Jun २४, २०१९ १२:२१ Asia/Kolkata

वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलमा फरमाते हैं एक व्यक्ति ने अबूज़र के नाम अपने एक पत्र में लिखा कि हे अबूज़र! अपने ज्ञान से हमें कोई नयी बात बताएं और नया उपदेश दें।

तो यह पढ़ कर इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने लिखाः ज्ञान तो बहुत है किंतु मैं तुझे बताता हूं कि जिसे चाहते हो उसके साथ बुराई न करो, यह याद रखो अर्थात इसकी कोशिश करो कि तुम जिसे पसन्द करते हो उसके साथ बुराई न करो। तो इस पर उस व्यक्ति ने पूछा कि क्या आप ने किसी एसे को देखा है जो उसके साथ बुराई करता हो जिसे वह चाहता हो? अर्थात व्यक्ति ने अबूज़र के नाम अपने अगले पत्र में लिखा कि यह क्या बात हुई, आदमी जिसे चाहता है उसके साथ बुराई कैसे कर सकता है? यह पढ़ कर अबूज़र ने उसके लिए लिखा कि हां, हमने देखा है, स्वंय तुम, हर व्यक्ति इस दुनिया में सब से अधिक अपने आप को चाहता है, सब से अधिक स्वंय को चाहता है किंतु ईश्वर की अवज्ञा करता है और पाप करता है इस प्रकार से अपने लिए ईश्वरीय प्रकोप का मार्ग प्रशस्त करता है और यह वास्तव में अपने साथ बुराई करना है।

वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पैगम्ब़रे इस्लाम ने फरमाया है कि लोक और परलोक के मध्य सीमा को पार करने वाले दो प्रकार के होते हैं एक वह लोग हैं जो बड़ी आसानी से पार कर लेते हैं और दुख से छुटकारा प्राप्त कर लेते हैं और कुछ लोग एसे होते हैं कि जब वह इस सीमा को पार कर लेते हैं तो दूसरे लोग उनसे छुटकारा पा लेते हैं। तो जो लोग, लोक परलोक की सीमा पार करके सुख का सांस लेते हैं वह ईश्वर के नेक बंदे होते हैं वह उपासना के दुखों और कठिनाइयों से छुटकारा पा लेते हैं, रात भर जागने और उपासना करने से बच जाते हैं और एक सुखमय जीवन की ओर बढ़ जाते हैं हालांकि उच्च स्थान तक पहुंचने वाले ईश्वरीय दासों के लिए उपासना के दुख भी सुख में बदल जाते हैं किंतु इन सब के बावजूद बहरहाल यह एक प्रकार की प्रतिबद्धता होती है इसी लए कहा जाता है कि ईश्वर के नेक बंदे, इस लोक की समस्याओं से छुटकार पाकर परलोक के हमेशा रहने वाले सुख की ओर बढ़ जाते हैं और उनका ठिकाना स्वर्ग होता है। (Q.A.)

 

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