Jul ०८, २०१९ १०:५९ Asia/Kolkata

परहेज़गारी का सबसे ऊंचा दर्जा यह है कि हराम चीज़ों से परहेज़ किया जाए। मिसाल के तौर पर कोई एसा भी होता है जो अच्छे खाने और अच्छे लिबास से भी परहेज़ करता है।

वह सुंदर जगहों की सैर में भी रूचि नहीं रखता। इसे भी परहेज़गारी कहा जाता है। यह सब कुछ ठीक है कि इंसान अपने जीवन में ज़ाहिरी ठाठ बाट और सुविधाएं भोगने से बचे लेकिन इसमें भी सीमा का ध्यान रखे। मगर एक परहेज़गारी सबसे बड़ी है और वह है गुनाह से बचना। कुछ लोग हैं जो मुसतहेब काम करते हैं लेकिन वाजिब काम छोड़ देते हैं। मकरूह कही जाने वाली चीज़ें छोड़ देते हैं लेकिन हराम चीज़ों से परहेज़ नहीं करते। इसका कोई फ़ायदा नहीं है।

ईश्वर के सदाचारी बंदे ख़ुद को हर प्रकार के बुरे और अनुचित कर्मों से दूर रखते हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गुनाह से बचा जाए। जिन चीज़ों को ईश्वरीय धार्मिक नियमों में खुले रूप में गुनाह क़रार दिया गया है उनसे परहेज़ किया जाए। हराम चीज़ों से परहेज़ करने से बढ़कर कोई परहेज़गारी नहीं हो सकती। याद रखिए कि यह परहेज़गारी सबसे महान है। अनफ़अ की रवायत यही कहती है। इसमें बताया गया है कि यदि इंसान दूसरे बुरे और ग़ैर ज़रूरी कामों से खुद को दूर रखता है तो यह अच्छी बात और परहेज़गारी है लेकिन सबसे बड़ी परहेज़गारी यह है कि इंसान गुनाह से बचे।

पैग़म्बरे इस्लाम से रिवायत है कि सबसे दृढ़ संकल्प रखने वाला व्यक्ति वह है जो अपने क्रोध पर नियंत्रण रखे। इसलिए कि क्रोध इंसान की अक्ल पर पर्दा डाल देता है। क्रोध की स्थिति में इंसान अक्ल इस्तेमाल करना भूल जाता है और जब इंसान अक्ल के नियंत्रण से निकल जाए तो उल्टै सीधे काम करता है। अतः यदि इंसान चाहता है कि सभी ज़रूरी आयामों का ध्यान रखे तो उसे चाहिए कि अपने क्रोध पर नियंत्रण करे।

 

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