Apr ३०, २०१९ १५:४५ Asia/Kolkata

अच्छा जीवन बिताना एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्रयत्न, प्रयास और अपनी जीवन शैली में परिवर्तन से हासिल होती है।

हमने बताया था कि सोचने समझने, बुद्धि से काम लेने वाले, पाठ सीखने वाले और दूसरों से परामर्श करने वाले लोग अपने कामों में अधिक सफल रहते हैं और जीवन में उनकी ग़लतियां दूसरों से कम होती हैं। वे बेहतर जीवन बिताने के लिए दूसरों की राय से भी लाभ उठाते हैं। सलाह लेने और परामर्श करने के संबंध में अनेक अहम बिंदु हैं और इससे मनुष्य को अनेक लाभ और विभूतियां हासिल होती हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जो बुद्धिमान व प्रवीण लोगों से परामर्श करता है वह बुद्धियों के प्रकाश से जगमगा जाता है।

प्रयास, निरंतरता, ईश्वर पर भरोसे, सुव्यवस्था, कार्यक्रम तैयार करने, बुद्धि से लाभ उठाने और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य जैसे अनेक कारण हैं जो मनुष्य की प्रगति में भूमिका निभाते हैं लेकिन बेहतर जीवन में परामर्श और दूसरों के अनुभवों से लाभ उठाने की मूल भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती। परामर्श का अर्थ होता है समाधान खोजने या किसी विषय के बारे में फ़ैसला करने के लिए दो या अधिक लोगों का आपस में विचारों का आदान-प्रदान करना। परामर्श यानी खोजना या किसी की राय व युक्ति चाहना।

हदीसों में आया है कि दूसरों से परामर्श इस बात का कारण बनता है कि मनुष्य अपने कामों को सफलतापूर्वक ढंग और अधिक बुद्धिमत्ता से अंजाम दे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि काम करने से पहले किसी धर्मावलम्बी व्यक्ति से परामर्श करने वाले को ईश्वर सर्वोत्तम काम में सफल करता है। परामर्श एक ऐसा काम है जो दूसरों के विभिन्न विचारों व दृष्टिकोणों की मदद से अपनी व अन्य लोगों की क्षमताओं व योग्यताओं को पहचानने में मनुष्य की मदद करता है और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उसके समक्ष उचित समाधान रखता है।

 

परामर्श ईश्वर की ओर से मनुष्यों के लिए एक बड़ी अनुकंपा है जो लोगों के बीच एकता व समरसता बढ़ाती है। क़ुरआने मजीद के सूरए शोअरा की 38वीं आयत में ईश्वर कहता है कि ईमान वाले तो वही लोग हैं जो अपने पालनहार की पुकार का उत्तर देते हैं, नमाज़ स्थापित करते हैं और उनका काम एक दूसरे से परामर्श पर आधारित होता है। इस आयत पर ध्यान देने से हमें पता चलता है कि वास्तविक ईमान वाले वही लोग हैं जो जब भी कोई काम करना चाहते हैं तो एक दूसरे से परामर्श करते हैं। वे सबसे अच्छे चयन पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं और इसके लिए बुद्धि वालों से संपर्क करते हैं।

क़ुरआने मजीद, परामर्श को लोगों के व्यवहार का आधार बताता है ताकि इस माध्यम से लोगों के आत्ममुग्धता का रास्ता बंद कर दिया जाए और उनके बीच अधिक सहमति, समन्वय व समरसता की जड़ें मज़बूत कर दी जाएं। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम इस संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहते हैं कि हे अली! कामों में परामर्श से बढ़ कर कोई विश्वस्त सहारा नहीं है।

 

ज़िंदगी एक नदी की तरह आगे बढ़ती जा रही है और उसके अवसर बादल व बिजली की तरह तेज़ी से गुज़रते जा रहे हैं। अगर हम जीवन के रास्ते में केवल अपने विचार और राय पर डटे रहेंगे तथा अपने आपको दूसरों से आवश्यकतामुक्त समझेंगे तो यह ऐसा ही है जैसे हम पहाड़ की चोटी के किनारे खड़े हैं जिसके साथ ही एक गहरी घाटी है। यह बात युवाओं में विशेष रूप से दिखाई देती है। संभव है कि जवानी का अहंकार जीवन में ग़लत फ़ैसलों का कारण बन जाए और युवा की ज़िंदगी बर्बाद हो जाए। जब खिड़की का पर्दा हटा कर सूरज के प्रकाश से सीधे सीधे लाभ उठाया जा सकता हो तो क्यों एक छोटे से मद्धम प्रकाश वाले दीपक को पर्याप्त समझा जाए? दूसरों के विचारों व मतों को जानने से हमारे लिए किसी विषय के सभी आयाम स्पष्ट हो जाते हैं और फिर हम सरलता से सबसे अच्छा फ़ैसला कर सकते हैं।

यह बात परिवार में, जो प्रेम, स्नेह व दया और प्रशिक्षण का केंद्र है , अधिक सुंदर रूप में दिखाई देती है। जब माता-पिता एक दूसरे से बात करते हैं, सहयोग करते हैं और घर के मामलों में एक दूसरे से सलाह लेते हैं तो निश्चित रूप से वे जीवन के मामले में भी अधिक बेहतर फ़ैसले करते हैं और परिवार के बेहतर जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

परामर्श की भावना उन कारकों में से है जो परिवार के सदस्यों के बीच ताल-मेल और सहयोग का कारण बनती है। यह चीज़ एक घनिष्ठ व मज़बूत परिवार के गठन के साथ ही जीवन की कठिनाइयों व रुकावटों के मुक़ाबले में उत्तम रक्षक भी है। मानव जीवन के पूरे इतिहास में सबसे अच्छे और सबसे मज़बूत घराने वही रहे हैं जिनमें पति-पत्नी व बच्चों ने समरसता व सहकारिता से क़दम आगे बढ़ाए हैं। इसका सबसे उच्च व उत्तम उदाहरण हज़रत अली अलैहिस्सलाम व हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का संयुक्त जीवन है।

 

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम का दांपत्य जीवन शुरू होने के आरंभ में ही उनसे पूछा कि तुमने अपनी जीवन साथी को कैसा पाया? उन्होंने उत्तर में कहा कि मैंने हज़रत फ़ातेमा को बेहतरीन जीवन साथी पाया जिनकी मदद से ईश्वर का अनुसरण किया जा सकता है। हज़रत अली इसी तरह अपने दांपत्य जीवन में हमेशा हज़रत फ़ातेमा से अपने लगाव का प्रदर्शन करते थे और उन्हें सूचित किए बिना कुछ नहीं करते थे। वे उनसे परामर्श करके बहुत ख़ुश होते और कभी कभी तो वे दूसरों के समक्ष अपने बातों को सिद्ध करने के लिए अपनी पत्नी अर्थात हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की बातों को तर्क के रूप में पेश किया करते थे।

परामर्श, परिवार के सदस्यों विशेष कर बच्चों की नज़र में उनके महत्वपूर्ण होने की भावना के मज़बूत होने का कारण बनता है जिससे उनका व्यक्तित्व निखरता है। अगर परिवार के माहौल में माता-पिता बच्चों के विचारों को महत्व दें और उनके दृष्टिकोणों का सम्मान करें तो उन्हें अपने व्यक्तित्व का आभास होगा। माता-पिता का यह व्यवहार बच्चों के उत्साह में वृद्धि, उनकी गतिविधियों में बढ़ोतरी और परिवार के माहौल में उनके अधिक से अधिक शामिल होने का कारण बनेगा। इसी तरह बच्चों के विचारों व मतों का सम्मान परिवार के मानसिक संतुलन और वैचारिक स्वास्थ्य में मदद का कारण बनेगा।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम परामर्श के बारे में अपने एक स्वर्ण कथन में अत्यंत रोचक बिंदु की तरफ़ इशारा करते हुए कहते हैं कि जब भी तुम्हारे सामने ऐसा काम आ जाए जिसमें तुम्हें दूसरों से सलाह लेने की ज़रूरत हो तो पहले युवाओं से परामर्श करो क्योंकि वे अधिक बुद्धिमान हैं और अधिक जल्दी अनुमान लगा लेते हैं। इसके बाद वृद्धों से परामर्श करे ताकि वे कार्य के अंजाम से तुम्हें सूचित करें। इसके बाद तुम सबसे अच्छी राय का चयन करो क्योंकि उनका अनुभव अधिक है।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने एक बहुमूल्य कथन में बताया है कि तीन प्रकार के लोग परामर्श के योग्य नहीं हैं। वे कहते हैं कि कंजूस से परामर्श न करो कि वह तुम्हें भलाई से रोक देगा और आर्थिक तंगी से डराएगा। डरपोक से भी परामर्श न करो कि वह कार्यों को अंजाम देने के संबंध में तुम्हारे उत्साह को ठंडा कर देगा और लोभी से भी सलाह मत लो कि वह तुम्हारी नज़रों में लोभ को अच्छा बनाकर पेश करने की कोशिश करेगा। निश्चित रूप से कंजूसी, डर और लोभ ऐसी भावनाएं हैं जिनकी जड़, महान ईश्वर के संबंध में दुर्भावना है।

इतिहास की किताबों में वर्णित है कि एक बार ईश्वर के महान फ़रिश्ते हज़रत जिब्रईल हज़रत सुलैमान पैग़म्बर के पास आए तो अमृत का एक प्याला लाए और कहने लगेः महान ईश्वर ने आपको यह अधिकार दिया है कि अगर आप इस प्याल को पी लें तो प्रलय तक जीवित रहेंगे, अब चयन आपको करना है। हज़रत सुलैमान ने अपने निकटवर्ती लोगों, जिन्नों और अन्य जीवों से इस बारे में सलाह मांगी। सभी ने कहा कि आपको यह प्याला पी लेना चाहिए ताकि आप अमर हो जाएं। हज़रत सुलैमान ने सोचा कि कहीं कोई ऐसा तो नहीं रह गया है जिससे उन्होंने सलाह न मांगी हो? फिर उन्हें याद आया कि साही से उन्होंने उसकी राय नहीं पूछी है। उसे हज़रत सुलैमान के पास लाया गया। उन्होंने उसे बताया कि उन्हें अमृत का एक प्याला और यह अधिकार दिया गया है कि अगर वे चाहें तो उसे पी लें और चाहें तो न पियें। सभी ने अपना विचार बता दिया है, तुम क्या कहते हो? साही ने पूछा कि यह प्याला आप अकेले पियेंगे या अपनी बच्चों व दोस्तों के साथ पियेंगे। उन्होंने जवाब दिया कि इसे केवल मुझे दिया गया है। साही ने कहा कि फिर बेहतर यह है कि आप इसे न पियें। हज़रत सुलैमान ने पूछा कि क्यों? साही ने जवाब दिया। इस लिए कि जब आपका जीवन लम्बा हो जाएगा तो आपके सभी मित्र, पत्नी और बच्चे आपके सामने मर जाएंगे। आप उन सभी का शोक मनाएंगे और जब आपके परिजन और दोस्त आपके साथ न हों तो ऐसे जीवन का क्या फ़ायदा? हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम को उसका विचार पसंद आया और उन्होंने अमृत का वह प्याला लौटा दिया।

जी हां! हमें ऐसे अमर व ख़ुश जीवन की खोज में रहना चाहिए जिसमें दुख न हों और इस प्रकार की ज़िंदगी केवल ईश्वर के स्वर्ग में ही संभव है जिसे ईमान व भले कर्मों की छाया में हासिल किया जा सकता है। यह महान पारितोषिक उन लोगों के लिए है जिन्हें दुनिया से बेहतर ढंग से जीवन बिताने की कला आती है। ये लोग दुनिया में भी अच्छा जीवन बिताते हैं और अपना परलोक भी सुंदर ढंग से तैयार करते हैं। (HN)