May १२, २०१९ १२:५९ Asia/Kolkata

आईए हम हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के एक और नैतिकता के पाठ को सुनते हैं।

मासूम अलैहिस्सलमाम सुरए जुमे की आयत नंबर आठ की तिलावत करते हैं,

قُلْ إِنَّ الْمَوْتَ الَّذِي تَفِرُّونَ مِنْهُ فَإِنَّهُ مُلَاقِيكُمْ ۖ ثُمَّ تُرَدُّونَ إِلَىٰ عَالِمِ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴿٨﴾

“(हे पैग़म्बर) कह दीजए कि जिस मौत से तुम लोग भाग रहे हो वह ज़रूर तुम्हारे सामने आएगी फिर तुम उस ईश्वर की ओर पलटा दिए जाओगे जो छिपी और प्रकट बातों का जानकार है फिर जो कुछ तुम करते थे उससे वह तुम्हें अवगत कराएगा।”

इस आयत का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ नेता फरमाते हैं कि, इंसान की ज़िन्दगी पहले साल के हिसाब से गिनी जाती है, जैसे कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति कितने वर्ष का है? 40 साल, 50 साल, 70 साल और इसी तरह वर्षों को गिना जाता है, लेकिन इसके बाद जब इंसान बीमारी आदि के चरण में पहुंचता है तो महीने गिने जाने लगते हैं और फिर साल की बात नहीं होती महीने गिने जाते हैं। जैसे डॉक्टर किसी से कहता है कि, श्रीमान, आप 6 महीने और जीवित हैं या 4 महीने और जिंदा रहेंगे, इसमे महीनों को गिना जाता है। इसके बाद इंसान एक ऐसे चरण में चला जाता है जहां महीने की भी बात नहीं होती, इस चरण में यह नहीं कहा जाता कि कितने महीने, बल्कि यहां बात होती है दिनों की, 10 दिन बचे हैं, 5 दिन बचे हैं या 15 दिन बचे हैं, इस तरह गिना जाता है। इसके बाद इंसान ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि जहां दिन भी नहीं गिना जाता है, जैसे कहा जाता है कि बस जाने वाले हैं, कुछ घंटे के मेहमान हैं, 5 घंटे बचे हैं, 3 घंटे बचे हैं इस चरण में घंटे गिने जाने लगते हैं। इसके बाद सांसें गिनी जाने लगती हैं और यह उस स्थिति में होता है जब इंसान अपने जीवन के अंति क्षण में पहुंच जाता है और इंसान देखता व समझता है कि अब उसकी अंतिम सांसें चल रही हैं और अब कोई कुछ नहीं कर सकता है। इन तमाम चीज़ों को केवल इस लिए बताया गया है ताकि हम सब इसको याद रखें।

नैतिकता के एक और पाठ में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपनी अंतिम यात्रा के लिए तैयार होने की आवश्यकता के संबंध में कुछ बातों की ओर इशारा किया है।

एक व्यक्ति इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के पास आता है और कहता है कि आप मुझे कुछ नसीहतं कीजिए, इमाम अलैहिस्सलाम उसके जवाब में फ़रमाते हैं कि, अपने आपको सफ़र के लिए तैयार करो, “उन सभी चीज़ों को इकट्ठा करो जो तुम्हारे सफ़र के लिए ज़रूरी हैं। अपनी यात्रा के सभी ऐसे साधनों को जमा कर लो जो तुमको तुम्हारे गंतव्य तक पहुंचा सकें” इन सबको तैयार करो क्योंकि तुम्हें एक यात्रा पर जाना और वह सभी चीज़ें जो तुमको तुम्हारे इस सफ़र पर ज़रूरी होंगी उनको पहले से तैयार कर लो।

तुम स्वयं, खुद के उत्तराधिकारी बनो, मृत्यु को क़रीब देखते हुए हम किसी को भी अपना उत्तराधिकारी चुनते हैं, ताकि वह हमारे कामों की देखरेख कर सके, हमारे क़र्ज़ों के चुका सके और ऐसे सभी काम जो हम न कर सकें (मृत्यु के कारण) उनको पूरा सके, जैसे नमाज़, रोज़ा और क़र्ज़, इन सभी को उत्तराधिकारी को सौंपते हैं। इमाम फ़रमाते हैं कि तुम स्वयं, खुद के उत्तराधिकारी बनो, इसका अर्थ यह है कि तुम कोशिश करो अपने कामों को स्वयं अंजाम दो, इस प्रतीक्षा में न रहो कि तुम्हारे मरने के बाद कोई दूसरा तुम्हारे कामों को अंजाम देगा, सबसे अच्छा है कि तुम स्वयं जीवित रहते हुए अपने कामों का पूरा करो।

इस तरह ऐसा न हो कि किसी दूसरे से कहो कि तुम्हे जिस चीज़ की आवश्यकता है उसको वह तुम्हारे लिए भेज दे, क्योंकि बेहतर यह है कि जिस चीज़ की तुम्हे आवश्यकता है उसे दूसरा तुमको भेजे इससे पहले तुम स्वयं उसको ले लो, इससे पहले कि तुम्हारे पास समय न रहे, अपने हाथों से अपनी मर्ज़ी से अपने लिए उस चीज़ को प्राप्त कर लो। यह इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम द्वारा की गई नसीहत है। (RZ)