Jul १३, २०१९ १५:४३ Asia/Kolkata

हमने ईरान के सुन्दर नगर इस्फहान की यात्रा की थी और आपको वहां के कुछ पर्यटल स्थलों व इमारतों से अवगत कराया था।

इसके अलावा हमने आपको यह भी बताया था कि इस्फहान के प्रसिद्ध "इमाम स्क्वायर" के चारों तरफ़ दो मंज़िला 200 कमरे बने हुए हैं जो प्रायः इस्फ़हान के हस्तकला उद्योग की वस्तुओं की बिक्री के लिए दुकान के रूप इस्तेमाल होते हैं। इस स्क्वायर में विभिन्न रास्ते हैं जो इसके चारों ओर स्थित बाज़ारों की ओर जाते हैं। मैदान के चारों तरफ़ चार बाज़ार स्थित हैं जो दुकानों के माध्यम से मैदान से जुड़ जाते हैं। सफ़वी शासन काल में इनमें से हर बाज़ार किसी विशेष काम से जुड़ा हुआ था।

आज इस मैदान के पश्चिम में स्थित बाज़ार में तांबा उद्योग से संबंधित काम होते हैं। उत्तरी बाज़ार में क़ालीन और गालीचों की बिक्री होती है। पेरिस के कॉन्कर्ड स्क्वायर की तुलना में इस्फ़हान के नक़्शे जहान स्क्वायर को ऐतिहासिक दृष्टि से श्रेष्ठता प्राप्त है और यह बीजिंग के त्यान आनमेन स्क्वायर के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्क्वायर माना जाता है। यह मैदान अपने निर्माण की शैली में पाए जाने वाले समन्वय के कारण शताब्दियों से इसे देखने वाले लोगों को अचरज में डालता आ रहा है।

नक़्शे जहान स्क्वायर के पश्चिमी छोर पर आली क़ापू महल की इमारत है जो छः मंज़िला है और लगभग 1800 वर्ग मीटर पर बनी हुई है। मैदान के तल से इस महल की ऊंचाई 34 मीटर है और इसकी हर मंज़िल पर किसी विशेष कला की साज सज्जा दिखाई देती है। इस इमारत की अहम विशेषताओं में से एक प्रवेश द्वार पर ध्वनि की विशेष प्रतिक्रिया, अत्यंत सुंदर रिसेप्शन हाल, संगीत का मुख्य हाल और बैठक, मुलाक़ात, मंत्रीमंडल की बैठक और राजदूतों व अतिथियों के रहने के लिए बनाए गए 53 कमरे हैं। इस इमारत का मुख्य बोझ दीवारों और लकड़ी के मोटे मोटे खम्बों पर है।

मस्जिदे इमाम भी, नक़्शे जहान या इमाम स्क्वायर की अत्यंत वैभवशाली मस्जिदों में से एक है जो स्क्वायर के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यह मस्जिद, मस्जिदे सुलतानी, मस्जिदे जामे और मस्जिदे शाह के नाम से भी मशहूर है। मस्जिदे इमाम का निर्माण शाह अब्बास सफ़वी के शासन के 24वें साल में किया गया और इसमें टाइलों के अत्यंत सुंदर काम किये गये हैं। इस मस्जिद का हौज़, वैभवशाली गुंबद, सतरंगी टाइलें और एक ही आकार व कोण के बने हुए ताक़ अत्यंत दर्शनीय हैं।

इमाम स्क्वायर में स्थित एक अन्य दर्शनीय इमारत, मस्जिदे शैख़ लुत्फ़ुल्लाह है जो इसके पूर्वी छोर पर आली क़ापू महल के ठीक सामने स्थित है। यह धार्मिक स्थल शाह अब्बास सफ़वी के आदेश पर शैख़ लुत्फ़ुल्लाह अलमीसी को श्रद्धांजली अर्पित करने के लिए 17 साल में बन कर तैयार हुआ। 11वीं शताब्दी हिजरी में वास्तुकला व टाइलों के काम के उत्कृष्ट नमूने इस मस्जिद में देखे जा सकते हैं। इस मस्जिद की वास्तुकला में प्रकाश व रंगों का अत्यंत रोचक संगम देखा जा सकता है। इस मस्जिद की छत पर अन्य मस्जिदों के विपरीत कोई मीनार नहीं है और इसी तरह इसमें आंगन भी नहीं है। यह मस्जिद अपनी बेजोड़ वास्तुकला और 32 मीटर ऊंचे के गुंबद के साथ हर देखने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती है। इस वैभवशाली इमारत के वास्तुकार उस्ताद मुहम्मद रज़ा इस्फ़हानी थे। मस्जिद का प्रवेश द्वार सफ़वी काल के प्रख्यात सुलेखक अली रज़ा अब्बासी द्वारा सुल्स लीपि में लिखे गए शिलालेख से सुसज्जित है।

इस कार्यक्रम में भी हम सुन्दर व ऐतिहासिक नगर इस्फहान के कुछ दर्शनीय स्थलों से आपको परिचित करायेंगे। तो सबसे पहले इस्फहान की सुन्दर व हरी भरी “चहार बाग़” सड़क की यात्रा पर चलते हैं। इस सड़क की गणना इस्फहान के सुन्दर पर्यटन व व्यापारिक स्थलों में होती है।

“चहारबाग़ अब्बासी” सड़क का निर्माण शाह अब्बास प्रथम के काल में हुआ था जिसका संबंध 1000 हिजरी कमरी बराबर 1591 इसवी से है। यह सुन्दर सड़क आज भी मौजूद है। इसके उपरी भाग पर चार बाग़ और चार बाग़ निचले हिस्से की ओर हैं और यह चहार बाग़ के नाम से मशहूर हैं।

“चहारबाग़ अब्बासी” सड़क के उपरी हिस्से में जो चहार बाग़ है उसके बीच में “सीओ से” नामका पुल” है जिसके माध्यम से बाग़ के दोनों हिस्से एक दूसरे से जुड़ते हैं।

चहार बाग़ नाम के जो बाग हैं उनके अंदर दो रास्ते सवारों के लिए, दो रास्ते साइकल चलाने वालों के लिए और तीन रास्ते पैदल चलने वालों के लिए हैं। इसी प्रकार इस बाग़ में चेनार और एम (ELM) के पेड़ों की अलग- अलग पंक्तियां हैं जो एक दूसरे को अलग करती हैं। इस बाग़ में घुमने से जो आनंद प्राप्त होता है उसे न तो शब्दों में बयान किया जा सकता है और न ही भुलाया जा सकता है। जब हम चेनार और एम के पेड़ों की छांव में घुमते हैं तो जूते, बैग और इस्फहान के हस्त उद्योग के सामानों से भरी दुकानें दिखाई पड़ती हैं जो हर यात्री व पर्यटक के ध्यान को अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं। जब हम चहार बाग़ अब्बासी की ओर जाते हैं तो सबसे पहले दरवाज़े दौलत नामक स्थान पर पहुंचते हैं और यह वह जगह है जहां “बाग़े हश्त बेहिशत” और महल स्थित है। चहार बाग़ के पास जो सुन्दर महल और छाता रूपी छतें थीं उनमें से अब केवल “हश्त बेहिश्त” नामक महल बाकी है। इस सुन्दर महल को अपने समय में विश्व का सुन्दरतम महल समझा जाता था और इसका निर्माण वर्ष 1080 हिजरी कमरी में शाह सुलैमान  सफवी के शासन काल में “बुलबुल” नामक बाग़ के समीप कराया गया था। यह महल दो मंज़िला है और इसके अंदर बहुत ही सुन्दर ताक़ बने हुए हैं और उन सबका निर्माण इतना सुन्दर किया गया है कि उसे सफवी शासन काल की वास्तुकला का सुन्दर वे बेजोड़ नमूना समझा जाता है।

जिन पर्यटकों ने भी निकट से इस्फहान को देखा है और हश्त बेहिश्त महल के अंदर से जाकर उसे देखा है उन्होंने इस महल व इमारत को दुनिया के सबसे सुन्दरतम महल का नाम दिया है।

चहारबाग का मदरसा

जब हम हश्त बेहिश्त की ओर चलते हैं तो कुछ कदम पर चहार बाग के मदरसे में पहुंचते हैं। यह मदरसा आज इमाम सादिक़ शिक्षा केन्द्र के नाम से मशहूर है। इस मदरसे का निर्माण धार्मिक छात्रों के लिए किया गया था। इसका निर्माण 1104 से 1126 हिजरी कमरी में शाह सुल्तान हुसैन सफवी के काल में हुआ था और यह सफवी काल की अंतिम इमारत है जो ईरानी कलाकारों की कला और सौन्दर्यबोध का जीवंत उदाहरण है। चहारबाग का जो मदरसा है उसके गुंबद का स्थान वास्तुकला और सुन्दर टाइलों के कार्य की दृष्टि से लुत्फुल्लाह मस्जिद के बाद है परंतु वास्तुकला के जो निपुण व दक्ष उस्ताद हैं उनका कहना है कि इसकी जो डिज़ाइन है और इसमें जो काम किये गये हैं उन सबको मिलाकर देखें तो यह अद्भुत कला का बेजोड़ नमूना है। इस मदरसे में विभिन्न प्रकार की टाइलों के जो काम किये गये हैं उसकी दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है। वास्तव में इस मदरसे को इस्फहान में टाइलों के संग्रहालय के रूप में जाना जाता है। इस मदरसे में बहुत बड़ा प्रांगण है जिसमें गगनचुंबी वृक्ष हैं और मदरसे के चौड़े व बड़े प्रांगण के बीच से एक नहर बहती है जिसने इसकी सुन्दरता में चार- चांद लगा दिये हैं और इससे मदरसे में एसा रोचक व मनोहर दृश्य उत्पन्न हो गया है कि आसानी से उससे अलग होने का दिल ही नहीं करता है। बहरहाल मदरसे के आस- पास जो ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थल हैं वे लोगों के ध्यान को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं।

चहार बाग़ मदरसे के उत्तर में एक छोटा सुन्दर बाज़ार है जो थोड़ा ऊंचाई पर स्थित है जिसे सफवी काल में ऊंचा बाजार या शाही बाज़ार के नाम से भी जाना जाता था। आज यह बाज़ार कला के बाज़ार के नाम से मशहूर है। यद्यपि बाज़ार के जो आंतरिक भाग हैं वे सफवी काल की वास्तुकला के नमूने हैं किन्तु इस्फहानी कलाकारों ने इसके निर्माण में जिस सौन्दर्यबोध से काम लिये हैं उसने इस बाज़ार को इस्फहान का सुन्दर पर्यटन बाज़ार बना दिया है।

चहार बाग़ मदरसे के पूर्व में शाह की मां का सराय है जिसे आज अब्बासी सराय कहा जाता है। यह सराय तीन शताब्दी पूर्व भव्य व सुन्दरतम सराय था और वास्तुकला की दृष्टि से अपने समय में दुनिया का प्रथम नंबर का सराय समझा जाता था। आशा है कि जब आप इस्फहान की यात्रा पर आयेंगे तो इस सराय व ऐतिहासिक होटल में रुककर आनंद का अनुभव करेंगे।

चहारबाग में जब हम चलते रहते हैं तो हम “चेहल सुतून” नामक एक अन्य सुन्दर महल तक पहुंच जाते हैं। इस महल का निर्माण सफवी काल में हुआ था। एक समय था जब इस महल में बादशाह के मेहमानों और विदेशी दूतों का आतिथ्य सत्कार किया जाता था। इस सुन्दर महल का जो बाहरी रूप है वह चेहलसुतून नाम रखने का मुख्य कारण है। क्योंकि वास्तव में इस महल में चालिस स्तंभ नहीं हैं बल्कि 20 स्तंभ हैं और उसके सामने पानी का बड़ा हौज़ है और जब उसकी छाया पानी के हौज़ में पड़ती है तो उसके स्तंभ दो बराबर दिखाई देते हैं यानी चालिस स्तंभ। इसलिए इसे चेहेल सुतून कहा जाता है।

 चेहलसुतून महल

ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप इस्फहान की यात्रा पर आयें और वहां के एतिहासिक पुलों को न देखें। जब आप इस्फहान में ज़ाइन्दे रूद नामक नदी के किनारे किनारे चलेंगे तो बहुत सारे पुल दिखाई देंगे और पुराने ज़माने में नदी के दोनों के बीच में संपर्क मार्ग का काम करते थे और लोग इस पार से उस पार जाया करते थे। इनमें से एक सुन्दर व मशहूर” सी वो से” पुल है जो चहार बाग अब्बासी के अंत में स्थित है। यह पुल लगभग 300 मीटर लंबा और 14 मीटर चौड़ा है और यह ज़ाइन्दे रूद नदी का सबसे लंबा पुल है और जिन चीज़ों का निर्माण शाह अब्बास ने कराया है उनमें सबसे पहले यही पुल है। कला व वास्तुकला की दृष्टि से यह पुल शाह अब्बास प्रथम के काल का बेजोड़ नमूना है। जब हम रात को इस पुल पर पैदल चलते हैं और इस पुल पर लगी लाइटों को देखते हैं तो मन- मस्तिष्क में इस्फहान की यात्रा अमिट छाप छोड़ जाती है।