना चाहिए कि हमेशा हमारी मनोदशा एक जैसी नहीं रहती और हमेशा हमारा स्वभाव ठीक नहीं रहता और हमेशा दूसरे हम से खुश नहीं रहते लेकिन जिंदसी इसी का नाम है , उतार चढ़ाव और दुख सुख के साथ जीना चाहिए, अपनी कमज़ोरियों को समझना और उन्हें दूर करने का तरीका सीखना चाहिए और अपने भीतर गुण पैदा करना चाहिए । विश्वास रखे यदि आप मे गुण हैं तो वह अन्य लोगों को ज़रूर नज़र आएंगे इसके लिए आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं। इसके साथ ही यह भी जान लें कि जितना अधिक आप को स्वंय पर भरोसा होगा, दूसरों को भी उतना ही अधिक आप पर विश्वास होगा। तो इस तरह से हम देखते हैं कि अन्य लोगों का हमारे साथ व्यवहार , वास्तव में हमारे अपने व्यवहार का परिणाम है , हम स्वंय को जैसा समझेंगे , हम स्वंय को जितना महत्व देंगे , अन्य लोग भी हमें उतना ही महत्व देंगे।
इसके साथ ही एक बहुत ही महत्व बात पर हमें ध्यान देना चाहिए और वह महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें स्वंय को दूसरों के दृष्टिकोणों और विचारों पर हमेशा तौलना नहीं चाहिए अर्थत हमें अपने भीतर यह सोच मज़बूत नहीं होने देना चाहिए कि हम अच्छे उसी समय हैं जब दूसरे हमें अच्छा समझें । इस तरह से हम अपने मूल्य और अपने महत्व को दूसरों से निर्भर कर लेते हैं जो बेहद घातक है। वास्तव में आत्मविश्वास और स्वंय को महत्व पूर्ण समझना , एक आतंरिक भावना है जिसकी उत्पत्ति मनुष्य के भीतर से होती है इस लिए दूसरे तारीफ करें या बुराई, यदि हम स्वंय को अच्छा समझते हैं तो इसका मतलब है कि हम अच्छे हैं हां यह अलग बात है कि हमें अपने खिलाफ दूसरों की बातों पर ध्यान देना चाहिए और देखना चाहिए कि कहीं वास्तव में हम किसी गलत फहमी में तो ग्रस्त नहीं हैं।
दूसरों की बातों पर निर्भरता और दूसरों के मुंह से अपनी प्रंशसा सुनने और उसे के अनुसार फैसले करने की प्रवृत्ति मनुष्य को कभी कभी बहुत नुकसान पहुंचा देती है। कहते हैं कि बहुत पहले की बात है एक पंडित जी ने बकरी का एक बच्चा खरीदा, बाज़ार में शिकार की तलाश में टहल रहे कुछ ठगों की नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने पंडित का शिकार करने का इरादा कर लिया। तीन चार ठग , बाज़ार से गांव में पंडित जी के घर के रास्ते में अलग अलग जगहों पर बैठ गये और जब पंडित जी बकरी का बच्चा लेकर घर की तरफ चले तो रास्ते में एक ठग ने उनसे उनका हाल चाल पूछा और कहा कि पंडित जी यह कुत्ता लेकर कहां जा रहे हैं? पंडित जी ने उसे डांट कर भगा दिया, कुछ आगे बढ़ने पर दूसरा ठग मिला उसने भी कुशल मंगल पूछने के बाद कहा कि पंडित जी यह कुत्ता लिये कहां जा रहे हैं, पंडित जी ने उसे भी डांटा लेकिन बकरी के बच्चे को गोद से उतार दिया और आगे बढ़े आगे जाकर तीसरे ठग ने भी यही किया और पंडित जी को अपने ऊपर शक होने लगा और उन्होंने सोचा कि इतने लोग गलत कैसे देख सकते हैं, ज़रूर मुझे ही कोई गलतफहमी हुई होगी। यह सोच कर उन्होंने बकरी के बच्चे को छोड़ दिया और आगे बढ़ गये।
इस तरह से हम देखते हैं कि दूसरों की बातों पर हद से अधिक भरोसा हमें नुकसान पहुंचाता है इसलिए दूसरों की बातों को , अपने भीतर अच्छाई या बुराई का तराज़ू कदापि नहीं बनाना चाहिए और हमेशा अपनी बुद्धि इस्तेमाल करना चाहिए और अन्य लोगों के सामने हीन भावना के बजाए , आत्मविश्वास से भरा व्यवहार करना चाहिए। (Q.A.)